ज्यादातर जनप्रतिधि निर्वाचित होने उपरांत ही रहने लगते हैं शहरी क्षेत्र में
सरकार के हुए तीन साल,जिले के तीनों विधायक ज्यादातर शहरी क्षेत्र में ही रहते आये
रवि सिंह-
बैकु΄ठपुर 12 अक्टूबर 2021 (घटती-घटना)। लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को निर्वाचित होने के बाद से ही जनता की कितनी फिकर रहती है जनता की समस्याओं को लेकर उनकी कितनी समाधान को लेकर तत्तपरता रहती है यह तो शायद निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से ही पता चल सकेगा क्योंकि यह मन की बात है और मन का अध्ययन अन्य द्वारा नहीं किया जा सकता,लेकिन जनता द्वारा निर्वाचित जनप्रतिधि क्षेत्र में कितना समय देते हैं क्षेत्र में लोगों से कितना मिलकर उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास करते हैं यदि इस बात का जवाब ढूंढा जाए तो एक बात साफ साफ कही जा सकती है और वह यह कि चुनावों के पूर्व तक एक एल मतदाता से हांथ जोड़ जोड़कर अपनी जीत को सुनिश्चित करने का आश्वासन लेने वाला जनप्रतिधि जब निर्वाचित हो जाता है तब वह क्षेत्र की तरफ रुख तभी करता है जब कहीं किसी निर्माण का लोकार्पण या उद्घाटन होता है। आम दिनों या ऐसे ही स्नेह स्वरूप वह मिलना पसंद नहीं करते यह लगातार देखा जा रहा है। निर्वाचित जनप्रतिधि क्षेत्र की चिंता छोड़कर निर्वाचित होते ही शहरी क्षेत्रों में निवास करना वहां के रहन सहन से जुड़ना ज्यादा पसंद करते हैं यहाँ तक वर्ष भर के ग्रामीण स्तरीय किसी आयोजनों में भी उनकी उपस्थिति तब हो पाती है जब उन्हें आदर से जाकर बुलाया जाय वहीं बुलावे पर उन्हें यह भी आस्वासन दिया जाय कि बुलावे की जगह भीड़ होगी और वह समर्थकों की तरफ से जुटाई जाकर भविष्य में मतों में परिवर्तित होगी।
कहने का मतलब जनप्रतिधि क्षेत्र में तभी दर्शन देते हैं जब उन्हें मतों की जरूरत पूरी होती नजर आती है। वर्तमान में कोरिया जिले में तीन विधानसभाएं हैं तीनो विधानसभा के विधायक लगातार शहर में ही निवासरत हैं, आना जाना हुआ भी तो कभी कभार क्षेत्र का भ्रमण कर लिया वरना उसकी भी जरूरत जनप्रतिधि महसूस नहीं करते। विभिन्न लोकार्पण उद्घाटन में आकर उपलब्धियां गिनाने के अलावा आमतौर पर इनकी उपस्थिति क्षेत्र में नहीं होती तह 3 वर्षों के बीतते बीतते समझ मे भी आ रहा है और इसकी चर्चा भी जारी है। शहरी परिवेश और शहरीकृत जीवन का आनंद शायद इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा भा रहा है यह भी क्षेत्र में कम उपस्थिति को लेकर समझा जा सकता है। आमजनों की समस्याओं को लेकर भी समस्या यदि प्रभावशाली व्यक्ति की है वहाँ तक जनप्रतिनिधियों का पूरा सहयोग भले ही फोन से मिलना तय रहता है जबकि आम जन तकलीफों में दिक्कतों व परेशानियों में अपने द्वारा जनप्रतिनिधियों को ढूंढ कर भी पाने में असफल होते हैं यह आम विषय बन चुका है। जनप्रतिनिधियों ने एक तरह से निर्वाचित होने उपरांत ही क्षेत्र की बजाय अपनी सुख सुविधाओं को ज्यादा तवज्जो देनी शुरू की है यदि ऐसा कहा जायेगा तो गलत नहीं होगा। आज शायद ही किसी आवस्यकता पर जनप्रतिनिधियों से सीधे मुलाकात हो जाये या ढूंढने पर उनका पता ही मिल जाये। जनप्रतिधि राजधानी या प्रदेश के बाहर अन्य राज्यों के दौरों प्रचार सहित अन्य दलीय जिम्मेदारियों को निभाने में भी इतने व्यस्त हैं कि उनके पास अपने क्षेत्र के लिए न तो समय है और न क्षेत्र के लोगों की ही चिंता करने का समय।