
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने सम्पूर्ण मीडिया परिदृश्य को एक नया रूप दे दिया है। आधुनिक तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के युग में समाचारों की रफ्तार तो बेशक बढ़ी है लेकिन साथ ही फर्जी खबरों और भ्रामक वीडियो की बाढ़ भी आई है। आज आधुनिक तकनीक की मदद से फर्जी वीडियो बनाना इतना सरल है कि दर्शकों के लिए सही-गलत में अंतर करना मुश्किल हो गया है,ऐसे में अखबारों ने अपनी गहन रिपोर्टिंग और तथ्यपरकता से जनता के बीच भरोसे की पहचान बनाई है।
डिजिटल मीडिया और टीवी समाचार चैनलों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि ने समाचारों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जबकि नयी पीढ़ी का मानना है कि टीवी समाचार चैनलों और यूट्यूब चैनलों ने अखबारों की पाठक संख्या में गिरावट पैदा की है। लेकिन उनकी यह सोच निराधार ही कही जाएगी। अक्सर देखने में आया है कि टीआरपी की दौड़ में कुछ टीवी चैनल गलत समाचार भी प्रसारित कर रहे हैं। जिससे चैनलों की विश्वसनीय पर सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में अख़बार विश्वसनीयता और गहराई के कारण जनता के बीच भरोसे का प्रतीक बने हैं। हाल के वर्षों में देखा गया कि कई टीवी न्यूज़ चैनल टीआरपी की दौड़ में तथ्यों की पुष्टि किए बिना सनसनीखेज़ ख़बरें चलाते हैं। इसके लिए कई बार इन टीवी समाचार चैनलों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से भी नोटिस मिले। हाल ही में भारत-पाकिस्तान तनाव और ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ को लेकर प्रसारित खबरों का विश्लेषण करें तो सामने आता है कि करीब 80 प्रतिशत खबरें बिना तथ्यात्मक पुष्टि प्रसारित की गईं। इससे दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बढ़ी व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी भारत के समाचार चैनलों की किरकिरी हुई। कुछ चैनलों ने तो सुरक्षा बलों से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी प्रसारित कर दीं,जिससे उनके अभियान और जान पर खतरा उत्पन्न हो गया। टीवी चैनलों की जल्दबाज़ी केवल राजनीतिक खबरों तक ही सीमित नहीं रही। सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील जानकारियों का प्रसारण,जिसमें हमारी सेनाओं की रणनीति और ऑपरेशन के विवरण शामिल थे,सुरक्षा बलों के लिए खतरा पैदा कर सकती थी। मसलन,पहलगाम हमले की गलत तारीख पर रिपोर्टिंग करके टीवी चैनलों ने बहुत से लोगों के दुख का मजाक बनाया था। जिसमें एक बहुचर्चित इमोशनल वीडियो नौसेना अधिकारी विनय नरवाल और उनकी पत्नी का था,जो टीवी चैनल्स के मुताबिक पहलगाम हमले से पहले रिकॉर्ड किया गया था। इस प्रकार के और भी बहुत उदाहरण हैं,जिनमें समाचार चैनल्स ने न केवल राष्ट्रीय समाचार रिपोर्टिं गबल्कि अंतर्राष्ट्रीय समाचार रिपोर्टिंग में भी अपनी विश्वनीयता खो दी। अधिकांश टीवी चैनल ‘सबसे तेज़’ बनने की होड़ में तथ्यात्मक पत्रकारिता से समझौता कर बैठते हैं। तथाकथित डिबेट शो में शोर-शराबे और राजनीतिक एजेंडा ने खबरों की गंभीरता प्रभावित की। वर्ष 2023 में मणिपुर हिंसा के दौरान भी कई चैनलों ने बिना जांच के पुराने और फर्जी वीडियो प्रसारित किए, जिससे स्थिति और भड़क गई। बाद में स्पष्ट हुआ कि वे वीडियो फर्जी थे और उनका मणिपुर से कोई संबंध नहीं था। उधर,यूट्यूब जैसे स्वतंत्र डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने रिपोर्टिंग को लोकतांत्रिक बनाया है,लेकिन साथ ही खबरों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर सवाल भी खड़े किए। चूंकि इन प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारण के लिए किसी औपचारिक सत्यापन प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए फर्जी खबरें और भ्रामक विश्लेषण आसानी से दर्शकों तक पहुंच जाते हैं। इसके विपरीत अखबारों में हर खबर कई स्तरों पर जांच-परख के बाद ही प्रकाशित की जाती है। संवाददाता की फील्ड रिपोर्टिंग के बाद डेस्क और संपादकीय टीम मिलकर स्रोतों की जांच करती है और खबर की गहराई से पुष्टि करती है। प्रिंट मीडिया ने वर्षों की परंपरा,सटीकता और जिम्मेदार रिपोर्टिंग के बल पर खुद को एक विश्वसनीय माध्यम के रूप में बनाए रखा है। अख़बारों की सबसे बड़ी ताकत है-फैक्ट चैकिंग और सम्पादकीय प्रक्रिया। अख़बारों में एक खबर प्रकाशित करने से पहले कई स्तरों पर तथ्यों की पुष्टि होती है। सबसे पहले पत्रकार अपनी सूझबूझ से कोई समाचार भेजता है,फिर डेस्क की निगरानी के बाद संपादकीय निगरानी से उस समाचार के स्रोत की जांच और गहराई से विश्लेषण अख़बारों को विश्वसनीय माध्यम बनाते हैं। उदाहरण के लिए,दैनिक ट्रिब्यून जैसे अख़बारों ने बार-बार दिखाया है कि वे गहराई से रिपोर्टिंग कर पाठकों तक सही जानकारी पहुंचाते हैं। यही कारण है कि प्रिंट मीडिया आज भी गंभीर पाठकों की पहली पसंद बना है। जब फर्जी खबरें समाज को गुमराह कर रही हैं,तब जरूरी हो गया है कि हम अखबारी विश्वसनीय स्रोतों से ही जानकारी लें। भारत में 2023 में समाचार पाठकों पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार,44 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने समाचार पत्रों को सबसे भरोसेमंद समाचार स्रोत माना। ‘सबसे तेज़’ बनने की होड़ में खबरों की सच्चाई,भाषा की मर्यादा और रिपोर्टिंग की नैतिकता कहीं खोती जा रही है। ऐसे समय में अख़बारों को फिर से पढ़ना,समझना और उनके जरिये सही जानकारी प्राप्त करना बेहद ज़रूरी हो गया है। समाचार पत्र पढ़ने से समाचारों की व्यापक और गहन कवरेज मिलती है,जो टीवी समाचारों से कहीं ज़्यादा विश्वसनीय होती है। यह आलोचनात्मक सोच, विश्लेषणात्मक कौशल और विभिन्न विषयों की व्यापक समझ विकसित करने में मदद करता है।