भासा जीनगी ले जुरे अंग आय, जेन मइनखे ले दुरिहा होब्बे नइ करे। भासा आदमी के सुख – दुख ल जाने,समझे के काम आथे, फेर आजकल झगरा लड़ाए के काम आवत हे। एक अंदाजन बताए जाथे कि दुनिया मा बोली ल संघेर के 6500 (छे हजार पान सो) तक के भासा बोले जाथें। जेमा भारत देश मा तकरीबन 1600 के आसपास भासा ल बोलथें। माने एक तिहाई भाषा ल हमर भारत देश के मन बऊरत हें।* भासा कोनो जाति धरम के नइ होवय ओ परिवेस मा रहइया मइनखें मनके होथे। असल मा मुहूँ ले निकले बोलिच ह भासा आय।
भासा के तीन रुप माने गेहे ट्ठबोलके, लिखके अउ ईसारा ले। आदमी हर कोनो संग नइ बोलही अइसन होबे नइ करे। एकठन कहावत हे ट्ठहडç¸या के मुहूँ मा तो परई ल ढंक लेबे, फेर मइनखे के मुहूँ मा काला ढांकबे..। सवभाव मा दुठक बोली ल परखथें (1) टांठ बोली (2) गुरतुर (मीठ) बोली। अउर एक साँच बोली हे जेनहर जहर करू लगथे, जेकर तीर मनखे ओधना पसंद नइ करे। गुरतुर बोली बड़ सुहाथे। मीठ-मीठ बोली मा मइनसें मोहा जाथे, फेर जादा मीठ मा कीरा घलोक परथे। टांठ बोली ले जादा मनखेमन मीठ बोली मा अरहझथें, जेन धोखा खाथे तेनमन बोलथें मीठ लबरा हे। अधिकांस गुरतुर बोली -भाखा ल मनखे अपन काम -बुता ल सरकाय बर बोलथे। कुछ भासा हा सवभाव मा झलकथे, कुछ भासा बेरा बखत मा बदल जथे। तोला बात करेके तमीज नइ हे का..,कइसे टेंचरही-टेंचरही गोठियाथस। ओकर भाखा ला परखे हो बड़ ठसन मारके गोठियाथे। कुछ मनखें तो डर के मारे नइ बोले त कुछहर पोल – पट्टी,दोष उजागर झन हो जाए कहीके नइ बोले। एकदम गोंजवच…जोजवच…मिटकाहाच मइनखे हे। ओ तो एकदम लपरहा हे…बड़ चाँटे असन गोठियाथे। रंग -रंग के गोठ आथे ओला गा…एकदम लरचट्टा असन लगथे। तोर तो मुंहु गोठियाय बर खजुवात रइथे…। ओकर भासा ल सुनके मनखे ढाड़ सुखागे। अतेर सुख -दुख के बेरा मा जरे जुबान नइ बोलिस गा..कइसनेच ढंग के मइनखे होहि भई। त कोनो काहत हे हाड़हुड़ कुछ बी बोल देथस..एकदम वो बोलथे ना, त करेजा ला बान मारेकस लगथे। कोनो धीरलगहा गोठियाथे, ओकर बाते म बड़ राज हे। का तोला डरहे के बोल नइ सकत हस.?, खुलके बोलना जी का बोलना हे..। इहाँ भीख मांगे अउ वोट मांगे के बोली भाखा तको हे। नेतामन सीना ठोंकके, जांघ ठठाके बोलथे। मोला ओकर भासा बने लगथे गा.. मोला ओकर भासच पसंद नइ आवय। ओकर कहे मुताबिक रद्दा बदलगे.. ओकर बात मा आके हमन झपागेन। ते मार खाएक लईक झन बोले कर
ना.. एकदम थोथना ला उतारके झन बोलेकर ना यार..। ओकर से मिलके मोर जोस बढ़गे , ओकर गोठबात ल सुनके मोर जोसे उतरगे। ओकर बाते ल सुनके सब चक खागे…ओहर अइसन नइ बोलतिस ते झगरा नइ माततिस। महिला मनके झगरालू, बिखहर भासा ट्ठतोर मुहूँ मा कीरा परे, तोर मुहूँम आगी लगाव..। भासा के भाव तको हे खुसामद (चाटुकारिता) के भासा अधिकार के भासा, अमीर – गरीब, मेहनतिया मनके भासा, सुख -दुख के भासा। समय के हिसाब ले बोलेल परथे, वो तो अपन बोलिच मा पइसा कमाथे। बोलेच बोल मा अंतर हे.. बोलेच मा का हो जाही, करके देखाही ता। मोला ओकर भासा समझे नइ आवय.. त का उर्दू, अंगरेजी बोलथे ?
बोलेल आना चाहि जबान वाले के गदही बेंचा जथे बिन जुबान वाले के घोड़ा तक भरे बजार मा नइ बेंचावय । माने जिनगी म भासा के बड़ महत्ता हे..!
फेर चाहे तैं कइसनो बोल गोठियाले, जेला जइसनेच के समझना हे,तइसनेच समझथे। भासा ले जादा समझ के होथे..त समझके बोलना चाहि । काय समझथे तोला.. तोला कुच्छु नइ समझे, ता तोर भासा के कोनो मतलबे नइ हे। जिहाँ आदमी सोंच- बिचार के बइठे हे उहाँ कोनो भासा काम नइ आए। भासा हर ऊँच-नीच हो सकत हे, समझइया बर तो ईसारा काफी हे। मइनखे गंजअकन भासा ल जानथें, समझथें त समस्या काबर आथे…?
आखिर मा काय सोंचत हस तेला अपन भासा मा बता यार…..।।
मदन मंडावी
ढारा (करेला) डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़
