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लेख@फूंक-फूंक कर कदम रखना वो लोग जो सॉरी…

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कितना छोटा शब्द है ना सॉरी,कितनी आसानी से इस शब्द का प्रयोग कर अपने बड़े-बड़े कर्म कांडों पर पर्दा डालना के लिये बस दो वर्णों का शब्द माफी बोलकर जैसे लोग गंगा नहा लेते हैं। किसी के अंतरात्मा को,वजूद को,किसी की रूह को तोड़ छलनी-छलनी कर, समाज में, रिश्तेदारों में, दोस्त यारों मे इतना गिरा सबकी नजरों मे और बाद मे जब अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो मात्र माफी (सॉरी) शब्द का प्रयोग कर लिया। क्या इतनी हद तक गिर जाने के बाद आपके अंतर्मन को घायल करने वाले को आप कभी माफ़ कर पाएंगे। शायद नहीं या शायद हॉं।


यदि मुझ लेखिका से यही प्रश्न कोई करता तो मेरा उत्तर सिर्फ एक होता- बिल्कुल नहीं। सच मैं उस इंसान को कभी भी माफ नहीं कर सकती जो इतना ज़लील हो। जो स्वयं के भीतर पनप रहे हर एक पाप को छुपाने के लिये किसी दूसरे को ग़लत ठहराने की हर एक वो चाल चले जिससे वो तो समाज की नजरों में पाक-पवित्र साबित हो जाए ( जो कि वो है ही नहीं) और दूसरों के सर पर हर एक लांछन का पिटारा फोड़ दे( जब की वो भी जानता की सामने वाला वैसा है ही नहीं)। जानते हैं किसी के ऊपर बेवजह ऊंगली उठाकर या उसे बदनाम करके आप अपने पाप कर्म पर आखिर कब तक पर्दा डाल सकते हैं चलिए समाज रिश्तेदारों को कुछ माह, कुछ वर्ष तक आपने अपने शैतानी दिमाग से चाल चल अपने बातों मे फंसा लिया पर क्या आप अपने नाजायज़ संबंध, पाप, अनगिनत लोगों के साथ पैसों की हेराफेरी,हवस,गलत तंत्र-मंत्र, दूसरों के रिश्तों में दरार डाल बहती गंगा में हाथ धोने जैसे नापाक सोच लिये हुए उस कर्म, समय के चक्र, भगवान से बच सकते हैं?
आप सोचेंगे ये कितने सवाल करती लेखिका? परंतु जिंदगी के हर एक मीठे-कड़वे अनुभवों ने इतनी गहराई तक वार किया की रूह से लिखने बैठ जाती और लिखती तो अपनी ही जिंदगी के समस्त उपस्थित किरदारों संग मिल जिंदगी की किताब खोल कर पाठकों के आगे रख देती। एक खुली किताब हूॅं मैं। चलिए वापस उसी प्रशन पर आ जाती हूॅं तो बताइये क्या ऐसे लोगों को कर्म, समय, काल का चक्र बख़्श देंगे? जवाब है नहीं बिल्कुल नहीं बख्शेंगे ऐसे लोगों को उनके ही द्वारा किये हर एक वो कर्म जो वो करते तो चले गये,जब उन चालाक, धूर्त,कपटी लोगों को लगा उनकी किसी सरल इंसान को गिरा पाप के राह में आ रहे कॉंटें पर विजय पा ली है तो इस घिनौनी जीत का जैसे उन पर नशा छा जाता है ओर वो उस घिनौने नशे में लिप्त होकर बस हर एक उस इंसान को बेवजह बदनाम करते जो उनकी अय्याशी या ग़लत कामों में रोड़े बन रहा है। ऐसे लोग भूल जाते की उनसे भी अधिक चालबाज कोई ओर है और वो चालबाज ओर कोई नहीं वो कर्म, समय, भगवान है। जिनकी लाठी जब चलती तो आवाज़ भी नहीं होती और चालबाज की हर एक चाल उस पर ही पलटवार कर उसे औंधे मुंह गिरा देती है। वक्त लगता है पर इंसाफ़ जरूर होता है।
चलो मान भी लो कि ऐसे दुष्टों को माफ हम इंसान कर भी दें पर रूह में सदैव‌ हर एक दी गई चोट के निशान रहेंगे जो कभी भर नहीं सकते। ये चोट बाहरी रूप से नहीं दिखते परंतु आंतरिक रूप से तोड़ देते इंसा को उस इंसान को जो आंख मुंद कर खुद से भी अधिक, इस ज़माने से भी अधिक सिर्फ और सिर्फ आप पर विश्वास करता था जो आपको ही अपना सर्वस्व मानता था और जब ऐसे इंसान को आप चोट देते तो वो इंसान टूटकर बिखरता चला जाता और आप उसे अपनी विजय समझते इसी विजय के नशे की लत सी जैसे लग जाती और आप वार दर वार करते चले जाते हो।
बहुत नसीब वालों से मिलते खुद से अधिक, समाज से अधिक चाहने वाले लोग जो अपना सर्वस्व मानते आपको ऐसे लोगों को तो करोड़ों की जागीर की तरह समझ संभालकर रखना चाहिए ना की उसे इतने प्रताडç¸त करना चाहिए की वो स्वयं आपसे बेपनाह नफरत करने लगे। और बस बाद में उसी शख्स को सिर्फ सॉरी कह कर आप अपनी ओर पुनः खिंचने की कोशिश करें । जो की संभव तो है पर पहले की तरह नहीं, वो पहले जैसा प्यार, विश्वास,सम्मान नहीं दे पाएगा क्योंकि वो अपनी रूह पर लगी चोट से आपके घिनौने शैतानी व्यक्तित्व को पहचान चुका होता है उसे आपकी सच कही बात भी झूठ लगेगी,आपके आंखों के पछतावे के आंसूं भी बनावटी लगेंगे क्योंकि जहरीला गिरगिट हमेशा रंग बदलता रहता है उसके रंग बदलने की फितरत नहीं जा सकती और ये जहरीले गिरगिट सरल इंसान को कब डस ले कह नहीं सकते। इसलिए भरोसा जो टूट गया वो पुनः नहीं आ सकता।
क्या माफी मांगने के बाद आप वो सम्मान वापस दे पाएंगे? जो आपने समाज रिश्तेदारों में खराब किया सरल इंसान का,क्या आप वो हसीन समय लौटा सकते जो आपकी घटिया रची साजिशों तले जीतेजी नरक बन गया सरल इंसान के लिये? क्या आप हर एक वो खुशी दे सकते लौटा के जिसका हकदार था सरल इंसान,अरे आप जैसा इंसान किसी को क्या देगा जो अपने स्वार्थ के लिये खून के रिश्तों को भी छलते चले गये, खैर आप जैसे इंसानों का वजूद,अरे आप जैसे इंसानों का होना ही एक कलंक है इस दुनिया में जो अपने स्वार्थ के लिये किसी के साथ भी सोने के लिये भी तैयार हो जाते। आप जैसे शातिर चालबाज लोग ये तक भूल जाते की आप से जुड़े लोगों का भविष्य भी अंधकार में डूब जाता है। खैर ऐसे लोग पैसे के पुजारी होते वो पैसों और अपने हर एक स्वार्थ, अय्याशी के लिये किसी भी हद तक गिर सकते। जिसने एक बार छला वो छलता ही चला जाता याद रखना ऐसे लोगों पर पुनः विश्वास मतलब खुद को दर्द के दलदल में खुद को धकेलने जैसा है । माफ़ कर दो पर अपनी आंख, नाक, कान को चौकना रखने मे ही आपकी समझदारी है वो कहावत है ना दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। तो फूंक-फूंक कर कदम रखो और खुद को पुनः खड़ा कर सको अपने दम¸ पर ।


वीना आडवानी तन्वी
नागपुर,महाराष्ट्र


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