कविता @ जिंदगी तेरा कोई पता नहीं…

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जिंदगी तेरा कोई पता नहीं
कब आती हो और कब चली जाती हो।
लोग सोचते हैं शायद किसी का कसूर होगा
मगर आती हो तो हजारों बेकसूरों को भी
अपने साथ ले जाती हो।
कोई तड़पता है अपनों के लिए कोई रोता है
औरों के लिए पर तुम छोड़ती नहीं
किसी को भीअपने साथ ले जाने को।
जब मरता है कोई एक तो अफ सोस-ऐ-आलम
कहते है सब पर जब मरते है हजारों
तो कौन-ऐ-कयामत कहते हैं सब।
तू भी कभी तड़पती रूहों को अपने गले लगाए
ज़रा रोए कर मरते हुए किसी चेहरें को खिल-
खिला कर जरा हँसाए कर।
मानता हूँ कि कौन तेरे रोम-रोम में बसा हैं
फिर भी किसी मरते हुए इंसान के माथे को चूम
ज़रा-ज़रा सा मुस्काया कर।
जिंदगी तेरा कोई पता नहीं,कब आती हो और
कब चली जाती हो।


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