हमारे सामने ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर देश के दो परस्पर विरोधी दृश्य हैं। विदेश गए सर्वदलीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने इस तरह भारत का पक्ष प्रस्तुत किया जैसे देश पाकिस्तान केंद्रित सीमा पार आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर तथा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर पूरी तरह एकजुट है और कोई विपक्ष है ही नहीं। दूसरी ओर आप पहलगाम हमले से लेकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और उसके बाद देश के अंदर विपक्ष की भूमिका देखिए, किसी भी देशभक्त और सच्चाई का ज्ञान रखने वाले निष्पक्ष व्यक्ति का दिल दहल जाएगा या फिर उसको गुस्सा आएगा। ऐसा कोई दिन नहीं जब विपक्ष के बड़े नेता ऑपरेशन सिंदूर’ पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश नहीं कर रहे। लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी पहले दिन से प्रश्न उठा रहे हैं कि हमारे कितने लड़ाकू विमान को नुकसान हुआ। लगभग यही स्वर कांग्रेस के अध्यक्ष एवं राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे का है। जयराम रमेश ने तो लगता है जैसे ऑपरेशन सिंदूर’ को ही अपने सोशल मीडिया का मुख्य विषय बना दिया है। सबसे अंतिम हमला सिंगापुर शंग्रीला सम्मेलन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) अनिल चौहान के भाषण और ब्लूमबर्ग को दिए साक्षात्कार पर है। सभी नेता एक साथ टूट पड़े हैं कि अब सरकार बताए कि कितने राफेल नष्ट हुए, इस पर संसद का विशेष सत्र बुलाएं तथा रिव्यू कमेटी यानी पुनरीक्षण समिति बनाया जाए। इसमें यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं है। सीडीएस का पूरा इंटरव्यू सबके सामने है। उसमें कहीं नहीं है कि पाकिस्तान ने हमारे कितने लड़ाकू विमान गिराए या हमें कोई बड़ी क्षति हुई। यह सामान्य बात है कि कोई भी युद्ध या लड़ाई एकपक्षीय क्षति वाली नहीं होती। यही सीडीएस ने कहा है। किसी को ज्यादा क्षति होगी किसी को कम। मूल बात यह है कि भारत ने पाकिस्तान के सैन्य दुस्साहस का ऐसा करारा प्रत्युत्तर दिया, जिससे उसकी हुई व्यापक क्षति के बारे में दुनिया के विशेषज्ञ बता रहे हैं और उनसे संबंधित उपग्रह के चित्र आदि सामने ले जा चुके हैं। कई बार लगता है कि हम सरकार को घेर रहे हैं सेना और देश को नहीं। किंतु इसका दूसरा पहलू यही है कि सरकार निर्णय करती है क्रियान्वित सेना करती है।सेना सरकार के लिए नहीं देश के लिए सैन्य कार्रवाई करती है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में सरकार ने यह तय नहीं किया होगा कि सेना कैसे कार्रवाई करे कि हथियार, लड़ाकू विमान, मिसाइल, राडार आदि का प्रयोग करें या कितने जवान उनमें लगें। जिस तरह पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री सीडीएस, तीनों सेना के प्रमुखों से लेकर विदेश मंत्री, उनसे जुड़े मंत्रालय, रक्षा मंत्री, मंत्रालयों के अधिकारी एवं अन्य अलग-अलग आवश्यक क्षेत्र के शीर्ष लोगों से मिल रहे थे उससे साफ था की रणनीति पर गहराई से विचार हो रहा है। निश्चित रूप से सैन्य रणनीतिकारों ने अपनी पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए उन्हें आस्त किया होगा या फिर उनकी जो आवश्यकता होगी उसके बारे में बात की होगी। सरकार यानी राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका साहसपूर्वक निर्णय करने के साथ सेना को कार्रवाई और रणनीति की संपूर्ण स्वतंत्रता देना तथा अपने व्यवहार एवं कदमों से आस्त करना कि कार्रवाई में किसी तरह की आवश्यकता में कमी नहीं होगी।
-अवधेश कुमार-
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