कविता@वर्तमान की है सत्यता…

Share


वर्तमान की है सत्यता,
समाज में अराजकता पसर रहा।
सुरा-पान में लिप्त पीढ़ी,
पाश्चात्य शैली का असर रहा।
देख तरूण का दुर्दशा,
मन व्यथित होता है।
चाकरी को दर-दर भटके,
डिग्री ले रोता है।
मर्यादा की तोड़ती सीमा रेखा,
चलित दूरभाष यंत्र का खेला है।
सु संस्कार को कर पीछे,
रंग रंगलियों का मेला है।
रिश्तो में बढ़ रही दूरियां,
एकाकी पन का पीड़ा है।
अंतकाल को हुए तिरस्कृत,
वृद्धा आश्रम उठा रहा बीड़ा है।
प्रजातंत्र की सुंदर काया,
चमक रहा है श्वेत पोषाकों पर।
शोषित निरीह प्राणी जस,
सहज आ जाते हैं झांसो पर।
छल,कपट,घृणा,द्वेष,
घोषित हो रहा है मन में।
एक दूसरे को नीचा दिखाने,
धनबल अस्त्र बना है जन में।


Share

Check Also

कविता@नोहय नारी अब तो अबला…

Share नोहय नारी अब तो अबलाबनगे हावे अब ए ह सबला।नारी बिना हे ए जग …

Leave a Reply