लेख @ घरेलू हिंसा से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर

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भारत में घरेलू हिंसा का सामना कर रही माताओं के बच्चों में मस्तिष्क संबंधी विकारों जैसे कि चिंता और अवसाद का खतरा काफी अधिक हैं। यह बात एक अध्ययन में सामने आई है। पेलोस वन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन स्कूल कार्यक्रमों में ट्रामा के प्रति संवेदनशीलता और भारत में घरेलू हिंसा की रोकथाम में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है। संवेदा कंसेंटियम,बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने लगभग 2,800 किशोर-माता के जोड़ों पर अध्ययन किया। यह डाटा शहरी और ग्रामीण भारत के सात केंद्रों से एकत्र किया गया जिसमें 12 से 17 वर्ष के किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों और उनकी माताओं पर होने वाले मनोवैज्ञानिक,शारीरिक और यौन शोषण का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने बताया कि जो माताएं शोषण का सामना कर रही हैं,उनके घरों में किशोरों में चिंता और अवसाद के ज्यादा मामले सामने आए।
भारत में अनुमानित एक तिहाई महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं जिससे उन्हें चिंता,अवसाद,पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसआर्डर और आत्महत्या की प्रवृत्ति का सामना करने की अधिक संभावना होती है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पश्चिमी अध्ययनों में इस संबंध को अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि घरेलू हिंसा का सामना करने से जन्म के समय प्रतिकूल परिणाम जैसे कि गर्भपात, मृत या समय से पहले बच्चे का जन्म और बच्चों में भावनात्मक व्यवहारिक और शैक्षणिक कठिनाइयां हो सकती हैं।
संयुक्त परिवार और भावनात्मक साधनों पर ध्यान देने की आवश्यकता : हालांकि,यह जानने में अभी भी कमी है कि घरेल हिंसा का सामना कर रही माताएं बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकती हैं, जिसके लिए घरेलू हिंस के सांस्कृतिक पहलुओं,जैसे कि संयुक्त परिवार और भावनात्मक साधनों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। लेखकों ने स्पष्ट किया कि संयुक्त परिवार प्रणाली में एक महिला अपने पति के परिवार के साथ रहती है,परिवार के समर्थन का कार्य कर सकती है लेकिन यह सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से पुरुष पर प्रभाव डालकर घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा दे सकती है। घरेलू हिंसा के अन्य प्रकारों में महिलाओं को उनके पैतृक घरों में लौटने के लिए मजबूर करना, चोट पहुंचाने के लिए पत्थरों का उपयोग करना और एक लड़की के जन्म तक गर्भनिरोधक को रोककर जन्म के परिणामों को नियंत्रित करना शामिल है। शोध लेखकों ने कहा कि मनोवैज्ञानिक हिंसा में मौखिक धमकियां व उत्पीड़न शामिल होता है जो संभवतः बच्चों द्वारा अधिक देखी जाती है।


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