गुरुघासीदास टाइगर रिजर्व में आग से ऐसी उजड़ी हरियाली की देख कर लोगों का पसीजा दिल…

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-राजन पाण्डेय-
सोनहत, 23 मई 2025 (घटती-घटना)। मानसून आने को अब चंद दिन शेष है पतझड सामाप्त हो चुका है पेंडों पर नए पो भी आ चुके है महुए का सीजन खत्म हुआ अब सरई के पेंडों पर फूल आने की बारी है सोनहत क्षेत्र के जंगलों में वर्तमान में हुई बारिश होने के बाद शाम के समय पूरा जंगल सरई के पत्तों की भीनी भीनी प्राकृतिक खुशबू से भरा रहता है। लेकिन वही विकासखंड सोनहत स्थित गुरूघासीदास राष्ट्र्रीय उद्यान में स्थिती ठीक विपरीत है आलम है की एक माह पुर्व जंगलों में लगी भीषण आग से कई जगहों पर राष्ट्र्रीय उद्यान वीरान एवं उजाड हो गया है, ऐसा लग रहा है मानों किसी ने उद्यान की सुदरता उससे छीन ली हो। गुरुघासी दास टाइगर रिजर्व के मुख्य प्रवेश द्वार मेण्ड्रा बेरियर से महज 5 से 7 सौ मीटर की दूरी पर भयंकर आग लगने से कई किलोमीटर का जंगल पूरी तरह जल गया है। आलम है कि शाल के 40 से 50 फिट ऊंचे पेड़ के पूरे पो जल गए और पेड़ो में आग की जली हुई निशानी स्पष्ट दिखाई दे रही है इतनी बेदर्दी से जंगल जले की देखने वालों का दिल पसीज जा रहा है। जंगल जलने की स्थिति देखने के बाद यदि जानवरो का क्या हुआ होगा इस बात पर गौर किया जाए तो मन मे एक अजीब सी तस्वीर बनने लगती है। शायद इसी जले हुए दृश्य को देख कर और पशु पक्षी और जानवरों की परिकल्पना कर कोरिया जिले की संवेदनशील कलेक्टर चंदन त्रिपाठी भी बेहद भावुक नजर आई। जी हाँ हम बात कर रहे हैं रामगढ़ क्षेत्र में सुशासन तिहार के तहत आयोजित शिविर की जहां पहुचने के बाद कलेक्टर कोरिया ने भावुकता से भरा उद्बोधन दिया और जंगलों को बचाने की अपील की। कलेक्टर कोरिया ने ग्रामीणों से जंगलों में आग न लगाने की अपील करते हुए कहा कि आप लोग सभी इस जंगल के स्वामी है और अपना स्वामित्व तभी बरकरार रख पाएंगे जब ये जंगल बचेगा, कलेक्टर ने कहा कि पुटु खुखड़ी और वनोपज के लिए लोग जंगलों में आग लगा देते हैं और आग बाद में फैल जाती है जिससे जंगलों का बड़ा नुकसान हो जाता है इस लिए आग मत लगाइये। कलेक्टर कोरिया ने बहुत भावुकता भरे अंदाज में कहा की पशु पक्षी सब हमारे हैं एक बार गए (अर्थात आग से यदि इन्हें नुकसान हो गया) तो वापस नही आएंगे, पहले सोनहत रामगढ़ क्षेत्र में बहुत बाघ हुआ करते थे लोग देखने के बाद फ़ोटो खींचने के लिए ललाहित हो जाते थे ऐसे आग लगेगी तो कुछ भी नही बचेगा।
क्या पार्क के अधिकारियों को नही पड़ता फर्क?
कलेक्टर कोरिया शिविर से अपील कर रही थी और पार्क के अधिकारी बैठ कर सुन रहे थे,यहां सवाल यह उठता है कि पार्क प्रबंधन को इतना आबंटन प्राप्त होता है,लाखों की मशीनें क्रय की गई हैं फायर वाचर रखे गए हैं बावजूद इसके मेण्ड्रा बेरियर जो कि कैम्प की तरह संचालित है वहां से महज 500 से 700 मीटर की दूरी पर इतनी भयंकर आग लगी और कई किलोमीटर का जंगल जल गया तो विभाग के अधिकारी कर्मचारी क्या कर रहे थे? विभाग के फायर वाचर कहाँ थे? मशीने कहां थी । लोगो में ऐसी चर्चा हैं कि रेंज अफसर मुख्यालय में निवास करते तो शायद अच्छी मॉनीटिरिंग होती और और शायद आग जनी की घटनाओं पर ज्यादा ध्यान देते तो नुकसान कम होता,लेकिन रेंज ऑफिसर बैकुंठपुर से आवागमन करते हैं और आने के बाद निर्माण कार्यो को देखने चले जाते हैं इसके बाद थकान महसूस होती होगी तो वापस बैकुंठपुर चले जाते है। वर्तमान समय में राष्ट्र्रीय उद्यान क्षेत्र के तुररी पानी परिक्षेत्र सोनहत,सहित मुख्य सड़क के अगल बगल के हिस्से पहाडि़यों पर भी आग के कारण जंगल जला हुआ दिखाई दे रहा है और अभी तक जंगल हरा भरा नही हो पाया है इसके अतिरिक्त अधिकांश जमीन जल कर काली हो गई है छोटे पौधे जल कर राख के हो गए है।
नही सुना रहा पक्षियों का कलरव,जानवर भी नही दे रहे दिखाई
राष्ट्र्रीय उद्यान क्षेत्र में भीषण आग के बाद यहां के जानवरों को यहां की आबो हवा राश नही आई अधिकांश जंगली जानवर भी पलायन कर चुके है । कुछ जानवर पानी के आभाव में पलायन कर गए और कुछ को आग की लपट एवं आग से जंगलों के विरानगी ने पलायन करने पर मजबूर कर दिया उल्लेखनीय है सोनहत से रामगढ जाने वाले रास्ते पर हिरण नीलगाय खरगोश मोर एवं छोटे बडे जानवरों का मिलना आम था लेकिन वर्तमान समय में चंद बंदरों के अलावा कुछ भी दिखाई नही देना राष्ट्र्रीय उद्यान के विकाश एवं वन्य प्राणी संरक्षण की दृष्टिी से बुरा संकेत माना जा सकता है।
प्रति वर्ष आग पर नियंत्रण नही
एक तरफ राष्ट्र्रीय उद्यान की नियमावली कहती है की उद्यान के अंदर माचिस एवं अग्नि सामग्री लेकर जाना प्रतिबंधित है लेकिन बावजूद इसके यहां प्रति वर्ष भीषण आग लग जाती है अब सवाल यह उठता है की इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा प्रशासन स्तर पर विभाग द्वारा आग लगने के बाद जांच बैठाई जाती है जांच रिपोर्ट महज कागजों तक सिमित रह जाती है और किसी भी कर्मचारी के उपर कोई कार्रवाई नही होती। और नुकसान सिर्फ राष्ट्र्रीय उद्यान एवं उसमें निवास करने वाले जानवरों को उठाना पडता है।
लाखों का आबंटन
प्रति वर्ष शासन से विभाग को राष्ट्रीय उद्यान की आग से सुरक्षा एवं वन्य प्राणी संरक्षण हेतू लाखों रूपए की राशी प्राप्त होती है लेकिन बावजूद इसके जानवर पलायन कर रहे है। आखिर इस राशी का उपयोग कहां होता है और यदि होता है तो इसके सकारात्मक परिणाम क्यूं नही आते यह तथ्य समझ से परे है।
क्या राष्ट्रीय उद्यान में सिर्फ निर्माण कार्यो पर है अधिकारियों का फोकस?
आग जानी से हुए नुकसान के बाद अहम सवाल उठता है कि क्या पार्क के अधिकारियों का फोकस सिर्फ निर्माण कार्यो पर है,यदि है तो फिर निर्माण कार्यो की गुणवत्ता पर इतने सवाल क्यों उठे और उनकी जांच क्यो चल रही है,क्या पार्क के अधिकारियों में हरे भरे जंगलों और उसमें रहने वाले जानवरो के लिए कोई जवाब देहि नही रही? क्या पार्क के अधिकारियों में अब जंगलों के प्रति मानवता खत्म हो रही है? बहरहाल जो भी हो पर पार्क के जंगलों को आग से काफी नुकसान हो गया जिसका नुकसान उसमें रहने वाले जानवरो और पर्यावरण व प्रकृति को उठाना पड़ेगा यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय मे इसके दुष्परिणाम भयंकर कष्ट कारी होंगे।
टाईगर प्रोजेक्ट पर सवाल
गुरूघासी दास राष्ट्र्रीय उद्यान में विभागिय स्तर पर अनियमितताए खत्म होने का नाम ही नही ले रही है एसी स्थिती में टाइगर परियोजना को लेकर जहां लोगों में खुशी है वही टाइगर परियोजना की कामयाबी पर अभी से प्रश्न चिन्ह लगता नजर आ रहा है सोनहत क्षेत्र के ग्रामीणों ने जानकारी देते हुए बताया की राष्ट्र्रीय उद्यान में अवैघ रूप से गिटटी एवं रेत उत्खनन करने का कार्य जोरे से प्रगति रत है और इन्हें विभाग के कामो में ही खपाया जाता है और विभागिय कर्मचारी जान कर भी अनजान बने हुए है इसके अतिरिक्त जहां एक ओर से औद्यौगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण वनों का विनाश एवं कटाई तीव्र गति से होता जा रहा है, वही वनो का विनाश के साथ-साथ वन्य जीवों पर भी इसका प्रतिकूल असर पडता जा रहा है। उद्यान के अंतर्गत जीव प्रजातियां निरन्तर कम होती जा रही है,जो कि घोर चिन्ता का द्योतक है। वही प्रशासन द्वारा इस संबंध में सार्थक पहल के नाम पर मात्र खानपूर्ती की जा रही है।


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