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सूरजपुर@बेटे की ठगी पर पिता का दो पन्नों का ‘इकरारनामा’

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सैकड़ों लोगों के पैसे डकारने वाले अशफाक को बचाने की कोशिश या समाज से बेदखली का डर?
– ठग का पिता अब बेटे पर ही मोर्चे पर….फरार अशफ़ाक उल्ला पर बढ़े सवाल…दो पन्नों का ‘माफ़ीनामा’ वायरल,क्या नई चाल है यह?
– जब ठगी चल रही थी तब पिता था साथ…आज बेटा फरार तो माफ़ीनामा तैयार…
– जमानत के बाद वादे…वादों पर भी ठगी…अब फरार अशफ़ाक के बचाव में पिता की नई रणनीति?
– पीडि़तों की पुकार पैसा दो या एफआईआर करो…भावुक पत्र से नहीं भरेंगे सैकड़ों परिवारों के जख्म…


-ओंकार पाण्डेय-
सूरजपुर,02 दिसम्बर 2025 (घटती-घटना)। जो पिता अपने पुत्र का बचाव करता था, वही आज अपने ही पुत्र को ‘आरोपी’ और ‘धोखेबाज़’ सिद्ध करने में जुटा है, सरगुजा संभाग के चर्चित ठगी कांड में अशफ़ाक उल्लाह एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार वजह उसका फरार होना ही नहीं, बल्कि उसके पिता का वह दो पन्नों का पत्र है, जो सोशल मीडिया में वायरल हो गया है। पत्र में पिता न सिर्फ अपने बेटे की ठगी स्वीकार कर रहे हैं, बल्कि सामाजिक कमेटी से माफ़ी मांगते हुए, बेटे की गलती की सजा तक भुगतने की ‘तैयारी’ जताते दिख रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल क्या यह पश्चाताप है या प्रतिष्ठा बचाने का नया खेल? बता दे की सरगुजा संभाग के चर्चित ठगी कांड में मुख्य आरोपी अशफ़ाक उल्लाह के फरार होने के बाद उसका दो पन्नों का पत्र और भी ज्यादा सवाल खड़े कर रहा है, यह पत्र अशफ़ाक ने नहीं…उसके पिता जरीफ़ उल्लाह ने लिखा है, जिसमें उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि मेरे बेटे ने लोगों का पैसा लिया…कंपनी में लगाया…लेकिन रिटर्न नहीं दे पाया…और मुझे भी धोखा दे गया,यह पत्र अब पूरे क्षेत्र में वायरल है, और लोग इसे ठगी केस का सबसे बड़ा ‘टर्निंग पॉइंट’ मान रहे हैं।
सैकड़ों लोगों की जमा पूंजी डकारने वाला ‘अशफाक’ फिर फरार,जमानत के बाद किए वादे भी जुमला हुआ साबित
22 वर्षीय अशफ़ाक पर आरोप है कि उसने लुभावने रिटर्न और तेज ब्याज के नाम पर शिवप्रसादनगर ही नहीं, दूर-दूर के ग्रामीणों तक को फंसाया, शिकायतें सैकड़ों में,लिखित आवेदन दर्जनों,अपराध पंजीबद्ध, 8-9 महीने जेल, और फिर जमानत, जेल से बाहर आने पर उसने पीडि़तों को भरोसा दिलाया सभी का पैसा लौटाया जाएगा,बस और एफआईआर मत करवाना, लेकिन इन वादों पर भी आखिरकार ठगी की शिकंजा कस गया और अशफ़ाक फिर से फरार, अब पीडि़तों में आक्रोश बढ़ गया है, और बचे हुए लोग भी एफआईआर करने की तैयारी में हैं।
माफ़ीनामा या मास्टरप्लान?
ठगी के खेल में नया पैंतरा…भावनात्मक पत्रों से अपराध धुल नहीं जाते,अशफ़ाक उल्ला का मामला सिर्फ ठगी का नहीं, विश्वास तोड़ने का, समाज को धोखा देने का,और भरोसे के नाम पर जाल बुनने का है, यह पूरा प्रकरण बताता है कि अपराध केवल अपराधी नहीं करता कई बार परिवार, समाज और सिस्टम की खामोशी भी साझेदार बन जाती है,आज पिता कह रहे हैं मैं भी ठगा गया…मैं माफी चाहता हूं…लेकिन ठगी के दौरान वर्षों तक यह आवाज़ क्यों नहीं उठी? क्या उन्हें बेटे की अचानक बनी कमाई पर शक नहीं हुआ? क्या इतनी बड़ी ठगी बिना घर वालों की अनदेखी के संभव थी? यह सच है कि हर पिता अपने बेटे के लिए झुकता है,पर समाज के पैसे की कीमत भावनात्मक खेल से नहीं चुकाई जा सकती,कानून का सरल सिद्धांत है ठगी हुई है तो पैसा वापस आए,अपराध हुआ है तो कार्रवाई हो,पत्र लिखकर,भावुक होकर, सामाजिक दया की भीख मांगकर कोई भी अपराध से मुक्त नहीं होता,अशफ़ाक का अपराध बड़ा है और उससे भी बड़ी बात यह कि जमानत के बाद दिए गए वादे भी जुमला साबित हुए,अब पीडि़तों का धैर्य टूट चुका है, पिता का माफ़ीनामा नहीं अशफ़ाक की गिरफ्तारी और पैसा वापसी ही समाज को न्याय दिला सकती है।
पिता ने खुद लिखा…मैं भी ठगा गया…लेकिन पीडि़त पूछ रहे… इतने साल तक क्या अंधे थे?
अशफ़ाक के बचाव में वर्षों तक खड़े रहे उसके पिता अब अचानक ‘पीडि़त पिता’ के रूप में सामने आए हैं, वायरल पत्र में उन्होंने लिखा बेटे ने मुझे भी धोखा दिया…समिति जो दंड दे, स्वीकार…समाज मुझे बेदखल न करे…लेकिन सवाल यही है जब अशफ़ाक लोगों से पैसा ले रहा था, रिटर्न के झांसे दे रहा था,लोग उसकी शिकायत कर रहे थे…तो क्या पिता को तब कुछ पता नहीं था? या यह पत्र उस समय का हथकंडा है जब बेटा जमानत से बाहर आया, फिर फरार हो गया, और अब नई एफआईआर की आहट तेज है, पीडि़तों ने सवाल उठाया है अब माफी क्यों? जब पैसा लिया जा रहा था तब रोक क्यों नहीं? कई पीडि़तों का दावा है कि पिता खुद कई बार अशफ़ाक के साथ मौजूद रहते थे, इसी वजह से लोग मान रहे हैं कि यह पत्र एक तरह की सामाजिक बचाव कवच है, न कि असली पछतावा।
पिता का ‘माफ़ीनामा’ः सत्ता-समाज
से बचने की नई कोशिश?

वायरल पत्र में पिता लिखते हैं बेटा उन्हें भी ठग गया, वह समाज से माफ़ी मांगते हैं, कमेटी जो सजा दे,उन्हें मंजूर, और यह भी कि वह स्वयं ‘धोखा खाए हुए पिता’ हैं, पर कहानी का दूसरा पक्ष लोगों के गले नहीं उतर रहा,क्यों? क्योंकि जिस समय अशफ़ाक लोगों को ठग रहा था…पिता उसी बेटे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, न कोई विरोध, न कोई रोक-टोक, जिन आरोपों में आज वह बेटे से दूरी दिखा रहे हैं, उन्हीं आरोपों के समय पिता उसकी ढाल बने हुए थे।
क्या पत्र का असली मकसद है…नए अपराध दर्ज होने से बचाव?
सूत्र बता रहे हैं अशफ़ाक पर अभी भी कई पीडि़तों की ओर से एफआईआर बाकी है,जमानत की शर्तें कठोर हैं, और नए अपराध दर्ज होने पर जमानत स्वतः निरस्त हो सकती है, ऐसे में पिता का अचानक ‘बेटे से मोहभंग’ और ‘समाज से माफी’ वाला पत्र रणनीति भी हो सकता है ताकि समाज उन्हें बेदखल न करे, लोग आगे शिकायत दर्ज न करें, और अशफ़ाक को थोड़ा ‘सुरक्षित समय’ मिल जाए, मगर पीडि़तों का कहना है…हम ठगे गए हैं, हमें भावनात्मक पत्र नहीं अपना पैसा चाहिए।
समाज की बड़ी बैठक…लोगों का सब्र टूटा,बहिष्कार की चेतावनी
स्थिति तब गंभीर हो गई जब क्षेत्र के दर्जनों लोग इकट्ठा हुए और एक सामाजिक बैठक बुलाई, बैठक में अशफाक उल्लाह और उनके पिता ज़रीफुल्लाह को भी बुलाया गया, ग्रामीणों ने उनसे स्पष्ट पूछा पैसा कब लौटाओगे? महीनों से आश्वासन ही क्यों दे रहे हो? पैसा लेने की योजना क्या धोखा थी? ग्रामीणों के अनुसार अशफाक और ज़रीफुल्लाह ने धीरे-धीरे पैसा देने का आश्वासन दिया, पर समुदाय ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा धीरे-धीरे नहीं, इतने समय बाद तुरंत भुगतान चाहिए, कम से कम एक करोड़ रुपये की तत्काल वापसी, इस पर अशफाक और ज़रीफुल्लाह ने 30 नवंबर तक समय मांगा,समाज ने यह समय सीमा स्वीकार की, पर अब यह समय भी बीत गया।
वादा पूरा नहीं…अब अशफाक लापता,क्षेत्र में तनाव बढ़ा
ग्रामीणों का कहना है कि 30 नवंबर की तय तारीख निकल गई,न तो कोई भुगतान हुआ, न ही किसी प्रकार का समाधान सामने आया,और अब अशफाक उल्लाह क्षेत्र से गायब बताया जा रहा है, इसी बीच अशफाक के पिता ज़रीफुल्लाह द्वारा एक लिखित पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया हमारे पास किसी को भुगतान करने का कोई संसाधन नहीं बचा है, इस पत्र ने लोगों के आक्रोश को और बढ़ा दिया है।
ग्रामीणों का आरोप…यह सिर्फ ठगी नहीं,समाज के विश्वास से खिलवाड़
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मामला केवल आर्थिक नुकसान का नहीं है, बल्कि सामाजिक विश्वास टूटने का भी है, लोगों का कहना है कई परिवारों ने अपनी बचत लगाई, कुछ ने रिश्तेदारों से उधार लेकर निवेश किया, कुछ ने जमीन तक गिरवी रख दी, और अब वे हताश, ठगे और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इसी कारण पूरे क्षेत्र में अब मांग उठ रही है कि समाज की कमेटी इस पर कड़ा निर्णय ले और दोषियों पर कठोर सामाजिक कार्रवाई की जाए।
सवालों की बौछार…
पिता पर भी शक की आंच

– सवालः क्या पिता को पहले अपने बेटे की ठगी अच्छी लग रही थी?
– सवालः क्या वह बेटे के साथ आर्थिक लेन-देन में शामिल थे?
– सवालः क्या यह पत्र उनके सामाजिक प्रभाव और प्रतिष्ठा बचाने का हथकंडा है?
– सवालः क्या यह आगे एफआईआर न होने देने का दबाव-युक्त दांव है?
– सवालः क्या अशफाक को फरार कराने में परिवार की भूमिका की जांच होगी?
पीडि़तों का दर्द,वादे पर भी ठगी लग गई
लोगों की शिकायत है कि पहला धोखा पैसा देकर लगा,दूसरा भरोसा करके लगा,और तीसरा जमानत के बाद दोबारा झांसा देकर फरार होकर,अब ग्रामीणों की एक ही मांग या तो पूरा पैसा वापस,या फिर सख्त एफआईआर।
अशफ़ाक की तलाश तेज…नई एफआईआर की सुगबुगाहट
जिले की जांच एजेंसियां अब फिर से उसकी लोकेशन खोजने में लगी हुई हैं सूत्रों के अनुसार कुछ पीडि़त अब सामूहिक एफआईआर की तैयारी कर रहे हैं,अगर ऐसा हुआ अशफ़ाक की जमानत भी खत्म, और गिरफ्तारी भी तय।
समाज में बदनाम होने का डर या ठगी रोकने का दर्द?
पिता का माफ़ीनामा पढ़ने में तो पछतावा दिखता है, पर पीडि़तों का कहना है सजा बेटे को नहीं, समाज को झांसा देने की कला को मिलनी चाहिए और सबसे कड़क लाइन जब बेटा ठगी कर रहा था, पिता खामोश थे, आज बेटा फरार है, तो पिता भावनात्मक कवच पहनकर सामने हैं।

आरोप–जवाब (फील्ड में उपलब्ध प्रतिक्रियाओं के आधार पर)

आरोपआरोपी पक्ष (पत्र में लिखा संस्करण)
लोगों से करोड़ों रुपये ठगे“गलती स्वीकार है, पर ठगने का इरादा नहीं था।”
पैसा दोगुना करने का झांसा“मैंने सोचा था कि सबको फायदा मिलेगा, पर असफल रहा।”
समय पर भुगतान नहीं किया“मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए वापस नहीं कर पाया।”
30 नवंबर की समय सीमा तोड़ी“मैंने कोशिश की, पर आर्थिक स्थिति बिल्कुल खराब थी।”
इलाके से लापताइस पर पत्र में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं

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