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सरगुजा/रायपुर@युक्तियुक्तकारण शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए है या फिर शासन का पैसा बचाने के लिए?

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-न्यूज डेस्क-
सरगुजा/रायपुर,18 जून 2025 (घटती-घटना)। युक्तियुक्तकारण को लेकर इस समय छत्तीसगढ़ में भूचाल आया हुआ है,जहां इस प्रकिया में शिक्षक विसंगतियों का आरोप लगा रहे हैं बता रहे हैं तो वहीं इसमें राजनीतिक पार्टियों के लिए अगले चुनाव का मुद्दा भी बन रहा है यहां पर बच्चों की संख्या के अनुसार शिक्षकों को संतुलित करने की बात सरकार कह रही है वहीं कक्षाओं की संख्या,पाठ्यक्रम सहित विषय पाठों की संख्या पर गौर नहीं किया जा रहा है,कक्षा पांचवी तक शिक्षक किसी भी प्राथमिक विद्यालय में न्यूनतम दो ही शिक्षक रखने की यह प्रकिया है ऐसा सरकार का नियम है, संख्या भले ही स्कूलों की कम है पर कक्षा की संख्या उतनी ही है, एक प्रधान पाठक एक शिक्षक पांच कक्षा को एक साथ कैसे पढ़ाएंगे वहीं इस दौरान 400 से भी ज्यादा विषय अनुसार पाठ का अध्यापन उन्हें कराना होगा, वह भी दो कमरे में इसपर शायद किसी की नजर नहीं है जिस समय यह व्यवस्था बनी थी उस समय भी भाजपा की सरकार थी,हर 3 किलोमीटर में एक स्कूल स्थित हो गया था उस समय आने जाने की व्यवस्था नहीं थी साधन नहीं थे पर अब जब साधन बढ़ चुका है तो इन छोटे स्कूलों को जहां पर दर्ज संख्या कम है उन बच्चों को पास के ही किसी बड़े स्कूल में भेज देना चाहिए था यानी की स्कूल को मर्ज कर देना चाहिए था एक ऐसा स्कूल होना चाहिए था जिसमें एक से लेकर 12वीं तक के छात्र शिक्षा ग्रहण कर सके जैसे पहले हुआ करता था पर स्थित यह है कि इतने पास पास स्कूल हैं तो बच्चों की संख्या तो कम रहेगी ही 1000 संख्या वाले गांव में दो से तीन स्कूल भी चल रहे हैं आखिर इतनी आबादी कहां है कि उस स्कूल की संख्या को भरा जा सके ऐसी ऐसी विसंगतियां हैं जिस पर शायद सरकार ने भी गौर नहीं किया होगा सरकार तो सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता को नहीं अपने राजस्व को देख रही है यदि देखना ही है तो जिन निर्माण कार्यों की जरूरत नहीं है वहां पर भी निर्माण कार्य हो रहे हैं उससे भी सरकार पैसा बचा सकती है भ्रष्टाचार रोककर भी सरकार अपना पैसा बचा सकती है शिक्षा की गुणवत्ता खराब करके ही सरकार क्या पैसा बचाकर विकास करेगी यह बड़ा सवाल है?
विसंगति की बात स्वयं विधानसभा अध्यक्ष कर रहे हैं,त्रुटि सुधार हेतु शिक्षा सचिव को पत्र लिख रहे हैं…
युक्तियुक्तकरण को लेकर जहां भाजपा सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है वहीं भाजपा से ही 15 साल मुख्यमंत्री रहे वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष माननीय डॉक्टर रमन सिंह शिक्षा सचिव को पत्र लिखकर विसंगतियों को सुधार करने की मांग कर रहे हैं,एक तरफ भाजपा सरकार ने युक्तियुक्तकरण करके प्रदेश के 10 हजार स्कूलों को बंद करने और 45 हजार से ज्यादा शिक्षकों के पद को समाप्त करके प्रदेश के शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों के पद को खत्म करने की योजना बना रखी है वहीं दूसरी तरफ इनके अधिकारी मौके का फायदा उठाकर मनमाना भ्रष्टाचार कर रहे है जिसका जीवंत उदाहरण है कि जिले में युक्तियुक्तकरण पर विसंगतियों को पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह स्वयं स्वीकार करते हुए शिक्षा सचिव को पत्र लिख संशोधन की मांग कर रहे हैं, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों के पद को खत्म करके कब तक आप चुप्पी साधे रहेंगे?
युक्तियुक्तकारण को लेकर अब सियासत भी गर्म होने लगी…
युक्ति युक्त करण को लेकर जहां शिक्षक परेशान है और उन्हें कहीं से कोई राहत मिल नहीं रही है कुछ शिक्षक न्यायालय के शरण में भी हैं पर यह सब स्थिति क्यों निर्मित हुई यह किसी से छुपी नहीं है अब शिक्षकों की सहानुभूति कांग्रेस सरकार लेना चाह रही है इसलिए वह शिक्षक को के लिए अब विरोध में सड़कों पर उतर गई है भाजपा सरकार के युक्ति युक्त कारण को लेकर कांग्रेस विरोध जाता रही है और युक्ति युक्त कारण की विसंगतियां पर करारा हमला कर रहे हैं जिले में इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने सड़क पर उतरकर रैली निकाली और शिक्षकों का समर्थन करते ना जा रहा है, कांग्रेस का कहना है कि भाजपा सरकार द्वारा शिक्षकों एवं छात्रों पर थोपे गए युक्तियुक्तकरण के विरोध में आज जिला कांग्रेस कमेटी के नेतृत्व में शिंक्षा न्याय यात्रा निकाल कर, जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय का घेराव किया गया एवं ज्ञापन सौंपा गया। एक तरफ भाजपा सरकार जबरजस्ती युक्तियुक्तकरण थोपने का काम कर रही है वहीं दूसरी तरफ भाजपा नेताओं के संरक्षण में युक्तियुक्तकरण के नाम पर जिला शिक्षा अधिकारी भ्रष्टाचार का खेल खेल रहे है।
जिन विभागों में भ्रष्टचार है उन विभागों के कर्मचारियों पर सरकार मेहरबान है…निरीह शिक्षक ही सरकार के लिए मुसीबत है?
शासकीय व्यवस्था में स्कूल शिक्षा इकलौता विभाग है शासकीय जो सरकारों के लिए गैर लाभ विषय रहा है, समय समय पर इसी विभाग के साथ सबसे ज्यादा प्रयोग भी सरकारों ने किया है वहीं यहां युक्तियुक्तकरण जैसी प्रक्रियाएं लगातार चलने वाली प्रकिया बन चुकी है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक का भ्रष्टाचार से सीधा जुड़ाव नहीं नजर आता और वह इसलिए भी सरकार द्वारा उपेक्षित रहा है लगातार,किसी शासकीय आयोजन में एक शिक्षक से ज्यादा सम्मान ग्राम पंचायत सचिव का भी देखने को मिल जाता है,कुल मिलाकर शिक्षक एक गैर लाभ विषय होने के कारण ही ज्यादा उपेक्षित है।
शिक्षकों की कार्यक्षमता पर पड़ेगा असर,गुणवत्ता की बजाए गुणवत्ता में कमी का होगा दर्शन
पूरी प्रकिया के सम्पन्न होने उपरांत यह भी देखने को मिलने वाला है कि शिक्षकों की कार्यक्षमता अब प्रभावित होगी और वह इस मामले में इसे अपने प्रति सरकार की दमनात्मक कार्यवाही मानेंगे और वह निश्चित तौर पर अब मन से और क्षमता से कार्य नहीं करेंगे,वह इस मामले में सरकार को दोष देकर इसे अपने प्रति सरकार का एक दंड विधान मानेंगे जिससे उन्हें दंडित किया जा रहा है। कुल मिलाकर कार्यक्षमता घटेगी और शिक्षकों की कार्यक्षमता घटते ही शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी जिससे नौनिहालों का जीवन शिक्षा से उनका जुड़ाव सही ढंग से नहीं हो सकेगा।इसके पीछे यह तर्क भी है कि किसी से दबाव में कार्य लिया जाना उसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और वह ऐसा करने वाले के प्रति आक्रोश भी पाल लेता है।
क्या है युक्तियुक्तकरण?
युक्तियुक्तकरण का मतलब है किसी प्रक्रिया या व्यवस्था को तर्कसंगत या उचित बनाना। इसका उपयोग अक्सर शिक्षा,सरकारी नीतियों,या किसी भी प्रणाली में किया जाता है जहाँ संसाधनों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित करने या कार्यकुशलता बढ़ाने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, शिक्षा क्षेत्र में,युक्तियुक्तकरण का मतलब हो सकता है स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों की संख्या को इस तरह से समायोजित करना ताकि प्रत्येक स्कूल में शिक्षकों की संख्या छात्रों की संख्या के अनुपात में हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि शिक्षा प्रणाली अधिक कुशल और प्रभावी ढंग से काम करे। कुछ लोग युक्तियुक्तकरण को संसाधनों का पुनर्वितरण या कर्मचारियों की छंटनी के रूप में भी देखते हैं,खासकर जब इसे लागू करने में पारदर्शिता या उचित प्रक्रिया का अभाव हो। इसलिए, युक्तियुक्तकरण शब्द का अर्थ संदर्भ के अनुसार अलग-अलग हो सकता है,लेकिन इसका मूल विचार किसी भी प्रणाली को अधिक तर्कसंगत और प्रभावी बनाने का है। पदयात्रा इस पूरे मामले को समझने का प्रयास करें तो इसमें काफी सारी विसंगतियां है या तो सरकार ने इसे आनन-फानन में लागू कर दिया या फिर इस पूरी विसंगतियों को उन्होंने समझा नहीं तमाम तरह से यह शिक्षकों के लिए परेशानी बना हुआ है, वहीं शिक्षा की गुणवत्ता अब सुधरने वाली नहीं है ऐसा भी अब माना जा रहा है, सरकार के विसंगतियों को लेकर शिक्षक न्यायालय के दरवाजे पर खड़े हैं अब देखना यह है कि होता क्या?
प्राथमिक शालाओं के छात्रों को नहीं मिल सकेगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा
युक्तियुक्तकरण प्रकिया सम्पन्न होने के बाद एक बात तय हो गई कि अब प्राथमिक शालाओं के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल सकेगी, प्राथमिक शालाओं में 5 कक्षा 400 से अधिक विषय पाठों का अध्यापन दो शिक्षकों के भरोसे होगा जिसमें एक प्रधानपाठक भी शिक्षक ही है जो ज्यादातर समय तक सरकारी जानकारियां बनाएगा बैठकों में जायेगा और वह अध्यापन में कम ही काम कर सकेगा,कुल मिलाकर एक शिक्षक के भरोसे होगा विद्यालय और 400 से अधिक पाठों का अध्यापन कराया जाएगा उसके द्वारा। दो शिक्षकों में से कोई एक बीमार पड़ा या लंबे अवकाश पर गया वहीं यदि दूसरा भी किसी कारणवश बीमार या अवकाश पर गया विद्यालय में ताला लटक जाएगा क्योंकि अब कहीं भी अतिरिक्त शिक्षक नहीं होंगे दो ही होंगे जो अन्य शालाओं में नहीं भेजे जा सकेंगे। कुलमिलाकर यह युक्तियुक्तकरण प्रदेश के उन नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है जो कहीं न कहीं उन परिवारों से हैं जो आर्थिक कारणों से निजी विद्यालय नहीं जा सकते और अब उन्हें सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से भी दूर कर दे रही है। सरकार की यह नीति छात्र हित के विपरीत है यह सहज ही कहा जा सकता है।
शिक्षकों के मामले में भी सरकार ने शोषण की नीति पर ही निर्णय कायम रखा
पूरे मामले में यह भी देखने को मिला कि शिक्षकों को खासकर महिला शिक्षकों या बीमारी से ग्रसित शिक्षकों को लेकर भी सरकार शोषण की अपनी नीति पर कायम रही,सरकार ने काउंसलिंग में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जिससे ऐसे लोगों को फायदा मिल सके,सरकार की नीति यह स्पष्ट कर गई कि शिक्षकों को परेशान करना दंड देना ही उसका अंतिम उद्देश्य था। सरकार की इस नीति से सबसे ज्यादा वह शिक्षक अतिशेष हुए जो दशकों तक दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में कार्यरत रहे, किसी तरह वनवास काटकर वह जब लौटे सरकार ने उन्हें पुनः दंडित किया कर पुनः वापस जंगलों की तरफ भेज दिया। ज्यादातर मामलों में खासकर सरगुजा संभाग के मामले में यह स्पष्ट नजर आया कि स्थानांतरण का लाभ लेकर किसी तरह दशकों बाद घर के करीब लौटे शिक्षकों को सरकार ने पुनः सैकड़ों किलोमीटर दूर भेज दिया।
शिक्षा विभाग के शिक्षक ही ऐसे कर्मचारी हैं जो भ्रष्टाचार से दूर सिर्फ देश व प्रदेश की नीव रखते हैं…उन्हीं पर चला है युक्तियुक्तकरण का चाबुक से दर्द में कराह रहे हैं फिर भी कुछ बोल नहीं रहे
शिक्षक जिनके ऊपर देश प्रदेश के नौनिहालों छात्रों के भविष्य निर्माण की जिम्मेदारी होती है जो भ्रष्टाचार से दूर रहते हैं उन्हीं पर सरकार ने युक्तियुक्तकरण का चाबुक चलाया है,शिक्षक चाबुक खाकर मौन हैं कराह भले रहें हैं चुप भी हैं। शिक्षकों का मौन सरकार के लिए घातक होगा यह भी माना जा रहा है,वहीं जिस तरह युक्तियुक्तकरण हुआ जैसे नियम बनाए गए और अतिथि शिक्षकों के कारण भी जिन शिक्षकों को जिला संभाग से बाहर प्रदेश में पदस्थापना मिली वह निश्चित ही बेवजह दंडित माने जाएंगे और यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार ने शिक्षकों को एक दुश्मन की तरह मानकर नीति बनाई और उन्हें दंडित करने के लिए उन्हें दूर से दूर भेजने का प्रयास किया।
स्टेट ट्रांसपोर्ट बस की तरह धीरे धीरे क्या शासकीय स्कूलों को बंद करने की है सरकार की मंशा
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के तीन वर्ष के भीतर प्रदेश की स्टेट ट्रांसपोर्ट बसें सड़कों पर दौड़ना बंद हो गई थीं और इसका निर्णय तत्कालीन सरकार ने लिया था और घाटे का मामला बताकर ऐसा किया था,पहले स्टेट बसों की हालत ऐसी की गई कि कोई उसमें बैठने से मना करे और जब ऐसा हो गया बसें बंद कर दी गईं और कोई जनांदोलन भी सामने नहीं आया आज निजी बसों के मनमाने किराए से सभी यात्री प्रतिदिन त्रस्त हैं, ऐसा ही कुछ क्या स्कूल शिक्षा विभाग का भी हाल करना चाहती है सरकार यह भी एक सवाल है, सरकार क्या धीरे धीरे शिक्षकों की संख्या घटाकर सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता खत्म करना चाहती है क्या वह ऐसा करके धीरे धीरे स्कूलों की संख्या घटाना चाहती और यह स्थिति लाना चाहती है कि कोई अपने बच्चे ही न भेजे सरकारी स्कूलों में, वैसे 5 कक्षा 1 शिक्षक की स्थिति में ऐसा संभव है कि स्कूलों की विश्वसनीयता कम होगी, जब विश्वसनीयता कम होगी छात्र संख्या न्यून होकर समाप्त होगी और तब सरकार धीरे धीरे ऐसे स्कूलों को बंद करेगी और तब कोई जनांदोलन भी सामने नहीं खड़ा होगा क्योंकि लोग आम लोग अपने बच्चों को निजी विद्यालय भेजना शुरू कर चुके होंगे। वैसे इसका असर वर्तमान शिक्षकों पर पड़ेगा ही रोजगार का एक बड़ा क्षेत्र भी बेरोजगारों के लिए समाप्त होगा यह एक बड़ा घाटा है समाज के लिए।
शिक्षक पर युक्तियुक्तकारण का चाबुक चलाकर सरकार क्या अपने ही पैर पर चुनावी कुल्हाड़ी चला चुकी है?
शिक्षकों पर युक्तियुक्तकरण की चाबुक चलाकर क्या प्रदेश सरकार खुद के ही पैर पर चुनावी कुल्हाड़ी चला चुकी है यह भी समझना होगा, विपक्ष सहित अन्य दल अब युक्तियुक्तकरण के विरोध में शिक्षा विभाग कार्यालयों का घेराव कर रहे हैं और उन्हें सीधे न सही अप्रत्यक्ष रूप से सहानुभूति शिक्षकों का मिल रहा है। प्रदेश के चुनावों में शिक्षकों की भूमिका हमेशा निर्णयक रही है और पिछली बार भाजपा की हार का कारण भी शिक्षक माने गए थे इस हिसाब से अब यदि आने वाले चुनाव में शिक्षकों का पुनः भाजपा के प्रति मोहभंग होगा जो तय नजर आ रहा है तो परिणाम शायद उलट होगा यह जानकारों का मानना है।


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