सरगुजा से शुरू हुआ भर्ती खेल मनेंद्रगढ़ होते हुए सूरजपुर पहुंचा…शिकायतें आईं,प्रमाण मिले, लेकिन कार्रवाई आज तर्क ंZERO!
– 8 महीने में वापस बुलाया गया वही अधिकारी…सरगुजा में संविदा भर्ती का ‘बड़ा खेल’ दोबारा होगा शुरू?
– चयन समिति के सचिव-सदस्य के घर से ही ‘सबसे योग्य’ अभ्यर्थी!
– अनुभव पत्र, डिग्री और मेरिट सब पर सवाल
– सरगुजा, एमसीबी और सूरजपुर में एक जैसे आरोप…क्या मंत्री के संभाग में ही भर्ती का सबसे बड़ा घोटाला?
– फर्जी अनुभव? फर्जी डिग्री? परिवारवाद? मिशन शक्ति भर्ती पर पीएससी जैसे स्कैंडल की आहट
– चयन समिति के सचिव और सदस्य के पुत्र-पुत्री ही शीर्ष मेरिट में…क्या यह संयोग हो सकता है?


न्यूज डेस्क
सरगुजा/एमसीबी/सूरजपुर,04 दिसम्बर 2025 ( घटती-घटना)। महिला एवं बाल विकास विभाग की संविदा भर्ती में सरगुजा संभाग के तीन जिलों सरगुजा, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर और सूरजपुर में एक जैसे आरोप सामने आने से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह संयोग है, या मंत्री के ‘खास अधिकारी’ को मिल रहा सियासी संरक्षण? तीनों जिलों में फर्जी अनुभव,गलत अंकन, चयन सूची में छेड़छाड़, पसंदीदा उम्मीदवारों को लाभ,शिकायतों की अनदेखी, और चयनित सूची न बदलने का दबाव जैसे आरोप बार-बार सामने आए,और इस पूरे पैटर्न में एक ही अधिकारी का नाम तीनों जिलों में बार-बार दोहराया जा रहा है, सरगुजा संभाग में महिला एवं बाल विकास विभाग की संविदा भर्तियों में जिस अधिकारी पर ‘गड़बड़ी का खेल’ रचने का आरोप लगा था, उसी अधिकारी को सिर्फ 8 महीने बाद दोबारा सरगुजा बुला लिया गया,यह नियुक्ति अब पूरे संभाग में सवालों और संदेह का कारण बन गई है क्या सरगुजा में फिर वैसी ही भर्ती होने जा रही है जैसी पहले उजागर हुई थी?
नियुक्ति का अधिकार,
या अधिकार की नियुक्ति?
सरगुजा में जो हो रहा है, वह भर्ती प्रक्रिया नहीं भर्ती पर कब्जे की प्रक्रिया है, लोकतंत्र में नियुक्तियाँ अवसर देती हैं,लेकिन यहाँ नियुक्ति नहीं, नियुक्ति का खेल चल रहा है, चयन समिति की कुर्सियों पर बैठे लोग,सचिव, सदस्य,और विभागीय प्रभारी, जब अपने ही बच्चों को ‘सबसे योग्य’ घोषित करने लगें, तब यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं यह सत्ता और पद का दुरुपयोग है,एक जिले में गड़बड़ी मामूली हो सकती है,दो जिलों में गड़बड़ी संयोग हो सकती है लेकिन तीन जिलों में एक जैसा पैटर्न वही अधिकारी, वही तिकड़म,वही हस्ताक्षर, और वही तरीका यह बताता है कि मामला व्यवस्था से नहीं,व्यवस्थित खेल से जुड़ा है,सबसे बड़ा खतरा यह है कि ऐसे मामलों में योग्य युवा बाहर धकेल दिए जाते हैं,और ‘तैयार किए गए’ उम्मीदवार अंदर,यह युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ नहींभारतीय प्रशासनिक व्यवस्था पर कलंक है, अब गेंद मंत्री के पाले में है,यदि मंत्री अपने ही संभाग में हो रहे इस खेल पर कार्रवाई नहीं करतीं,तो यह संदेश जाएगा कि सिस्टम में गड़बड़ी नहीं, गड़बड़ी ही सिस्टम है और यदि कार्रवाई होती है, तो सरगुजा भर्ती घोटाले से बहुत बड़े खुलासे हो सकते हैं।
सबसे बड़ा खुलासा ‘चयन समिति की कुर्सी पर अफसर, और पात्र सूची में उनके अपने बच्चे
मिशन शक्ति योजना के तहत, मिशन समन्वयक, जेंडर विशेषज्ञ,डाटा एंट्री ऑपरेटर के कुल 8 संविदा पदों की भर्ती के लिए पात्र-अपात्र सूची जारी हुई,लेकिन सूची में चौंकाने वाले नाम सामने आए चयन समिति के तत्कालीन सचिव (जिला कार्यक्रम अधिकारी) की पुत्री दो पदों मिशन समन्वयक,जेंडर विशेषज्ञ दोनों में सबसे ऊपर की वरिष्ठता में दर्ज,चयन समिति के सदस्य (कार्यालय अधीक्षक) के पुत्र डाटा एंट्री ऑपरेटर पद में पात्र और शीर्ष अंकों के साथ चयनित,अभ्यर्थियों का आरोप जिन्हें सूची बनानी थी,वही अपने बच्चों को पात्र बना रहे थे।
यदि पुत्र-पुत्री अभ्यर्थी हों,तो समिति से अलग होना चाहिए पर सरगुजा में उल्टा हुआ…
नियम स्पष्ट है यदि चयन समिति के सदस्य या सचिव के परिजन अभ्यर्थी हों, तो उन्हें प्रक्रिया से हटना चाहिए, लेकिन सरगुजा में हुआ ठीक विपरीत सचिव समिति में बने रहे, सदस्य भी समिति में बने रहे और पात्रता सूची में उनके ही बच्चों ने अव्वल स्थान प्राप्त किया, अभ्यर्थियों ने इसे ‘खुला परिवारवाद’ और ‘भर्ती पर कब्जा’ करार दिया।
अनुभव प्रमाण-पत्रों पर गंभीर सवाल,लखनपुर के एक ही एनजीओ से ‘थोक में अनुभव’
सूत्रों के अनुसार भर्ती में शामिल लगभग सभी ‘चयनित’ और ‘असामान्य रूप से योग्य’ अभ्यर्थियों ने छत्तीसगढ़ शबरी सेवा संस्थान, लखनपुर से अनुभव प्रमाणपत्र लिया है, अभ्यर्थियों ने कहा ‘यह संभव है क्या कि इतने अभ्यर्थी एक ही संस्थान में वर्षों तक नौकरी करते रहे और कोई रिकॉर्ड न मिले?’ सीईओ ने स्वीकार किया जो आता है उसे दे देते हैं, यह बयान खुद खुलासा करता है कि अनुभव पत्र की विश्वसनीयता संदेह में है।
सरगुजा : जहाँ खेल शुरू हुआ शिकायतें दर्ज, दस्तावेज सामने, लेकिन
अधिकारी का ‘कुछ नहीं बिगड़ा’
सरगुजा जिले में संविदा भर्ती की शिकायतों ने पहली बार विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाए, अंक बढ़ाए गए, अनुभव वर्षों को बदलकर दिखाया गया,गैर-योग्य लोगों को योग्य बताकर चयन कराया गया, कई अभ्यर्थियों ने प्रमाण सहित लिखित शिकायतें भी दीं,लेकिन न जांच हुई,न कार्रवाई, बल्कि उसी अधिकारी को कुछ महीनों में दूसरे जिले भेज दिया गया,मानो पुरस्कृत किया गया हो।
एमसीबी जिला : वही अधिकारी,
वही पैटर्न…लेकिन विरोध और बड़ा
एमसीबी जिले में भर्ती प्रक्रिया के दौरान अनुभव में बड़ा खेल, अंक हेरफेर, फर्जी दस्तावेज जैसे आरोप फिर दोहराए गए,पिछली खबरों में यह भी सामने आया कि खेल रचने वाले अधिकारी ने अपने परिजनों और परिचितों का चयन कराने की कोशिश की,अभ्यर्थियों ने यह तक कहा कि हम कोर्ट जाएंगे, लेकिन ये सूची नहीं बदलेगी ऊपर से दबाव है,यह बयान प्रशासनिक कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है।
सूरजपुर : भर्ती घोटाला अपनी
चरम सीमा पर मंत्री के जिला में तीसरे जिले से भी वही आरोप…
तीसरा जिला यानी सूरजपुर जहाँ भर्ती में गड़बडि़यों का सिलसिला सबसे खुलकर सामने आया, यहाँ अनुभव अचानक कम-ज्यादा दिखा,प्रतिशत दर्ज बदल दिए गए, सिफारिशें चलीं, और शिकायतों पर प्रशासन ने अपनी आँखें बंद कर लीं, अभ्यर्थियों ने दो-टूक कहा जांच का आश्वासन सिर्फ दिखावा, सूची बदलने की मंशा नहीं थी, सबसे बड़ा सवाल यह है कि तीनों जिलों में एक ही पैटर्न कैसे? एक ही अधिकारी तो दो जिले में कैसे सक्रिय? और विभाग चुप क्यों?
क्या मंत्री के संभाग में हो रही गड़बड़ी पर लिया गया मौन ही ‘संरक्षण’ है?- तीनों जिले ठीक उसी संभाग में आते हैं जहाँ की जिम्मेदारी महिला एवं बाल विकास मंत्री संभालती हैं, इसके बावजूद आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं, न जांच समिति बनी, न किसी अधिकारी को निलंबित किया गया, न किसी सूची को रोका गया, और फिर भी वही अधिकारी 8 महीनों में तीसरी बार महत्वपूर्ण पद पर पहुँच जाता है, क्या यह सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है? या किसी मजबूत राजनीतिक संरक्षण का संकेत?
पूर्व में आए दस्तावेजों ने खोला पूरा खेल…फर्जी अनुभव, फर्जी अंक और फर्जी दस्तावेज!- पूर्व में प्रकाशित खबरों में स्पष्ट रूप से यह सामने आया चयन समिति के सदस्य-सचिव के अपने परिचित पात्र उत्तर सूची में, अनुभव प्रमाण पत्रों में भारी विसंगति, लंबे लिंग बदलकर अंक घटाया-बढ़ाया गया, किसी को 6 साल का अनुभव, किसी को 12 दिन का अनुभव बताकर चयन कराना क्या यह त्रुटि थी, या संगठित भर्ती खेल?
जनता का सवालःअगर मंत्री ही अपने संभाग की भर्ती नहीं संभाल पा रहीं, तो निष्पक्षता कहाँ से आएगी?- सरगुजा, एमसीबी, सूरजपुर तीनों जिलों में भर्ती को लेकर आक्रोश है, अभ्यर्थियों का कहना है हमारी जिंदगी दांव पर, और अधिकारी खेल पर… क्या यही अच्छी शासन व्यवस्था है?
अंतिम सवालः- क्या तीन जिलों में इतने बड़े भर्ती खेल के पीछे ‘दो ही अधिकारी’ कारण था… या ‘एक पूरी प्रणाली’ शामिल है? जवाब सिर्फ जांच दे सकती है लेकिन जांच शुरू होगी कब? और होगी भी या नहीं? यही बड़ा रहस्य है।
कैसे हुआ खेल? 8 पॉइंट से समझ सकते है…
पॉइंट 1. चयन समिति में ही अभ्यर्थियों के पिता!
सचिव (जिला कार्यक्रम अधिकारी) और सदस्य (कार्यालय अधीक्षक) दोनों के बच्चे अभ्यर्थी—फिर भी दोनों चयन समिति में बने रहे।
पॉइंट 2. पात्र-अपात्र सूची में शीर्ष स्थान उन्हीं के बच्चों को!
दो पदों में सचिव की बेटी, एक पद में सदस्य का बेटा सभी ‘सबसे अधिक अंक’ लेकर पात्र घोषित।
पॉइंट 3. अनुभव प्रमाणपत्र एक ही संस्थान से!
लखनपुर के एक एनजीओ से ‘थोक में अनुभव’ ऐसा लगता है जैसे अनुभव नहीं, कागज बांटे गए हों।
पॉइंट 4. फर्जी डिग्री और अनुभव का बड़ा सवाल
छात्र एक साथ कॉलेज में पढ़ता भी रहा और वर्षों तक एनजीओ में काम भी करता रहा व्यावहारिक रूप से असंभव।
पॉइंट 5. दावा-आपत्ति प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता?
अभ्यर्थियों का आरोप ‘दावा करेंगे तो भी रिजेक्ट होगा, क्योंकि समिति में बैठे अधिकारी खुद हितधारक हैं। ‘
पॉइंट 6. शिकायतों के बावजूद अधिकारी का प्रमोशन-जैसा ट्रांसफर
एमसीबी और सूरजपुर में गड़बड़ी के बाद भी वही अधिकारी फिर से सरगुजा बुला लिया गया,क्या यह ‘पुरस्कार’ है?
पॉइंट 7. मंत्री के संभाग में 3 जिलों में खेल चुप्पी क्यों?
सरगुजा, एमसीबी, सूरजपुर तीनों में एक जैसी गड़बड़ी। क्या मंत्री को जानकारी नहीं? या जानकारी होने पर भी कार्रवाई नहीं?
पॉइंट 8. क्या यह नया ‘पीएससी मॉडल’ घोटाला?
सबसे बड़ा सवाल…तीन जिलों में समान गड़बड़ी और कार्रवाई शून्य… क्यों?
सवालः क्या विभागीय मंत्री को शिकायतों की जानकारी नहीं?
सवालः क्या मंत्री को बताया ही नहीं गया? या जो बताया गया, वह ‘सच’ नहीं बताया गया?
सवालः क्या अधिकारी इतने मजबूत हो चुके हैं कि तीन जिलों में खेल चल सके?
सवालः क्या गड़बड़ी होने के बाद अधिकारी को ‘पुरस्कार’ मिलना व्यवस्था की बीमारी है?
क्या यह संरक्षण है?
कई अधिकारियों का दावा बिना बहुत बड़े संरक्षण के ऐसा संभव ही नहीं, अधिकारी की भूमिका, तीन जिलों में एक जैसा पैटर्न
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