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कोरिया@अटल परिसर की मूर्ति में ‘तांबे की शुद्धता’ पर सवाल, लोकार्पण रोकने की मांग तेज

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  • वार्ड-12 की पार्षद रेखा वर्मा ने कहा…मूर्ति के वजन और धातु में मिलावट की जाँच अनिवार्य,नहीं तो यह करोड़ों की परियोजना पर बड़ा सवाल
  • अटल बिहारी वाजपेयी की मूर्ति पर भी ‘कटौती’? यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं पूरे सिस्टम की नंगी सच्चाई है…


-रवि सिंह-
कोरिया/पटना,21 नवंबर 2025
(घटती-घटना)।

नगर पंचायत पटना में बन रहा अटल परिसर और उसमें स्थापित होने वाली अटल बिहारी वाजपेयी की मूर्ति एक राष्ट्रीय प्रतीक, एक महान नेता की स्मृति पर भी अगर धातु मिलावट का शक उठ जाए,तो समझ लीजिए कि सिस्टम किस हद तक सड़ चुका है, यह सामान्य मामला नहीं है, यह सिर्फ एक मूर्ति नहीं है।
बता दे की नगर पंचायत पटना में लाखों रुपए की लागत से बन रहा अटल परिसर अब नए विवाद में आ गया है, परिसर में स्थापित होने वाली पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई की मूर्ति को लेकर वार्ड क्रमांक-12 की पार्षद श्रीमती रेखा वर्मा ने गंभीर प्रश्न उठाए हैं,पार्षद का आरोप है कि मूर्ति में तांबे की मात्रा संदिग्ध है और इसमें अन्य धातु मिलाए जाने की आशंका है, पार्षद ने सीएमओ को पत्र लिखते हुए स्पष्ट कहा है कि अटल जी की मूर्ति तांबे से निर्मित बताई जा रही है, परंतु उसका वजन और धातु की गुणवत्ता शंका पैदा करती है। लोकार्पण से पहले इसके तांबे की शुद्धता की तकनीकी जांच आवश्यक है, यह राजनीतिक चरित्र, प्रशासनिक ईमानदारी और स्थानीय निकायों की नीयत का आईना है।
जाँच से पहले लोकार्पण? बिल्कुल नहीं
मूर्ति की धातु, वजन और निर्माण गुणवत्ता की जाँच एक साधारण औपचारिकता नहीं,अनिवार्य प्रक्रिया है,जब तक जांच नहीं होती,तब तक इस मूर्ति का लोकार्पण होना ही नहीं चाहिए, अगर नगर पंचायत और सीएमओ वास्तव में निर्दोष हैं,तो उन्हें स्वयं आगे आकर कहना चाहिए जाँच कराइए—हम पारदर्शी हैं। पर अगर वे भाग रहे हैं, बच रहे हैं,टाल रहे हैं तो समझ लीजिए कि धातु ही नहीं,नीयत भी मिलावट है।
क्या नगर पंचायत तकनीकी परीक्षण कराएगी?
अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या नगर पंचायत मूर्ति का धातु परीक्षण, वजन सत्यापन और बिल-वेंडर की जांच करवाएगी? या फिर लोकार्पण जल्द से जल्द कर देकर मामले को दबाने की कोशिश होगी?
जल्दबाज़ी में लोकार्पण की तैयारी,संदेह और बढ़ा
सूत्र बताते हैं कि नगर पंचायत का पूरा अटल परिसर निर्माण पहले से ही वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों से घिरा हुआ है, इसी बीच सीएमओ द्वारा मूर्ति का जल्दबाज़ी में लोकार्पण करने की कोशिशों ने पार्षद के संदेह को और मजबूत किया है,स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर मूर्ति मूल धातु की नहीं है तो यह सरासर धोखाधड़ी है,अटल जी जैसी महान विभूति की मूर्ति पर भी कटौती हो जाए,यह शर्मनाक है।
पार्षद की मांग,लोकार्पण रोककर करें परीक्षण
पार्षद रेखा वर्मा ने साफ कहा कि तांबे की शुद्धता की जाँच बिना मूर्ति का लोकार्पण किसी भी स्थिति में नहीं होना चाहिए। यह जनता का पैसा है, और इस पर कोई समझौता नहीं, उन्होंने सीएमओ पर यह भी आरोप लगाया कि सीएमओ इस मामले में जांच से बचने के लिए जल्दबाजी में लोकार्पण करा देना चाहते हैं ताकि वित्तीय अनियमितताओं पर परदा डाला जा सके।
तांबे की जगह सस्ता धातु? ये कैसी श्रद्धांजलि?
वार्ड-12 की पार्षद रेखा वर्मा ने जो सवाल उठाए हैं,वे सिर्फ सवाल नहीं हैं,यह चेतावनी है कि कहीं मूर्ति में तांबे के नाम पर सस्ता धातु तो नहीं ठूंस दिया गया? क्या मूर्ति का वजन वास्तविक तांबे के मानकों के अनुरूप है? या फिर यह भी एक नया ठेका-खेल, बिल-मिलावट और कमाई का ‘सॉफ्ट टारगेट’ बन चुका है? अगर अटल जी जैसी महान विभूति की मूर्ति तक भी भ्रष्टाचार की चपेट में आ जाए, तो समझिए यह प्रशासन किस हद तक नैतिक रूप से गिर चुका है।
सीएमओ की जल्दबाजी, किस बात की दहशत?
सबसे बड़ा प्रश्न यही है सीएमओ लोकार्पण क्यों जल्दी-जल्दी कराना चाहते हैं? क्या धातु परीक्षण से डर है? क्या वजन जांच से सच बाहर आ जाएगा? क्या ठेकेदार, सप्लायर और कार्यालय के कागज़ एक साथ नहीं बैठ रहे? अगर सब कुछ पारदर्शी है, तो परीक्षण से भाग क्यों? अटल जी की प्रतिमा का लोकार्पण कोई गुपचुप समारोह नहीं है कि मनमानी से कर दिया जाए। यह सार्वजनिक धन का उपयोग है, और यहाँ हर नागरिक को जवाब चाहिए।
नागरिकों को जागना होगा,क्योंकि यहाँ सवाल अटल जी की गरिमा का है-
अटल जी की मूर्ति में मिलावट की आशंका, यह सिर्फ तकनीकी गलती या ठेकेदार की मूर्खता नहीं है यह हमारे समाज और सिस्टम की नैतिक गिरावट का सबसे क्रूर उदाहरण है, सवाल सिर्फ यह नहीं कि मूर्ति में क्या धातु है सवाल यह भी है इस नगर पंचायत के दिमाग में कौन-सी धातु भरी है?
नगर पंचायत में अनियमितताएँ और यह घटना सिर्फ एक और अध्याय
पटना नगर पंचायत पहले से ही कई वित्तीय अनियमितताओं,संदिग्ध भुगतान,और कागज़ी विकास के आरोपों से घिरी है,ऐसे माहौल में मूर्ति की धातु गुणवत्ता पर संदेह उठना बेहद गंभीर है,यह सिर्फ बेईमानी नहीं,यह जनता के पैसों की खुलेआम चोरी है, यह पारदर्शिता पर प्रहार है,और यह अटल जी की प्रतिष्ठा के साथ मजाक है।
पार्षद ने उठाए ये प्रमुख सवाल क्या मूर्ति वास्तव में ‘फुल तांबा’ है?
या फिर इसमें अन्य धातुओं की मिलावट कर लागत बढ़ाकर बिल पास कराया जा रहा है?
मूर्ति का वास्तविक वजन क्या है और क्या वह मानक के अनुरूप है?


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