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कोरिया/पटना@ छुट्टी खत्म—लो आ गए हम! फिर शुरू होगा वही खेल

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प्रथम नगर पंचायत पटना के सीएमओ पूरे सिस्टम को चिढ़ा रहे…और यह संदेश दे रहे है कि भ्रष्टाचार हमसे होगा पर कार्यवाही हम पर नहीं होगी…
भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद सीएमओ के संरक्षण पर सवाल, साफ है क्या सरकार में भ्रष्टाचारियों के लिए सब कुछ माफ है?


-रवि सिंह-

कोरिया/पटना, 21 नवंबर 2025 (घटती-घटना)। क्या अब राजनीति का अर्थ सिर्फ सत्ता, और सत्ता का अर्थ सिर्फ संरक्षण बनकर रह गया है? क्या वही नौकरशाह जिन्होंने जनता की सेवा करनी थी, अब सत्ता की ढाल लेकर खुलेआम सरकारी पैसों का बंदरबांट कर रहे हैं? और सबसे बड़ा सवाल—क्या सरकार का संदेश साफ है कि भ्रष्टाचार तुमसे होगा, लेकिन कार्यवाही तुम पर नहीं होगी? नगर पंचायत पटना का ताजा मामला यही साबित कर रहा है कि अब व्यवस्था की रीढ़ इतनी टेढ़ी हो चुकी है कि सच बोलने वाला भी अकेला पड़ जाता है और गलत करने वाला छुट्टियों पर भेजकर वापस हीरो की तरह लौटा दिया जाता है।
क्या राजनीतिक पार्टी सत्ता में इसलिए आना चाहती हैं ताकि नौकर शाह को खुली छूट वह देकर भ्रष्टाचार कर सकें और सरकारी पैसों की बंदर बाट वह कर सकें ? क्या यही वजह है कि नौकरशाह सरकारी पैसे का भ्रष्टाचार कर बंदर बांट करने लगते हैं और उन्हें इस बात का भरोसा होता है कि उन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी? क्या अब सत्ता में आकर सरकारी पैसे का दुरुपयोग ही अब उद्देश्य रह गया है? निष्पक्ष सत्ता की कल्पना अब अधूरी सी लगने लगी है, नौकरशाहों को प्रोत्साहित किया जा रहा भ्रष्टाचार के लिए? उसके बाद शिकायत और मामला उजागर होने के बाद कार्रवाई धरातल पर दिखती नहीं,अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों कह रहे हैं तो ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आज के परिवेश में कुछ ऐसा ही दिख रहा है, अभी ताजा मामला कोरिया जिले के नवगठित नगर पंचायत पटना का है जहां पर अनियमितताओं व भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सीएमओ पर गंभीर आरोप है, जांच में भी अनियमितता पाई गई पर कार्यवाही तो मानो न जाने किसका इंतजार कर रही हो? मामला जब सुर्खियों में आया और किरकिरी होने लगी तो कुछ दिनों के लिए सीएमओ को छुट्टी पर भेज दिया गया और यह जानकारी फैलाई गई कि अब वह छुट्टी से वापस नहीं आएंगे,क्योंकि उनका तब तक स्थानांतरण हो जाया रहेगा पर ऐसा कुछ हुआ नहीं और बताया जा रहा है कि यह पूरे मामले को शांत करने के लिए हुआ था और एक बार फिर सीएमओ छुट्टी के बाद आ गए हैं और पूरे सिस्टम को चिढ़ा रहे हैं कि भ्रष्टाचार करने की अनुमति ही उन्हें सिस्टम से मिली हो और सिस्टम उन पर कार्यवाही कर नहीं सकता,सीएमओ साहब लौटकर अब अपने दैनिक कार्य में लग गए हैं और उनके विरुद्ध हुई जांच और जांच में पाई गई अनियमितता अब कार्यवाही की बांट जोह रही है।
क्या यह सब सिर्फ एक नौकरशाह कर रहा है? या इसके पीछे सत्ता का मौन संरक्षण है?
कुछ सवाल इतने तेज हैं कि किसी भी सरकार को झकझोर देने चाहिए, क्या सत्ता में बैठी पार्टी इसलिए आई है कि नौकरशाहों को भ्रष्टाचार की छूट मिले? क्या सरकार की प्राथमिकता व्यवस्था सुधार नहीं,बल्कि व्यवस्था का निजीकरण हो गई है? क्या शिकायतें सिर्फ बहलाने के लिए हैं और कार्रवाई सिर्फ कागज़ों के लिए? लेकिन हक¸ीक¸त यह है कि यह मामला साफ करता है कि भ्रष्टाचारियों को शह देने वाला कोई न कोई ऊपर बैठा है। जो संदेश जनता तक गया है—वह खतरनाक है जब जांच में अनियमितता सिद्ध होने के बाद भी अधिकारी वापस कुर्सी पर बैठकर पूरे सिस्टम को मुस्कुराकर चिढ़ाए, तो जनता स्पष्ट समझ लेती है यहाँ भ्रष्टाचार अपराध नहीं, बल्कि योग्यता है, और यही इस पूरे प्रकरण की सबसे भयावह तस्वीर है, यह सिर्फ पटना नगर पंचायत की समस्या नहीं यह एक बीमार व्यवस्था का लक्षण है, जो बताता है कि भ्रष्टाचार उजागर कर दो—कुछ नहीं होगा, जांच बैठा दो—नतीजा शून्य,छुट्टी पर भेज दो—ड्रामा पूरा और फिरज् वही चेहरा, वही कुर्सी, वही खेल व्यवस्था को शर्म नहीं, ताकत मिल रही है सीएमओ की छुट्टी और फिर वापसी ने एक ही बात साबित कर दी है भ्रष्टाचार का खेल बंद नहीं हुआज् सिर्फ थोड़ा-सा ‘पॉज़ बटन’ दबाकर फिर ‘प्ले’ कर दिया गया है, और जब प्रणाली ही चुप है, सत्ता मौन है, नेतृत्व उदासीन है तो समझिए, लड़ाई सिर्फ भ्रष्टाचार से नहीं है, बल्कि उस मानसिकता से है जो भ्रष्टाचारियों को अपराजेय महसूस कराती है।
नगर को बनाया ‘भ्रष्टाचार का अड्डा’… शिकायतें…जांच…और फिर भी चुप्पी…
शिकायतों के आधार पर विभागीय जांच में कई वित्तीय गड़बडि़याँ स्पष्ट रूप से सामने आईं, जिनमें शामिल हैं,बिना प्रक्रिया भुगतान, कार्यों में खर्चों की अनियमितता,नियमों की खुली अनदेखी,बिल कॉम्प्रोमाइजिंग, प्रशासनिक अनुमोदन के बिना व्यय जांच रिपोर्ट में सभी आरोप सही पाए जाने के बाद सीएमओ को छुट्टी पर चले गए थे संभावना यह मानी जा रही थी कि छुट्टी के बाद उनकी वापसी बिल्कुल संभव नहीं है, लेकिन उनका अचानक लौट आना सभी अनुमानों पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर गया,जिन सभी संभावनाओं को लोग सच मान बैठे थे, सीएमओ की वापसी ने उन्हें एक झटके में गलत साबित कर दिया। सबको यही भरोसा था कि छुट्टी के बाद उनकी वापसी नहीं होगी,लेकिन सीएमओ का दोबारा आ जाना न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि सभी संभावनाओं और सभी दावों पर सीधा ‘क्रॉस’ लगा गया। जो लौटना असंभव माना जा रहा था, वही सच्चाई बनकर सामने आ गया।” जैसे कई मामलों में भ्रष्टाचार साबित हो चुका है, विभाग की जांच रिपोर्ट में खुलासा भी दर्ज है, फिर भीन तो निलंबन, न एफआईआर, न विभागीय कार्रवाई, सिर्फ छुट्टीज् और अब संभवतः तबादला।
क्या छुट्टी सिर्फ ‘सेफ्टी कवर’ थी?
शिकायतों पर हुई विभागीय जांच में कई वित्तीय गड़बडि़यों की पुष्टि होने के बाद सीएमओ को छुट्टी पर भेजा गया। लेकिन अब सवाल एक ही है क्या छुट्टी की आड़ में उन्हें निलंबन व विभागीय कार्रवाई से बचाया गया? सूत्रों का दावा है कि छुट्टी एक कुशन थी ताकि कुछ समय बाद इनका सीधा स्थानांतरण किया जा सके और यदि ऐसा हुआ— तो भ्रष्टाचार के बदले इनाम जैसी व्यवस्था का खुला उदाहरण होगा।
सीएमओ—जांच में दोषी…कार्रवाई में ‘निर्दोष’?
पटना नगर पंचायत के सीएमओ पर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के जो आरोप लगे, वे मामूली नहीं थे,जांच हुई—और जांच में अनियमितताएँ पाई भी गईं, पर कार्रवाई? कार्रवाई तो जैसे किसी और ही दुनिया में लिखी जा रही हो, मामला गर्माया, सुर्खियों में आया, जनप्रतिनिधियों और आम जनता ने सवाल उठाए—तो सिस्टम की चतुराई देखिए, सीएमओ को कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर भेज दिया गया। यह दिखाने के लिए कि “कार्रवाई” हो रही है, अफवाह फैलाई गई कि अब वे वापस नहीं आएंगे, उनका ट्रांसफर हो जाएगा, पर सच यह है कि “छुट्टी खत्म, लो आ गए हम! और जो वापस लौटा है, वह सिर्फ एक सीएमओ नहीं, वह पूरी व्यवस्था को यह मैसेज दे रहा है कि भ्रष्टाचार करो…डरो मत…सिस्टम हमारा है।
क्या भ्रष्टाचार मामले में सरकार का रुख संरक्षण प्रदान करने वाला है…
नगर पंचायत पटना के सीएमओ पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप हैं,आरोप लगभग साबित भी हो चुके हैं लेकिन कार्यवाही के नाम पर कोई सुगबुगाहट शुरू नहीं हुई है,सीएमओ जब भ्रष्टाचार में फंसते नजर आए उन्हें छुट्टी पर भेजा गया था और अब वह लौट आए हैं,अब सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्टाचार के मामले में सरकार का रुख संरक्षण प्रदान करने वाला है इसलिए सीएमओ साहब स्पष्ट भ्रष्टाचार कर बचे हुए हैं और कार्यवाही तो दूर उनके स्पष्टीकरण तक की मांग नहीं की गई है।
भ्रष्टाचार ऐसे की भ्रष्टाचार शब्द भी शरमा जाए,फिर भी सीएमओ साहब हैं अब तक बेदाग
सीएमओ साहब पटना के भ्रष्टाचार ऐसे भ्रष्टाचार हैं जिससे भ्रष्टाचार शब्द भी शरमा जाए,बिना भवन बनाए भवन बनाने की राशि निकालना,मृत पशु दफनाने के नाम पर पैसे निकालना,अलाव जलाने के नाम पर अपनी जेब गर्म करना,होर्डिंग बैनर सहित नाश्ते और टेंट पंडाल तक के मामले में सीएमओ साहब ने भ्रष्टाचार किया है यहां तक कि दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के खाते में पैसे डालकर अपने खाते में वापस लेने का भी सबूत मिला है,सब सबूतों के बाद भी सीएमओ साहब जमे हुए हैं और वह बेदाग हैं,यह व्यवस्था का वह रूप है जो बतलाता है कि भ्रष्टाचार ही आज शिष्टाचार है।
नव गठित नगर पंचायत का दुर्भाग्य…पहला सीएमओ ही लुट रहा नए नगर का भविष्य…
यह कहना गलत नहीं होगा कि यह नव गठित नगर पंचायत पटना का दुर्भाग्य है कि पहला सीएमओ ही नगर के भविष्य को लूट रहा है और नगर विकास निधियों की राशि से अपनी जेब भर रहा है,जो राशि नवगठित नगर के विकास के लिए उपयोग किया जाना था वह उसकी जेब में है,निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी अब तक हराकर व्यवस्था को और सीएमओ के हालिया रवैया पर अब मौन हैं और कहीं न कहीं अब यह स्पष्ट है कि वह जान चुके हैं कि नगर पंचायत पटना का सीएमओ ही महान है और उसका सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही अनुमान करना बेकार है।


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