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सरगुजा@दैनिक घटती-घटना के वरिष्ठ लेखक डॉ. राजकुमार मिश्र का निधन

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-घटती-घटना समाचार-
सरगुजा,17 नवम्बर 2025 (घटती-घटना)। सरगुजा क्षेत्र के चर्चित साहित्यकार,निर्भीक पत्रकार और सेवाभावी होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. राजकुमार मिश्रा का बीती रात निधन हो गया वे 76 वर्ष के थे,उनके निधन से साहित्य,पत्रकारिता और चिकित्सा—तीनों ही क्षेत्रों में अपूरणीय शोक छा गया है,सरगुजा ने आज अपने एक ऐसे व्यक्तित्व को खो दिया,जिसने अपने जीवन से अधिक अपनी कर्मशीलता और सेवा-भाव से क्षेत्र को प्रभावित किया। वैसे ख्याति प्राप्त पत्रकार,संवेदनशील लेखक और होम्योपैथी उपचार विधा में विशेष पहचान रखने वाले डॉ. राजकुमार मिश्र का यूँ अचानक निधन हो जाना न केवल उनके परिवार के लिए,बल्कि पूरे सरगुजा संभाग और दैनिक घटती-घटना समाचार परिवार के लिए एक अपूरणीय क्षति है,उनकी विदाई एक ऐसे अध्याय का अंत है,जिसने पत्रकारिता,समाज और लोगों के जीवन में अमिट छाप छोड़ी,डॉ. मिश्र वर्षों तक दैनिक घटती-घटना अखबार से जुड़े रहे, उन्होंने राजनीति,समाजिक,संस्कृति,आस्था,व्यवस्था और जन-सरोकार से जुड़े विषयों पर सैकड़ों लेख लिखे,उनकी लेखनी न तो किसी दबाव में झुकती थी,न ही किसी प्रलोभन में डगमगाती थी। उनका हर लेख तथ्यपूर्ण,तर्कसंगत और गहरी सामाजिक समझ से भरा होता था। उन्हें पढ़ने वाले आज भी उनके शब्दों की सटीकता, सरलता और प्रभाव को याद करते हैं।
साहित्य जगत में राष्ट्रीय
पहचान,1975-1990 का स्वर्णिम दौर

डॉ. मिश्रा ने वर्ष 1975 से 1990 के बीच अपनी सशक्त, संवेदनशील और सामाजिक यथार्थ से जुड़ी कहानियों के माध्यम से हिंदी साहित्य जगत में राष्ट्रीय पहचान बनाई,उनकी अनेक कहानियाँ देशभर में मंचित हुईं,प्रकाशित हुईं और पुरस्कृत भी रहीं, उनका कथाकार व्यक्तित्व इतना मजबूत था कि वे हिंदी साहित्य के समकालीन लेखकों की अग्रिम पंक्ति में गिने जाते थे,अंबिकापुर आकाशवाणी पर उनके लिखे नाटक,कहानियां और रूपक आज भी सरगुजा क्षेत्र की सांस्कृतिक स्मृतियों में जीवित हैं उन्हें सरगुजा के उन विरले साहित्यकारों में गिना जाता है,जिन्होंने अपनी कलम से पीढि़यों को प्रभावित किया।
डॉक्टरी की पढ़ाई के साथ सरगुजा में सेवा का प्रारंभ
70 के दशक में डॉक्टरी की पढ़ाई पूर्ण कर वे पहली बार सरगुजा आए और होम्योपैथी चिकित्सा सेवा प्रारंभ की, उनकी चिकित्सा शैली और मरीजों के प्रति आत्मीयता ने उन्हें ‘सेवाभावी चिकित्सक’ की पहचान दिलाई उनका उपचार हजारों परिवारों के लिए सहारा और विश्वास का नाम था।
पत्रकारिता में साहस,सच्चाई
और निर्भीकता का दूसरा नाम

सरगुजा में रहते हुए ही उन्होंने पत्रकारिता में कदम रखा और बहुत जल्द अपनी निष्पक्षता,तेज लेखनी और निर्भीक रिपोर्टिंग के कारण अलग पहचान बनाई, सत्ता प्रशासन—समाज—किसी का भय नहीं,सिर्फ सत्य और जनता के प्रति निष्ठा यह उनकी पत्रकारिता की सबसे बड़ी विशेषता थी,उनके लेखों में सामाजिक सरोकार प्रमुख थे,अन्याय,भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और जनसमस्याओं पर उनकी स्पष्ट और ईमानदार टिप्पणी को क्षेत्र के लोग आज भी मिसाल मानते हैं,उनकी बेबाक लेखनी ने सरगुजा पत्रकारिता को नई दिशा दी और कई युवा पत्रकारों के लिए वे प्रेरणा स्रोत बने।
अचानक बिगड़ी तबीयत,
प्रयासों के बावजूद जीवन यात्रा थम गई…

डॉ. मिश्रा पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे,बीती रात अचानक तबीयत बिगड़ने पर परिजन उन्हें अस्पताल ले गए, जहाँ डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की,लेकिन वे जीवन की अंतिम लड़ाई हार गए, उनका जाना सिर्फ एक इंसान का जाना नहीं,बल्कि एक विचार,एक युग और एक संवेदनशील लेखनी का शांत हो जाना है।
भरा-पूरा परिवार पीछे छोड़ गए…
उनके परिवार में तीन पुत्र, एक पुत्री सहित अनेक नजदीकी परिजन, प्रियजन, मित्र और शुभचिंतक शामिल हैं,समाज,साहित्य और पत्रकारिता जगत में उनके जाने से शोक की लहर फैल गई है, अंबिकापुर, सरगुजा और आसपास के क्षेत्र में सुबह से ही उनके निधन की खबर ने लोगों को गहरे दुःख में डूबा दिया।
एक ऐसा लेखक जिसकी लिखी
बातें दिल और दिमाग दोनों में उतर जाती थी…

डॉ. मिश्र की लेखन शैली जितनी सौम्य थी, उतनी ही धारदार भी,राज्य स्तर की राजनीति से लेकर राष्ट्रीय मुद्दों पर उनकी पकड़ बेहद मजबूत थी, सामाजिक बुराइयों पर उनका लेख जनमानस का दर्पण होता था,धार्मिकआस्था और समाज-चिंतन पर उनके लेखों में दर्शन,अनुभव और सादगी का अद्भुत मेल रहता था,उन्होंने अपने लेखन से कई ऐसे मुद्दों को उजागर किया,जिन्हें समाज अनदेखा कर देता था,उनके शब्द केवल रिपोर्ट नहीं होते थे,वे समाज की आत्मा को झकझोरते थे।
होम्योपैथी उपचार में उनका व्यक्तित्व…
‘एक उम्मीद ‘- डॉ. मिश्र केवल पत्रकार नहीं थे, वे एक अनुभवी होम्योपैथी विशेषज्ञ भी थे,उनके उपचार से लाभान्वित लोगों की संख्या अनगिनत है,लोग उन्हें डॉक्टर से ज्यादा ‘परिवार के अपने व्यक्ति’ मानते थे,वे इलाज नहीं, भरोसा देते थे—और यही भरोसा उन्हें अलग पहचान दिलाता था।
दैनिक घटती-घटना परिवार के लिए यह केवल नुकसान नहीं,एक व्यक्तिगत पीड़ा है…
डॉ. मिश्र का अखबार से संबंध केवल लेखक-पाठक तक सीमित नहीं था वे सुझाव देते थे,मार्गदर्शन करते थे, गलतियों पर डांटते थे और सही कार्य पर प्रशंसा भी करते थे,उनका स्नेह,अपनापन,और निस्वार्थ योगदान इस संस्थान की नींव को मजबूती देते रहे,उनके निधन से जैसे घटती-घटना का एक स्तंभ गिर गया हो।
स्मृति-खंड ‘वह कलम जो सच लिखने के लिए बनी थी’… –
समाज के कमजोर वर्ग की आवाज उठाना,प्रशासन और व्यवस्था की कमियों को बेबाकी से लिखना,राजनीति की परतों को समझ कर विश्लेषण करना,आस्था और संस्कृति को वैज्ञानिक नजर से देखना और सबसे बढ़कर—सत्य के पक्ष में खड़े रहना,यह सब डॉ. मिश्र की लेखनी की पहचान थी, उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी जनहित और निष्पक्षता उनकी मेहनत, ईमानदारी,संयम और संवेदनशीलता आने वाली पीढि़यों के लिए प्रेरणा हैं। ‘डॉ. राजकुमार मिश्रा का जीवन संघर्ष,सेवा और सृजन की अद्वितीय यात्रा थी उनकी स्मृति सदैव अमर रहेगी। ‘ ओम् शांति।


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