
73 साल का इंतजार…जब जंगल की झोपड़ी में बैठे एक राष्ट्रपति ने ‘गोलू’ को बसंत बना दिया था…

- आज वही 80 साल का बसंत राष्ट्रपति से दोबारा मिलने की आस लगाए बैठा है…
- 72 साल बाद सरगुजा में दूसरी बार हो रहा राष्ट्रपति का आगमन,बसंत पंडो उनसे मिलना चाहता है…
- 1952 में आये थे राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद,2025 में होगा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का आगमन…
- जब सरगुजा आए थे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति ने पण्डो जनजाति को बनाया दत्तक पुत्र…
- छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में भी है राष्ट्रपति भवन
- राष्ट्रपति से मिल कर उन्हें पंडो जनजाति की स्थिति से अवगत कराना चाहता है पंडो समाजःउदय पंडो
ओंकार/राजन पाण्डेय
कोरिया/सूरजपुर,16 नवम्बर 2025
(घटती-घटना)।
देश के पहले राष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति दोनों का सरगुजा आना पंडो जनजाति के लिए युगांतकारी घटनाएं हैं. 80 वर्षीय बसंत पंडो खुद चलकर राष्ट्रपति से कहना चाहते हैं ‘1952 में आपके पहले राष्ट्रपति ने मुझे गोद लिया था, आप भी हमारी पीड़ा सुनें पंडो जनजाति को न्याय दिलाएँ।’ पूरे पंडो समाज की अब नज़रें 20 नवंबर पर टिकी हैं। बता दे की सरगुजा का इतिहास एक बार फिर 73 साल बाद खुद को दोहराने जा रहा है। 1952 में सरगुजा पहुंचे थे देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, और 2025 में आ रही हैं देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू,तभी के तरह आज भी पूरा सरगुजा आदिवासी समाज उत्साहित है। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा भावुक है बसंत पंडो,वह शख्स जिसे आठ साल की उम्र में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गोद लिया था, नामकरण किया था और आज वह 80 वर्ष के हैं,बसंत पंडो की एक ही इच्छा है ‘मैं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलना चाहता हूँ। ‘
‘वो दिन आज भी मेरी पलकों पर बैठा है… ‘-बसंत पंडो की आवाज़ कांपती है,लेकिन उसके भीतर की यादें आज भी बिल्कुल साफ हैं‘जब राष्ट्रपति जी आए थे…मुझे अपनी गोद में उठाया…नया शर्ट-पैंट पहनाया…और बोले आज से इसका नाम बसंत लाल, मेरा नामकरण उन्होंने किया…उन्होंने मुझे अपने दत्तक पुत्र जैसा प्यार दिया,‘गोलू उस दिन राष्ट्रपति की गोद में बैठा हुआ खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली बच्चा समझ रहा था। जंगलों में रहने वाले पंडो समाज के लिए वो दिन किसी सपने जैसा था। जैसे सदियों की उपेक्षा अचानक सम्मान में बदल गई हो।
लेकिन किस्मत की राह ने मोड़ बदला…
बसंत आज भी यह कहते हुए भर आता है‘वे मुझे अपने साथ ले जाना चाहते थे…बोला भी था अधिकारियों से…पर मुझे जाने नहीं दिया गया, अगर मैं चला गया होता,तो मेरा जीवन शायद कुछ और ही होता…’ यह कहकर बसंत कुछ पल के लिए चुप हो जाता है, जंगल की हवा में एक लंबी सांस गूंजती है, उसके शब्दों में एक अनकही कसक,एक अधूरा अपनापन और एक खोया अवसर झलकता है।
1952 की उस मुलाकात ने पंडो समाज के दिल में उजाला जलाया था…
जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बसंत को गोद लिया, पंडो समाज को बैल, बैलगाड़ी, बीज और जमीन दी गई, 13 नई बसाहटें बनीं,जंगल के अंधेरों में पहली बार ‘सरकार’ दिखी थी वो भी सीधे राष्ट्रपति की ओर से, लेकिन 73 साल बीत जाने के बाद भी पंडो जनजाति आज भी वही संघर्ष झेल रही है,सड़क नहीं, पानी नहीं, रोजगार नहीं…और तो और जाति प्रमाण-पत्र तक नहीं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने झोपड़ी में
बैठकर किया था नामकरण-साल 1952,सरगुजा का ऐतिहासिक दौरा
डॉ. राजेंद्र प्रसाद रघुनाथ पैलेस से निकलकर जंगलों में रहने वाले पंडो जनजाति से मिलने पहुंचे थे। एक साधारण झोपड़ी में बैठकर उन्होंने पंडो परिवारों से बातचीत की। उसी दौरान 8 वर्षीय ‘गोलू’ को अपनी गोद में उठाया और कहा ‘आज से इसका नाम बसंत लाल होगा। ‘यह सिर्फ नामकरण नहीं था उन्होंने बसंत पंडो को दत्तक पुत्र घोषित किया,बसंत पंडो याद करते हुए कहते हैं ‘राष्ट्रपति ने मुझे गोद लिया, नया कपड़ा पहनाया,साथ ले जाने को कहा, लेकिन अधिकारी मुझे ले नहीं गए। आज सोचता हूं…अगर मैं उनके साथ चला गया होता तो मेरा जीवन कुछ और होता।’
राष्ट्रपति भवन अब भी सूरजपुर में लेकिन उपेक्षित-डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सूरजपुर में रात बिताई थी…
उसी स्थान को आज भी ‘राष्ट्रपति भवन’ कहा जाता है, कई बार इसे पर्यटन स्थल बनाने की मांग उठी,पट्टे की मांग भी हुई,लेकिन आजतक इस जगह का विकास नहीं हो सका,3 दिसंबर, 26 जनवरी और 15 अगस्त को यह भवन खोला जाता है,जहां लोग दूर-दूर से इतिहास देखने आते हैं,जिसके बाद वो यहां उतरे और तत्कालीन सरगुजा महाराज से मिलकर पंडो जनजाति के विकास के लिए उन्हें दत्तक पुत्र बनाया और एक रात वहीं विश्राम किए. इसलिए इस जगह को ‘राष्ट्रपति भवन’ का नाम दिया गया जिसे छत्तीसगढ़ का ‘राष्ट्रपति भवन’ भी कहा जाता है, राष्ट्रपति भवन को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने की मांग लगातार पंडो समाज के लोगों के द्वारा की जाती रही है आज भी यहां ‘राष्ट्रपति भवन’ में काफी लोग निवास करते हैं, ये भवन राष्ट्रपति के जन्मदिन यानी 3 दिसंबर,26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन खुलता है और इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. लिहाजा पंडो जनजाति ने कई बार पट्टे और इस जगह को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग की, लेकिन आज तक इस जगह को विकसित नहीं किया गया है।

‘बसंत पंडो की राष्ट्रपति से मुलाकात सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं,पूरे समाज की उम्मीद’
उदय पंडो-पंडो समाज के प्रदेश अध्यक्ष उदय पंडो ने सबसे भावुक प्रतिक्रिया दी, उन्होंने कहा 80 वर्षीय बसंत पंडो वह व्यक्ति हैं जिन्हें देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गोद लिया था, राष्ट्रपति मुर्मू के आगमन की खबर सुनकर वे खुशियों से भर गए हैं, उनकी इच्छा है कि जिला प्रशासन उन्हें राष्ट्रपति से मिलवाए, उदय पंडो ने कहा कि बसंत पंडो की मुलाकात सिर्फ इतिहास का सम्मान नहीं होगी, बल्कि पंडो समाज के लिए यह एक बड़ा संदेश भी देगी ‘यदि मुलाकात होती है, तो हम सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया, बलरामपुर और अन्य जिलों में पंडो समाज के विकास, सुविधाओं की बढ़ोतरी और विशेष योजनाओं की मांग राष्ट्रपति महोदया के सामने रखेंगे। ‘

‘हजारों पंडो आज भी जाति प्रमाण-पत्र से वंचित’
पवन साय पंडो-पंडो समाज के प्रांतीय सचिव पवन साय पंडो ने कहा कि पंडो समाज की सबसे बड़ी और दर्दनाक समस्या जाति प्रमाण पत्र है, उन्होंने कहा ‘हमारे पूर्वज जंगलों में रहते थे, जमीन के कागजात नहीं थे, इसी वजह से आज हजारों लोगों की जाति नहीं बन पा रही है। ग्राम सभा के प्रस्ताव पर जाति बनाने का राज्य सरकार का आदेश तो है, लेकिन प्रशासन उसका पालन ही नहीं कर रहा। यह अन्याय अब खत्म होना चाहिए।’ पवन साय पंडो ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से जाति प्रमाण पत्र की समस्या का स्थायी समाधान, पंडो विकास प्राधिकरण की स्थापना जैसी मांगें रखने की बात कही।

‘ओड़गी-बिहारपुर क्षेत्र का उद्धार जरूरी’
एम.एल. पंडो-समाज के सह-सचिव एम.एल. पंडो ने कहा कि पंडो बहुल क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है, ‘बैजनपाठ, बिहारपुर, ओड़गी जैसे इलाकों में पंडो जनजाति को सड़क, बिजली, पानी तक का पूरा लाभ नहीं मिल रहा। रोजगार के अवसर लगभग शून्य हैं। यदि पंडो समाज के उत्थान की बात करनी है, तो इन क्षेत्रों में विशेष अभियान चलाना होगा। सरकार पंडो समाज के लिए सीधी भर्ती प्रक्रिया शुरू करे। ‘
पंडो जनजाति को बसाया गया, पर उत्थान आधा ही रह गया…
1952 में बसंत पंडो को गोद लिए जाने के बाद शासन ने पंडो जनजाति के विकास हेतु बैल, बैलगाड़ी, बीज, खेती के लिए जमीन मंजूर की थी, 13 बसाहटें स्थापित की गईं, लेकिन 73 साल बाद भी पंडो समाज बुनियादी सुविधाओं, रोजगार, शिक्षा और प्रमाण-पत्र जैसे सबसे मूल अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है।
पंडो समाज की प्रमुख मांगें
पंडो जनजाति के जाति प्रमाण-पत्र का स्थायी समाधान
पंडो विकास प्राधिकरण का गठन
पंडो बहुल क्षेत्रों में सड़क,बिजली,पानी,आवास
विशेष भर्ती अभियान से रोजगार
राष्ट्रपति भवन (सूरजपुर) को पर्यटन स्थल का दर्जा
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