- 11 साल की लड़ाई…फैसला मिल गया पर ज्वाइनिंग अब भी सवालों में…
- आखिर किसकी लापरवाही से ‘पात्रों’ की जगह ‘अपात्रों’ को मिली नौकरी?
- 11 साल बाद न्याय…37 टॉपर अभ्यर्थियों के लिए फिर जगी नौकरी की उम्मीद…
- कोरिया की बहुचर्चित संयुक्त भर्ती परीक्षा में बड़ा मोड़, प्रशासन की सारी दलीलें खारिज
- नकल का एक भी प्रमाण नहीं, फिर भी 37 टॉपरों को चयन सूची से बाहर कर दिया गया था
- रिव्यू पिटीशन भी खारिज, अब नौकरी बहाली की राह लगभग साफ

-रवि सिंह-
बैकुंठपुर,20 नवंबर 2025(घटती-घटना)। कोरिया जिले की सबसे विवादित और बहुचर्चित संयुक्त भर्ती परीक्षा 2014 एक बार फिर सुर्खियों के केंद्र में है,पूरे 11 साल बाद बिलासपुर उच्च न्यायालय ने वह फैसला सुना दिया है, जिसका इंतज़ार 37 टॉपर अभ्यर्थी वर्षों से कर रहे थे, हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन और राज्य शासन की सभी दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए, 37 अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला कायम रखा है। प्रशासन की ओर से दायर की गई रिव्यू पिटिशन भी अदालत ने खारिज कर दी है। इससे अब स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि 37 टॉपर अभ्यर्थियों को आखिरकार वह न्याय मिलने वाला है, जिससे उन्हें 11 साल से वंचित किया गया था।
बिना किसी सबूत के ‘नकलची’ घोषित कर बाहर किया गया था…
2014 में संयुक्त भर्ती परीक्षा के बाद जब चयन सूची जारी हुई, तो 37 अभ्यर्थी शीर्ष स्थानों पर थे,इसी बात को आधार बनाकर जिला प्रशासन ने उन्हें संदिग्ध और नकलची मान लिया लेकिन नकल का एक भी प्रमाण पेश नहीं किया गया,कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं,कोई कॉपी मिलान रिपोर्ट नहीं,कोई पुख्ता जांच रिपोर्ट नहीं, प्रश्नपत्र लीक या पूर्व जानकारी का एक भी सबूत नहीं, इसके बावजूद सभी 37 टॉपरों को चयन सूची से बाहर कर दिया गया,यही वह निर्णय था,जिसने इन अभ्यर्थियों को 11 साल की लंबी न्यायिक लड़ाई लड़ने पर मजबूर कर दिया।
हाईकोर्ट का स्पष्ट संदेश…सिर्फ टॉपर होना अपराध नहीं…
हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में साफ कहा उच्च अंक प्राप्त कर लेने मात्र से किसी अभ्यर्थी को नकलची नहीं माना जा सकता, जब तक कि ठोस प्रमाण न हों। यह टिप्पणी मामले का निर्णायक बिंदु साबित हुई। अदालत ने प्रशासन की मंशा,प्रक्रिया और जांच को लेकर कई गंभीर सवाल भी उठाए।
एक साल तक मामला लटकाने की कोशिश भी नाकाम
गत वर्ष ही हाईकोर्ट ने 37 अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला दे दिया था, लेकिन जिला प्रशासन ने एक आखिरी प्रयास करते हुए समीक्षा याचिका दायर कर फैसले को लगभग एक वर्ष तक रोके रखा, अब यह याचिका भी खारिज हो चुकी है।
37 लोगों की जगह जिनकी नियुक्ति हुई थी,जल्द हटाने की तैयारी?
जिला प्रशासन के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक प्रशासन ने उन सभी कर्मचारियों की सूची तैयार कर ली है, जिन्हें 37 टॉपर अभ्यर्थियों की जगह पर नियुक्त किया गया था, और उन्हें नोटिस जारी कर सेवा समाप्ति की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है, यह कदम जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, जिले में बड़ा प्रशासनिक और राजनीतिक हलचल होना तय है।
क्या न्यायालय से जीत मिलने के बाद भी अभ्यर्थियों को और करना पड़ेगा इंतजार?
11 साल बाद 37 अभ्यर्थियों को उनके इंतजार का परिणाम मिला है,न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि 37 लोगों का दावा सही है और वह नौकरी के लिए पात्र हैं,अब न्यायालय के फैसले के बाद क्या 37 उन अभ्यर्थियों को तत्काल नौकरी दी जाएगी जिन्हें नकलची बताकर चयन सूची से बाहर कर दिया गया था,जबकि नकल का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका था। देखना होगा जिला प्रशासन पूरे मामले में कितनी तत्परता दिखाता है क्योंकि 37 अभ्यर्थी 11 साल से अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं और अब न्यायालय के फैसले के बाद उनमें उम्मीद जागी है।
11 साल का इंतजार न्यायालय से जीत… उत्साह तो है पर कार्य पर कब आएंगे यह अभी भी सवाल?
11 सालों से न्यायालय के चक्कर काट रहे 37 अभ्यर्थी काफी उत्साहित बताए जा रहे हैं,इस उत्साह के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह कब तक नौकरी में आएंगे,जैसा कि सूत्रों से पता चल रहा है 37 पदों के लिए सीधे नियुक्ति आदेश देने की स्थिति में नहीं है जिला प्रशासन वहीं जिला प्रशासन 37 उन लोगों को नौकरी से हटाने का विचार कर सकती है को उन 37 लोगों की जगह पर कार्य कर रहे हैं जिन्हें अब न्यायालय से जीत मिली है,हटाने और नियुक्ति प्रदान करने में कितना समय लगने वाला है यह देखने वाला विषय होगा।
आखिर किसकी लापरवाही से पात्र की जगह आपत्रों को मिली नौकरी?
37 अभ्यर्थी केवल इसलिए वर्ष 2014 संयुक्त भर्ती अभियान अंतर्गत चयन सूची से बाहर किए गए क्योंकि तब यह जिला प्रशासन का तर्क था कि 37 अभ्यर्थी जो टॉपर थे वह नकल करके टॉपर बने थे,वैसे बताया जाता है कि नकल का कोई साक्ष्य जिला प्रशासन प्रस्तुत नहीं कर सका,अब ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि क्या केवल अधिक नंबर पाना ही नकल करने का साक्ष्य था जिसे न्यायालय ने भी अस्वीकार कर दिया,सवाल यह भी कि बिना साक्ष्य नकल करना बताया जाना और चयन सूची से बाहर किया जाना किसकी गलती थी कौन इसका जिम्मेदार है।
कोरिया जिला अब दो भागों में विभक्त,37 लोगों की नियुक्ति के बीच जिलों की भी अड़चनें आएंगी सामने
जब 2014 में संयुक्त भर्ती संपन्न की गई तब कोरिया जिला अविभाजित जिला था,अब जिला दो जिलों में बंट चुका है,संयुक्त भर्ती के दौरान चयनित अभ्यर्थी आज दोनों जिलों में कार्यरत हैं,अब यदि 37 लोगों को नौकरी से हटाते हुए 37 को नौकरी देने की बात सामने आएगी तो एक अड़चन यह भी आएगी कि 37 में से कुछ विभाजित जिले में पदस्थ हैं,उन्हें हटाना और उनकी जगह 37 को भेजना अन्य जिले में यह सब प्रक्रिया काफी धीमी चाल वाली प्रक्रिया होगी जिसमें बेवजह का समय ही व्यतीत होगा ऐसा कहा जा सकता है।
अब नज़रें जिला प्रशासन की तत्परता पर
हाईकोर्ट का फैसला साफ है,रिव्यू याचिका भी खारिज, और 37 टॉपर अभ्यर्थी 11 साल से अपने हक के लिए लड़ते-लड़ते अब मंजि़ल के बिल्कुल करीब हैं।
निष्कषर्: न्याय मिला पर न्याय लागू होना अभी बाकी
37 अभ्यर्थियों ने 11 साल लड़कर अपना अधिकार प्राप्त किया है लेकिन ज़मीन पर उनकी नियुक्ति लागू होने तक लड़ाई का दूसरा चरण अभी बाकी है।
अब सवाल यह है…
क्या कोरिया जिला प्रशासन तुरंत कार्रवाई कर इन 37 अभ्यर्थियों को न्याय दिलाएगा?
11 साल से लटकी नौकरी आखिर कब उनके हाथ आएगी?
यह आने वाले दिनों में जिले की सबसे बड़ी खबर होगी।
37 अभ्यर्थी रखने हटाए जा सकते हैं 37 कार्यरत कर्मचारी, क्या 11 साल बाद किसी की नौकरी छीनना उचित?
11 साल बाद न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोरिया जिले में वर्ष 2014 में संयुक्त भर्ती अभियान अंतर्गत जो 37 अभ्यर्थी चतुर्थ श्रेणी पद के लिए अपात्र किए गए थे वह पात्र थे और उन्हें नौकरी दिया जाना न्याय है,अब जैसी जानकारी मिल रही है जिला प्रशासन पूरे मामले में 37 उन अभ्यर्थियों को नौकरी से बाहर कर सकती है जो 37 टॉपर अभ्यर्थियों की जगह 11 साल से नौकरी कर रहे हैं,अब ऐसे में यह एक बड़ा प्रश्न है कि क्या 37 अभ्यर्थी रखने के लिए 37 नौकरी कर रहे लोगों को 11 साल बाद नौकरी से हटाया जाना उचित है,आज जिन 37 अभ्यार्थियों को नौकरी से हटाए जाने की बातें सामने आ रही हैं वह इसी नौकरी के आश्रित हैं और उनका परिवार भी इसी नौकरी पर आश्रित है ऐसे में उनकी नौकरी जाने पर उनका और उनके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा यह एक बड़ी समस्या उनके सामने खड़ी हो जाएगी,11 साल सेवा उपरांत अब 37 नौकरी कर रहे लोग उम्र की उस दहलीज पर भी हैं जहां से नौकरी के लिए उम्र की बाध्यता होगी जो वह पार कर चुके हैं और उन्हें नौकरी मिलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है,अब इन परस्थितियों में 37 लोगों को नौकरी से निकाला जाना या उन्हें कोई नोटिस देना कहां तक सही होगा,वैसे जो 37 लोग नौकरी कर रहे हैं उन्होंने न ही मेरिट सूची बनाई न ही उन्होंने खुद नौकरी के लिए कहा ही,जिला प्रशासन और भर्ती समिति ने उनकी नियुक्ति की और वह कार्य करने लगे,इस हिसाब से वह कहीं से दोषी नहीं,अब ऐसे में उन्हें नौकरी से निकाले जाने की कोशिश कहां तक सही यह भी एक सवाल है
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