- 15 सालों में मिला पक्ष विपक्ष सहित स्थानीय नेताओं को महत्व अब विपक्ष की बात दूर पक्ष के स्थानीय नेता भी उपेक्षित
- क्या वर्तमान विष्णुदेव सरकार इसी तरह आगामी विधानसभा चुनाव में जीत का मार्ग तय करेगी?
- वर्तमान स्थिति बड़ी विचित्र,स्थानीय स्तर पर भाजपा नेताओं की नहीं है पूछ परख,सत्ता नाम की बताते हैं स्थानीय नेता
- डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में भूमिपूजन शिलान्यास पट्टिकाओं में पक्ष विपक्ष स्थानीय नेताओं का दिखता था नाम

-अविनाश राहगीर-
रायपुर/अंबिकापुर/कोरिया 15 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। डॉक्टर रमन सिंह का हाल ही में जन्मदिवस था और उनके जन्मदिवस पर भाजपा नेताओं की तरफ से उनके लिए शुभकामनाओं के संदेश की बाढ़ भी देखी गई और उनकी लोकप्रियता समझ में भी आई कि वह लोकप्रिय तो थे भले ही उन्हें वर्तमान भाजपा शासन काल में मुख्यमंत्री का पद नहीं मिला उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया लेकिन उनके कार्यकाल में भाजपा में एक सुदृढ़ व्यवस्था आंतरिक और बाहरी थी जो उनकी लोकप्रियता का कारण थी और है भी,आज उनके जन्मदिवस पर लोगों ने उन्हें याद किया और इसी क्रम में एक ऐसी बात पुरानी याद आई जो उनकी लोकप्रियता के कारण को समझने के लिए कारगर कही जा सकती है वह यह कि 15 सालों के डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में प्रदेश में जो कुछ गतिविधियां सरकार और व्यवस्था के संचालन में नजर आती थीं वह अब विलोपित नजर आती है वह नदारद हो चुकी गतिविधियां हैं पंरपरा है,डाक्टर रमन सिंह के 15 वर्षों के कार्यकाल में पक्ष विपक्ष सहित स्थानीय भाजपा नेताओं की भी पूछ परख विभिन्न आयोजनों में देखी जाती थी भले ही विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका के कारण कई बार ऐसे मामलों को नजरअंदाज करता था और कई बार कई विषयों पर बहिष्कार या अस्वीकृति जाहिर करता था लेकिन उनकी पूछ परख होती थी उन्हें जिस भी भावना से याद किया जाता था यदि कोई शासकीय आयोजन हो या फिर कोई सार्वजनिक गैर दलीय आयोजन। विभिन्न भूमिपूजन कार्यक्रमों में लोकार्पण कार्यक्रमों में उद्घाटन कार्यक्रमों में राष्ट्रीय कार्यक्रमों में सभी की पूछ परख नजर आती थी जो कई बार अमिट छाप के तौर पर दर्ज भी की जाती थी जिसे स्मरण स्वरूप संजोया भी जाता था। तब स्थानीय नेताओं में भी एक अलग उत्साह नजर आता था जो उन्हें ऊर्जावान बनाए रखता था जो अब या वर्तमान विष्णुदेव साय सरकार के कार्यकाल में नजर नहीं आता। वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में भाजपाई ही उपेक्षित महसूस कर रहे हैं खुद को और हर तरफ केवल प्रशासनिक एक व्यवस्था लागू है जिसमें भाजपा के विधायक मंत्री तो कहीं न कहीं शामिल हैं वहीं स्थानीय नेताओं सहित विपक्ष को एक किनारे किए जाने का आभास नजर आ रहा है जो स्पष्ट परिलक्षित होता दिखता है। एक लोकार्पण पट्टिका पर इसी तरह नजर पड़ी तो यह विषय सामने आया जिसमें यह देखने को मिला जो डॉक्टर रमन सिंह के 15 वर्षीय शासनकाल के दौरान की लोकार्पण पट्टिका है जिसमें नजर आता है कि किस तरह तब लोकार्पण पट्टिकाओ में पक्ष के बड़े नेताओं,विपक्ष के स्थानीय निकायों के निर्वाचित नेताओं और पक्ष के ही स्थानीय कई जगह मनोनित नेताओं के नाम शुमार हैं जो बताता है कि 15 वर्षों के डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में और अब के विष्णु देव साय सरकार में क्या अंतर है। अब तो स्थानीय भाजपा नेता ही चीख चीखकर यह कहते सुने जा रहे हैं कि हमारी सुनवाई करो सरकार हमे उपेक्षा से दूर कर मेहनत की भरपाई करो सरकार। आज की स्थिति साफ बताती है कि सरकार सीमित होकर चल रही है और संचालन की जिम्मेदारी सीमित हाथों में है,आज विपक्ष जहां उपेक्षित है वहीं पक्ष के भी स्थानीय नेता सरकार से नहीं जुड़ पा रहे हैं,स्थानीय निकायों,जिला जनपदों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की हालत खस्ता है उनकी सुनवाई तो दूर उनकी पूछ परख भी चाय नाश्ते तक है,पूरी व्यवस्था प्रशासनिक जंजीरों में हैं जहां विरोध और बहिष्कार को नजरअंदाज किया जाना आम है। भाजपा के ही स्थानीय नेता कार्यकर्ता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनकी सरकार है भी की नहीं प्रदेश में जिसकी पुनः सरकार में वापसी उनकी ही मंशा थी जिसके लिए उन्होंने मेहनत की थी।
15 सालों के डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में लोकप्रियता मामले में हमेशा लोकप्रिय रहे डॉक्टर रमन सिंह
15 सालों के डॉक्टर रमन सिंह के कार्यकाल की बात करें तो वह लगातार लोकप्रियता मामले में अव्वल ही थे,उन्हें पार्टी में लगातार पसंद किया जाता था जिसका कारण उनकी सत्ता संचालन का ढंग था उनकी निर्णय लेने की क्षमता का तरीका था,उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में यह स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी थी जब कोई पार्टी का नेता कार्यकर्ता उपेक्षित हुआ हो जिसे कभी यह दुख सता गया हो कि वह सत्ता में रहकर भी सत्ता से दूर खुद को समझता है,आज की स्थिति बिल्कुल विपरीत है,भाजपाई दो साल बीतने के बाद भी महसूस नहीं कर पा रहे हैं कि सरकार उनके दल की है वह सरकार के अंग हैं।
क्या राजनीति से अनुशासन हट गया है?
तब और अब में अंतर तो है और क्या राजनीति से अनुशासन खत्म हो गया है प्रदेश में यह भी सवाल खड़ा होता है,पक्ष के स्थानीय नेता उपेक्षित होकर थक हारकर अब घर में बैठ चुके हैं,विपक्ष के लिए विरोध प्रदर्शनों का ही मार्ग शेष बचा है कहीं पूछ परख नहीं है जो स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था अंतर्गत आवश्यक है,कुल मिलाकर क्या अब एकला चलो की नीति से ही सरकार चल रही है और जहां विपक्ष की भी उपस्थिति अस्वीकार है और पक्ष के स्थानीय नेता भी बहिष्कार के भागी बनने मजबुर हैं,जो कुछ नजर आ रहा है वह कम से कम यह बताने काफी है कि शासन सरकार में सुनवाई केवल सीमित स्थिति तक है,सभी की सहमति या उनकी स्वीकार्यता अस्वीकार्यता से कोई लेना देना कम से कम नहीं है।
पहले की राजनीति में और आज की राजनीति में जमीन आसमान का अंतर है
लोकतांत्रिक व्यवस्था में पक्ष और विपक्ष की समान भूमिका मानी गई है,पक्ष को आईना दिखाने की जिम्मेदारी विपक्ष को दी गई है और साथ ही विपक्ष को भी मान सम्मान मिलता रहे यह जिम्मेदारी पक्ष के लिए बताई गई है लेकिन वर्तमान में प्रदेश में ऐसा नजर नहीं आता,पक्ष और विपक्ष आपस में काफी दूर हो चुके हैं,अब उनकी सुनवाई कम ही होती नजर आती है,पहले ऐसा नहीं था पहले राजनीति में यह देखने को मिलता था कि सभी परस्थितियों में पक्ष विपक्ष का आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण हुआ करता था भले ही समर्थन विरोध के मामले कितने भी क्यों न सामने आते रहे हों।
राजनीति में अब दूर दृष्टि खत्म और भ्रष्टाचार हावी
वर्तमान राजनीति में भविष्य की चिंता और आगे की रणनीति लेकर काम होता नजर नहीं आता, अब दूर दृष्टि जैसा मामला खत्म हो चुका है राजनीति से यह समझ में आता है,अब भ्रष्टाचार का साम्राज्य है जिसमे मौन समर्थन नजर आता है सरकार का, हालिया घटनाक्रम यदि देखा जाए तो भ्रष्टाचार के मामलों में कभी सरकार गंभीरता नहीं प्रदर्शित करती है, भ्रष्टाचार के मामले नजरअंदाज किए जाते हैं जो बढ़ भी रहे हैं क्योंकि उन्हें एक तरह से खुली छूट है,अब भ्रष्टाचार का विरोध करना अपराध माना जा रहा है और ऐसा विरोध पक्ष करे या विपक्ष सभी हाशिए पर डाले जा रहे हैं। स्थानीय निकायों जनपद जिला पंचायतों में तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की सुनवाई ही बंद कर दी गई है वह अपने निर्वाचित कार्यक्षेत्र में कोई निर्णय नहीं ले सकते भ्रष्टाचार अधिकारियों का नहीं रोक सकते यह साफ देखा जा रहा है।
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