देश में यदि कहीं अराजकता फैलती है, तो उसकी जिम्मेदारी किसकी है,यह गंभीर चिंतन का विषय है। आपसी सद्भाव के बीच विघटन के बीज बोने में किसकी अधिक भूमिका है-किसी व्यक्ति विशेष की, किसी विशेष राजनीतिक दल की, सोशल मीडिया की या ज्वलंत मुद्दों पर टीवी पर नित्य होने वाली डिबेट की,जिसमें संकीर्ण मानसिकता लिए कुछ लोग बैठते हैं और अपने पूर्व निर्धारित विमर्श के अनुसार डिबेट को ही शाब्दिक जंग का मैदान बनाने में नहीं चूकते। कभी कभी बात इतनी बिगड़ जाती है कि तथाकथित विचारकों के मध्य गाली गलौज और हाथापाई की नौबत आ जाती है। डिबेट में दिए जाने वाले तर्क वितर्क को आधार बनाकर देश में अराजकता का वातावरण बनाने के लिए कुछ संकीर्ण मनोवृत्ति धारी सक्रिय भूमिका निभाने में कोई कसर बाकी नही छोड़ते। वस्तुस्थिति यह है कि सस्ती लोकप्रियता के लिए संचार माध्यम समाज में किस प्रकार से अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। यूँ तो समाज में बेरोजगारी है तथा लोगों को अपने घर का गुजारा चलाना भारी पड़ रहा है,किन्तु सुनी सुनाई बातों पर लोगों का सड़कों पर उतर आना तथा सोशल मीडिया पर नफरत फैलाना क्या यह सिद्ध नहीं करता,कि अराजक तत्व देश में अराजकता फ़ैलाने के अवसरों की ताक में रहते हैं। इस अराजकता की स्थिति उत्पन्न करने में टेलीविजन पर नित्य होने वाली बहस तथा साक्षात्कार एक बड़ी भूमिका का निर्वहन करते प्रतीत हो रहे हैं। कौन नहीं जानता कि किसी टीवी डिबेट में किसी मौलाना की टिप्पणी का जवाब देने के लिए भाजपा की तेज तर्रार प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने कोई टिप्पणी की। इस टिप्पणी की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक गूंज सुनाई दी। नूपुर शर्मा के विरुद्ध सर तन से जुदा करने का फरमान जारी हुआ तथा नूपुर शर्मा को अज्ञातवास में जाना पड़ा। ऐसे ही किसी टीवी चैनल पर किसी भाजपा प्रवक्ता द्वारा किसी नेता को खुलेआम जान से मारने की बात कही, तब मुँह से निकली बात को पकड़ने में माहिर लोगों ने बड़ा मुद्दा बना लिया। किसी भी व्यक्ति को जान से मारने की धमकी देने को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता,मगर सवाल यह है कि क्या धमकियाँ देने भर से किसी व्यक्ति को जान का खतरा हो जाता है ? यदि ऐसा है,तो देश में नित्य ही धमकी भरे ई मेल तथा धमकी भरे पत्र प्रभावशाली लोगों को भेजे जाते हैं, तो क्या उन धमकियों को आधार मानकर सड़कों पर अराजकता फ़ैलाने का अधिकार किसी को मिल जाता है ? यदि इन धमकियों पर अधिक गंभीर चिंतन किया जाए,तो पक्ष और विपक्ष के सभी बयानों का विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है। राष्ट्र नायकों के विरुद्ध बोली जाने वाली भाषा के आधार पर धमकियों पर कार्यवाही सुनिश्चित की जा सकती है, मसलन एक नेता ने प्रधानमन्त्री मोदी के लिए खुलेआम कहा था कि जनता डंडों से पीटकर भगा देगी। प्रधानमन्त्री के विरुद्ध अपशब्दों की बौछार करके जनाक्रोश बढ़ाने वाले वक्तव्य कौन सी श्रेणी में आते हैं ? समय आ गया है, कि जब समाज में अराजकता फ़ैलाने के लिए उकसाने वाले बयानों को गंभीरता से परखा जाए। टीवी डिबेट के नाम पर उकसाने वाले सवालों की भी जाँच हो तथा दोषी तत्वों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई हो।
डॉ.सुधाकर आशावादी
-विनायक फीचर्स
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