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कोरिया@शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव शासकीय महाविद्यालय आखिर किस खसरा नंबर की भूमि पर है स्थापित ?

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क्या प्रशासन ने पुलिस कार्यालय को जमीन आबंटित करते समय आबंटित की जा रही जमीन का सीमांकन कराया?
क्या महाविद्यालय से अनापत्ति लेना जिला प्रशासन के लिए जरूरी नहीं था?
जिला प्रशासन जैसा चाहेगी वैसा करेगी और नेता मूकदर्शक बने रहेंगे?
जब एक बार पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए भूमि आबंटित हो गई थी तो फिर बिना निराकरण किए ही दूसरी जमीन आबंटित क्यों हुई?
जिस जमीन पर जिस खसरा नंबर पर रामानुज प्रताप सिंहदेव महाविद्यालय स्थापित है उस जमीन पर क्यों पुलिस अधीक्षक कार्यालय बन रहा है?
कोरिया जिला शिक्षा अधिकारी अपने विभाग के लिए जमीन नहीं बचाना चाहते उन्हें दूसरे विभाग की ज्यादा चिंता है?
जिला शिक्षा अधिकारी का खुद का कार्यालय महाविद्यालय की जमीन पर है और पुलिस अधीक्षक कार्यालय के जमीन के लिए दे रहे हैं अनापत्ति?
क्या जिला प्रशासन व राजस्व विभाग राजस्व के लिए रक्षक नहीं भक्षक है?

-न्यूज़ डेस्क-
कोरिया,28 सितम्बर 2025 (घटती-घटना)। जिला प्रशासन कोरिया क्या अपनी तानाशाही चल रहा है जो उन्हें सही लगेगा वह कर लेंगे नियम कायदे कानून का वह पालन नहीं करेंगे? महाविद्यालय की जमीन पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय निर्माण को लेकर कुछ ऐसा ही माना जा रहा है,क्या राजस्व विभाग ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय को भूमि आवंटित करने से पहले सारी जमीनों का सीमांकन कराया? जिस जमीन पर अभी पुलिस अधीक्षक कार्यालय बन रहा है उस जमीन के खसरा नंबर पर महाविद्यालय भी स्थापित है क्या यह बात राजस्व विभाग को नहीं पता? कंप्यूटर में बैठकर नक्शा देखकर यह नहीं पता कर पाए कि किस खसरा नंबर पर महाविद्यालय बना हुआ है,ऑनलाइन नक्शा को यदि अवलोकन किया जाए और वास्तविक जगह का अवलोकन किया जाए और सीमांकन कराया जाएगा तो जिस जमीन का आबंटन पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए किया गया है उस जमीन पर महाविद्यालय कार्यालय स्थापित निकल जाएगा? पर यह जहमत उठाएगा कौन? क्योंकि करने वाले भी राजस्व के रक्षक नहीं भक्षक हैं? क्योंकि उन्हें सिर्फ टेबल पर बैठकर जमीन बचाने की जिम्मेदारी है,जमीन पर कैसे खेल हो रहा है इस बात से शायद वह अनजान हैं यदि हम महाविद्यालय के खसरा नंबर 287, 288 और 289 का अवलोकन करें तो समझ में यह आता है कि 288 खसरा नंबर पर महाविद्यालय बना हुआ है वहीं जो 289 खसरा नंबर जिस पर महाविद्यालय का नाम दिख रहा है उस जमीन पर जिला शिक्षा अधिकारी अब पीछे से कब्जा कर रहे हैं,वह खुद भी उस महाविद्यालय की जमीन पर बैठे हैं और दूसरे को अनापत्ति बांट रहे हैं जो उन्होंने पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए जिला प्रशासन को प्रदान किया है? अब यह दावा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि भुइया के नक्शे में कुछ ऐसा ही दिख रहा है,वही वास्तविक स्थिति पर सीमांकन भी करें तो जानकारों का मानना है कि कुछ ऐसा ही निकलेगा, शासकीय जमीन पर कई निजी लोग भी काबिज हो गए हैं,तो वहीं शासकीय जमीन जिस पर कन्या महाविद्यालय बना हुआ है वह भी जमीन कन्या महाविद्यालय के नाम पर नहीं दिख रहा है, वही 287 और 286 खसरा नंबर की जमीन विवाद में है पर यदि इस जमीन का भी अवलोकन किया जाए तो तो यह जमीन स्वास्थ्य विभाग के नाम पर आज दिख रही है फिर भी जिस जमीन पर महाविद्यालय स्थापित है वह जमीन का खसरा नंबर 288 ही माना जाएगा यदि सीमांकन भी करेंगे तो उसी जमीन पर स्थापित महाविद्यालय मिलेगा।

क्या जिला शिक्षा अधिकारी को अपने विभाग के लिए जमीन की आवश्यकता नहीं है…क्या नालंदा परिसर वह अपनी किसी निजी जमीन पर बनाएंगे?
कोरिया जिला शिक्षा अधिकारी ने अपने कार्यालय से एक अनापत्ति पत्र जारी किया है जिसमें उन्होंने महाविद्यालय परिसर से लगी उस जमीन के लिए अपनी अनापत्ति प्रदान की है जिस जमीन से लगकर ही जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बना हुआ है और जिस जमीन से लगकर ही पुलिस अधीक्षक का नवीन कार्यालय बनने जा रहा है,यह जमीन पहले आदर्श आवासीय विद्यालय के द्वारा उपयोग की जा रही थी और बाद में विद्यालय जब जमनीपारा में स्थापित किया गया तबसे महाविद्यालय ही संचालित था, जिले में नालंदा परिसर भी प्रस्तावित है,नालंदा परिसर के लिए भी जमीन की अवश्यक्ता होगी जो बड़े भूभाग स्वरूप में होगी, अच्छा होता नालंदा परिसर ही उस जमीन पर स्थापित किया जाता जहां आज पुलिस अधीक्षक का नया कार्यालय बन रहा है, नालंदा परिसर शिक्षा से जुड़ा एक संस्थान होगा,महाविद्यालय के करीब या परिसर में होने से इसका लाभ सही रूप में जिले के छात्रों को मिल सकता था वहीं अब नालंदा परिसर कहां बनेगा यह तय नहीं है और न ही शहर में ही अब कहीं ऐसी जमीन है जहां यह बनाया जा सके। वैसे जब पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए ही जमीन के लिए अनापत्ति नगर पालिका से मिलना मुश्किल हो गया था नालंदा के लिए अनापत्ति शहर में मिल सकेगा लगता नहीं है, वैसे जिला शिक्षा अधिकारी ने सभी विषयों से अवगत होकर भी महाविद्यालय परिसर की भूमि में पुलिस अधीक्षक कार्यालय निर्माण के लिए अनापत्ति प्रदान कर दी, जिला शिक्षा अधिकारी ने इस समय दूरदर्शी होने का उदाहरण बिल्कुल प्रस्तुत नहीं किया,वह दूरदर्शी होते नालंदा के लिए वह महाविद्यालय परिसर को ही चुनते क्योंकि उसकी उपयोगिता महाविद्यालय परिसर में सार्थक साबित होती, वैसे अब अनापत्ति प्रदान कर महाविद्यालय परिसर की जमीन के लिए जिला शिक्षा अधिकारी ने यह तय कर दिया कि वह नालंदा के लिए गंभीर नहीं हैं और यदि वह गंभीर हैं तो फिर वह शायद शहर के किसी अपने निजी जमीन पर नालंदा परिसर की स्थापना करने वाले हैं। यह प्रश्न इसलिए भी क्योंकि शहर में अन्य कहीं नालंदा के लिए पर्याप्त जमीन बिना किसी आपत्ति प्राप्त होगी लगता नहीं है।

जिस कार्यालय में जिला शिक्षा अधिकारी बैठ रहे हैं क्या वह कार्यालय महाविद्यालय की जमीन पर है?
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय महाविद्यालय परिसर से लगकर ही बना हुआ है,जमीन के भू अभिलेखों के अनुसार जिला शिक्षा विभाग या कार्यालय को जमीन आबंटित है ऐसा उल्लेख कहीं नजर नहीं आता है,क्या जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय भी महाविद्यालय की ही भूमि पर बना हुआ है स्थापित है? यदि ऐसा है तब कैसे जिला शिक्षा अधिकारी खुद अनापत्ति प्रदान कर रहे हैं जब वह खुद महाविद्यालय की जमीन पर ही काबिज हैं। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय भी काफी वर्षों पूर्व निर्मित है, यह जिला गठन के पूर्व से स्थापित कार्यालय है, आज तक वर्षों पूर्व निर्मित कार्यालय होने के बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भूमि पर उसका अधिकार नामांतरण स्वरूप नहीं मिल पाया जो भू अभिलेख देखकर समझा जा सकता है। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय महाविद्यालय परिसर से लगकर एक बड़े भूभाग पर स्थापित भी है।


क्या कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ के बाद जिला शिक्षा अधिकारी अपने आप को सबसे बड़ा अधिकारी मान रहे है?
जिले में हालिया प्रशासनिक व्यवस्था तीन लोगों के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है,कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ प्रमुख रूप से जहां जिले में किसी भी निर्णय की स्थिति उत्पन्न होने पर निर्णय ले रहे हैं वहीं जिला शिक्षा अधिकारी वह तीसरे अधिकारी नजर आ रहे हैं जो हर प्रशासनिक निर्णय में अग्रणी भूमिका में नजर आते हैं। महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाया जाएगा मामले में कलेक्टर,सीईओ ने अपने निर्णय के समर्थन में जिला शिक्षा अधिकारी से भी अनापत्ति प्राप्त की और जिला शिक्षा अधिकारी ने अनापत्ति प्रदान भी की जबकि उनके कार्यालय की भूमि है जिस पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय बन रहा है यह निश्चित नहीं है,अब सवाल यह उठता है कि क्या कलेक्टर सीईओ जिला पंचायत के बाद जिला शिक्षा अधिकारी खुद को सबसे बड़ा अधिकारी जिले में मान कर चल रहे हैं?
क्या कलेक्टर व सीईओ को खुश करने में व्यस्त हैं जिला शिक्षा अधिकारी कोरिया?
जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा अनापत्ति दिया जाना अलग तरह का एक मामला है,यह अनापत्ति क्यों दी उन्होंने यह समझ से परे है,वैसे क्या वह कलेक्टर और सीईओ जिला पंचायत को खुश करने में व्यस्त हैं इसलिए वह ऐसा कुछ करना चाह रहे हैं जिससे उन्हें दोनों का समर्थन मिलता रहे?

ना पूर्व प्राचार्य को थी महाविद्यालय की जमीन की चिंता ना वर्तमान को ही है कोई फिक्र
कोरिया जिले के अग्रणी महाविद्यालय शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव महाविद्यालय के मामले में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस महाविद्यालय के प्रबंधन की जिम्मेदारी सम्हालने वालों ने कभी महाविद्यालय के विस्तार के विषय में दूरदर्शी सोच नहीं रखी और न ही उन्होंने जिले के छात्रों के विषय में ही उन्होंने भविष्य की चिंता की,ऐसा पूर्व वर्तमान दोनों प्रभारी प्राचार्यों के लिए कहा जाना गलत नहीं होगा,पूर्व प्रभारी प्राचार्य 26 साल तक प्रभारी प्राचार्य बने रहे लेकिन उपलब्धियां उनके नाम भ्रष्टाचार की ही जुड़ सकीं कोई सार्थक उन्होंने कुछ साबित नहीं किया कभी,अब वर्तमान प्राचार्य का भी वही हाल नजर आ रहा है, महाविद्यालय की स्थापना को कई दशक हो गए और 26 सालों तक प्राचार्य रहे सेवानिवृत्त हो चुके जिला मुख्यालय के ही व्यक्ति ने महाविद्यालय जिस जमीन पर स्थापित संचालित है के विषय में कुछ नहीं सोचा और न ही उसके लिए राजस्व विभाग से ही संपर्क किया की जमीन महाविद्यालय के नाम हो सके। पूर्व प्राचार्य ने भ्रष्टाचार से समय निकालकर महाविद्यालय विस्तार के लिए विचार किया होता आज जिस जमीन पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनने जा रहा है वहां महाविद्यालय का विस्तार होता नजर आता वहीं वर्तमान प्राचार्य भी एक पत्र लिखकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं जिसमें उन्होंने महाविद्यालय विस्तार को प्रभावित होने छात्रों की स्वतंत्रता बाधित होने का उल्लेख किया है,वर्तमान प्राचार्य यदि दृढ़ इक्षाशक्ति साबित करते महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय निर्माण संभव नहीं था।
क्या महाविद्यालय के वर्तमान प्राचार्य महाविद्यालय की पूरी जमीन का सीमांकन करा पाएंगे?
महाविद्यालय की जमीन जब पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए आबंटित हुई तब महाविद्यालय प्रबंधन चीर निद्रा से जग पाया,उसने आपत्ति एक लिखित प्रशासन को भेजी लेकिन उसके बाद वह फिर चीर निद्रा में जाता नजर आ रहा है,बची जमीन का सीमांकन हो सके इस ओर कोई प्रयास उनका नजर नहीं आ रहा है, क्या वर्तमान प्राचार्य सीमांकन पूरी जमीन का करा पाएंगे यह देखने वाली बात होगी या फिर वह भी अपने गुरु की तरह केवल महाविद्यालय की चार दिवारी में बैठाकर सब कुछ पूर्व की तरह संचालित करते नजर आयेंगे।
जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय और उसके बगल में महाविद्यालय और महाविद्यालय के बगल में नालंदा परिसर क्या नहीं बन सकता था?
जिले में नालंदा परिसर प्रस्तावित है,यह परिसर कहीं न कहीं शिक्षा और युवाओं की प्रतिभा को निखारने के लिए बेहतर अवसर सुविधा प्रदान करने स्थापित किया जा रहा है जिसका लाभ जिले के युवाओं छात्रों को दिया जाना शासन की मंशा है,अब नालंदा के लिए महाविद्यालय परिसर से बेहतर कोई जगह क्या हो सकती थी? जिस परिसर में महाविद्यालय जहां ही जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय स्थापित है यदि वहीं नालंदा परिसर निर्मित हो जाता कितना बढि़या होता, नालंदा परिसर का संचालन भी बेहतर होता और वहां की देखरेख भी व्यवस्थित तरीके से हो सकती थी यदि दूरदर्शिता दिखाई गई होती,वैसे नालंदा परिसर का महाविद्यालय परिसर में निर्माण युवाओं छात्रों लिए भी उपयोगी होता और उसकी प्रासंगिकता साबित हो सकती थी।
क्या राजनीतिक व प्रशासनिक जिद ने महाविद्यालय की जमीन को बाधित करने का किया प्रयास?
महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण कहीं से जायज या सही निर्णय नहीं माना जा रहा है,यह निर्णय हर हाल में एक जिद मानी जा रही है जो राजनीतिक भी है और प्रशासनिक भी है, सत्ता से जुड़े और प्रशासन से जुड़े लोगों ने आपस में तय किया और महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाया जाना तत्काल तय हो गया, यह ध्यान किसी ने नहीं रखा कि युवाओं महाविद्यालय के अध्ययनरत छात्र छात्राओं की स्वतंत्रता इस कार्य से निर्णय से बाधित होगी, इस संबंध में महाविद्यालय प्रबंधन ने आपत्ति दर्ज भी की लेकिन वह आपत्ति अस्वीकार कर दी गई,कुल मिलाकर क्या एक जिद ने ही मात्र इस निर्णय को जो राजनीतिक और प्रशासनिक था के लिए काफी साबित हुआ। छात्रों का विरोध और जन विरोध धरा का धरा रह जाना तो यही साबित करता है कि सत्ता और प्रशासन ने जिद के आगे किसी भी आपत्ति विषय को स्वीकार नहीं किया और निर्णय पर वह अपने कायम रहे।

खुद दूसरे की जमीन पर हैं और दे रहे हैं अनापत्ति…
जिला शिक्षा अधिकारी का खुद का कार्यालय खुद के नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं है, देखा जाए तो कहीं न कहीं जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय महाविद्यालय की ही भूमि पर बना हुआ है,जिला शिक्षा अधिकारी कोरिया वर्तमान नए पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए अनापत्ति भी जारी कर चुके हैं,अब समझने वाली बात यह है कि खुद जो कार्यालय अपने नाम से दर्ज भूमि पर नहीं बना है कहीं न कहीं अन्य के नाम से दर्ज भूमि पर बना है वहां के अधिकारी किस अधिकार से अनापत्ति जारी कर रहे हैं उसी जमीन का जिस जमीन के भाग पर वह खुद हैं और जहां नया पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाया जाना है। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी अनापत्ति समझ से परे है।


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