
माता कुष्मांडा का आशीर्वाद सब पर बना रहे
मां कुष्मांडा देवी का अवतार, मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक है जिनकी पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। मां दुर्गा के इस अवतार का नाम,तीन शब्दों से मिलकर बना है-‘कु’ यानी छोटा सा,‘उस्मा’ यानी ऊर्जा और ‘अंडा’ यानी एक गोला। अर्थात, मां कुष्मांडा के नाम का पूरा मतलब है- ऊर्जा का एक छोटा सा पवित्र गोला। कहा जाता है, कि जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार फैला था, तब माँ दुर्गा अपने इसी स्वरूप में प्रकट हुई थीं। अपनी मनमोहक मुस्कान से माँ दुर्गा ने चारों तरफ प्रकाश उत्पन्न कर ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इस कारण,यह आदि स्वरूपा या आदिशक्ति के नाम से भी जानी जाती हैं। मां कुष्मांडा को ब्रह्मांड की पहली देवी कहा गया है,जो आंतरिक शक्ति का एक रूप हैं।
मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, जो आठों दिशाओं को दर्शाती हैं। इसी कारण,उन्हें अष्ट भुजाओं वाली भी कहा जाता है। मां के सात हाथों में चक्र,गदा, धनुष, कमंडल, कमल पुष्प, कलश और बांध क्रमशः सुशोभित रहते हैं और उनके आठवें हाथ में, सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला विभूषित है।
माना जाता है, कि जब सृष्टि की कोई रचना नहीं हुई थी, तब एक छोटा सा ऊर्जा का गोला उत्पन्न हुआ और उस गोले ने आठों दिशाओं में रोशनी फैला दी। देखते ही देखते, उस गोले ने एक नारी का रूप ले लिया। वह नारी और कोई नहीं, बल्कि माता कुष्मांडा थीं। इस प्रकार, उन्होंने सृष्टि की रचना की। माता कुष्मांडा के नाम में ही सृष्टि की रचना का भाव छुपा है।सृष्टि की रचना कर माता कुष्मांडा ने 3 देवियों को जन्म दिया और अन्य देवताओं की रचना की। उन्होंने अपने त्रिनेत्र से तीनों देवियों की सर्जना की। उन्होंने अपने बाएं नेत्र से महाकाली देवी को उत्पन्न किया 7 दाएं नेत्र से मां सरस्वती देवी को उत्पन्न किया, तो वहीं, अपने मस्तक पर केंद्रित आंख से महालक्ष्मी देवी का निर्माण किया। तत्पश्चात,उन्होंने तीनों देवियों से एक नर और एक नारी को प्रजनित कराया। उन्होंने महाकाली देवी से उत्पन्न हुए पुरुष को भगवान शिव और महिला को माता सरस्वती का नाम दिया तदोपरांत, उन्होंने जीवनसाथी के रूप में ब्रह्मदेव को माता सरस्वती,भगवान शिव को मां शक्ति और भगवान विष्णु को लक्ष्मी माता प्रदान किया। इसके बाद, देवी कुष्मांडा सूर्य के मूल में रहने लगीं 7 अर्थात,मां कुष्मांडा एकमात्र ऐसी देवी हैं,जो सूर्य के मूल में निवास करती हैं। उनकी ऊर्जा, कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान है। सूर्य लोक में रहने की क्षमता केवल इन्हीं देवी में है। वहां, भगवान सूर्य की शक्ति का स्रोत भी है। सूर्य के केंद्र में निवास करते हुए वे सारे सौर्य मंडल को नियंत्रित करती हैं। मां कुष्मांडा की पूजा करने से, सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और सभी कष्ट मिट जाते हैं। मां कुष्मांडा आध्यात्मिक साधना में अनाहत चक्र की प्रतिनिधि मानी जाती हैं।
माता कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्र का जाप भी अनिवार्य माना गया है, जो कुछ इस प्रकार है-ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः
अर्थात,ओमकार स्वरूप वाली, अमृत से परिपूर्ण कलश को धारण करने वाली और कमल पुष्प से युक्त तेजोमय मां कूष्मांडा के चरणों में हम सभी नमन करते हैं।
विशेष: मां दुर्गा के कुष्मांडा अवतार से हमें यह सीख मिलती है, कि एक नारी भले ही शांत, सौम्य और कोमल प्रतीत होती है, मगर उस नारी में इतनी शक्ति होती है, कि वह ना सिर्फ एक नए जीवन को जन्म दे सकती है, बल्कि अगर वह चाहे, तो पूरी सृष्टि की रचयिता भी हो सकती है। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी शक्ति का महत्व समझना बहुत आवश्यक है और मां कुष्मांडा नारी शक्ति का सबसे पहला और भव्य उदाहरण हैं।जय माता दी जय माता दी…
संजीव ठाकुर,
रायपुर छत्तीसगढ़
घटती-घटना – Ghatati-Ghatna – Online Hindi News Ambikapur घटती-घटना – Ghatati-Ghatna – Online Hindi News Ambikapur