
छत्तीसगढ़ कोर्ट का आदेश एक गंभीर विचारणीय मामला
समाज से अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से होता है जिसमे प्रत्येक व्यक्ति निर्धारित नियमो के अंतर्गत आचरण करने के लिए बाधित होता है। सामाजिक व्यवस्था सुव्यवस्थित तरह से चलती रहे और किसे को किसे से किसे तरह के हानि न पहुंचे। इसे ध्यान में रखते हुए कानून व्यवस्था बनाई जाती है। कुल मिला कर समाज से जुड़ी हर व्यवस्था का उद्देश्य एक स्वास्थ्य वातावरण और समाज की संरचना से होता है । जिस के अंतर्गत मानवता सुरक्षित रहे। इंसान के पास बुद्धि होने की वजह से वह यह तय की सकता है कि ऐसे कौन से आचरण है जो समाज के हक में नहीं । फिर भी आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं जो मानव सोच और सामाजिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर देते हैं।
छत्तीसगढ़ के एक कोर्ट के फैसले ने ना सिर्फ कानूनी व्यवस्था बल्कि संपूर्णा सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। तथाकथित तथ्यों पर आधारित माननीय कोर्ट के मुताबिक किसी लड़की के शव से किया दुष्कर्म गुनाह में शामिल नहीं होता । इस केस में हत्या करने वाले अपराधी और सबूत मिटने वाले अपराधी को सजा दी गई मगर मात्र 9 साल की नाबालिग लड़की के शव से दुष्कर्म करने वाले शख्स को माननीय कोर्ट द्वारा अपराधी ना मानते हुए बरी कर दिया गया । पीडç¸ता की मां द्वारा लगाई गई गुहार को नजर अंदाज कर दिया गया। विक्टिम की मां ने सेक्शन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी। मां की याचिका को खारिज करते हुए ये कहा गया कि भारतीय कानून में मृतक के साथ यौन संबंध बनाने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है । सवाल यह उठता है कि इस तरह के फैसले समाज को किस दिशा में ले जा रहे है ? क्या किसी मृतक के शरीर के साथ किसी को कुछ भी करने का अधिकार है ? क्या यह भारतीय संस्कृति /समाज /कानून व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल नहीं ? क्या इस तरह के फैसले मानवता का हनन नहीं कर रहे? ऐसे फैसलो के खिलवा आवाज क्यों नहीं उठाई जाती? कहा हैं समाज के वो लोग जो आए दिन बेटियों के हक की लड़ाई लड़ते हैं? कहां है धर्म, नैतिकता की दुहाई देने वाले? इस तरह के फैसलों पर पुनः विचार करने की जरूरत है । जिस संस्कृति में लोग शव को नहला धुला कर पूरे विधि विधान से संस्कार करते है कि मारने वाले की आत्म को शांति मिल सके, वहां किसे शव के साथ यौन संबंध बनाना अमानवीय,सब से बड़ा गुनाह है। मृतक लड़की और उसकी मां को इंसाफ मिलना जरूरी है।अन्यथा किसी व्यवस्था का कोई मतलब नहीं।
केशी गुप्ता
द्वारका दिल्ली
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