संपादकीय

लेख@ क्या बिहार में सुशासन अब जंगलराज में बदल रहा है?

बिहार में एक बार फिर कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। बेखौफ अपराधियों का आतंक,दिन-दहाड़ेहत्याएं,लूट, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध यह संकेत दे रहे हैं कि ‘सुशासन बाबू’ के नाम से मशहूर नीतीश कुमार का प्रशासन कहीं अपने वादों और आदर्शों से भटकता नजर आ रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव की दस्तक के बीच आमजन में …

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लेख@ आया सावन झुमके,आया सावन

बारिश की ठंडी हवा और बूँदों का स्पर्श,सावन का मौसम,इश्क¸ और मोहब्बत की कहानियों के लिए सबसे खूबसूरत पृष्ठभूमि है।बादलों की गूंज में आशिक का दिल और भी बेचैन हो जाता है, और माशूक की यादें भीगी फिज़ाओं में कुछ ज़्यादा ही जुनून के साथ नाचती महसूस होती हैं। आशिक इस बरसात में दीवार की ओट में उस माशूक को …

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लेख@ बाजार दिखा बड़ा लेकिन खरीदार है छोटा क्या टिक पाएगी टेस्ला इंडिया में?

मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स की चमचमाती सड़कें,शीशे के भव्य शोरूम में खड़ी एक कार और बाहर भीड़ का उत्साह 15 जुलाई की सुबह कुछ ऐसी ही थी,जब भारत में टेस्ला ने आधिकारिक तौर पर कदम रखा। टेस्ला यानी उस सपने का नाम, जो अमेरिका में नवाचार की पहचान बन चुका है। लेकिन भारत में यह सपना साकार होगा या फिर …

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लेख@ मुगल शासक अकबर के शासन पर उठते सवाल क्यों?

अभी एक चर्चा का विषय बना है मुग़ल सम्राट अकबर का एन सी आर टी के पाठ्यक्रम में बदलाव जिसमें पहले अकबर क़ो इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में एक अच्छा मुग़ल शासक बताया गया उसपर कई çफ़ल्म भी बने लेकिन अच्छे इतिहासकार से अहले जानने की कोशिश करें जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर मुगल को अक्सर एक महान और सहिष्णु व्यक्ति बताया जाता …

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लेख@ बिहार चुनाव 2025: ईमान,इस्लाम औरइंतकाम के त्रिकोण में उलझा मुस्लिम वोट बैंक

बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से एक निर्णायक शक्ति रहा है, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में यह वोट बैंक पहली बार तीन गहरे और परस्पर विरोधी विमर्शों के बीच फंसा हुआ है ईमान, इस्लाम, और इंतकाम। यह न सिर्फ चुनावी रणनीतियों को जटिल बना रहा है, बल्कि मुस्लिम मतदाताओं को भी गहरे अंतर्द्वंद्व में डाल रहा …

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लेख@ बदन की नहीं,बुद्धि की बनाओ पहचान बहनों

अश्लीलता की रील संस्कृति पर एक सवालहम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ स्क्रीन पर दिखना असल में जीने से ज़्यादा जरूरी हो गया है। जहां जç¸ंदगी कैमरे के फ्रेम में सिमट गई है, और इंसान का मूल्य उसके लाइक, फॉलोवर और व्यूज़ से तय होता है। इसी डिजिटल होड़ में स्ति्रयों की अभिव्यक्ति भी एक अजीब मोड़ …

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लेख@ परीक्षा प्रणाली या सामाजिक भ्रमजाल?

शिक्षा को राष्ट्र निर्माण की आधारशिला कहा गया है। यह व्यक्ति के ज्ञान, विवेक, सृजनात्मकता और व्यक्तित्व विकास का माध्यम रही है। लेकिन आज की तारीख में यह उद्देश्य कहीं पीछे छूट गया है। शिक्षा अब एक अंक-उद्योग में तब्दील हो चुकी है, जहां ज्ञान की बजाय नंबर ही सफलता का पर्याय बन गए हैं। अब यह न तो चरित्र …

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लेख@ अभिव्यक्ति की पीठ पर खड़ी पत्रकारिता और प्रतिष्ठा के मौन में थरथराता न्याय

जब पत्रकार अपने शब्दों से सत्ता की चुप्पियों को तोड़ता है, तो वह केवल सूचनाएँ नहीं बाँटता, वह सत्य की संभावनाएँ खोलता है। पर यही पत्रकार,जब डिजिटल माध्यम के अनियंत्रित तूफ़ान में खड़ा होता है, तो उसके शब्द तलवार बन सकते हैं—जिसका एक छोर जनहित की रक्षा करता है,और दूसरा अनजाने में किसी की प्रतिष्ठा को लहूलुहान कर सकता है। …

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लेख@ फाइलों में लटकी तबादला नीतिः

शिक्षक टकटकी लगाए बैठा है… ट्रांसफर नीति 2025ः नतीजे तैयार, पर इरादे अधूरे सीलबंद लॉकरों में बंद शिक्षक की उम्मीदें किरदार बदलते हैं,कहानी वही रहती हैःट्रांसफर गाथा हरियाणा के शिक्षक एक बार फिर से असमंजस, अफवाहों और अधूरी सूचनाओं के बीच फंसे हुए हैं। स्कूलों में रोज़ सुबह की शुरुआत चाय और स्टाफरूम की बातचीत से होती है ट्रांसफर कब …

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लेख@ कांवड़ या हुड़दंग?आस्था की राह में अनुशासन की दरकार

कांवड़ यात्रा का स्वरूप अब आस्था से हटकर प्रदर्शन और उन्माद की ओर बढ़ गया है। तेज़ डीजे,बाइक स्टंट,ट्रैफिक जाम और हिंसा ने इसे बदनाम कर दिया है। इसके विपरीत रामदेवरा जैसी यात्राएं आज भी शांत,अनुशासित और समर्पित होती हैं। इसका कारण है भक्ति में विनम्रता,प्रशासनिक अनुशासन और राजनीतिक हस्तक्षेप की कमी। अब ज़रूरत है कि भक्ति को भक्ति ही …

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