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कोरिया@छत्तीसगढ़ में किसानों का धान अभिशाप या वरदान?

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  • धान खरीदी के नाम पर छल! पंजीयन-एग्रीस्टेक-गिरदावरी पूरा, फिर भी किसानों से रकबा गायब
  • कोरिया जिले में धान खरीद रोकने की अदृश्य मुहिम? कटे रकबे,बंद पोर्टल और हमाली का बोझ किसानों पर
  • शासन कहे एक-एक दाना खरीदेंगे…प्रशासन छल बोले…जितना कम खरीदें उतना अच्छा
  • शासन कहता है एक-एक दाना खरीदेंगे…पर प्रशासन की मंशा क्यों दिखती है कम खरीदने की?


-रवि सिंह-
कोरिया,04 दिसंबर 2025 (घटती-घटना)।
छत्तीसगढ़ में धान सिर्फ फसल नहीं राजनीति, सिस्टम, प्रशासन और किसान की उम्मीदों के बीच फंसा सबसे बड़ा सवाल है, शासन कहता है किसानों से एक-एक दाना खरीदेंगे, लेकिन जमीनी तस्वीर इससे बिल्कुल उलट दिखने लगी है, कोरिया जिला इसका ताजा उदाहरण है,जहां शिकायतों की लंबी फेहरिस्त धान को किसानों के लिए वरदान का नहीं, अभिशाप का चक्र बना रही है।
कोरिया जिले में धान खरीदी की पोल एक-एक करके खुलने लगी है, किसानों द्वारा किए गए रकबा पंजीयन के बाद एग्रीस्टेक और गिरदावरी में धान फसल दर्ज होने के बावजूद रकबा काट लिया गया, अब किसान संशोधन के लिए आवेदन कर रहे हैं, लेकिन पोर्टल बंद होने से पूरी प्रक्रिया ठप है। शासन ने हमाली दरों में सुधार तो किया, लेकिन समितियाँ हमाली के पूरे पैसे किसानों से वसूल रही हैं, कई किसान शिकायत कर रहे हैं कि समिति से राहत मांगने पर उन्हें धान बेचने में परेशान किया जाता है, सवाल यह है कि शासन की किसान-हितैषी नीतियाँ कोरिया में अभिशाप कैसे बन गईं? क्या कोरिया जिला प्रशासन धान कम खरीद कर शासन का पैसा बचाने की कोशिश कर रहा है?
शासन चाहती है किसानों से एक-एक दाना खरीदना,प्रशासन की मंशा कम खरीदने की
चुनाव पूर्व किए गए वादे के अनुसार और एक किसान मुख्यमंत्री का छत्तीसगढ़ में विराजमान होने से किसानों के मन में विशेष आशा जगी थी कि अब उनका उद्धार होगा और उनके उपार्जन के माध्यम से उनके घरों में भी खुशहाली आएगी। सरकार की तैयारी को देखकर भी यह महसूस हुआ कि किसानों को समृद्ध बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार बिना काट छांट के किसानों द्वारा उपार्जित धान का एक-एक दाना समर्थन मूल्य पर खरीदेगी, परंतु फ्री की रेवड़ी बांटकर छत्तीसगढ़ की वित्त व्यवस्था जो बेपटरी हुई है, उसे पटरी पर लाना इतना आसान काम नहीं है, और यही कारण है कि सरकार भले एक-एक दाना खरीदने के दावे करे, परंतु प्रशासनिक स्तर पर अघोषित निर्देश है की कम से कम खरीदी हो। और शायद यही कारण है कि प्रशासन कम धान खरीदी की मंशा में किसानों के साथ विभिन्न प्रकार के परेशानियों का सबब पैदा कर रही है।
पहले समिति में हुआ पंजीयन,फिर एग्रीस्टेक इसके बाद भी किसानों को राहत नहीं…
विगत कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ में लगभग सभी किसान सहकारी समितियां में पंजीकृत हैं और जो किसान पंजीकरण से बच गए थे उनका भी इस वर्ष लगभग पंजीकरण पूर्ण हो चुका था,उसके बाद पुरे देशभर में एग्री स्टैक को किसानों को सशक्त बनाने के लिए शुरू किया गया है,जिसमें एक राष्ट्रीय डिजिटल बुनियादी ढाँचा बनाया जा रहा है ताकि उनका एक एकीकृत डेटाबेस तैयार हो सके,डिजिटल पहचान और डेटाबेसः यह किसानों की पहचान,भूमि रिकॉर्ड,आय,ऋ ण और फसल की जानकारी को एक केंद्रीय डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लाता है,अब इसे लाने का उद्देश्य धान खरीदी से भी है,छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी हो रही है,एग्रीस्टेक में जिन किसानों के नाम पर जितनी जमीने हैं,उतनी ही जमीनों का रजिस्ट्रेशन एग्रीस्टेक में होगा,दुसरे की जमीन दुसरे के नाम पर नहीं दिखा सकते। परंतु सैकड़ो की तादाद में ऐसे किसान हैं, जिनके एग्री स्टेक में जमीनों का पंजीकरण गड़बड़ हो गया है, और वह धान की फसल उपार्जित करने के बाद भी समिति में धान बेचने की बजाय गड़बड़ी के सुधार के लिए चक्कर काट रहे हैं, छत्तीसगढ़ में शासन स्तर पर प्रशासनिक अधिकारियों को यह टारगेट होता है कि किसानों का धान जितना हो सके, कम खरीदा जाए।

गिरदावरी में जहां धान की फसल दर्शाई गई,वह रकबा भी किसानों के खाते से कटा
फसल उत्पादन के बाद धान खरीदी पूर्व हुए गिरदावरी में पटवारी द्वारा सर्वेक्षण कर जहां-जहां धान का फसल होना पाया गया,वहां भी सैकड़ो ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि धान की फसल की जगह वह पड़त भूमि दर्शाई गई है,या उसमें कोई अन्य फसल दर्शा दिया गया है। जिससे उस रकबे पर धान बेचने के लिए अनाधिकृत कर दिया गया है। किसान आवेदन पर आवेदन दे रहे हैं,परंतु ऊपर से लेकर नीचे तक प्रशासनिक अधिकारियों का केवल एक ही तर्क है कि पोर्टल बंद है। जब पोर्टल खुलेगा तो सुधार कार्य होगा। किसान इसी चिंता में बेहद परेशान है कि यदि समय रहते शासन ने पोर्टल नहीं खोला तो रकबा संशोधन होगा नहीं,और वह अपनी उपार्जित फसल को बेचने से वंचित रह जाएंगे।

जब धान खरीदी हो रही है लगातार,तो पोर्टल को बंद करने का क्या औचित्य
जब प्रदेश के सभी सहकारी समितियों में धान खरीदी लगातार हो रही है, तो किसानों से संबंधित पोर्टल बंद क्यों है। यह एक बड़ा सवाल है। इसे तो अनवरत धान खरीदी संपन्न होने तक चालू रहना चाहिए था,ताकि सुविधा अनुसार किसानों की शिकायतों का निराकरण समय रहते किया जा सके और उन्हें बार-बार पटवारी कार्यालय,तहसील कार्यालय,एसडीएम कार्यालय,और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काटना ना पड़े। यदि किसानों से संबंधित यह पोर्टल खुला रहता तो किसानों के आवेदनों पर तत्काल कार्यवाही संभव थी,परंतु वर्तमान में जिन किसानों के साथ गड़बड़ झाला हुआ है, वह केवल एक कार्यालय दूसरे कार्यालय चक्कर काट रहे हैं,और अधिकारियों का दो टूक जवाब आ रहा है कि पोर्टल बंद है। जब तक पोर्टल खुलेगा नहीं तब तक किसी प्रकार का कार्य संपादन नहीं हो सकता,इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासनिक स्तर पर अधिकारियों के लिए यह अघोषित निर्देश है कि, कम से कम खरीदी हो,जिससे छत्तीसगढ़ सरकार को भुगतान भी कम से कम करना पड़े। क्योंकि छत्तीसगढ़ की वित्तीय व्यवस्था और उसके हालात किसी से छिपा नहीं है।
क्या कोरिया जिले में कम धान खरीद कर शासन का पैसा बचाने के एवज में पुरस्कार की लालसा है अधिकारियों को…
विभिन्न माध्यमों से किसानों से कम धान खरीदने की मंशा कोरिया जिले में स्पष्ट नजर आ रही है ऐसा प्रतीत होता है कि शासन की वित्तीय व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए किसानों को कम भुगतान करना पड़े ऐसी व्यवस्था कोरिया प्रशासन द्वारा की जा रही है जिसका सीधा-सादा रास्ता किसानों के रकबे में कटौती और धान की जगह अन्य फसल प्रदर्शित कर कम मात्रा में धान खरीदने की है, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासनिक अधिकारी छत्तीसगढ़ शासन की नजर में अपना नंबर बढ़ाने के चक्कर में और पैसा बचाने की एवज में पुरस्कार की लालसा रखते हैं। इसलिए यह सारी कवायद की गई है।
धान खरीदी केंद्रों में हमाली राशि भुगतान के लिए शासन की नई दरें लागू
इस वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार ने धान खरीदी के लिए हमाली राशि भुगतान हेतु नई दरों को लागू किया है। इसके अनुसार 34 रुपए 77 पैसे प्रति कुंतल की दर से हमालों को भुगतान किया जाना है। किसान को केवल अपना धान लेकर समिति तक आना है, उसके बाद अनलोडिंग से लेकर ढेर लगाने, भराई, तौलाई, सिलाई और लोडिंग, स्टाकिंग तक का प्रत्येक कार्य समिति में पंजीकृत हमालों द्वारा किया जाना है, जिसके लिए प्रति मि्ंटल की दर से 34 रुपए 77 पैसे का भुगतान समिति द्वारा किया जाना है।
धान खरीदी में हमाली भुगतान से नहीं कोरिया के किसानों को राहत, समितियों के स्थान पर किसान स्वयं वहन कर रहे व्यय
कोरिया जिले में धान खरीदी में हमाली भुगतान से कोरिया के किसानों को किसी प्रकार की राहत नहीं मिल रही है। समितियों के स्थान पर किसान स्वयं हमाली राशि का भुगतान कर रहे हैं। किसी भी समिति में हमाली राशि का भुगतान समिति द्वारा नहीं किया जा रहा है। इतना तक की समितियां द्वारा पंजीकृत हमाल भी निश्चित नहीं है, जिनसे धान खरीदने की प्रक्रिया पूरी करवाई जा सके,प्रत्येक समिति में कई लाख से लेकर करोड़ तक की हमाली राशि का यह गबन पिछले कई वर्षों से अनवरत चल रहा है, परंतु ऊपर से नीचे तक लेकर बंदर बांट की प्रक्रिया के कारण किसी भी प्रशासनिक अधिकारी की नजर इस पर नहीं पड़ती, और न हीं जनता और किसानों का अपने आप को हितकर कहने वाले नेताओं की नजर इस पर पड़ती है, क्योंकि बारी-बारी सत्ता शासन बदलने पर इसमें सब की हिस्सेदारी होती है। इसीलिए शायद इस आवाज को कोई नहीं उठाता, यदि किसान समिति में पदस्थ कर्मचारियों से हमाली राशि भुगतान का आग्रह भी करता है, तो उसे डरा धमकाकर और धान में कमी निकालकर न खरीदने की धमकी जाती है, जिससे किसान भी डर सहम कर चुप हो जाता है।
धान की संपूर्ण राशि का एकमुश्त भुगतान का दावा खोखला, केवल समर्थन मूल्य की राशि का भुगतान, अंतरराशि का आता पता नहीं
सत्ता में आने के पूर्व भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि 3100 रुपए प्रति मि्ंटल की दर से किसानों को एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाएगा। परंतु वर्तमान में धान खरीदी में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 2395 का ही भुगतान प्रति कुंतल की दर से किसानों को किया जा रहा है। और अंतर राशि का आता पता नहीं है, जब सरकार को यह भुगतान करना ही है, तो इसके लिए लेट लतीफी क्यों। एक साथ भुगतान कर देने पर यह पैसा किसानों के ठोस काम आता। यहां भी किसान छले जा रहे हैं।
पहला सवालः क्या पंजीयन हुआ सिर्फ किसानों को भ्रम में रखने के लिए?
किसानों ने पहले समिति में पंजीयन,फिर एग्रीस्टेक पोर्टल में अपडेट, फिर गिरदावरी तीनों प्रक्रियाएं पूरी कीं,इसके बावजूद किसानों को राहत नहीं मिली,बल्कि कई किसानों के खाते से वही रकबा काट दिया गया,जो गिरदावरी में धान के रूप में दर्ज किया गया था,तो क्या यह तकनीक की त्रुटि है या जानबूझकर की गई कटौती?
दूसरा सवालः रकबा संशोधन के लिए आवेदन जमा…पर पोर्टल ही बंद!
किसान रकबा संशोधन के लिए लाइन में लगे, आवेदन जमा किए, पर अब पोर्टल ही बंद कर दिया गया है,इससे संशोधन प्रक्रिया शून्य हो गई है न अपडेट,न सुधार,न सुनवाई,जब खरीदी केंद्र हर दिन खुल रहे हैं,तो किस आधार पर पोर्टल बंद कर दिया गया? क्या यह सिस्टम की लापरवाही है या किन्हीं निर्देशों का परिणाम?
तीसरा सवालः क्या कोरिया जिले में कम धान खरीदने की नीति चलाई जा रही है?
किसानों में अब यह चर्चा तेज है क्या कम रकबा दिखाकर,कम धान खरीदकर शासन का पैसा बचाने की इन-हाउस नीति लागू है? और क्या इस बचत के बदले में अधिकारियों को पुरस्कार या प्रशंसा मिलने की उम्मीद है? कई समितियों में जिस तेजी से रकबा काटा गया है,वह संदेह पैदा करता है कि कहीं यह सुने-सुनाए निर्देशों वाला मामला तो नहीं।
चौथा सवालः हमाली भुगतान का नया नियम किसानों पर ही क्यों?
शासन ने धान खरीदी केंद्रों के लिए नई हमाली दरें लागू कीं, पर कोरिया जिले में यह राहत किसानों तक नहीं पहुंची, कई समितियाँ हमालों को भुगतान करने से बच रही हैं, हमाली का बोझ किसान खुद वहन कर रहे हैं, जो किसान समिति से भुगतान करने का आग्रह करते हैं, उन्हें धान बेचने में रोका, रोका गया कभी वजन में देरी, कभी रजिस्टर न मिलने का बहाना, यह स्थिति बताती है कि नियम तो बनाए गए,पर जमीन पर समितियाँ अपनी मर्जी चला रही हैं।
पांचवाँ सवालः धान खरीदी केंद्रों में
किसानों की परेशानी कौन दूर करेगा?

जमीनी स्थिति यह है किसानों की रकबा में कटौती, संशोधन न होना, हमाली का बोझ किसानों पर, समितियों का व्यवहार, पोर्टल बंद, धान खरीदी में देरी इन सभी ने मिलकर खरीफ 2025 को कोरिया जिले के किसानों के लिए सबसे कठिन सीजन बना दिया है, किसान पूछ रहे हैं धान उगाना हमारा कर्तव्य, पर भुगतान, पंजीयन और खरीदी की जंग हम कब तक लड़ेंगे?


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