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सरगुजा-कोरिया-एमसीबी@112 तो बहाना था…मायावी प्रधान आरक्षक कोवापस बुलाना ही असली मकसद था!

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  • चार महीने बाहर रखा गया, लेकिन चहेते एसपी ने ‘बल की कमी’ बताकर बुला लिया
  • टीआई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते देखा गया जिले में चर्चा तेज, लोग बोले…”यह पद है या सत्ता का दुरुपयोग?”
  • मायावी प्रधान आरक्षक का प्रोटोकॉल भी VIP हुआ?

चार महीने में ही मायावी प्रधान आरक्षक की घर के पास पुनः एंट्री …क्या पुलिस विभाग दोषपूर्ण कर्मियों के आगे नतमस्तक है?


-न्यूज डेस्क-
सरगुजा-कोरिया-एमसीबी,24 नवंबर 2025
(घटती-घटना)।

एमसीबी जिले में पुलिस की कार्यशैली एक बार फिर सवालों में है,चार महीने पहले कोरिया से विवादों में घिरे मायावी प्रधान आरक्षक को जशपुर भेजा गया था,पूर्व एसपी की अनुशंसा और तत्कालीन आईजी सरगुजा के आदेश के तहत,लेकिन जैसे ही आईजी बदले, जिले में भी पदाधिकारी बदलते ही कहानी भी बदल गई, पुलिस विभाग में एक बार फिर वही पुराना खेल खुलकर सामने आ गया है स्थानांतरण कागज़ पर होता है, और वापसी जुगाड़ पर,चार महीने पहले जिन विवादित प्रधान आरक्षकों को कोरिया,सरगुजा और जशपुर जिलों से हटाकर दूर-दराज भेजा गया था,उन्हीं में से सबसे चर्चित और मायावी प्रधान आरक्षक अब फिर घर के पास पहुँच चुका है और सबसे चौकाने वाली बात 112 को बहाना बनाकर उसे बुलाया गया,जबकि जिले में 112 शुरू ही नहीं हुई,विवादों से घिरा मायावी प्रधान आरक्षक एक बार फिर सुर्खियों में है, यह वही प्रधान आरक्षक है जिसकी 112 के नाम पर वापसी,बिना ट्रेनिंग,और बिना संचालन के जिले में ही सक्रियता पहले से सवालों में थी अब उस पर अनुशासनहीन प्रोटोकॉल तोड़ने का आरोप जुड़ गया है। जिले में वापसी से लेकर प्रोटोकॉल तक मायावी प्रधान आरक्षक की हर गतिविधि सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रही है और यही वजह है कि अब सवाल सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, पूरे पुलिस प्रशासन की विश्वसनीयता पर खड़ा हो गया है।


अब जिले में यही पूछा जा रहा है…

  1. क्या वर्तमान एसपी इस प्रकरण का संज्ञान लेंगे?
  2. क्या वह देखेंगे कि 112 शुरू न होने के बावजूद एक विवादित कर्मी को क्यों बुलाया गया?
  3. क्या रेंज स्तर पर इस पूरे मामले की समीक्षा होगी?
  4. क्या दोषपूर्ण कार्यप्रणाली वालों पर कार्रवाई होगी या फिर सिस्टम फिर झुक जाएगा
    112 सिर्फ एक बहाना…असल खेल था ‘वापसी’ का नया मोड़
    एमसीबी जिले के तत्कालीन एसपी ने इस प्रधान आरक्षक को जशपुर से तुरंत वापस बुला लिया,कारण बताया—जिले में 112 शुरू होने वाली है, स्टाफ की कमी है लेकिन हकीकत यह कि 112 जिले में शुरू ही नहीं हुई,112 के लिए चुने गए कर्मियों की ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है,लेकिन यह मायावी प्रधान आरक्षक ट्रेनिंग में गया ही नहीं,बल्कि कोतवाली में रोजाना की जिम्मेदारियाँ निभा रहा है,तो क्या 112 सिर्फ एक कवर स्टोरी थी? खबरों के अनुसार,112 की जिस बैच को ट्रेनिंग पर जाना था,उसमें भेजे गए नामों में यह प्रधान आरक्षक शामिल था,लेकिन वह जशपुर से पहले बुला लिया गया और कोरिया-एमसीबी क्षेत्र में ही सक्रिय है।
    तत्कालीन एसपी की भूमिका पर बड़े सवाल
    सूत्रों का कहना है जशपुर भेजा गया प्रधान आरक्षक विवादित था, उसे कोरिया से हटाने की सिफारिश खुद पूर्व एसपी कोरिया ने की थी, तत्कालीन आईजी ने उसे दूर रखने के मकसद से जशपुर भेजा था लेकिन जैसे ही नई पदस्थापना हुई एमसीबी जिले के तत्कालीन एसपी ने उसे जशपुर से बैक-डोर वापसी दिला दी,यह वापसी स्वयं में चर्चा और संदेह दोनों का विषय बन गई है, क्योंकि: वही एसपी उसके ‘चहेते’ बताए जाते हैं,वही एसपी 112 का हवाला देकर उसे बुलाते हैं,वही एसपी उसे जिले में ही सक्रिय रखते हैं और उसी प्रक्रिया में जशपुर में पदस्थ एक अन्य कर्मचारी बलि चढ़ गया और वहीं अटक गया,अब सवाल यह कि 112 का बहाना बनाकर जिले में एक विवादास्पद व्यक्ति को क्यों स्थापित किया गया?
    अब उस पर अनुशासनहीन प्रोटोकॉल तोड़ने का आरोप…टीआई के साथ ‘कंधे से कंधा’ मिलाकर चलना
    क्या यह सामान्य है? नहीं। क्या यह विभागीय आचरण है? नहीं। क्या यह चर्चा का विषय बना? हाँ,पूरे जिले में,आम तौर पर टीआई के साथ एएसआई या एसआई चलता है पर एक प्रधान आरक्षक का उसी स्तर का प्रोटोकॉल लेना लोगों के लिए असमझनीय,विभाग के लिए शर्मनाक, और सिस्टम के लिए ब्रेकडाउन का संकेत माना जा रहा है,जिले में सवाल: किस शक्ति से मिलता है इतना ‘प्रोटोकॉल’? सोशल मीडिया, बाजार, चौराहों,सभी जगह चर्चा एक ही है प्रधान आरक्षक टीआई के बराबर कैसे चल रहा था,क्या यह उसकी हैसियत है,या एसपी-टीआई का विशेष संरक्षण? क्या विभाग में रैंक का कोई अर्थ बचा है? लोगों का कहना है कि यह वही व्यक्ति है जिसे कोरिया से जनता की नाराजगी के कारण हटाया गया,जिसे पूर्व आईजी ने जशपुर भेजा,जिसे विवादों के कारण जिले से दूर रखना आवश्यक माना गया,जिसे 112 का फर्जी बहाना बनाकर वापस बुलाया गया,और अब वही व्यक्ति जिले में ‘अफसरों के बराबर प्रोटोकॉल’ ले रहा है,क्या यह पुलिसिंग है या व्यक्ति विशेष की गुंडई-प्रोटोकॉल व्यवस्था? टीआई के साथ चलते हुए उस प्रधान आरक्षक को कई लोगों ने देखा—और सब जगह सिर्फ एक ही प्रतिक्रिया मिलीः यह गलत है। यह दृश्य बताता है कि रैंक का सम्मान खत्म हो रहा है,अनुशासन ध्वस्त हो रहा है और विभाग के अंदर एक समानांतर शक्ति सक्रिय है जो अपनी मनमानी से विभागीय पदक्रम को धत्ता बता रही है।
    क्या वर्तमान एसपी इसे नोटिस करेंगे? या फिर यह भी ‘यही चलता है’ वाले रवैये में दब जाएगा?
    अब पूरा मामला आज की सबसे बड़ी बहस बन चुका है, क्या एक विवादित प्रधान आरक्षक टीआई के बराबर चल सकता है? क्या यह स्पष्ट अनुशासनहीनता नहीं है? क्या ऐसा व्यक्ति विभागीय छवि खराब नहीं कर रहा? और क्या इसे नजरअंदाज करना भी विभागीय मिलीभगत का संकेत है? जिले की जनता और पुलिस विभाग के ईमानदार कर्मी यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर यही रवैया रहा तो फिर रैंक,पद, अनुशासन,नियम सब बेकार हो जाएंगे।
    जिले में काम कर रहा है, 112 शुरू नहीं हुई…यह किसका आदेश है?
    यह तो बिलकुल साफ है कि 112 का संचालन शुरू नहीं हुआ, ट्रेनिंग में शामिल कर्मचारी जा चुके,लेकिन वही प्रधान आरक्षक,जिसे 112 के नाम पर बुलाया गया था,वह जिले में ड्यूटी करते घूम रहा है,तो सवाल उठता है क्या तत्कालीन एसपी ने अपने ‘चहेते’ के लिए पूरा सिस्टम मोड़ा? क्या यह स्थानांतरण सूची को गलत दिशा में मोड़ने का मामला है? क्या वर्तमान एसपी इस पर संज्ञान लेंगे? क्या आईजी कार्यालय पूरे प्रकरण की जांच करेगा?
    अब गेंद वर्तमान एसपी के पाले में—क्या कार्रवाई होगी?
    वर्तमान पुलिस अधीक्षक पर अब यह सवाल सीधा खड़ा है, क्या वह इस ‘112 बहाना प्रकरण’ की जांच करेंगे? क्या वह देखेंगे कि ट्रेनिंग पर नहीं जाने वाला अधिकारी कोतवाली में क्यों लगा है? क्या वह तत्कालीन एसपी द्वारा किए गए एकतरफा निर्णय की समीक्षा करेंगे? पुलिस विभाग की विश्वसनीयता इसी पर टिकी है।
    क्या है 112 सेवा…
    पुलिस की 112 सेवा एक एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली है जो पुलिस, अग्निशमन, एम्बुलेंस और महिला हेल्पलाइन जैसी सभी आपातकालीन सेवाओं को एक ही नंबर पर उपलब्ध कराती है। यह 24&7 काम करती है और किसी भी फोन से कॉल की जा सकती है, जिससे किसी भी संकट की स्थिति में तत्काल मदद मिल सके।
    अखबार की चेतावनी सही साबित
    स्थानांतरण खेल का पर्दाफाश दैनिक घटती-घटना ने चार महीने पहले ही बताया था कि कुछ पुलिसकर्मी हर हाल में घर वापसी की जुगत में लगे हैं और वही हुआ भी था वही बात सत्यापित हो थी,और यह पूरे पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता पर सबसे बड़ा सवाल है।
    चार महीने पहले जनता ने राहत की सांस ली थी… अब वही लोग फिर डर और मायूसी में…
    पूर्व आईजी सरगुजा द्वारा की गई बड़ी कार्रवाई के तहत कई विवादित प्रधान आरक्षकों को दूर जिलों में भेजा गया, जनता खुश हुई, नारियल फूटे, कोरिया जिले में तो लोग इसे अंततः शांति की शुरुआत मान रहे थे,लेकिन चार महीने बाद ही नए आईजी ने पूर्व आदेश पलट दिया और वही कुख्यात नाम,वही व्यक्तित्व,वही लोग फिर वापसी कर गए।
    जिले से भगाया गया था…अब बगल के जिले में बैठा है”…लोगों की प्रतिक्रिया…
    मायावी प्रधान आरक्षक को कोरिया से हटाकर जशपुर भेजा गया था, उसकी कार्यप्रणाली, शिकायतें और लगातार विवादों के चलते उसे हटाना जनहित में आवश्यक माना गया था, परंतु अब तत्कालीन एसपी एमसीबी ने उसे जशपुर से हटाकर अपने पास बुला लिया,बल की कमी,112 की जरूरत जैसे कारण देकर प्रक्रिया को सही ठहराया गया,लेकिन अंदरूनी सूत्रों ने बताया जशपुर वाले साथी को वहीं छोड़ दिया गया,लेकिन मायावी प्रधान आरक्षक को वापस ला दिया गया क्योंकि वह एसपी का खास था अब वही प्रधान आरक्षक एमसीबी जिले में फिर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा है।
    अब सवाल वर्तमान एसपी के सामने— क्या कार्रवाई होगी या फिर खामोशी ही नीति बनेगी?
    112 का बहाना बनाकर,ट्रेनिंग में बिना भेजे,जशपुर से बुलाकर, एक विवादित प्रधान आरक्षक को जिले में सक्रिय रखना,यह सीधा-सीधा पुलिस विभाग पर सवाल खड़ा करता है।
    क्या पुलिस विभाग दोषपूर्ण कार्यप्रणाली वाले कर्मियों के सामने झुक गया है?
    दोनों आदेशों—पूर्व आईजी का और वर्तमान आईजी का—की तुलना से एक कड़वा सच सामने आता है पूर्व आईजी ने दोषपूर्ण कार्यप्रणाली वाले सभी पुलिसकर्मियों को दूर किया, वर्तमान आदेश ने उन्हें घर-पास के जिलों में वापस भेज दिया,और वह भी सिर्फ चार महीने के भीतर! इससे साफ संकेत मिलता है सिस्टम एक व्यक्ति की जांच, शिकायतें, खराब छवि या जनता की भावनाओं से नहीं चलताज् बल्कि किसका कितना प्रभाव है,इससे चलता है।
    112 की ‘कहानी’ का भंडाफोड़…न ट्रेनिंग,न संचालन,फिर भी बुला लिया गया!-
    एमसीबी जिले के तत्कालीन एसपी ने एक विवादित प्रधान आरक्षक को जशपुर से तुरंत वापस बुलाते हुए 112 की जिम्मेदारी दिया जो 112 शुरू होने जा रही है,स्टाफ की कमी है,लेकिन अब खुलासा यह 112 जिले में शुरू ही नहीं हुई,112 के लिए नामित कर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है,लेकिन यह मायावी प्रधान आरक्षक ट्रेनिंग में गया ही नहीं,उल्टा कोतवाली की जि़म्मेदारी निभा रहा है,यानी 112 सिर्फ प्लान नहीं,बहाना था…सवाल…जिस योजना की शुरुआत तक नहीं हुई,उसके नाम पर वापसी कैसे संभव?

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