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सूरजपुर@भर्ती में बड़ा खेल,शिकायतों के बाद भी गड़बड़ी वाली सूची ही जारी

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  • सूरजपुर के महिला बाल विकास विभाग पर गंभीर सवाल
  • अनुभव बदल गए,प्रतिशत बढ़ गए,चयन सूची में “फेवरेट नाम”-दस्तावेज़ों ने खोली पोल
  • पूजा गोस्वामी के दोहरे अनुभव से लेकर केस वर्कर के बदलते प्रतिशत तक—हर जगह गड़बड़ी का पैटर्न एक जैसा…
  • शिकायतें कलेक्टर तक पहुँचने के बावजूद विभाग ने वही सूची जारी की…
  • अब पूरी प्रक्रिया जांच के दायरे में…
  • महिला एवं बाल विकास विभाग में भर्ती पर गंभीर सवाल!


अनुभव अंक काटे गए, प्रतिशत बदले गए, दो पदों में अलग-अलग रिकॉर्ड, शिकायतें कलेक्टर तक पहुँचीं


-ओंकार पाण्डेय-
सूरजपुर,23 नवंबर 2025
(घटती-घटना)।

सूरजपुर इंटरव्यू एक और चयन दो वर्गों में? डब्ल्यूसीडी भर्ती के सबसे खतरनाक विरोधाभास उजागर-सुपरवाइज़र ओबीसी में चयनित उम्मीदवार वही जो अनारक्षित में चयनित,मनीषा कुशवाहा के नाम को दोनों जगह प्रतिक्षा सूची में डालना, केस वर्कर में भी एक ही उम्मीदवार दो वर्गों में चयनित, दूसरे उम्मीदवार को दोनों जगह प्रतिक्षा सूची में धकेल देना,यह साफ दर्शाता है कि चयन ‘मेरिट’ नहीं, बल्कि ‘सेटिंग’ के हिसाब से किया गया।
महिला एवं बाल विकास विभाग सूरजपुर में जिला बाल संरक्षण इकाई और जिला स्तरीय चाइल्ड हेल्पलाइन के पदों पर जारी चयन सूची ने पूरे जिले में हड़कंप मचा दिया है, शिकायतें लगीं, दस्तावेज दिए गएज् फिर भी वही नाम फाइनल, जिन नामों पर अभ्यर्थियों ने आपत्ति लगाई थी, जिनकी पात्रता-अपात्रता पर सवाल उठाए गए थे, विभाग ने शिकायतों की जांच करने के बजाय उन्हीं नामों को अंतिम सूची में शामिल कर दिया, अभ्यर्थियों का आरोप सीधा-सपाट है जिसे जोड़ना था, उसे जोड़ा गया जिसे हटाना था,उसे हटाया गया। सारी प्रक्रिया फाइलों में पहले ही तय थी! महिला एवं बाल विकास विभाग सूरजपुर-सरगुजा की मिशन वात्सल्य,चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 और केस वर्कर भर्ती में गंभीर अनियमितताओं का पूरा दस्तावेज़ी रिकॉर्ड सामने आ गया है,नई जानकारी से यह स्पष्ट हो गया है कि मामला केवल ‘त्रुटि’ नहीं बल्कि पूरी चयन व्यवस्था की सुनियोजित इंजीनियरिंग जैसा दिख रहा है। दैनिक घटती-घटना को जिन दस्तावेज़ों की प्रतियां मिली हैं उनमें अनुभव अंकों में हेरफेर, प्रतिशत में भारी अंतर, दोहरे अनुभव, आरक्षण कोटे का गलत उपयोग, एक ही उम्मीदवार के दो जिलों में दो अलग रिकॉर्ड, चयनित अभ्यर्थियों से विभागीय संबंध, शिकायत के बाद भी उसी सूची को जारी कर देना जैसी गंभीर विसंगतियाँ शामिल हैं।

घटती-घटना की टिप्पणी…
यह मामला अब जिला स्तरीय समिति से ऊपर उठ चुका है,यह सीधे राज्य मिशन संचालक, रायपुर या स्वतंत्र जांच (एसआईटी) के अधीन जाना चाहिए…


जहां-जहां ‘बंसल मॉडल’ के अधिकारी होंगे,निष्पक्षता की उम्मीद क्यों?
अभ्यर्थियों का कहना है कि विभाग में बैठे कुछ अधिकारियों का व्यवहार शुरू से ही पक्षपातपूर्ण रहा। बंसल जैसे अधिकारी जहाँ होंगे, वहाँ भर्तियों में पारदर्शिता की उम्मीद बेमानी है, लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि मनेंद्रगढ़ में भी महिला बाल विकास भर्ती में गड़बड़ी सामने आई थी…अब सूरजपुर में भी वही कहानी दोहराई गई? कुछ महीने पहले मनेंद्रगढ़ में इसी विभाग की भर्ती को लेकर भारी विरोध हुआ था और तत्कालीन विधायक ने मामले को सदन तक उठाया था। अब सूरजपुर की भर्ती ने यह साफ कर दिया कि शिकायतें मिलती जरूर हैं, लेकिन विभाग जांच करता नहीं—सीधे सूची जारी कर देता है।
नई विसंगति: इंटरव्यू एक—चयन दो वर्गों में!- ये कैसा मापदंड, ये कैसा मूल्यांकन?
महिला एवं बाल विकास विभाग की भर्ती में अब एक और चौंकाने वाला पैटर्न सामने आया है, एक ही उम्मीदवार का चयन दो-दो वर्गों में, और दूसरी ओर उसी पद पर दूसरे उम्मीदवार को दोनों जगह प्रतिक्षा सूची में डाल देना, यह साफ संकेत देता है कि मेरिट नहीं, बल्कि सूची को मनमर्जी से फिट किया गया।
सुपरवाइज़र (ओबीसी वर्ग) में विरोधाभास
चयनित: दिनेश कुमार यादव, प्रतिक्षा सूची मनीषा कुशवाहा लेकिन सुपरवाइज़र (अनारक्षित वर्ग) में भी वही खेल, चयनित- प्रगति शाह प्रतिक्षा सूची: वही मनीषा कुशवाहा अर्थात एक ही उम्मीदवार (मनीषा कुशवाहा) को दोनों वर्गों में एक साथ प्रतिक्षा सूची में रखना, यह साफ दिखाता है कि पात्र–अपात्र निर्धारण और मेरिट गणना समान नहीं थी, अगर इंटरव्यू एक था, अंक समान थे, दस्तावेज़ समान थे तो दो वर्गों में दो अलग निर्णय कैसे?
केस वर्कर (अनारक्षित) में अगली गड़बड़ी
चयनितः यशोदा गुप्ता, प्रतिक्षा सूची: प्रकाश राजवाड़े लेकिन फिर केस वर्कर (अन्य पिछड़ा वर्ग) में भी वही दोहराव, चयनित वही यशोदा गुप्ता (ओबीसी में भी चयनित!) प्रतिक्षा सूचीः वही प्रकाश राजवाड़े अर्थात्: इंटरव्यू एक—चयन दो वर्गों में! यह विभागीय नियमों का सीधा उल्लंघन है, यह विसंगति क्या साबित करती है? उम्मीदवार का अनुभव वही, इंटरव्यू भी वही, अंक भी वही, दस्तावेज़ वही फिर अनारक्षित में भी वही चयनित, ओबीसी में भी वही चयनित, दूसरा उम्मीदवार दोनों वर्गों में प्रतिक्षा सूची में डाल दिया गया, यह साफ संकेत है कि चयन सूची को फेवरिट उम्मीदवारों के लिए मैच किया गया, और वर्ग बदलकर सीटें ‘एडजस्ट’ की गईं।
प्रश्न यह है कि शिकायतों को बिना जांच कैसे दबा दिया गया?
अभ्यर्थियों ने लिखित आवेदन,प्रमाण,अनुभव पत्र और गड़बड़ी के दस्तावेज जमा किए पर विभाग ने न तो कोई फैक्ट-फाइंडिंग समिति बनाई,न ही दस्तावेजों की जांच की और न ही अभ्यर्थियों को सुनवाई हुई और अंत में उसी सूची को अंतिम घोषित कर दिया जिसके खिलाफ शिकायतें थीं।
क्या यह न्याय है?
क्या अब अपात्र ही पदों पर बैठेंगे और योग्य बेरोज़गार घूमते रहेंगे? अभ्यर्थियों का आरोप है कि जिनके अनुभव विवादित हैं उन्हें चयनित कर दिया गया,जिनके दस्तावेज अधूरे हैं उन्हें पात्र बताया गया,जिनके खिलाफ शिकायतें लंबित थीं उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाकर अंतिम सूची में डाल दिया गया,इससे यह साफ हो गया कि जिन्हें नौकरी देनी थी, उन्हें हर हाल में देनी थी।
सबसे बड़ा सवाल…शिकायत और जांच प्रक्रिया का मज़ाक क्यों बनाया गया?
अगर शिकायतों की कोई वैल्यू ही नहीं थी,तो फिर विभाग ने अभ्यर्थियों से शिकायतें मंगाई ही क्यों? क्या यह प्रक्रिया सिर्फ ‘औपचारिकता’ थी? क्या सब पहले से तय था और इंटरव्यू, कौशल परीक्षा,पात्रता सूची — सब दिखावा था?
अब आगे क्या? अभ्यर्थियों में आक्रोश बढ़ा हाईकोर्ट तक जाने की तैयारी
सूत्रों के अनुसार कई अभ्यर्थी इस सूची के खिलाफ कलेक्टर,जिला कार्यक्रम अधिकारी,आयुक्त रायपुर और यहां तक कि हाईकोर्ट बिलासपुर तक जाने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि प्रश्न सिर्फ एक नहीं — पूरी प्रक्रिया पर है।
जिन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठे…
अभ्यर्थियों के आवेदनों में इन नामों पर गंभीर आपत्ति…घटती-घटना आरोपों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं करता,शुभम बंसल-जिला कार्यक्रम अधिकारी,मनोज जायसवाल-बाल संरक्षक अधिकारी पर आरोप पात्र-अपात्र सूची,अनुभव,सत्यापन,प्रतिशत प्रविष्टि और चयन के अंतिम चरण में संदिग्ध भूमिका।
निष्कर्षः मामला जिला स्तर पर नहीं, राज्य स्तर की जांच योग्य बन चुका है…
इस पूरे विवाद में सामने आए मुख्य तथ्य दोहरा अनुभव, दोहरा प्रतिशत, अलग-अलग जिलों में अलग रिकॉर्ड,अनुभव अंक काटना,सूची पहले से तय होने के संकेत,विभागीय संबंधों का प्रभाव,शिकायतों को नज़र अंदाज़ करना ये सभी संकेत देते हैं कि यह मामला आम भर्ती विवाद नहीं,बल्कि एक पूर्ण पैटर्न वाली चयन प्रक्रिया है।


विवादित अभ्यर्थियों की सूची (दो जिलों के रिकॉर्ड से मेल खाते नाम)

  1. पूजा गोस्वामी-दोहरा अनुभव,विभागीय प्रभाव का आरोप
  2. फुलेश्वरी / बुधन राम-अनुभव सत्यापन व अंक विवाद
  3. खुशबू जयसवाल-सुपरवाइज़र (अनारक्षित)- अनुभव मान्यता पर आपत्ति
  4. रीता सिंह-आरक्षण कोटे में अंक जोड़ने पर सवाल
  5. मनीषा कुशवाहा-दो श्रेणियों का लाभ लेने की आशंका
  6. यशोद गुप्ता- केस वर्कर-अनुभव की गलत गणना
  7. प्रकाश राजवाड़े प्रतिशत विवाद,पात्र-अपात्र सूची में अंतर
    सभी नाम कलेक्टर व विभाग को दिए गए अभ्यर्थियों के दस्तावेज़ों में दर्ज हैं।
    अंतिम सवाल जो विभाग को जवाब देना होगा…
  8. शिकायतों की जांच क्यों नहीं की गई?
  9. विवादित नामों को अंतिम सूची में कैसे शामिल किया गया?
  10. पात्र अभ्यर्थियों को बाहर क्यों किया गया?
  11. क्या विभाग में पहले से तय नामों को वैधता देने के लिए ही पूरी प्रक्रिया चलाई गइ?
  12. क्या अब विभाग ऐसे आदेशों पर बैठेगा जो योग्य बेरोज़गार युवाओं का भविष्य छीन रहे हैं?
    इससे बड़ा अनियमितता का सबूत और क्या होगा? यह दर्शाता है कि…
    इंटरव्यू केवल एक औपचारिकता था…
    चयन पहले से सेट थे…
    वर्गानुसार चयन सूची बाद में तैयार की गई…
    दोहरी एंट्री और दोहरी मेरिट से फेवर प्रदान किया गया…
    वहीं नाम बार-बार चयनित दिखाई दिए…
    और वही प्रतिक्षा उम्मीदवार दोनों वर्गों में पीछे धकेला गया…


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