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कोरिया@ जिला अस्पताल की लापरवाही उजागर,जांच आदेश में अधीक्षक को क्यों छोड़ा गया ?

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  • क्या अधीक्षक नियमों के ऊपर? प्रसूता का मामला उजागर होते ही बचाव के प्रयास!
  • सरकारी अस्पताल की बदइंतज़ामी, डॉक्टर अनुपस्थित, अधीक्षक पर कार्यवाही ठंडी
  • प्रसूता के साथ अस्पताल में अत्याचार, ड्यूटी में लापरवाही पर अधीक्षक जवाबदेह क्यों नहीं?
  • महिला का जीवन जोखिम में, डॉक्टर गायब, अधीक्षक की प्रशासनिक विफलता उजागर
  • क्या अधीक्षक की जिम्मेदारी नहीं? यही सबसे बड़ा सवाल अब जनता में चर्चा का विषय है
  • क्या जिला चिकित्सालय के अधीक्षक
  • इस व्यवस्था के प्रमुख नहीं?
  • क्या ड्यूटी रोस्टर, डॉक्टरों की उपलब्धता और समय पर सेवाएं सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी नहीं?
  • क्या अधीक्षक को केवल इसलिए बचाया जा रहा है कि मामला प्रशासनिक दृष्टि से संवेदनशील है?
  • जांच आदेश में उन्हें क्यों शामिल नहीं किया गया?
  • क्या अधीक्षक को नोटिस या चेतावनी भी जारी की गई?
  • जिला अस्पताल बैकुंठपुर में प्रसूता घंटों तड़पती रही, डॉक्टर नहीं पहुंचीं, परिजन ऑटो से ले गए प्राइवेट अस्पताल
  • जिला चिकित्सालय अधीक्षक की भूमिका पर उठे सवाल, कार्यवाही से दोषियों को बचाने की कोशिश या जिम्मेदारी तय होगी?


रवि सिंह-
कोरिया,17 नवंबर 2025 (घटती-घटना)।
जिला अस्पताल बैकुंठपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली एक बार फिर उजागर हुई है। बीती रात एक प्रसूता महिला गंभीर प्रसव पीड़ा में घंटों तड़पती रही,लेकिन ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर के नहीं आने से उसका ऑपरेशन नहीं हो सका, मजबूर परिजन आधी रात से लेकर सुबह तक इंतजार करने के बाद महिला को ऑटो में बिठाकर प्राइवेट अस्पताल ले जाने मजबूर हुए। घटना ने जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं, ड्यूटी शेड्यूल और निगरानी जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, परिजनों का आरोप है कि रात 1 बजे प्रसूता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दर्द बढ़ने पर जब परिवार ने ड्यूटी डॉक्टर से संपर्क किया तो डॉक्टर ने आने में असमर्थता जताई। रात भर इंतजार के बाद भी डॉक्टर या विशेषज्ञ टीम नहीं पहुंची,जिला अस्पताल बैकुंठपुर में प्रसूता से जुड़े इस संवेदनशील मामले ने एक बार फिर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविक स्थिति उजागर कर दी है,जांच समिति बनाकर मामला शांत करने की कोशिश की जा रही है,लेकिन अधीक्षक की जिम्मेदारी तय किए बिना यह जांच अधूरी मानी जाएगी,अब सवाल यह है कि क्या वास्तविक दोषियों पर कार्यवाही होगी या फिर इस बार भी फाइलों में मामला दबा दिया जाएगा?
सीएमएचओ,अधीक्षक जांच अधिकारी सभी विदेशों से पढ़कर आए डॉक्टर,क्या मामले के पटाक्षेप के लिए जांच अधिकारी खास को बनाया गया?
जिले के स्वास्थ्य विभाग के सीएमएचओ,अधीक्षक जिला चिकित्सालय,साथ ही जांच अधिकारी सभी विदेशों से चिकित्सा शिक्षा प्राप्त किए हैं,सभी आज जिम्मेदार पदों पर हैं और जिले में पदस्थ उनसे योग्य और अनुभवी साथ ही विशेषज्ञ चिकित्सक इनके अधीन कार्य कर रहे हैं,क्या जांच अधिकारी बनाए जाने के पीछे भी जांच के दौरान मामला पटाक्षेप किए जाने का प्रयास है।
अधूरी संवेदनशीलता, टूटता भरोसा… जिला अस्पताल पर फिर उठे सवाल
जिला अस्पताल में ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आ चुकी हैं, लेकिन इस घटना ने अस्पताल प्रशासन की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सबसे बड़ा प्रश्न यही है क्या इस मामले में केवल जांच समिति बनाकर जिम्मेदारी से बचा जा सकता है?
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने जारी किया जांच आदेश, लेकिन अधीक्षक मामले पर चुप्पी क्यों?
ध्यान देने वाली बात यह है कि जांच आदेश में जिला चिकित्सालय अधीक्षक का नाम शामिल नहीं है,ऐसा क्यों है यह बड़ा सवाल है,अधीक्षक को जांच के दायरे से बाहर क्यों रखा गया यह एक सवाल है।
जिम्मेदारी तय किए बिना कैसे मिलेगा न्याय?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में केवल निचले स्तर के कर्मचारियों पर कार्यवाही करना समस्या का समाधान नहीं है, अस्पताल की संपूर्ण व्यवस्था अधीक्षक के नियंत्रण में होती है यदि डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचे तो यह सीधा प्रशासनिक विफलता का मामला है।
जांच समिति गठित,पर सवालों की लंबी सूची
प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच समिति तो बना दी है, लेकिन जनता का भरोसा तभी लौटेगा जब जिला चिकित्सालय के अधीक्षक की भूमिका की भी जांच होगी, ड्यूटी डॉक्टर पर भी स्पष्ट कार्यवाही होगी, और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
परिजनों की पीड़ा, ‘अगर देर होती तो…?’
परिवार का कहना है कि यदि वे समय रहते प्राइवेट अस्पताल नहीं जाते,तो प्रसूता और बच्चे की जिंदगी खतरे में पड़ सकती थी। सरकारी अस्पताल में भरोसा था,लेकिन घंटों तड़पते रहने के दौरान कोई डॉक्टर नहीं आयाज्यह सिस्टम की सबसे बड़ी विफलता है।


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