अंबिकापुर में मुख्यमंत्री के आगमन पर ट्रैफिक जाम से जनता हुई परेशान
बच्चे भूखे-प्यासे घंटों फंसे रहे,लोगों ने सोशल मीडिया पर जताई नाराज़गी


-अविनाश राहगीर-
अंबिकापुर,29 अक्टूबर 2025 (घटती घटना)।
छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस की रजत जयंती के ठीक दो दिन पहले 29 अक्टूबर को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अम्बिकापुर में बाबा कार्तिक उरांव चौक का भूमिपूजन किया। झारखंड राज्य के प्रणेता और कांग्रेस के पूर्व सांसद रहे बाबा कार्तिक उरांव को मिल रहे इस सम्मान का स्वागत किया जाना चाहिए किंतु सवाल यह भी है कि पूरे सरगुजा में छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों या अलग राज्य के स्वप्नदृष्टाओं की एक भी प्रतिमा या चौक क्यों नहीं है? मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के अंबिकापुर आगमन को लेकर बुधवार को शहर में ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। मुख्यमंत्री के काफिले और स्वागत रैलियों के कारण कई घंटों तक शहर के मुख्य मार्गों पर जाम की स्थिति बनी रही, बताया गया कि स्कूल से लौट रहे मासूम बच्चे घंटों तक वाहनों में फंसे रहे,जिससे अभिभावकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा,कई परिवार अपने बच्चों को समय पर घर नहीं पहुँचा पाए।
सड़कें टूटी,पर चौक चमकेगा
शहर की कोई भी सड़क ठीक नहीं,सड़कों के सुधार के लिए नगर निगम से लेकर मंत्री और सांसद तक बजट की कमी का रोना रोते रहते हैं। परंतु वोट बैंक वाले चौक के लिए 40 लाख रुपये आनन-फानन में स्वीकृत हो जाते हैं,श्रद्धांजलि के नाम पर राजनीति का रंग चढ़ जाता है।
महापुरुष नहीं,अवसर तलाशती भाजपा?
महापुरुषों के अकाल से जूझ रही भाजपा को इतिहास में महापुरुष कम,मौके ज्यादा दिखते हैं। महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस,सरदार पटेल से लेकर अब कार्तिक उरांव तक कांग्रेस के पुरखों के नाम भाजपा की राजनीति में बार-बार उधार लिए जाते हैं। झारखंड आंदोलन के पुरोधा और आदिवासी अस्मिता के प्रतीक बाबा कार्तिक उरांव को भाजपा आज सांस्कृतिक पूंजी में बदलना चाहती है। यहां श्रद्धा नहीं,रणनीति काम कर रही है। यह श्रद्धांजलि नहीं,राजनीतिक सेंधमारी की रूपरेखा है।
सबका साथ या अपना धर्म?
भाजपा सबका साथ,सबका विश्वास की बात करती है, लेकिन असल में अपना धर्म,अपनी राजनीति चलाती है। आदिवासी समाज को ईसाई और गैर-ईसाई में बाँटने की यह रणनीति नई नहीं है,उत्तर भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत,आदिवासी अंचलों में ईसाइयों से परहेज और जहां ईसाई बहुसंख्यक हैं,जैसे नॉर्थ-ईस्ट या केरल, वहाँ वही ईसाई सांस्कृतिक सहयोगी बन जाते हैं।
एक और पत्थर,एक और चाल
कार्तिक उरांव का नाम भाजपा की डिलिस्टिंग मुहिम और विभाजनकारी राजनीति की ढाल बन गया है। जो पार्टी अपने लिए आदिवासी नायक नहीं खोज पाती,वह कांग्रेस के पुरखों की मूर्तियों से भाषण देती है। सरगुजा की धूल-धूसरित सड़कों,टूटी नालियों और जर्जर गलियों के बीच अब एक और पत्थर जुड़ जाएगा राजनीतिक स्मृति का पत्थर।
भूमि-पूजन पर उठे सवाल
छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस की रजत जयंती के ठीक दो दिन पहले मुख्यमंत्री विष्णु देव साय अम्बिकापुर में बाबा कार्तिक उरांव चौक का भूमिपूजन करेंगे। झारखंड राज्य के प्रणेता और कांग्रेस के पूर्व सांसद रहे बाबा कार्तिक उरांव को मिल रहे इस सम्मान का स्वागत किया जाना चाहिए पर सवाल यह भी है कि सरगुजा में अब तक छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों या अलग राज्य के स्वप्नदृष्टाओं की एक भी प्रतिमा क्यों नहीं है?

समाज के प्रतिनिधि पहले आमंत्रण पत्र से हुए गायब विरोध के बाद पुनः छपा आमंत्रण पत्र
विडंबना देखिए कार्यक्रम का मंच बाबा कार्तिक उरांव के नाम पर सजेगा, पर उरांव समाज के अपने दो जनप्रतिनिधियों लुंड्रा विधायक प्रबोध मिन्ज और सीतापुर विधायक रामकुमार टोप्पो को मंच पर जगह नहीं मिलेगी ऐसा पहले छपे आमंत्रण कार्ड से तय किया गया,वैसे विरोध के बाद दोबारा आमंत्रण कार्ड छपा जिसमें दोनों का नाम शामिल हुआ। दोनों भाजपा के ही विधायक हैं, पर ईसाई होने की वजह से भाजपा की ‘संस्कृति’ में फिट नहीं बैठते, न्योता में उनके नाम नदारद किया गया बाद में जोड़ा गया,मंच पर गैर-आदिवासी उपमुख्यमंत्री अरुण साव और संस्कृति मंत्री राजेश अग्रवाल सजे रहने वाले थे लेकिन दो समाज के ही लोग स्वीकार नहीं किए जा रहे थे जिन्हें अंततः स्वीकार किया गया।
हैलीपैड क्षेत्र में स्वागत से रोकने पर भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच विवाद
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आज अंबिकापुर पहुंचे, जहाँ उन्होंने बाबा कार्तिक उरांव के जन्म शताब्दी समारोह में भाग लिया, मुख्यमंत्री के आगमन पर भाजपा कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ हैलीपैड पर उनका स्वागत करने पहुंची, हालांकि,हैलीपैड क्षेत्र में स्वागत से रोकने पर भाजपा कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच विवाद की स्थिति बन गई, देखते ही देखते कार्यकर्ता और पुलिस आमने-सामने आ गए और मौके पर हंगामा मच गया, हालात को संभालने के लिए वरिष्ठ अधिकारी मौके पर मौजूद रहे।
सोशल मीडिया से आवाज़ें:-
“मतलब ये क्या तरीका है, बीच चौराहे पर मंच..? यहाँ कोई नियम-कानून नाम की चीज़ ही नहीं! मुरदा विपक्ष।”
— अनंगपाल दीक्षित
“कार्तिक उरांव जी के नाम पर सजने वाला मंच आदिवासियत की नहीं, राजनीति की गूंज से भरेगा।”
— प्रणय राज सिंह राणा
“यह भाजपा-आरएसएस की डिलिस्टिंग राजनीति का हिस्सा है, जिसमें श्रद्धांजलि की आड़ में विभाजनकारी एजेंडा छिपा है।”
— आशीष वर्मा
स्थानीय नागरिकों ने इस स्थिति पर सोशल मीडिया के माध्यम से नाराज़गी जताई, फेसबुक पर राशिद अहमद नामक व्यक्ति ने लिखा “आज सीएम साहब अंबिकापुर आए! रैलियां निकलीं, ट्रैफिक व्यवस्था इतनी टाइट की गई कि मासूम बच्चे स्कूल से आते वक्त घंटों जाम में भूखे-प्यासे फंसे रहे, परिवार परेशान रहा, मगर क्या कीजिएगा, सीएम साहब जो आए हैं! ये व्यवस्था बदलनी चाहिए वीआईपी लोगों से पहले आम नागरिक, खासकर बच्चों और मरीजों के बारे में सोचना होगा की यही हैं असली अति महत्वपूर्ण व्यक्ति? इस पोस्ट को कई लोगों ने सहमत प्रतिक्रिया देते हुए साझा किया और वीआईपी मूवमेंट के दौरान आम जनता की तकलीफों पर सवाल उठाए।
— राशिद अहमद
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