
-न्यूज डेस्क-
कोरिया,24 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। यह सवाल वाकई बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर है, खासकर तब,जब बात किसी शासकीय महाविद्यालय और उसके प्रभारी प्राचार्य (सेवानिवृत्त) से जुड़ी वित्तीय अनियमितताओं की हो। आपका सवाल इस ओर इशारा करता है कि संबंधित व्यक्ति पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं, फिर भी वे निश्चित हैं कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई या जांच नहीं होगी। यह स्थिति तब बनती है जब प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण किसी को प्राप्त होता है, जांच प्रक्रिया में ढिलाई या देरी होती है, रिकॉर्ड या सबूतों तक पहुंच सीमित होती है, या फिर संस्थानिक स्तर पर पारदर्शिता की कमी रहती है, यह सारी स्थितियां इस समय कोरिया जिले के अग्रणी शासकीय महाविद्यालय रामानुज प्रताप सिंहदेव के सेवानिवृत प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता के मामले में देखने को मिल रही है, भारी अनियमिताओं के बीच उन्हें इस बात का विश्वास है कि उनका कुछ नहीं होगा, अब यह विश्वास उन्हें कैसे और किस दम पर है यह तो वही जाने पर लोगों को भरोसा है की इस सरकार में कार्यवाही जरुर होगी,सेवानिवृत प्रभारी प्राचार्य अखिलेश चंद्र गुप्ता जितना विश्वास उन्हें है इस बात का है वह कई लोगों से कह चुके हैं, क्या यह बात सही है कि इस मामले में कोई जांच नहीं होगी और यदि जांच नहीं होगी तो इसके पीछे की वजह क्या है? क्या भाजपा सरकार में भी ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है कि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण मिल रहा है? सेवानिवृत होने के बाद महाविद्यालय में जाना दस्तावेजों को आग के हवाले करना पूरे पांच साल तक वित्तीय लेखा-जोखा का ऑडिट ना करना कैश बुक में कई सारी त्रुटियां क्या इन सब की जांच नहीं होगी, यह जानकारी सूचना के अधिकार के तहत लगी है फिर भी इस मामले में जांच में इतनी देरी और प्रभारी सेवानिवृत्त प्राचार्य का यह सुनिश्चित रहना कि उनके विरुद्ध कोई जांच या कार्रवाई नहीं होगी यह वर्तमान सरकार पर सवालिया निशान खड़ा करता है, वर्तमान प्रशासनिक कसावट पर यह बहुत बड़ा सवाल उत्पन्न करता है, आखिर यह बात वह किसी राजनीतिक पकड़ के दम पर वह कह रहे हैं यह तो समझ के परे है। लेकिन स्पष्ट रूप से कहा जाए तो किसी भी सरकारी अधिकारी या प्राचार्य को यह भरोसा नहीं होना चाहिए कि सेवानिवृत्ति उन्हें जांच या कार्रवाई से बचा लेगी। भारत के सेवा नियमों (विशेषकर छत्तीसगढ़ सिविल सर्विसेज रूल्स) के अनुसार,यदि किसी अधिकारी के कार्यकाल के दौरान वित्तीय अनियमितता के प्रमाण मिलते हैं, तो सेवानिवृत्ति के बाद भी विभागीय जांच और दंडात्मक कार्रवाई संभव है। पेंशन या अन्य लाभ भी रोके जा सकते हैं, पर क्या ऐसा होगा या फिर उनका निश्चिंत रहना और यह भरोसा कि उनका कुछ नहीं हो सकता इस पर मोहर लगेगी?

प्रशासनिक सुस्ती या आंतरिक संरक्षण: अक्सर महाविद्यालयों में वित्तीय मामलों की फाइलें विभागीय स्तर पर लंबित पड़ी रहती हैं। यदि संबंधित अधिकारी को “ऊपर से संरक्षण” मिला हो तो वह यह सोच सकता है कि कोई उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगा।
जांच प्रक्रिया में देरी: सरकारी तंत्र में अक्सर जांच की प्रक्रिया धीमी होती है। कई बार जांच शुरू ही नहीं होती, या सालों तक “पेंडिंग” रहती है। इससे संबंधित व्यक्ति में यह भरोसा बैठ जाता है कि मामला ठंडे बस्ते में चला गया है।
कानूनी तकनीकी या सेवानिवृत्ति का भ्रम: बहुत से अधिकारी यह मान लेते हैं कि सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय जांच नहीं हो सकती। लेकिन यह गलत धारणा है। राज्य सेवा नियमों के अनुसार, यदि अनियमितता सेवा अवधि में हुई है और प्रमाण हैं, तो सेवानिवृत्ति के बाद भी जांच व दंड संभव है। सरकार चाहे तो उनकी पेंशन, ग्रेच्युटी या अन्य लाभ रोक सकती है।
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