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कोरिया@अमृत काल में मूलभूत सुविधाओं का मोहताज बना ग्राम रेवला

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पिछली सरकार में लगा बीएसएनएल टावर पर अभी तक चालू नहीं
क्या संभाग का पहला स्कूल विहीन ग्राम है रेवला? बच्चे हैं पर स्कुल नही,
सड़क,बिजली,स्वच्छ पानी का पूर्णतः अभाव,नाले के पानी से बुझ रही प्यास
शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं से कोसो दूर है ग्राम रेवला

कोरिया,19 अक्टूबर 2025(घटती-घटना)। हर साल छत्तीसगढ़ विकास की सीढि़यां चढ़ रहा है, लेकिन प्रदेश के कोरिया जिले का एक गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। डिजिटलीकरण और विकास के इस दौर में भी सोनहत तहसील के रेवला गांव में ग्रामीणों के जीवन में विकास की रौशनी अब तक नहीं पहुंच सकी है, यहां 50 से अधिक लोग निवासरत हैं, जिन्हें अब तक बिजली, सड़क और पीने को शुद्ध पानी तक नहीं मिल सका, विकास का ढोल पीटने वाले जनप्रतिनिधि और प्रशासन भी ग्रामीणों की कोई मदद नहीं कर सके, कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगाने के बाद भी गांव में समस्या जस की तस बनी हुई है। आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसे गांव के बारे में जो गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान के सघन जंगलों के बीच चारो तरफ पहाड़ों के बीच खाई में बसा हुआ है। इस गांव को रेवला के नाम से जाना जाता है। यहां पर पंडो एवं चे रवा जनजाति के परिवार निवास करते हैं। यह गांव काफी लंबे समय से यहां बसा हुआ है मूल भूत सुविधाओ से कोसो दूर बसे इस गांव के लोग विकास की परिभाषा नही जानते और बगैर सड़क बिजली पानी के बिना किसी संसाधन के यहां रहने मजबूर है। इस गांव का रास्ता इतना भयावह है कि यहां कोई चार पहिया वाहन नही जा सकता यहां जाने के लिए आपको पैदल ही जाना होगा यदि आप बाइक में भी जाने की सोच रहे है तो पगडंडियों के सहारे बहुत सावधानी बरतें हुए आपको यहां पहुचना पड़ेगा।
रेवला में बच्चे हैं पर नही है कोई भी स्कूल
रेवला के ग्रामीणों ने घटती-घटना से अपनी समस्या बताते हुए कहा कि रेवला गांव में स्कूली बच्चो की संख्या 15 के आसपास है बावजूद इसके यहां कोई भी स्कुल नही है जबकि सोनहत विकासखण्ड में कई स्कूल ऐसे हैं जिनमे दर्ज संख्या 10 या उससे भी कम है लेकिन इस गांव में स्कुल नही होने से यहां के लोग शिक्षा व्यवस्था का लाभ सही ढंग से नही ले पा रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यहां से सबसे नजदीकी प्राथमिक शाला मेण्ड्रा गांव में है जिसकी दूरी 20 किलोमीटर है जबकि पँचायत मुख्यालय कछाड़ी है जिसकी दूरी लगभग 35 किलोमीटर यहां के बच्चे मेण्ड्रा ,सोनहत और तेलीमुड़ा के आश्रम शालाओं में पढ़ते हैं, ग्रामीण अभिभावकों ने बताया कि बच्चो से मिलने जाने और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारी मशक्कत होती है ऐसे में यदि गांव में ही स्कूल हो जाता तो काफी राहत होती है।
स्वस्थ्य सुविधाओ की बड़ी परेशानी
रेवला में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर बड़ी परेशानी है ग्रामीणों ने बताया कि तबियत खराब हो जाने पर बहुत ज्यादा परेशानी हो जाती है। एम्बुलेंस गांव तक पहुचती नही और ग्रामीणों के पास कोई साधन नहीं ऐसे में इलाज कराना बेहद कठिन हो जाता है। ग्रामीण बताते है कि तबियत खराब होने या फिर महिलाओं को प्रसव के समय खाट पर कंधे के सहारे भीषण चढ़ाई चढ़ मुख्य सड़क तक लेकर जाते हैं इसके बाद एम्बुलेंस या फिर अन्य संसाधनों से अस्पताल तक पहुचाया जाता है। हालांकि ग्रामीण महिलाओ ने बताया कि यहां स्वास्थ्य सुविधाओं का जायजा लेने स्वस्थ्य कार्यकर्ता आते हैं चिरायु की टीम भी आयी है जो आंगन बाड़ी के बच्चो को दवाई वगैरह दिए थे लेकिन इनके अलावा कोई भी अन्य विभाग का अधिकारी कर्मचारी यहां लोगो की सुध लेने नही आते जिससे किसी भी योजनाओं का लाभ नही मिल पाता है।


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