Breaking News

रायपुर@मौजूदा सरकार में नगर सरकार के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की क्यों नहीं सुन रहे अधिकारी,क्यों कर रहे हैं अधिकारी अपनी मनमानी?

Share

  • अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के बीच का आपसी संबंध इस सरकार में क्यों नहीं हो पा रहा स्थापित?
  • नगर सरकार को बने एक साल नहीं हुआ और पूरे प्रदेश में नगर सरकार के जनप्रतिनिधि अपने अधिकारियों से क्यों हैं परेशान?
  • जनप्रतिनिधियों पर खर्च हुआ नहीं और अधिकारी पैसा निकाल लिए ऐसे भी आए मामले फिर भी सरकार चुप क्यों?
  • नगर व शहर अधिकारी को आखिर किसका संरक्षण की अपने ही जनप्रतिनिधि के नाम पर निकाल ले रहे पैसा और और अपने ही जनप्रतिनिधियों को दिखा रहे आंख?
  • क्या मौजूदा सरकार में यह एक नई परंपरा की शुरुआत है ऐसी परंपरा में क्या कोई करोड़ों रुपए खर्च करके चुनाव लड़ेगा?
  • भाजपा सरकार का प्रदेश में यह कार्यकाल स्थानीय निकायों,पंचायतों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के लिए क्या बेडि़यां डालने वाला कार्यकाल?

-अविनाश राहगीर-
अंबिकापुर/रायपुर 14 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। प्रदेश में भाजपा की सरकार है और प्रदेश के अधिकाशं नगरीय निकायों में साथ ही जिला जनपदो में भी भाजपा से ही जुड़े पार्टी के लोग ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं लेकिन नगरीय निकायों और जिला जनपदों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का हाल बेहाल है वह वेतन पाने वाले कर्मचारियों से भी बदतर हालात में हैं न उनकी सुनवाई है न उनकी सहमति असहमति उनके निर्वाचित कार्यक्षेत्र के कार्यालयों में महत्व रखती है,सभी परेशान हैं और सरकार और प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री के प्रति इस उम्मीद से आशा लगाए बैठे हैं कि उन्हें कुछ तो अधिकार मिलेंगे कुछ तो उनकी भी सुनवाई होगी उनकी भी सहमती असहमति सुनी जाएगी लेकिन ऐसा कोई उदाहरण अब तक सामने नहीं आया है जब उनकी सुनवाई हुई हो उनकी सहमति असहमति स्वीकार हुई हो,प्रदेश की मौजूदा सरकार के कार्यकाल में अब तक नगर सरकारों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा लगातार जारी है,नगर सरकारों में बैठे अधिकारी नगर के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते और न ही उनसे नगर विकास या नगर विकास निधियों के खर्च के बारे चर्चा ही करते हैं,कहां क्या आवश्यक है क्या अति आवश्यक है यह अधिकारी तय कर रहे हैं यहां तक कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की विकास निधियों को भी अधिकारियों द्वारा ही कहां खर्च किया जाना है यह तय किया जा रहा है। अधिकारियों की यह मनमानी क्यों जारी है क्यों उपेक्षित हैं लगातार नगरीय निकाय के निर्वाचित जनप्रतिनिधि जबकि अधिकाशं भाजपा से ही जुड़े हैं जिसकी सरकार है प्रदेश में यह समझ से परे है। अधिकारी क्यों मनमानी कर रहे हैं क्यों वह जनप्रतिनिधियों को उपेक्षित कर रखे हैं यह बड़ा सवाल है क्योंकि अधिकारियों की करनी जो सामने आ रही है वह भ्रष्टाचार के चरम पर पहुंच चुकी स्थिति है और क्या सरकार जानबूझकर ऐसा अधिकारियों से करवाना चाह रही है जो वह कर रहे हैं यह बड़ा सवाल है।
एक वर्ष भी अभी नगर सरकारों और जनपद जिला पंचायतों की सरकारों के कार्यकाल का नहीं हुआ लेकिन सभी जगह की स्थिति एक समान है निर्वाचित जनप्रतिनिधि लगातार राजधानी में ही नजर आ रहे हैं और मुख्यमंत्री सहित विभागीय मंत्री से त्राहिमाम-त्राहिमाम की रट लगा रहे हैं वहीं सरकार मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं अपने ही लोगों का जो उनके भरोसे चुनाव में कूद पड़े थे और पार्टी के खाते में जिन्होंने जीत की सौगात जोड़ी थी। नगरीय निकायों की यदि हालत की बात की जाए तो लगभग हर नगरीय निकाय की स्थिति एक समान है कुछ अपवाद हो सकते हैं सभी जगह निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को उपेक्षा ही झेलनी पड़ रही है वह केवल वेतन पाने वाले ऐसे कर्मचारी बनकर रह गए हैं जिनके पास वेतन पाने के लिए काम भी नहीं है बस वेतन उन्हें मिल जा रहा है और उन्हीं निकायों के अधिकारी उनको उपेक्षित कर अपनी मनमानी कर रहे हैं उन्हें किसी प्रकार की कोई तव्वजो नहीं प्रदान कर रहे हैं। वैसे जो कुछ सामने से नजर आ रहा है उसको लेकर यही एक सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्यों अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों में आपसी सामंजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा है क्या इसके लिए सरकार की ही तरफ से मनाही है और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को केवल चंद पैसे वेतन के प्रदान कर एक कुर्सी पर बैठा बेकाम व्यक्ति बनाकर रखना ही इसके पीछे की मंशा है,वैसे जो कुछ घट रहा है वह भाजपा के हिसाब से तो अच्छा नहीं नजर आ रहा है,अंदरूनी आक्रोश या नाराजगी साफ नजर आ रही है बस उसका उजागर होना या उसका जाहिर होना खुलेआम बाकी नजर आ रहा है।
सरकार के दो साल, निकायों की सरकारों के एक साल, निकाय के निर्वाचित जनप्रतिनिधि लगातार अधिकारियों से उपेक्षित?
प्रदेश की सरकार का कार्यकाल दो वर्ष का होने जा रहा है वहीं निकायों की सरकारों का कार्यालय भी एक वर्ष की दहलीज पर है लेकिन निकायों के निर्वाचित जनप्रतिनिधि अपनी उपेक्षा से परेशान हैं वह अपने ही उन अधिकारियों से उपेक्षित हैं जो उनकी बातें सुनने और उन पर क्रियान्वयन के लिए नियुक्त हैं,ऐसा क्यों हो रहा है यह निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का भी सवाल है अपनी ही सरकार से बस वह खुल कर बोल नहीं पा रहे हैं। जिन अधिकारियों का काम निकायों की समस्याओं को निकायों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से जानकर उसके निराकरण का जिम्मा मिला हुआ है वह उन्हीं अधिकारियों से परेशान हैं उनकी मनमानियां झेलने मजबूर हैं जिन्हें उनके लिए सहूलियत तय करनी थी।क्यों,आखिर क्यों जैसे सवाल कम से कम जनप्रतिनिधि जरूर जानना चाह रहे हैं इसके पीछे की सरकार की मंशा भी वह समझना चाहते हैं।
निकायों में अधिकारी मनमानी पर हैं उतारू,विकास निधियों सहित जनप्रतिनिधियों के लिए उपलब्ध निधियों का भी वह कर रहे दुरुपयोग
प्रदेश के निकायों में आज की स्थिति ऐसी है कि अधिकारी मनमानी पर उतारू हैं,वह निकाय विकास निधियों सहित निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के लिए उनके अनुसार खर्च किए जाने वाली निधियों का भी दुरुपयोग कर रहे हैं,निकायों में अधिकारियों द्वारा केवल अपनी मनमानी चलाई जा रही है जिसमें अंकुश लगाने का भी आधिकार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को नहीं है, निर्वाचित जनप्रतिनिधि केवल मूक दर्शक बने हुए हैं और उनके ही निकायों को अधिकारी लुट रहे हैं।ऐसा क्यों हो रहा है क्यों जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा हो रही है इसको लेकर निर्वाचित जनप्रतिनिधि चिंतित हैं।


Share

Check Also

खड़गवां@17 वर्षों से खडग़वां की कुर्सी पर जमे एसडीओ-शासन की सर्जरी से अछूते

Share फील्ड में हमेशा व्यस्त दिखने वाले एसडीओ…17 साल से नहीं छोड़ी खडग़वां की कुर्सी …

Leave a Reply