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बैकुंठपुर@महाविद्यालय की जमीन पर एक तरफ पुलिस अधीक्षक कार्यालय का हुआ कब्जा…दूसरी तरफ पंडाल बनाकर हो रहा कब्जा…क्या कोई नहीं है रोकने वाला?

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महाविद्यालय के प्राचार्य को सिर्फ अपनी तनख्वाह से मतलब,जमीन कौन से उनके पूर्वजों की है इसलिए हैं मौन?
एक दो डिसमिल नही लगभग 20 डिसमिल जमीन पर पंडाल बनाकर कब्जा करने का प्रयास जारी है…राजस्व विभाग कुंभकर्णी निंद्रा में।
पूर्व प्राचार्य अपने पूर्वजों की जमीन समझ कर दे दिए जमीन पंडाल के लिए दान,और वर्तमान प्राचार्य को पता नहीं की कितने जमीन पर बन रहा है पंडाल?
तलवापर ग्राम पंचायत को कितनी चाहिए थी जमीन उसका नहीं किया उल्लेख लेकिन अनापत्ति मिलने के बाद मनमर्जी हो रहा निर्माण,लगभग 20 डिसमिल जमीन पर कब्जा होने का अनुमान।

-न्यूज़ डेक्स-
बैकुंठपुर,07 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। इतना लाचार विभाग शायद कोई नहीं देखा होगा जितना लाचार विभाग राजस्व विभाग है, और उतना ही लाचार कोरिया जिले का अग्रणी महाविद्यालय रामानुज प्रताप सिंहदेव शासकीय महाविद्यालय है, जहां एक तरफ उनकी जमीन पर बिना उनकी अनापत्ति पुलिस अधीक्षक कार्यालय का कब्जा हो गया तो वहीं दूसरे कोने में महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य ने एक पंडाल बनवाकर कब्जा करवा दिया,यह मामला ग्राम पंचायत तलवापारा का है जहां पर एक दुर्गा पूजा पंडाल बनाने के लिए शासकीय महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य से 2024 के अंत में उनके सेवानिवृत होने से पहले उनकी जमीन पर पंडाल बनाने की अनुमति मांगी गई और प्राचार्य ने भी अपने पूर्वजों की जमीन समझ कर अनुमति दे दी और पंडाल बनने लगा, वहीं सवाल यह उठता है कि पंडाल जहां दो डिसमिल जमीन पर बन जाते हैं वहां पर शासकीय महाविद्यालय की 20 डिसमिल जमीन पर कब्जा क्यों किया जा रहा है? पंडाल का निर्माण लगभग 20 डिसमिल जमीन पर होने की बात सामने आ रही है, पर क्या राजस्व विभाग के लोग आते जाते इस अन्याय को नहीं देख पा रहे और क्या वर्तमान प्राचार्य सिर्फ वहां पर प्राचार्य तनख्वाह लेने के लिए बने हुए हैं या फिर उस महाविद्यालय का भविष्य भी वह सोचेंगे?

क्या 20 डिसमिल जमीन पर बन रहा है पंडाल क्या इतनी जमीन का भू-भाटक पंचायत ने पटाया?
बैकुंठपुर के अग्रणी महाविद्यालय के पूर्व प्रभारी प्राचार्य से अनापत्ति प्राप्त कर महाविद्यालय की 20 डिसमिल जमीन पर पंडाल निर्माण का कार्य जारी है,यह अनापत्ति ग्राम पंचायत तलवापारा ने प्राप्त की है,अब सवाल यहां यह भी खड़ा हो रहा है कि केवल अनापत्ति मात्र प्राप्त की गई या फिर 20 डिसमिल जमीन का भू भाटक भी शासन को पंचायत द्वारा चुकाया गया,शासकीय जमीन पर निर्माण के लिए अनुमति और भू भाटक पटाए जाने का नियम है।
क्या पंडाल के नाम पर जमीन पर कब्जा करने का है प्रयास?
शासकीय महाविद्यालय की 20 डिसमिल जमीन पर पंडाल निर्माण का कार्य जारी है,यह जमीन ग्राम पंचायत ने महाविद्यालय से अनापत्ति प्राप्त कर पाई है,अब इस मामले में एक सवाल यह भी है कि क्या पंडाल के नाम पर जमीन पर कब्जा करने का यह प्रयास है,क्या यह 20 डिसमिल जमीन कुछ जमीन पंडाल के लिए शेष व्यक्तिगत उपयोग के लिए उपयोग की जाएगी,सवाल इसलिए भी क्योंकि जमीन बेशकीमती है और इस जमीन से लगा मुख्य मार्ग भी है,इस जमीन पर कब्जे को लेकर विवाद न हो इसलिए इसपर कहीं पंडाल बनाकर इसे धार्मिक रूप देने का तो प्रयास नहीं है,जिला प्रशासन आखिर क्यों इस मामले में आंखें मूंदे बैठा है जबकि वह कब्जा हटाओ अभियान के तहत जिले में शासकीय भूमि से कब्जा हटाने का दावा कर रहा है।
शासन के पैसे से दो डेसिमल से अधिक जमीन पर आज तक नहीं बना पंडाल
महाविद्यालय की जमीन पर जो पंडाल बनाया जा रहा है उसके लिए महाविद्यालय की 20 डिसमिल जमीन महाविद्यालय से अनापत्ति प्राप्त कर हासिल की गई है,यह जमीन मुख्य मार्ग के बगल की जमीन है,वैसे किसी भी धार्मिक पंडाल के निर्माण में हमेशा यह देखा गया है कि वह शासन से प्राप्त अनुदानों से बनाया जाता है और अब तक के जितने निर्माण पंडाल मामले के देखे जाएं कहीं 2 डिसमिल जमीन से अधिक पर पंडाल का निर्माण नहीं पाया जाएगा।यदि शासन 2 ही डिसमिल के लिए अनुदान प्रदान करती है तो फिर 20 डिसमिल जमीन पर कब्जा क्यों किया जा रहा है यह बड़ा सवाल है।
क्या महाविद्यालय में ताला बंद करके उसकी जमीन किसी व्यापारी को दे देनी चाहिए?
कोरिया जिले के अग्रणी महाविद्यालय और कन्या महाविद्यालय के पास की शासकीय जमीनें जो महाविद्यालय परिसर की जमीनें हैं या महाविद्यालय या अन्य शैक्षणिक गतिविधियों के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं को लगातार टुकड़ों में बांटा जा रहा है,कभी पुलिस अधिक्षक कार्यालय के लिए कभी स्वास्थ्य विभाग के लिए कभी पंडाल निर्माण के लिए,जमीन आबंटन के लिए महाविद्यालय और उसके विस्तार को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है और अन्य विषय ध्यान में रखे जा रहे हैं,अब यदि प्रशासन को महाविद्यालय के विस्तार से कोई लेना देना नहीं है और जमीन ऐसे ही बंदरबांट करनी है तो क्यों नहीं प्रशासन महाविद्यालय की जमीन किसी व्यापारी को देकर राजस्व में वृद्धि कर ले रही है वहीं महाविद्यालय में तालाबंदी कर ले रही है,यह विषय इसलिए क्योंकि शासकीय जमीन का जिस तरह बंदरबाट महाविद्यालय परिसर क्षेत्र में लगातार देखने को मिला वह यही सवाल खड़े करती है।
क्या भाजपा सरकार में जनप्रतिनिधियों व प्रशासन दोनों की आंखों में बंधी पट्टी, दोनों बने धृतराष्ट्र?
वैसे जिस तरह महाविद्यालय परिसर की जमीन बांटी गई एक प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि क्या भाजपा सरकार के कार्यकाल में सरकार और प्रशासन दोनों के आंखों में पट्टी बंधी हुई है और दोनों धृतराष्ट्र बने हुए हैं।


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