माथमौर,कठौतिया और बैमा की टीमों ने हासिल प्रथम स्थान
‘करके देखबो-सीख के रहीबो” थीम पर बच्चों की प्रतिभा और सीखने की ललक ने एफएलएन मेले में लगाए 34 स्टॉल,कलेक्टर ने की सराहना


एमसीबी,29 सितंबर 2025 (घटती-घटना)। रजत जयंती महोत्सव के अवसर पर कलेक्टर डी. राहुल वेंकट के निर्देशानुसार स्वामी आत्मानंद इंग्लिश स्कूल मनेंद्रगढ़ में आज करके देखबो,सीख के रहीबो थीम पर जिला स्तरीय एफएलएन मेला का भव्य आयोजन किया गया। इस मेले में जिले के मनेंद्रगढ़,भरतपुर और खड़गवां ब्लॉक की प्राथमिक शालाओं के कक्षा पहली से पांचवीं तक के बच्चों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी की। बच्चों द्वारा कुल 34 स्टॉल लगाए गए, जिनमें उनकी प्रतिभा और सीखने की ललक स्पष्ट दिखाई दी। इस मेले में बच्चों व्दारा लगाए स्टॉल इस प्रकार है जादू की पोटली, मेरी घड़ी तुम्हारा समय, रोली राउंड,पपेट की पाठ शाला, पर्ची उठाओ पढ़कर दिखाओ,गिनो और लिखो, पजल गेम मेरा रिंग मेरा वर्ण,जोड़ी बनाओ गिनती सीखो, एक्शन पार्क उंगली फिराव शब्द बनाओ, जोड़ मशीन,रंग का नाम,आओ ध्वनि पहचानो, आकृतियों की पहचान,बोलो-बोलो मै हूं कहा, नाम ही काफी है, गुणा,फूड आइटम, कौन पहले कौन बाद,समान खरीदो पैसे दो,आओ अलग करे,भरकर देखो,मुझे मेरी जगह बताओ,कौन इकाई कौन दहाई,अव्यवस्थित अक्षर शब्द पहचानकर रेलगाड़ी,बड़ा-छोटा बराबर,मेरे में बारे में बताओ,जादुई ध्वनि चिन्ह कैसे कैसे,क्रम सूचक संख्या,पासा और खेल और आंख मिचौली जैसे स्टाल लगाए गए थे,इस अवसर पर बेमेतरा जिले टाकेश्वर देवांगन,एससीईआरटी रायपुर से सुनील मिश्रा,समग्र शिक्षा से प्रीति जैन और वाणी मसीह विशेष रूप से शामिल हुए। मेले का संचालन बच्चों के हाथों में था,जहां वे खेल-खेल में सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में जुड़े हुए थे। शिक्षक केवल अवलोकन की भूमिका में रहे। इस मेले में हिंदी,अंग्रेजी और गणित की चुनिंदा अवधारणाओं के साथ नवाचारी विचारों को भी शामिल किया गया था,जिन्हें एससीईआरटी द्वारा तैयार संदर्शिका से जोड़ा गया। एफएलएन मेले का मुख्य उद्देश्य बच्चों को शिक्षा के प्रारंभिक चरण में ही रोचक गतिविधियों और खेलों के माध्यम से 100ः सीखने का अवसर प्रदान करना रहा। इसके साथ ही कलेक्टर के साथ सभी जनप्रतिनिधि और अधिकारी कर्मचारियों ने बच्चों द्वारा लगाए गए स्टालों का अवलोकन किया और उनकी सराहना की। प्रतियोगिता में पीएम श्री शा. प्रा. विद्यालय माथमौर की टीम ने निरजा अहिवार के नेतृत्व में हिंदी थीम आओ ध्वनि पहचानो से प्रथम स्थान प्राप्त किया। शा. प्रा. विद्यालय कठौतिया की टीम ने मनीषा पांडे के नेतृत्व में मैजिक साउंड थीम से पहला स्थान हासिल किया। वहीं शा. प्रा. शाला बैमा की टीम ने श्रीमती उमारानी सिंह के नेतृत्व में गणित थीम कौन पहले कौन बाद से प्रथम स्थान प्राप्त कर जिले का नाम रोशन किया।
इस अवसर पर टाकेश्वर देवांगन ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में कहा कि जब तक कोई व्यक्ति केवल दूसरों पर निर्भर रहकर सीखता है, तब तक उसका वास्तविक विकास संभव नहीं है। बच्चों को स्वयं सीखने की दिशा में प्रेरित करना और उनके भीतर सीखने की कल्पना शक्ति को विकसित करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा का वातावरण ऐसा होना चाहिए,जिसमें बच्चा सहज रूप से स्कूल आए और अपने अनुभवों से सीख सके। देवांगन ने सुझाव दिया कि स्टॉलों में लेखन कार्य पर विशेष बल दिया जाए और हर स्टॉल में कम से कम 4 से 5 बच्चों के पढ़ने-लिखने की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक स्टॉल में एक ही विषय को रखा जाए,ताकि बच्चे उस विषय को गहराई से और सरलता से समझ सकें। उन्होंने यह भी कहा कि हर गतिविधि को क्रमबद्ध और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे बच्चों के भीतर तार्किक सोच और आत्मविश्वास का विकास हो। उन्होंने यह भी कहा कि स्टॉलों की सजावट और सामग्री मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यवस्थित होनी चाहिए, ताकि बच्चों का ध्यान केंद्रित रहे और वे सीखने की प्रक्रिया का आनंद ले सकें। बिखरे हुए सामान को समेटकर सुव्यवस्थित रखना भी अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि व्यवस्था ही बच्चों को अनुशासन और सृजनशीलता की ओर प्रेरित करती है। देवांगन ने जोर देकर कहा कि बच्चों में आत्मविश्वास जगाना बहुत आवश्यक है और स्टॉलों का प्रबंधन स्वयं बच्चों को ही करना चाहिए। इससे उनमें जिम्मेदारी का भाव विकसित होगा और वे अपने कौशल को और निखार सकेंगे। उन्होंने उदाहरण स्वरूप कहा कि यदि चार्ट और गतिविधियों को सही ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो बच्चे तुरंत समझ सकते हैं कि यह क्या है और उसका उद्देश्य क्या है। अंत में उन्होंने कहा कि हर बच्चे के भीतर एक अनोखी कला और क्षमता छिपी होती है। शिक्षक और अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे उस क्षमता को पहचानें और उसे प्रोत्साहित करें। बच्चों को जो चीज़ें अपने अनुभव से सिखाई जाती हैं, वे कभी नहीं भूलते। यही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है। इस एफएलएन मेला में इस अवसर पर नगर निगम चिरमिरी के महापौर रामनरेश राय, नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिमा यादव, नगर पालिका उपाध्यक्ष धर्मेन्द्र पटवा, विधायक प्रतिनिधि सरजू यादव, अपर कलेक्टर श्रीमती नम्रता डोंगरे, एसडीएम लिंगराज सिदार, जिला शिक्षा अधिकारी आर. पी. मिरे, सभी ब्लॉकों के बीईओ एवं बड़ी संख्या में शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित रहे।
मेला केवल एक दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि इसे और बड़े स्तर पर भी आयोजित किया जाएगा: डी. राहुल वेंकट
कलेक्टर डी. राहुल वेंकट ने अपने उद्बोधन में कहा कि लगभग एक वर्ष पहले जब पीएलसी गठन की परिकल्पना की गई थी, तब उसका व्यावहारिक रूप से पहला क्रियान्वयन आज इस एफएलएन मेले के रूप में सामने आया है। यह सभी शिक्षकों के प्रयास और समर्पण का परिणाम है। उन्होंने सभी को बधाई देते हुए कहा कि पीएलसी के जिन शिक्षकों के समूह बनाए गए हैं, वे लगातार सक्रिय रहें और इस समूह से और भी अधिक शिक्षकों को जोड़ते रहें। कलेक्टर ने कहा कि यह मेला केवल एक दिन का आयोजन नहीं है, बल्कि इसे और बड़े स्तर पर भी आयोजित किया जाएगा। प्रारंभिक चरण में हमने एफएलएन मेला ब्लॉक स्तर पर किया और आज इसे जिला स्तर तक ले आए हैं। ब्लॉक स्तर पर भी शिक्षकों ने बेहतरीन कार्य किया और अब यह आयोजन और भी सशक्त रूप से आगे बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि आने वाले एक-दो महीनों में इस मेले को प्रशिक्षण और कार्यशाला के रूप में फिर से आयोजित किया जाएगा, ताकि शिक्षकों को और बेहतर अनुभव मिल सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि आगे से ब्लॉक स्तर के एफएलएन मेले का संचालन बीईओ की निगरानी में होगा, जबकि जिला स्तर के मेले की जिम्मेदारी डीईओ के निर्देशन में होगी। कलेक्टर ने कहा कि सीमित संसाधनों में भी आज जो आयोजन हुआ है, वह अत्यंत सराहनीय और प्रेरणादायी है। उन्होंने आगे कहा कि आने वाले समय में जिले में विज्ञान मेले का भी आयोजन किया जाएगा। कुछ जनप्रतिनिधियों ने सुझाव दिया है कि इस प्रकार के आयोजनों में निजी विद्यालयों को भी शामिल किया जाए, ताकि सरकारी और निजी विद्यालयों के विद्यार्थियों को आपसी सीखने और अनुभव साझा करने का अवसर मिल सके। इस पर जिला स्तर पर दिसंबर या जनवरी में एक बड़ा विज्ञान मेला आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है। कलेक्टर ने जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देशित करते हुए कहा कि यदि सूरजपुर, अंबिकापुर और जीपीएम जैसे जिलों में एफएलएन मेला आयोजित किया जाता है, तो यहां के शिक्षकों को वहां भेजा जाए ताकि वे नए विचारों और गतिविधियों को सीखकर अपने जिले में लागू कर सकें। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक जिले में अलग-अलग शिक्षकों को सीखने का अवसर मिलना चाहिए और वे लौटकर अपने अनुभवों से जिले के शैक्षणिक वातावरण को और समृद्ध बना सकें।
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