नई दिल्ली ,30 दिसंबर 2021 (ए)। नगालैंड में आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट 1958 यानी अफस्पा अभी लागू रहेगा। गृह मंत्रालय की तरफ से जारी एक आदेश में कहा गया है कि नगालैंड में यह कानून अभी अगले 6 महीनों तक के लिए आगे भी लागू रहेगा। इस कानून में सुरक्षा बलों को विशेष शक्तियां हासिल हैं। अभी कुछ समय पहले इस कानून का नगालैंड में विरोध हो रहा था और इसे हटाने की मांग उठ रही थी। इस बीच इस कानून को 6 महीने का विस्तार दिये जाने की वजह से राज्य में एक बार इसका विरोध शुरू हो सकता है। केंद्र सरकार ने पूरे नगालैंड को डिस्टर्ब एरिया घोषित किया है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि नगालैंड इतनी अशांत, खतरनाक स्थिति में है कि नागरिक प्रशासन की मदद के लिए सशस्त्र बलों का इस्तेमाल आवश्यक है। इस कानून के तहत सेना पांच या इससे ज़्यादा लोगों को एक जगह इक्ट्ठा होने से रोक सकती है। इसके तहत सेना को चेतावनी देकर गोली मारने का भी अधिकार है। ये कानून सेना को बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की ताकत देता है। इसके तहत सेना किसी के घर में बिना वारंट के घुसकर तलाशी ले सकती है। गोली चलाने के लिए किसी के भी आदेश का इंतजार नहीं करना और अगर उस गोली से किसी की मौत होती है तो सैनिक पर हत्या का मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता है। अगर राज्य सरकार या पुलिस प्रशासन, किसी सैनिक या सेना की टुकड़ी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करती है तो कोर्ट में उसके अभियोग के लिए केंद्र सरकार की इजाजत जरूरी होती है।
मुख्यमंत्री ने की थी अफस्पा हटाने की मांग
हालांकि, अभी कुछ दिनों पहले नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बलों द्वारा की गई गोलीबारी में कई लोगों की हुई मौत के बाद इस कानून को हटाने की मांग उठी थी। नगालैंड के कई मानवाधिकार संगठन और यहां तक कि खुद राज्य सरकार ने भी इस कानून को हटाने की मांग की थी। मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच कराए जाने का वादा किया था और समाज के सभी वर्गों से शांति बनाए रखने की अपील की थी। मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने कहा था, हम केंद्र सरकार से नागालैंड से अफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं। इस कानून ने देश की छवि खराब की है। मैंने केंद्रीय गृह मंत्री से बात की है, वह मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। हालांकि, इससे पहले भी कई बार सुरक्षा बलों पर इस कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लग चुका है। ये आरोप फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के मामले को लेकर लगे हैं। यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
