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मनेन्द्रगढ़@क्या सौरभ मिश्रा ‘बहुत बड़े’ नेता हैं ?शिष्टाचार या शो-ऑफ ?

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क्या मनेन्द्रगढ़ के सौरभ मिश्रा ‘बहुत बड़े’ नेता हैं?,
वरिष्ठ नेताओं के सामने खड़े होने का शिष्टाचार भूल गए?
-रवि सिंह-
मनेन्द्रगढ़,06 दिसंबर 2025 (घटती-घटना)।
मनेन्द्रगढ़ की सभा में वायरल हुए वीडियो ने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में हलचल मचा दी है,सफेद कुर्ते में सौरभ मिश्रा प्रदेश अध्यक्ष के ठीक बगल में दोनों हाथ जेब में डालकर खड़े दिखाई देते हैं,जबकि वरिष्ठ पदाधिकारी फोटो में जगह बनाने की कोशिश करते दिखते हैं,सवाल यही…क्या युवा नेता मर्यादा समझते हैं या सिर्फ फ्रेम में आगे आने की होड़ में हैं?
बता दे की कांग्रेस की ताज़ा सभा में रिकॉर्ड हुआ एक वीडियो/फोटो इन दिनों राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है, सफेद कुर्ते में नज़र आ रहे युवा नेता सौरभ मिश्रा अपने प्रदेश अध्यक्ष के ठीक बगल में दोनों हाथ जेब में डालकर फोटो खिंचवाने की मुद्रा में खड़े दिखाई देते हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के एमसीबी यथावत जिलाध्यक्ष भी फोटो में स्थान पाने की कोशिश करते दिखते हैं,सवाल यह है कि क्या सौरभ मिश्रा अपने वरिष्ठों के प्रोटोकॉल और बर्ताव की मर्यादा समझते हैं? क्या वह खुद को इतना बड़ा नेता मान बैठे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष के बराबर खड़े होने का तौर-तरीका भी औपचारिकता से परे हो गया है? क्या आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट का ख्वाब उन्हें पहले से ही फ्रेम के केंद्र में आने की कोशिश करा रहा है? क्या सोशल मीडिया में आगे बढ़ने की होड़ अब मंच पर वरिष्ठों से आगे खड़े होने तक पहुंच गई है? वीडियो में कैद उनकी बॉडी लैंग्वेज एक अलग कहानी कहती है जहाँ अनुभवी नेता संयमित दूरी पर रहते हैं,वहीं सौरभ मिश्रा सीधे फ्रेम की पहली लाइन में पहुंचने की कोशिश करते दिखते हैं, राजनीति में महत्वाकांक्षा गलत नहीं है, पर वरिष्ठों के सामने आचरण ही असली पहचान का पैमाना होता है।
नेतृत्व सीखने से आता है,सिर्फ फ्रेम में खड़े होने से नहीं…
राजनीति में महत्वाकांक्षा स्वाभाविक है,लेकिन वरिष्ठ नेताओं के सामने खड़े होने का शिष्टाचार ही बताता है कि कोई नेता कितना परिपम् है,फोटो में आगे आ जाना आसान है पर नेतृत्व वह है जहाँ व्यक्ति अपनी जगह नहीं,अपने व्यवहार से पहचाना जाता है, कुर्सियों से बड़ी होती है मर्यादा,और मर्यादा से बड़ा होता है अनुशासन,युवा राजनीति का असली मूल्यांकन भी यही तय करता है।
फ्रे म में आगे, व्यवहार में पीछे?
प्रदेश अध्यक्ष के सामने हाथ जेब में डालकर खड़े होने का अंदाज…युवा राजनीति का नया शिष्टाचार या बचकानी जल्दबाजी?
टिकट की होड़ या ध्यान दिलाने का शॉर्टकट?
क्या विधानसभा टिकट की उम्मीद में सौरभ मिश्रा हर मंच पर खुद को पहली लाइन में स्थापित करने पर उतारू हैं?
अनुभव बनाम उतावलापन
वरिष्ठ नेताओं की वर्षों की पहचान के बीच एक युवक का अचानक मंच-सेंटर में आने का प्रयास राजनीतिक संस्कारों पर बड़ा सवाल।
फ्रे म का पहला लाइन… पर आचरण आखिरी?
राजनीति में महत्वाकांक्षा गलत नहीं पर वरिष्ठ नेताओं के सामने शिष्टाचार ही असली पहचान है, जहां अनुभवी नेता संयमित दूरी में रहते हैं,वहीं सौरभ मिश्रा का फ्रे म में धक्का मारकर आगे आना…युवा राजनीति की परिपम्ता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह छोड़ता है।
फ्रे म में आगे, संस्कार में पीछे?
मनेन्द्रगढ़ की सभा में सौरभ मिश्रा का प्रदेश अध्यक्ष के बिल्कुल बगल में हाथ जेब में डालकर खड़ा होना चर्चा में है, सवाल यही क्या यह युवा नेता मर्यादा भूल रहे हैं या खुद को जरूरत से ज़्यादा बड़ा मान बैठे हैं?
नेतृत्व फ्रे म से नहीं, व्यवहार से दिखता है…
वरिष्ठों के सामने शिष्टाचार ही असली पहचान है…जिस दिन यह समझ आ गया,राजनीति भी संवर जाएगी।


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