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कोरिया/बैकुंठपुर@ क्या कांग्रेस शासन में लगाई गई प्रतिमा‘कोरिया कुमार’की पहचान से मेल नहीं खाती?

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  • एआई ने प्रतिमा को ‘चलते-बोलते’ दिखाया…लोग पूछ रहे…क्या यही तकनीक का उपयोग है?
  • प्रतिमा की साल में सिर्फ दो बार सफाई…क्या महान नेताओं के सम्मान में इतनी लापरवाही ठीक?
  • क्या किसी भी दिन माल्यार्पण कर राजनीतिक सहानुभूति बटोरी जा सकती है?


-रवि सिंह-
कोरिया/बैकुंठपुर,05 दिसंबर 2025 (घटती-घटना)।
कांग्रेस शासन में स्थापित कोरिया चौक की प्रतिमा एक बार फिर सवालों के घेरे में है, शहरवासियों का कहना है कि यह प्रतिमा स्वर्गीय डॉक्टर रामचंद्र सिंहदेव ‘कोरिया कुमार’ की वास्तविक छवि से मेल नहीं खाती, सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं, आखिर यह प्रतिमा किसकी है? इधर,प्रतिमा का एआई से बनाया गया चलने-बोलने वाला वीडियो वायरल होने के बाद बहस और तेज हो गई है, लोग कह रहे हैं कि तकनीक का दुरुपयोग कर एक गलत पहचान को सही दिखाने की कोशिश हो रही है,प्रतिमा की स्थिति भी चिंताजनक है,नागरिकों के अनुसार चौक की यह पहचान वर्षभर धूल और गंदगी में ढकी रहती है, और साल में केवल दो बार सफाई होती है,सवाल उठ रहा है क्या ऐसे महान नेता की प्रतिमा के साथ यह व्यवहार उचित है? हाल ही में कांग्रेस नेताओं द्वारा बिना किसी विशेष अवसर (जयंती/ पुण्यतिथि) के माल्यार्पण करने पर भी चर्चा गर्म है, लोगों का कहना है कि क्या प्रतिमा का उपयोग राजनीतिक सहानुभूति बटोरने के लिए हो रहा है?
बता दे की कोरिया जिले में स्वर्गीय डॉक्टर रामचंद्र सिंहदेव की छवि किसी से छुपी नहीं है,इनकी कुशल राजनीति व वेदांत छवि इन्हें किसी जमाने में अच्छा राजनेता बनाती थी और आज भी वही छवि लोगों के मन में है,और कोरिया कुमार लोगों के मन में विद्यमान हैं, जब भी राजनीति की बात आती है तो कोरिया कुमार का नाम न लिया जाए यह मुमकिन नहीं है,पर कोरिया कुमार जब जीवित थे उनकी कुशल राजनीति लोगों को पसंद थी,वह अभी तक के ऐसे नेता थे जिन्होंने चुनाव में पराजय हासिल नहीं की, जब भी चुनाव लड़ा वह अपराजित ही रहे, यही वजह है कि आज वह भले ही नहीं हैं पर आज लोगों व राजनीति में अमर हैं, पर ऐसी शख्सियत के नाम पर जब राजनीति निम्न स्तर की होने लगे तो सवाल उठना लाजिमी है कोरिया कुमार के नाम से बैकुंठपुर शहर का मध्य चौक कांग्रेस शासनकाल में घड़ी चौक से बदलकर कोरिया कुमार चौक बना, यहां पर स्वर्गीय कोरिया कुमार की एक प्रतिमा रखी गई, स्थापित प्रतिमा में कहीं से भी उनकी छवि नहीं दिखती है यही वजह है कि आज शहर में लोगों का यह सवाल है कि आखिर यह प्रतिमा किसकी है,क्योंकि इस प्रतिमा का जब भी जिक्र होता है तो यह बताया जाता है कि यह कोरिया कुमार चौक है और यह कोरिया कुमार की प्रतिमा है, यहां पर कई बार कांग्रेसियों ने कई कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं और यह चौक उस समय बनाया गया जब उनकी भतीजी खुद विधायक थी और उन्हीं के नेतृत्व में इसका लोकार्पण हुआ पर आज लोकार्पण के कई साल बाद यह बात उठ रही है और लोग एआई के माध्यम से वीडियो उस प्रतिमा की बनाकर यह पूछ रहे हैं कि यह प्रतिमा किसकी है, एआई ने जहां कोरिया कुमार को बोलना और चौक से चलता हुआ दिखा दिया उस पर भी यह सवाल है कि आखिर क्या यह प्रयोग सही है।
गंदी प्रतिमाएँ…और हमारी गंदी आदतें
देश और प्रदेश के हर शहर में महान नेताओं,स्वतंत्रता सेनानियों और वीर पुरुषों की प्रतिमाएँ चौक-चौराहों की पहचान होती हैं, लेकिन सच यह है कि इन प्रतिमाओं की असल स्थिति देखकर अक्सर शर्म आ जाती है, धूल, काई, जाले और गंदगी की मोटी परतें उस महान व्यक्तित्व के चेहरे को ही ढँक देती हैं…जिनके नाम पर चौक की पहचान बनी है, सवाल साफ है क्या महान नेताओं की प्रतिमाएँ सिर्फ नाम के लिए हैं? क्या उनकी सफाई और सम्मान की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता? लोगों की मानसिकता बन चुकी है कि प्रतिमाएँ तो गंदी ही रहेंगी, और प्रशासन की यही पुरानी आदत है कि जिम्मेदार अपने कर्तव्य से बच निकलते हैं, लेकिन क्या यह स्वीकार्य है? क्या ऐसे अधिकारियों और जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जो सार्वजनिक स्मारकों को सम्मान देने में लगातार असफल साबित होते हैं? हमारे देश के नेताओं, स्वतंत्रता सेनानियों और महान व्यक्तियों की प्रतिमाओं का गंदा रहना सिर्फ सफाई का मुद्दा नहीं यह समाज के चरित्र का आईना है, चौक-चौराहों पर लगे स्मारक देश की विरासत होते हैं और विरासत का अपमान, राष्ट्र के सम्मान का अपमान है, क्या यह शोभा देता है कि हम अपने प्रेरणास्रोतों को इस हाल में छोड़ दें? या फिर समय आ गया है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि और नागरिक…सभी मिलकर तय करें कि सम्मान सिर्फ भाषणों में नहीं, व्यवहार में भी दिखना चाहिए।
किसकी प्रतिमा है… और किसकी राजनीति?
बैकुंठपुर का कोरिया चौक सिर्फ एक ट्रैफिक पॉइंट नहीं है, यह उस नेता की स्मृति का प्रतीक है, जिसने अपनी सहजता, विनम्रता और राजनीतिक कौशल से पूरे क्षेत्र में सम्मान कमाया स्व. डॉ. रामचंद्र सिंहदेव ‘कोरिया कुमार’, लेकिन जिस प्रतिमा के सहारे हम उनकी याद सहेजना चाहते थे, वही प्रतिमा आज शहर की आंखों में सवाल बनकर खड़ी है।
माल्यार्पण पर भी उठा सवालःक्या किसी भी दिन माला चढ़ा देना उचित है?
कुछ दिनों दो दिसम्बर को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष,नेता प्रतिपक्ष और अन्य नेताओं ने प्रतिमा पर माल्यार्पण किया था, इसके बाद नया सवाल उठा की क्या यह उनकी जयंती या पुण्यतिथि थी? यदि नहीं तो फिर क्या यह केवल राजनीतिक सहानुभूति बटोरने की कोशिश थी? क्या परिवारजन की भावनाओं का राजनीतिक उपयोग किया गया?
पहला सवालःक्या यह प्रतिमा सच में कोरिया कुमार की है?
क्योंकि चेहरे की समानता ना होना सिर्फ कलात्मक भूल नहीं, बल्कि उस जननेता के व्यक्तित्व से न्याय न कर पाने की विफलता है। जब जनता पहचान ही न सके कि प्रतिमा किसकी है, तो यह स्मारक भावनाओं का नहीं,उपेक्षा का प्रतीक बन जाता है।
दूसरा सवालःएआई से प्रतिमा को चलाना-बोलाना क्या सम्मान है या राजनीति?
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर एक एआई वीडियो वायरल हुआ जिसमें प्रतिमा को चलते-बोलते दिखाया गया,लोगों ने यह भी सवाल उठाए क्या प्रतिमा की आलोचना से बचने के लिए इसे एआई के सहारे ग्लोरिफाई किया गया? क्या दिवंगत नेताओं की छवियों को डिजिटल रूप से बदलकर राजनीति करने का दौर शुरू हो गया है?
तीसरा सवालःधूल से ढकी प्रतिमा, गंदे चौक और दो बार की औपचारिक सफाई…
क्या यहीं तक सिमट गया है हमारा सम्मान? महान नेताओं की प्रतिमाएं केवल पत्थर की मूर्तियां नहीं होतीं, वे समाज की कृतज्ञता और संस्कृति का प्रतीक होती हैं, उनकी उपेक्षा, हमारी उपेक्षा है।
और आखिरी सवालःक्या किसी भी दिन माल्यार्पण कर देना राजनीतिक अवसरवाद नहीं?
जब श्रद्धांजलि भी कैलेंडर देखकर न दी जाए,तो वह श्रद्धांजलि नहीं, रणनीति लगती है,कोरिया कुमार की प्रतिमा आज दर्पण बन गई है जो हमें दिखा रही है कि हम इतिहास को याद करने में नहीं,उसे उपयोग करने में अधिक रुचि ले रहे हैं,सवाल प्रतिमा का नहीं है… सवाल है सम्मान का,सवाल है हमारी नीयत का,और सवाल है क्या हम नेताओं को याद करते हैं, या सिर्फ उनके नाम से राजनीति करते हैं?
प्रतिमा की सफाई भी सवालों के घेरे में “साल में दो बार झाड़-पोंछ”
स्थानीय लोग बताते हैं कि प्रतिमा पर वर्षभर धूल जमा रहती है, साल में मुश्किल से दो बार सफाई होती है वह भी औपचारिकता के तौर पर, लोग पूछ रहे क्या ऐसे महान नेता की प्रतिमा का गंदा रहना जिले के सम्मान के अनुरूप है? जिम्मेदार अधिकारी और नगर पालिका कब जागेगी? क्या शहर के चौक-चौराहों में लगी प्रतिमाओं के रखरखाव पर कोई नीति है? जब हम रोज नहाते हैं,अपने घरों को रोज साफ करते हैं… तो चौक-चौराहों पर खड़े महापुरुषों की प्रतिमाओं की रोज सफाई क्यों नहीं होती?
विवाद की जड़ः प्रतिमा की पहचान, रखरखाव और राजनीतिक उपयोगः
पूरा मामला तीन मुख्य सवालों पर आ टिकता है
सवालः क्या प्रतिमा वास्तविक चेहरे से मेल नहीं खाती?
सवालः क्या नगर पालिका इसे सम्मानजनक हालत में रखने में विफल रही है?
सवालः क्या राजनीतिक लाभ के लिए प्रतिमा का उपयोग किया जा रहा है?


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