बिलासपुर,02 दिसम्बर 2025। बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक नाबालिग बलात्कार पीडि़ता को 21 सप्ताह का गर्भ समाप्त कराने की परमिशन दे दी है। मामले को लेकर हाईकोर्ट ने कहा- कि ऐसा न करने पर उसकी शारीरिक अखंडता के अधिकार का उल्लंघन होगा, उसके मानसिक आघात में वृद्धि होगी तथा उसके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीडि़ता नाबालिग को 21 हफ्ते के गर्भ को खत्म करने की अनुमति कोर्ट ने दी है। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने कहा— गर्भपात नाबालिग की व्यक्तिगत इच्छा है, इसका सम्मान जरूरी है। सीएमएचओ और विशेषज्ञ डॉक्टरों की जांच रिपोर्ट के बाद कोर्ट ने मेडिकल सुपरविजन में गर्भपात का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा— अनचाहा गर्भ जारी रखना पीडि़ता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होगा। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 के तहत अनुमति दी गई। डॉक्टरों की टीम की मौजूदगी में पीडि़ता का गर्भपात कराया जाएगा। जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता जबरन यौन संबंध बलात्कार की शिकार है। वह गर्भपात कराना चाहती है, क्योंकि वह बलात्कारी के बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती। गर्भपात कराना उसका निजी फैसला है, जिसका न्यायालय को सम्मान करना चाहिए क्योंकि यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक पहलू है। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सुचिता श्रीवास्तव सुप्रा मामले में कहा है। गर्भावस्था जारी रखने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और यह अजन्मे बच्चे के लिए और भी अधिक खतरनाक हो सकता है। उसे गर्भपात की अनुमति दी गई है।
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