- 50 लाख की स्वीकृति कैसे बनी 1 करोड़? निविदा प्रक्रिया पर उठ रहे भारी सवाल
- नेता-अधिकारी-कोचिंग संचालक गठजोड़? युवाओं का नाम ढाल बनाकर जेब भरने का आरोप
- क्या प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग के नाम पर हुआ बड़ा खेल?
- युवाओं के कैरियर पर चोट, डीएमएफ मद की राशि की ‘बंदरबाट’ पर सवाल
- पीएससी में कोरिया से एक भी चयन नहीं फिर एक करोड़ की कोचिंग का औचित्य कहाँ?

-रवि सिंह-
कोरिया,01 दिसंबर 2025 (घटती-घटना)। क्या कोरिया जिले में युवाओं के कैरियर के नाम पर डीएमएफ मद की राशि का दुरुपयोग किया गया? क्या प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ? यह सवाल अब जोर पकड़ रहा है क्योंकि एक करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद कोरिया जिले से पीएससी परीक्षा में एक भी ऐसा अभ्यर्थी चयनित नहीं हुआ, जिसने डीएमएफ मद से संचालित कोचिंग सेंटर में पढ़ाई की हो।
सूत्रों के अनुसार, कोचिंग संचालन पर खर्च राशि लगभग एक करोड़ तक पहुँच गई, लेकिन पूरे साल चली कोचिंग का एक भी प्रत्यक्ष परिणाम सामने नहीं आया, जिससे पूरी परियोजना की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग गया है, कोरिया जिले में डीएमएफ मद से संचालित प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग को लेकर गंभीर आरोप फिर एक बार सुर्खियों में हैं, जिले के युवाओं का कहना है कि उनके भविष्य के नाम पर डीएमएफ राशि की बंदरबाट की गई, और अब एक करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी पीएससी में एक भी चयन नहीं होने से पूरा सिस्टम कटघरे में है, यह वही मामला है जिसकी पहली परतें दैनिक घटती-घटना ने 25 नवम्बर 2025 के विशेष प्रकाशन में खोली थीं, तब भी सवाल था कोचिंग के नाम पर करोड़ों खर्च, पर चयन एक भी नहीं? अब पीएससी परीक्षा परिणाम ने संकेत दे दिया कि वह सवाल केवल आशंका नहीं था बल्कि एक बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा था।
50 लाख की स्वीकृति कैसे बढ़कर एक करोड़ तक पहुँची?
सूत्र बताते हैं कि शुरुआत में कोचिंग के लिए केवल 50 लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे लेकिन बाद में कोचिंग अवधि बढ़ाने के नाम पर अतिरिक्त 50 लाख रुपये और जोड़कर राशि सीधे दोगुनी कर दी गई, यहाँ बड़ा सवाल यह है की क्या यह मांग वास्तव में अभ्यार्थियों की ओर से आई थी या कोचिंग संचालकों ने ‘युवाओं का नाम’ ढाल की तरह इस्तेमाल किया? जब अतिरिक्त राशि स्वीकृत की गई,तब नई निविदा क्यों नहीं निकाली गई? पहले के संचालकों को ही बिना प्रतिस्पर्धा के फिर से क्यों पात्र घोषित किया गया? यह पूरा मामला अब डीएमएफ मद के उपयोग और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न उठाता है।
क्या ‘कोचिंग’ सिर्फ एक दिखावा थी?
क्या अधिकारी और नेता के करीबी ने लाभ उठाया? जांच की मांग उठाने वाले लोगों का आरोप है कि कोचिंग के नाम पर अभ्यर्थियों के कैरियर का इस्तेमाल किया गया,लेकिन वास्तविक लाभ एक अधिकारी और एक नेता के करीबी व्यक्ति को मिला,युवाओं को कोई ठोस परिणाम नहीं मिला, जबकि कुछ लोगों ने इस योजना से आर्थिक लाभ जरूर उठा लिया,डीएमएफ का उद्देश्य खनन-प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए कार्य करना है,लेकिन अगर युवाओं के भविष्य के नाम पर राशि का उपयोग सही ढंग से नहीं हुआ,तो यह जिले के भविष्य और शासन की नीयत दोनों पर सीधा सवाल है।
पीएससी में चयन शून्य—क्या यह पूरे सिस्टम की पोल खोलता है?
एक करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी एक भी चयन नहीं, युवाओं में भारी निराशा,योजना की पारदर्शिता पर सवाल,जिम्मेदारों पर उंगली यह स्पष्ट करता है कि या तो कोचिंग की गुणवत्ता बेहद कमजोर थी या फिर कोचिंग पूरी तरह से औपचारिकता और कागजी कार्रवाई तक सीमित थी, या फिर पूरे संचालन में आर्थिक लाभ मुख्य उद्देश्य था न कि युवाओं का भविष्य।
जिले में उठ रही मांग…पूरी परियोजना की उच्च स्तरीय जांच हो…
सामाजिक संगठनों,अभ्यर्थियों और कई जागरूक लोगों का कहना है कि कोचिंग में व्यय की पूरी ऑडिट हो,निविदा प्रक्रिया की जाँच हो,और यह भी स्पष्ट हो कि क्या कोचिंग संचालकों,अधिकारियों और किसी नेता के करीबी द्वारा डीएमएफ राशि का दुरुपयोग किया गया? जिले में चर्चा यह भी है कि जिनके भविष्य को बनाना था,उनके भविष्य से ही खेल हो गया।
निचोड़…युवाओं के भविष्य पर सवाल, सिस्टम की मंशा पर भी…
एक करोड़ रुपये खर्च…एक भी चयन नहीं…और बढ़ते सवाल…ये सब मिलकर संकेत देते हैं कि यह मामला केवल कोचिंग का नहीं, बल्कि डीएमएफ मद की पारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही का भी गंभीर मुद्दा है।
पहले भी दैनिक घटती-घटना ने किया था खुलासा… अब नई परतें सामने आ रही हैं…
पहले प्रकाशित खबर में बताया गया था कोचिंग में चयन शून्य, व्यय करोड़ों में,गुणवत्ता शून्य, और नेता-अधिकारी-प्रबंधन गठजोड़ की भूमिका पर सवाल,अब पीएससी परिणाम ने उस खबर को पूरी तरह सही साबित कर दिया है। ब जनता पूछ रही है,जिस कोचिंग का नतीजा एक भी नहीं, उसका बजट एक करोड़ क्यों? कौन था इस ‘अतिरिक्त राशि’ का असली लाभार्थी?

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