- कांग्रेस ने दोनों जिलों में पुराने जिलाध्यक्षों पर ही विश्वास जताया,बदलाव की तमाम अटकलें धरी की धरी रह गईं…
- भाजपा जहाँ हर बार नया जिलाध्यक्ष लाती है, कांग्रेस वहीं पुराने को ही दोहराने में भरोसा रखती है…
- संगठन परिवर्तन में कांग्रेस और भाजपा की शैली में ज़मीन-आसमान का फर्क फिर एक बार साफ दिखा…
- भाजपा में जिलाध्यक्ष दोहराए जाने का इतिहास दुर्लभ,कांग्रेस में यह वर्षों पुरानी परंपरा
- भाजपा ‘नया चेहरा नीति’ पर चलती है, जबकि कांग्रेस यथावत मॉडल को ही सुरक्षित मानती है…
- कांग्रेस में जिलाध्यक्ष कार्यकर्ताओं की पसंद से नहीं, बड़े नेताओं के संकेत पर तय….संगठनात्मक लोकतंत्र सवालों में…
- पर्यवेक्षक, रायशुमारी, कार्यकर्ता संपर्क अभियान सब औपचारिकता? कोरिया एमसीबी की नियुक्तियाँ कई प्रश्न खड़े करती हैं…


-रवि सिंह-
कोरिया/एमसीबी,29 नवंबर 2025(घटती-घटना)। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में नए जिलाध्यक्षों की सूची जारी कर दी है, लेकिन नए जिलाध्यक्ष शब्द का अर्थ कोरिया और मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में लागू नहीं होता, क्योंकि यहाँ कांग्रेस ने पुरानों को ही यथावत रखकर वही परंपरा दोहराई है जो पार्टी में वर्षों से चली आती है, दिलचस्प बात यह है कि जिन जिलों में कार्यकर्ताओं से अभिमत लेने,पर्यवेक्षकों को भेजने और जमीनी फीडबैक जुटाने की बड़ी प्रक्रिया चलाई गई—उसका कोरिया-एमसीबी में कोई प्रभाव दिखा ही नहीं,स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट या तो ऊपर तक पहुँची ही नहीं…या पहुँचकर भी किसी ने खोली नहीं। निर्णय वही हुआ जो बड़े नेताओं ने महीनों पहले तय कर रखा था।
बता दे की अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के सभी जिलों के लिए नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति सूची जारी कर दी।विगत महीनों में पार्टी के द्वारा जिलाध्यक्षों के चयन के लिए जो कार्यकर्ता संपर्क अभियान जारी था जिसमें प्रभारी पर्वेक्षक अन्य राज्यों से नियुक्त किए गए थे,पार्टी द्वारा जिनका काम पार्टी कार्यकर्ताओं से उनका अभिमत प्राप्त कर पार्टी को अवगत कराना था, और उसी आधार पर जिलाध्यक्षों का चयन होना था,ऐसी प्रकिया पार्टी द्वारा निर्धारित थी, उस रिपोर्ट के बाद यह सूची जारी हुई है ऐसा कहा जा सकता है,अब पार्टी द्वारा जिन्हें नियुक्त किया गया है यदि नए जिलाध्यक्षों की उक्त सूची का अध्ययन किया जाए तो कोरिया और कोरिया से अलग हुए एमसीबी जिलें में वर्तमान जिलाध्यक्ष ही दोबारा जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं कहा जाए तो वह दोहराए गए हैं, दोनों जिले में वर्तमान ही यथावत होंगे, वैसे नियुक्ति सूची जारी होने के बाद यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस ने अपनी परंपरा बरकरार रखने के लिए कोरिया एमसीबी जिले में वर्तमान को ही यथावत रखा,कांग्रेस में आंतरिक बदलाव क्या आवश्यक नहीं माना जाता,क्या नए लोगों को लेकर पार्टी तैयार नहीं होना चाहती किसी नियुक्ति मामले में, यह भी सवाल खड़ा होता है,जारी सूची तो यही बताती है कि परंपरा का निर्वहन किया गया और वर्षों पुरानी परंपरा कोरिया एमसीबी जिले में कायम रही,वैसे कांग्रेस के नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति सूची जारी होने के बाद अब भाजपा की भी और भाजपा में पार्टी संगठन में नियुक्तियों की भी बात हो रही है और यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या भाजपा हर बार अपने लिए नए लोगों को ,अलग अलग लोगों को पद या नियुक्ति प्रदान करने में विश्वास रखती है,वैसे भाजपा में संगठन के विषय में यह देखने को मिलता है कि पार्टी में जिलाध्यक्ष यथावत नहीं रखे जाते बदलाव को पार्टी महत्व देती है और हर बार नए लोगों को मौका देने की पार्टी में परंपरा है,भाजपा में एकाध बार कभी यथावत की स्थिति आई होगी अन्यथा भाजपा संगठन में हर बार नए लोगों को ही महत्व देती है. कोरिया एमसीबी के लिए कांग्रेस पार्टी ने जिन्हें जिलाध्यक्ष नियुक्त किया है यदि कार्यकर्ताओं की माने तो दोनों की जगह अलग अलग लोगों की सहमति कार्यकर्ताओं ने प्रदान की थी वहीं कार्यकर्ताओं का कहना यह भी है कि वह यह भी जानते थे कि इन जिलों में यथावत की संभावना ज्यादा है जो देखने को भी मिला,कार्यकर्ताओं के अनुसार दोनों जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में बड़े नेताओं ने निर्णय लिया और पर्यवेक्षकों की रिर्पोट या तो बड़े नेताओं के अनुसार ही ऊपर भेजी गई या उसे नजरअंदाज किया गया वरना दोनों जिलों में पुनरावृत्ति की स्थिति संभव नहीं होती।
राजनीतिक विश्लेषण
कांग्रेस द्वारा कोरिया और एमसीबी दोनों जिलों में जिलाध्यक्षों को यथावत रखने का फैसला उस लंबे समय से चली आ रही परंपरा पर फिर मुहर लगा गया है जिसमें संगठनात्मक लोकतंत्र की जगह शीर्ष नेतृत्व की पसंद अधिक प्रभावी रहती है। भाजपा जहाँ हर बार जिलाध्यक्ष बदलकर नया चेहरा, नया प्रबंधन का संदेश देती है, वहीं कांग्रेस वर्षों से एक ही मॉडल पर अडिग दिखाई देती है, जिसमें दोहराव को स्थिरता समझा जाता है, पर्यवेक्षकों की तैनाती, कार्यकर्ताओं से अभिमत लेने की प्रक्रिया और रायशुमारी की कवायद — यह सब कोरिया-एमसीबी में केवल औपचारिकता साबित हुई। स्थानीय कार्यकर्ताओं का दावा है कि निर्णय पहले से तय था और नया चयन सिर्फ प्रतीक्षारत औपचारिक आदेश भर था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिलाध्यक्षों के यथावत रहने के साथ ही 2028 के विधानसभा प्रत्याशियों का संकेत भी लगभग साफ हो गया है। दोनों जिलों में पुराने दावेदारों की वापसी की चर्चा तेज है, खासकर उस समय जब दो पूर्व विधायक क्षेत्र से महीनों से अनुपस्थित हैं और टिकट की राजनीति में बैक-डोर एंट्री की थ्योरी ने नया जोर पकड़ लिया है, कांग्रेस इस निर्णय से क्या मजबूत हुई या और असंतोष पैदा हुआ — इसका जवाब आने वाले महीनों में मैदान बताएगा।
प्रोपेगेंडा के बीच यथावत का विश्वास
कोरिया जिले की राजनीति में कुछ अलग हो जाए आश्चर्यजनक हो जाए यह तो मुमकिन नहीं, यहां की राजनीति में सभी को पता है कि परिणाम क्या होगा इसीलिए विश्वास भी उनका वही रहता है और इस विश्वास पर मोहर लगती है, कुछ ऐसा ही कोरिया जिले के कांग्रेस जिलाध्यक्ष को यथावत होने पर देखने को मिला, जिलाध्यक्ष बदलेंगे ऐसा प्रोपेगेंडा नजर आया पर यथावत का विश्वास लोगों को पहले से ही था, जिस पर मोहर लगी, मोहर भी उस व्यक्ति पर लगी जिनके कार्यकाल में ना तो विधायक बचा ना जिला पंचायत और ना जनपद,न नगरीय निकाय,आखिर किस कार्यप्रणाली,कार्यकुशलता पर यथावत का पुरस्कार मिला यह समझ से परे है।
कांग्रेस की परंपरा बनाम भाजपा की परंपरा
कांग्रेस जहाँ जिलाध्यक्षों को दोहराने की परंपरा बनाए रखती है, वहीं भाजपा 20 वर्षों में शायद ही कभी अपने जिलाध्यक्ष को दोहराती है, भाजपा संगठन संरचना में हर बार नया चेहरा एक स्पष्ट नीति की तरह दिखता है, जबकि कांग्रेस में यथावत ही सबसे सुरक्षित का चलन वर्षों से चलता आ रहा है, कोरिया-एमसीबी की ताज़ा नियुक्तियाँ इसी परंपरा पर फिर मोहर लगा गईं।
कार्यकर्ताओं का दावा
हमने नए नाम सुझाए थे, ‘ऊपर’ ने नहीं माना- कांग्रेस के कई सक्रिय कार्यकर्ताओं का कहना है हमने दोनों जिलों में अलग-अलग नामों पर सहमति दी थी। लेकिन हमें पहले से पता था कि बड़े नेताओं ने यथावत रखने का मन बना लिया है, पर्यवेक्षक सिर्फ औपचारिकता के लिए आए थे, जिनके कार्यकाल में न विधायक बचा, न जिला पंचायत, न जनपद, न नगरीय निकाय—उन्हें फिर जिलाध्यक्ष बना देनाज् यह पार्टी के ‘एंटी-परफॉर्मेंस रिवॉर्ड’ जैसा लगता है।
जिलाध्यक्ष यथावत-2028 के टिकट भी ‘लगभग तय’?
कांग्रेस की इस नियुक्ति के तुरंत बाद पार्टी दफ्तरों और सोशल मीडिया पर एक बड़ी चर्चा शुरू हो गई जिलाध्यक्ष नहीं बदले…इसका मतलब 2028 के विधानसभा प्रत्याशी भी तय हो गए, बैकुंठपुर पूर्व विधायक, जिन्होंने पिछले चुनाव में करारी हार झेली अब फिर से प्रत्याशी बनने की तैयारी में मानी जा रही हैं, जिलाध्यक्ष को यथावत रखकर “टिकट की राह साफ करने का संदेश समझा जा रहा है, मनेंद्रगढ़ नगर निगम चुनाव में हार झेल चुके पूर्व विधायक फिर दावेदार माने जा रहे हैं, चर्चा यह भी है कि जिलाध्यक्ष को इसलिए यथावत रखा गया ताकि वर्तमान जिलाध्यक्ष खुद दावेदारी न कर सकें और पूर्व विधायक की दावेदारी सुरक्षित रहे।
प्रोपेगेंडा बनाम विश्वास-कोरिया में जिलाध्यक्ष बदलेगा,यह कोई मान ही नहीं रहा था…
कोरिया जिले में लंबे समय से यह धारणा रही है कि यहाँ राजनीति में कुछ नया हो ही नहीं सकता, भले ही जिलाध्यक्ष बदलने का प्रोपेगेंडा हवा में घूमाज् स्थानीय राजनैतिक हलकों में अधिकांश लोग पहले से ही जानते थे कि परिणाम वही होगा जो हुआ, और हुआ भी वही जिस कार्यकाल में कांग्रेस ने कोरिया-एमसीबी में तीनों विधानसभा सीटें, जिला पंचायत,जनपद और नगरीय निकाय तक गँवा दिए उसी कार्यकाल को दोबारा मान्यता दे दी गई।
डॉ. विनय जायसवाल—क्या बैक डोर एंट्री की तैयारी?
मनेंद्रगढ़ के पूर्व विधायक डॉ. विनय जायसवाल पिछले कई महीनों से राजनीतिक गतिविधियों से गायब हैं, नगर निगम चुनाव में बड़ी हार के बाद उन्होंने क्षेत्र में आना लगभग बंद कर दिया है, सूत्रों का दावा डॉ. जायसवाल अब बैक डोर एंट्री के रास्ते तलाश रहे हैं, वे कांग्रेस के एक बड़े नेता की लगातार सेवा-संगत में लगे हैं, जिन्हें इस जिलाध्यक्ष नियुक्ति का मास्टरमाइंड भी माना जाता है, यदि यह सही है, तो 2028 के टिकट का पहला संकेत कांग्रेस ने आज ही दे दिया है।
नेता बनना है लेकिन क्षेत्र में नहीं रहना…दोनों जिलों के दावेदारों पर सवाल
कोरिया और एमसीबी के दो पूर्व विधायक हार के बाद से लगातार क्षेत्र से गायब हैं, लोगों के सुख-दुःख में दिखना तो दूर,गाँव-गाँव,पंचायत-वार किसी की नजर में नहीं आते, ऐसे में सवाल उठ रहा है क्या कांग्रेस अब भी उन दावेदारों पर दांव लगाएगी जो जमीन से पूरी तरह कटा हुआ जीवन जी रहे हैं?
भरतपुर-सोनहत: एकमात्र अपवाद
इन दो जिलों में एकमात्र सक्रिय पूर्व विधायक भरतपुर-सोनहत के हैं, बाकी दो सीटों पर पूर्व विधायक चुनाव हारने के बाद या तो मिस्टर इंडिया बने हुए हैंज् या बड़े नेताओं के इर्द-गिर्द घूमते हुए टिकट की लाइन में लगे हैं।
जिलाध्यक्षःटिकट संकेत
कोरिया और एमसीबी में जिलाध्यक्ष यथावत होने का संदेश 2028 के टिकटों को लगभग स्पष्ट कर देता है दोनों जिलों में वही पुराने दावेदार फिर लाइन में माने जा रहे हैं।
बैक डोर एंट्री थ्योरी मजबूत
दो पूर्व विधायक क्षेत्र छोड़ चुके हैं लेकिन बड़े नेताओं की परिक्रमा कर रहे हैं,यह संकेत है कि पासा ऊपर से फेंका जाएगा, जमीन से नहीं।
कांग्रेस में ‘हार के बाद भी दावेदारी कायम’ मॉडल
2023 में तीनों सीटें हारने के बाद भी उम्मीदवारी उन्हीं चेहरों की ओर लौटती दिख रही है, यह कार्यकर्ताओं में असंतोष का बड़ा कारण बन सकता है।
भाजपा की आक्रामक तैयारी 2028 के लिए फायदेमंद
भाजपा जिलाध्यक्ष/संगठन में परिवर्तन लाकर 2028 के लिए नया चेहरा नया प्रबंधन मोड में प्रवेश कर चुकी है,कांग्रेस के यथावत निर्णय भाजपा को मनोबल बढ़ाने वाला वातावरण देता है।
ग्राउंड पर दो सीटों में कांग्रेस के दावेदार गायब
मनेंद्रगढ़ और बैकुंठपुर में पूर्व विधायक-पूर्व प्रत्याशी,हार के बाद से क्षेत्र में मौजूद नहीं हैं,जमीन खाली है,इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है।
2028 में कांग्रेस को विरोध नहीं,असंतोष से खतरा
कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती भाजपा नहीं होगी बल्कि आंतरिक असंतोष, कार्यकर्ता दूरी,और थोपे हुए निर्णय,यह तीनों मिलकर 2028 में पार्टी के लिए सबसे बड़ा संकट बन सकते हैं।
पत्रकार के विचार…
कांग्रेस ने कोरिया-एमसीबी में परिवर्तन नहीं, परंपरा चुनी, पर्यवेक्षकों का अभियान औपचारिकता साबित हुआ, 2028 के प्रत्याशी लगभग स्पष्ट हो चुके हैं, जिले के बड़े नेता अब भी संगठन की रीढ़ नहीं बने—निर्णय ऊपर से थोपे गए, भाजपा का नया चेहरा मॉडल और कांग्रेस का यथावत मॉडल—दोनों की तुलना तेज़ी से सामने आ गई।
भाजपा हर बार नया चेहरा,कांग्रेस में यथावत मॉडल—क्या बदलाव से डरती है पार्टी?
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष चयन में फिर परंपरा मजबूत,कोरिया और एमसीबी में एक इंच भी बदलाव नहीं, कार्यकर्ताओं की राय से नहीं,बड़े नेताओं की मर्जी से तय होते जिलाध्यक्ष—संगठनात्मक लोकतंत्र सवालों में,भूमिगत असंतोष गहरा,संपर्क अभियान और रायशुमारी पूरी तरह रस्म-अदायगी साबित, 2028 का संकेत! जिलाध्यक्ष यथावत—अब विधानसभा टिकट भी तय? पूर्व विधायकों की संभावनाएँ मजबूत, क्षेत्र से गायब दावेदारों की बैक-डोर लाइन चर्चा में।
कांग्रेस vs भाजपा — जिलाध्यक्ष परंपरा तुलना चार्ट
| विषय | कांग्रेस (INC) | भाजपा (BJP) |
| जिलाध्यक्ष बदलने की परंपरा | बहुत कम बदलाव, यथावत मॉडल | लगभग हर बार परिवर्तन, नया चेहरा मॉडल |
| कार्यकर्ता राय का महत्व | औपचारिक प्रक्रम, अंतिम निर्णय बड़े नेताओं का | संगठनात्मक सर्वसम्मति, जिला-स्तर की रिपोर्ट निर्णायक |
| पर्यवेक्षक की रिपोर्ट | अक्सर अनसुनी/नजरअंदाज | रिपोर्ट मुख्य आधार |
| दोहरे कार्यकाल की प्रवृत्ति | सामान्य, कई जगह लगातार 2–3 टर्म | दुर्लभ, 1 टर्म के बाद बदलाव |
| टिकट राजनीति पर प्रभाव | जिलाध्यक्ष = संभावित प्रत्याशी का संकेत तय करता है | जिलाध्यक्ष बदलना = नए दावेदारों के लिए रास्ता |
| 2023–25 का ट्रेंड (कोरिया–MCB) | दोनों जिलों में यथावत | 2026–27 में जिले बदलने की तैयारी की चर्चा |
| आंतरिक लोकतंत्र की छवि | कमजोर — निर्णय शीर्ष नेतृत्व | मजबूत — संगठनात्मक वोटिंग/पर्यवेक्षण |
| राजनीतिक संदेश | “स्थिरता या पसंदीदा व्यक्ति को सुरक्षा” | “परिवर्तन, प्रयोग और अवसर” |
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