
नेता–अधिकारी गठजोड़ पर गंभीर आरोप, १ करोड़ की राशि डकारी गई — सूत्र
-रवि सिंह-
कोरिया,२४ नवंबर 2025
(घटती-घटना)।
जिले के डीएमएफ मद में प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग के नाम पर करोड़ों की भारी बंदरबांट का सनसनीख़ेज़ आरोप सामने आया है। सबसे बड़ा सवाल यह जब पीएससी अंतिम चयन सूची में कोरिया जिले के कोचिंग सेंटरों से एक भी अभ्यर्थी चयनित नहीं हुआ, तो फिर करोड़ों खर्च कहां गए? किसकी जेब में पहुंचे? और किस ‘कारनामे’ को उपलब्धि बताकर जनता को गुमराह किया जा रहा है? सरकारी दावे बनाम कड़वी हकीकत आदिवासी विकास विभाग द्वारा संचालित एचीवर्स आईसीएस और मंत्रा ट्यूटोरियल नामक कोचिंग संस्थानों पर डीएमएफ राशि से 1 करोड़ से अधिक खर्च करने का आरोप है। सरकारी प्रेस नोट में दावा किया गया कि विगत दो वर्षों में 30 विद्यार्थी सफल हुए, कलेक्टर से सौजन्य मुलाकात की लेकिन वास्तविक पीएससी चयन सूची में कोरिया जिले की इस सरकारी कोचिंग से एक भी नाम नहीं, जबकि डीएमएफ मद की रकम हर साल बढ़ती गई। यही तस्वीर अब सबसे बड़ा सवाल बन चुकी है—जो फोटो ‘सफलता’ का प्रमाण बताई जा रही थी, क्या वह सिर्फ पीआर स्टंट था?- सूत्रों के अनुसार आरोप एक नोडल अधिकारी और एक प्रभावशाली नेता के बेहद करीबी व्यक्ति पर आरोप है कि उन्होंने कोचिंग के नाम पर बड़ी कटौती की, अभ्यर्थियों को पढ़ाने के नाम पर कम गुणवत्ता वाली क्लासें, सफलता के नाम पर बिना साक्ष्य के आंकड़े,और परिणाम—शून्य चयन!
क्या 30 ‘सफल उम्मीदवार’ वास्तव में इसी कोचिंग के छात्र थे?
सूत्रों का दावा है…अधिकतर चयनित बच्चे पहले से तैयारी कर रहे थे,किसी का कोचिंग से लेना-देना ही नहीं थाज् सिर्फ फोटो खिंचवाकर उपलब्धि बताया गया। अगर यह सच है तो डीएमएफ मद का दुरुपयोग सीधा-सीधा धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है,डीएमएफ मद—किसके लिए बना था, किसके लिए खर्च हो रहा है? योजना गरीब,आदिवासी,दूरस्थ ग्रामीण युवाओं के लिए थी,परन्तु आरोप है कि डीएमएफ को निजी दुकान बना दिया गया,और युवाओं के भविष्य के नाम पर खेला गया पैसों का गंदा खेल।
अंतिम सवाल,फोटो में दिख रहे ‘सफल अभ्यर्थियों’ की लिस्ट कहाँ है?
कलेक्टर कोरिया से जिन्हें सफल अभ्यर्थी बताकर मिलाया गया वह कौन थे यह बड़ा सवाल है,तस्वीर जो सफलता की कहानी बताने समाचारों में छपवाई गई उनमें से कितने ऐसे थे जो सफल हुए यह भी जांच का विषय है,सफलता पाने वालों में से शायद ही कोई शामिल हुआ केवल वह शामिल हुए जो बुलाने से आए जिनमें से कई का परीक्षाओं से कोई लेना देना ही नहीं है,कुल मिलाकर कलेक्टर को भी भ्रम में रखकर क्या सफलता दर्शाई गई।
उनके रोल नंबर,परीक्षा, रिजल्ट,कोचिंग उपस्थिति का क्या रिकॉर्ड है?
जिन लोगों को सफल बताकर कलेक्टर के साथ फोटो खिंचाने खड़ा किया गया उनमें से कौन किस परीक्षा में चयनित हुआ कौन किस पद पर चयनित हुआ उनके रोल नंबर क्या हैं और उनका कोचिंग में कब कब उपस्थिति पंजी में उपस्थिति दर्ज हुआ यह जानकारी प्रदान की जानी चाहिए।
क्या विभाग सच बोलने को तैयार है? और अगर पीएससी सूची में एक भी चयन नहीं—तो करोड़ों किसने और कैसे गटक लिए?
अब सवाल यह है कि आखिर क्या अब विभाग सच बोलने के लिए तैयार है,जब पीएससी परीक्षा में कोई चयनित नहीं हुआ है तो क्यों और किसने कैसे करोड़ों रुपए गटक लिए,अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी जब कोई चयनित नहीं हुआ तो एक ही साल में डीएमएफ से दो दो बार राशि क्यों प्रदान की गई,सवाल कई हैं और यह तय है कि भ्रष्टाचार हुआ बंदरबाट हुई केवल जिले के युवाओं के नाम पर।
कलेक्टर कोचिंग की ‘सौजन्य मुलाकात’ पर भी उठ रहे सवाल जो तस्वीर “सफलता” के नाम पर जारी की गई थी,उसी तस्वीर ने अब पूरा झूठ खोल दिया है…
तस्वीर सफलता नहीं,बल्कि करोड़ों की अनियमितताओं का सबूत बन चुकी है,यदि कोचिंग ने इतना शानदार प्रदर्शन किया था, तो पीएससी अंतिम चयन सूची में एक भी नाम क्यों नहीं? क्या विभाग ने कभी ऑडिट,बैकअप रिकॉर्ड, उपस्थिति रजिस्टर,रीयल परिणाम सार्वजनिक किए? जवाब देना ही होगा,यह जनता का पैसा है,डीएमएफ मद निजी फंड नहीं है,यह जनता की खनिज संपत्ति से आने वाला जनहित का पैसा है,और यदि उसके नाम पर फर्जी सफलता,फर्जी कोचिंग,और फर्जी उपलब्धियाँ दिखाकर करोड़ों हड़प लिए गए तो यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं,यह जिले के युवाओं के भविष्य की हत्या है।
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