- क्या यह चुप्पी मुफ्त में मिली है? या फिर इसकी कीमत लाखों में तय हुई?
- मुआवजा लेने वालों का कब्जा जारी—और तहसीलदार की चुप्पी अब सवालों से ज्यादा ‘सौदे’ की तरह दिखने लगी है…
- नेशनल हाईवे की जमीन पर मुआवजा खाकर दोबारा कब्जा…
- तहसीलदार की चुप्पी नहीं—यह “कीमत तय होने के बाद की खामोशी” लगती है…
- सड़क निर्माण में ज़मीन अधिग्रहण को लेकर बड़ा खुलासा: तीन-तीन विभागीय पत्रों में सामने आया अतिक्रमण का पूरा मामला
- तहसील पटना, कोरिया जिले में सड़क निर्माण के नाम पर निजी कब्जे,गलत जानकारी और आदेशों की लापरवाही का नया खुलासा
- पूर्व तहसीलदार ने निर्माण रोक दिया था,लेकिन जैसे ही नये तहसीलदार आये निर्माण तेज़ कर दिया गया



-रवि सिंह-
कोरिया/पटना,23 नवंबर 2025 (घटती-घटना)। नेशनल हाईवे की जमीन पर अवैध कब्जे का मामला अब सिर्फ ‘अतिक्रमण’ नहीं रह गया है यह राजस्व विभाग और तहसील स्तर की कथित डीलबाज़ी का सबसे बड़ा उदाहरण बनकर उभर रहा है। दैनिक घटती-घटना की जांच में सामने आया है कि जो लोग जमीन अधिग्रहण में सरकारी मुआवजा ले चुके हैं,वे अब उसी जमीन पर नया निर्माण कर रहे हैं, पूर्व तहसीलदार ने इस अवैध निर्माण पर स्टे लगाया था, लेकिन वर्तमान तहसीलदार ने महीनों तक उस स्टे का निराकरण तक नहीं किया, और इसी चुप्पी के बीच निर्माण तेजी से जारी रहा, सूत्रों का दावा है कि यह चुप्पी ‘चुप्पी’ नहीं, बल्कि भारी भरकम रकम देकर खरीदी गई चुप्पी है।
बता दे की राष्ट्रीय राजमार्ग की जमीन पर कब्जा और विभागों की खामोशी, 2018 में जिस जमीन का अधिग्रहण पूरा हो चुका था,जिस पर 3ए-3डी नोटिफिकेशन लागू था, जिसका अवार्ड पारित हो चुका था, उसी जमीन पर बाद में 600 वर्गमीटर से ज्यादा अवैध निर्माण कैसे खड़ा हो गया? और सबसे बड़ा सवाल है किस अधिकारी की चुप्पी ने इस अतिक्रमण को जन्म दिया? दैनिक घटती-घटना की जांच में सामने आए दस्तावेज़ बताते हैं कि यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि सिस्टम की संगठित चुप्पी है।
तहसील पटना— भ्रष्टाचार,दबाव और ‘रिश्तेदारी शासन’ का नया केंद्र
वर्तमान तहसीलदार पिछले कुछ महीनों से लगातार सुर्खियों में हैं,और सुर्खियों का कारण कोई उपलब्धि नहीं, बल्कि: मंत्री के रिश्तेदार को जमीन दिलाने का मामला,अवैध प्लॉटिंग में संरक्षण,शिकायत पर कार्रवाई न करके उल्टा फरियादी को परेशान करना और अब नेशनल हाईवे की जमीन पर हो रहा अवैध निर्माण दफ्तर के बाहर इंतज़ार कर रहे लोग बताते हैं, यहाँ बिना चढ़ावा दिए कोई काम नहीं होता, काम करने के लिए पैसा जरूरी है, शिकायत करने पर काम अटक जाता है, यह सिर्फ आरोप नहीं यह पटना तहसील में पिछले छह महीनों की जमीनी हकीकत है।
सबसे बड़ा सवाल:स्टे लगाने के बाद भी निर्माण कैसे जारी रहा?
पूर्व तहसीलदार ने अवैध निर्माण रोकने का आदेश जारी किया,जमीन को एनएच की संपत्ति’ घोषित किया,और अतिक्रमण हटाने प्रक्रिया शुरू की लेकिन जैसे ही तहसीलदार बदले निर्माण बिना किसी रोक-टोक के आगे बढ़ गया,क्या नई पोस्टिंग के साथ नए रेट तय हुए थे? क्योंकि न तो कोई नोटिस जारी हुआ,न कार्रवाई,न स्टे का पालन,न शिकायत का निवारण,एनएच विभाग लिखित में अवरोध बता चुका है,पीडब्ल्यू ने चेतावनी दी है,लेकिन तहसीलदार का कार्यालय मौन धारण किए बैठा है!
क्या राजनीतिक संरक्षण इस ‘मौन स्वीकृति’ की असली वजह?
स्थानीय चर्चाओं में खुलकर कहा जा रहा है कि वर्तमान तहसीलदार विधायक के बेहद करीबी हैं,और उन्हें मंत्री का रिश्तेदार बताया जाता है, इसलिए उन पर कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता, और शायद इसी प्रोटेक्शन शील्ड के कारण ही उनके खिलाफ शिकायतें कूड़े में डाल दी जाती हैं।
जनता का गुस्सा—”तहसीलदार हटाओ” की मांग तेज
पटना तहसील के बाहर,बाजारों में,और सरकारी गलियारों में एक ही चर्चा है इन्हें हटाओ—वरना पूरा तहसील ‘रकम-शासन’ में बदल जाएगा! लोग पूछ रहे हैं जो सरकारी जमीन एनएच के नाम दर्ज है, जिसका मुआवजा बांटा जा चुका है,जिस पर निर्माण के खिलाफ स्टे है, उस जमीन पर तहसीलदार की नाक के नीचे इमारत कैसे खड़ी हो रही है? क्या यह सिर्फ अनदेखी है? या फिर “मूल्य तय कर चुप्पी बेचने” का खेल?
यह मामला अब बड़े स्तर की कार्रवाई की मांग करता है
दैनिक घटती-घटना मांग करता है कि: पूरे प्रकरण की राजस्व मंडल स्तर पर जांच हो, पूर्व तहसीलदार द्वारा लगाए गए स्टे को दबाने वालों पर एफआईआर हो, एनएच की जमीन पर कब्जा करने वाले व उनके संरक्षकों की पहचान उजागर हो, वर्तमान तहसीलदार को तत्काल हटाकर जांच के दायरे में लाया जाए
तीन विभाग,तीन रिपोर्ट,तीन सच—और हर सच एक-दूसरे से उलटा!
तहसील का दावा-सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा, 3834/2 और 3825/2 पर पक्का निर्माण,सड़क निर्माण रुका हुआ,कार्रवाई की जरूरत। लोक निर्माण विभाग का दावा अधिग्रहण पूरा—3डीलागू—अवार्ड पारित—जमीन सरकारी! तो फिर निर्माण कैसे? राष्ट्रीय राजमार्ग विभाग की रिपोर्टः सड़क अवरुद्ध है,अतिक्रमण हटाओ। यानी विभाग भी मान चुका कि कब्जा है। तो सवाल सीधा है यदि तीनों विभाग मान रहे हैं कि जमीन सरकारी है,तो अतिक्रमण रोकने का काम किसने छोड़ा? और किसके इशारे पर छोड़ा?
2018 में भूमि सरकारी हो गई पर उसके बाद निर्माण होता रहा
ये सिर्फ लापरवाही नहीं,संरक्षण है,किसी गांव का आम आदमी भी जानता है कि 3डी नोटिफिकेशन के बाद जमीन राज्य की संपत्ति हो जाती है,एक कील भी नहीं ठोकी जा सकती,घर तो दूर,600 वर्गमीटर का निर्माण कैसे हो गया? क्या यह संभव है कि पटवारी को पता न चला हो? तहसीलदार को शिकायत न मिली हो? पीडब्ल्यूडी को निर्माण न दिखा हो? एनएचविभाग को सड़क रुकने का पता न चला हो? यह पूरा विभाग–स्तरीय मौन किसी मिलीभगत की बू देता है।
अंतिम सवाल:कौन है यह रहस्यमय “कब्जाधारी”? जिसके सामने विभाग भी खामोश हो गए?
कागजों में उसकी पहचान साफ हैज् लेकिन रिपोर्टों में उसका नाम जाने-अनजाने गायब रखा गया है, क्यों? क्या वह प्रभावशाली है? क्या उसके पीछे कोई संगठन/नेता/अधिकारी है? क्या इसलिए अधिकारियों ने सालों तक देखने का नाटक किया? इस खबर का अगला हिस्सा इसी पर केंद्रित होगा कौन है इस सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाला? दैनिक घटती-घटना इस मामले को जड़ तक खोदकर, नाम के साथ, दस्तावेज़ों के साथ आपके सामने अगले अंक में लाएगा।
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