नई दिल्ली,23 नवम्बर 2025। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज सिंध की जमीन भारत का हिस्सा भले न हो, लेकिन सभ्यता के हिसाब से सिंध हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। और जहां तक जमीन की बात है। कब बॉर्डर बदल जाए कौन जानता है, कल सिंध फिर से भारत में वापस आ जाए। राजनाथ सिंह ने ये बातें रविवार को दिल्ली में सिंधी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने लाल कृष्ण आडवाणी का भी जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने (आडवाणी) अपनी एक किताब में लिखा था कि सिंधी हिंदू, खासकर उनकी पीढ़ी के लोग अभी भी सिंध को भारत से अलग नहीं मानते हैं। दरअसल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद सिंध प्रांत पाकिस्तान में चला गया। यह पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा प्रांत है। जिसकी राजधानी कराची है। प्रांत में उर्दू, सिंधी और अंग्रेजी बोली जाती है। 1936 तक गुजरात और महाराष्ट्र के साथ सिंध भी बॉम्बे प्रोविंस का हिस्सा हुआ करता था।
इसे अलग प्रोविंस बनवाने के लिए सिंध के मुस्लिमों और हिंदुओं ने मिलकर आंदोलन किया था। सिंध में रहने वाले लोगों का कहना था कि मराठी और गुजरातियों के दबदबे के चलते उनके हकों और परंपराओं को दरकिनार किया जा रहा है। 1913 में हरचंद्राई नाम के एक हिंदू ने ही सिंध के लिए एक अलग कांग्रेस असेंबली की मांग की थी। 1936 में सिंध के अलग प्रांत बनते ही वहां की राजनीतिक आबोहवा बदलने लगी। 1938 में इसी जमीं से पहली बार अलग पाकिस्तान की मांग उठी। सिंध की राजधानी कराची में हुए मुस्लिम लीग के सालाना सेशन में मुहम्मद अली जिन्ना ने पहली बार आधिकारिक तौर पर मुस्लिमों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग की थी। 1942 में सिंध की विधानसभा ने पाकिस्तान की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया। इस वक्त सिंध के लोगों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि बंटवारा उन्हें बर्बादी की तरफ धकेलेगा। प्रस्ताव के महज 5 साल बाद 1947 में भारत 2 टुकड़ों में बंट गया। बाकी पाकिस्तान की तरह यहां से भी हिंदुओं को अपना घर छोड़कर भारत की तरफ कूच करना पड़ा।
20वीं सदी के शुरुआती दौर तक हिंदुओं की भूमिका अहम थी
20वीं सदी के शुरुआती दौर तक सिंध की इकोनॉमी और उसकी शासन व्यवस्था में हिंदुओं की भूमिका अहम थी। पाकिस्तानी रिसर्चर और लेखक ताहिर मेहदी के मुताबिक बंटवारे से पहले सिंध में हिंदू आबादी मिडिल क्लास और अपर क्लास के दायरे में आती थी। ये लोग सिंध के शहरी इलाकों कराची और हैदराबाद में रहते थे। ये हिंदू न सिर्फ स्किल्ड थे, बल्कि इन्हें व्यापार की गहरी समझ भी थी। बंटवारे के वक्त 8 लाख हिंदुओं को सिंध छोड़ना पड़ा था। इससे सिंध में कुछ महीनों के भीतर ही मिडिल क्लास तबका पूरी तरह गायब हो गया। पीछे सिर्फ दलित हिंदू बचे। इससे वहां की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा। भारत से पलायन कर सिंध में जो लोग आए उनमें वो स्किल नहीं थीं। पाकिस्तान के अखबार डॉन में ताहिर लिखते हैं कि भारत का सिंधी समुदाय आज भी खुशहाल है, उनके बड़े बिजनेस हैं। इसके ठीक उलट पाकिस्तान के सिंधी गरीब हैं।
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