लखनऊ, 23 नवम्बर 2025। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत ने कहा कि आक्रमण के दिन चले गये, हम राम मंदिर पर झण्डा फहराने वाले हैं। अपने आप को जानो। हम देश के नाते क्या हैं उसको समझें। भारत विश्व गुरू था। अनेक राज्यों से मंडित था। चक्रवर्ती सम्राट होते थे। दुनिया का संबल भारत था। संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत रविवार को लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में श्रीकृष्ण जिओ गीता परिवार की ओर से आयोजित दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर डॉ भागवत ने कहा कि हजार साल तक आक्रामकों के पैरें तले भारत रौंदा गया। पारतंत्र में जीना पड़ा। धर्मस्थलों की हानि हुई। जबरन मतांतरण होने लगा,तब भी भारत था। अब आक्रमण के दिन चले गये। अब हम राम मंदिर पर झण्डा फहराने वाले हैं। डॉ. भागवत ने कहा कि? भारत में युगों युगों के जीवन के अनुभव से जो ज्ञान स्थिर हुुआ है, उसका सारांश हैं गीता। गीता को जीना है। गीता पठन का क्रम बनाना चाहिए। उन्होंने आह्वान किया कि रोज दो श्लोक पढ़ें और उस पर मनन करें। सार को अपने जीवन में लागू करें। जीवन की एक-एक कमी सुधारेंगे तो वर्षभर में हमारा जीवन गीतामय बनने की दिशा में अग्रसर होगा। उन्होंने कहा कि गीता पढ़नी चाहिए और समझनी चाहिए। हर बार आपको गीता में नई बात मिलती है। उसे सदा सर्वदा हर परिस्थिति के उपाय गीता में मिलते हैं। सरसंघचालक ने कहा कि आज सारी दुनिया जीवन के रणांगन में भयग्रस्त व मोहग्रस्त होकर रास्ता सूझने वाली अवस्था में है। जीवन में नीति नहीं, शांति नहीं, जीवन में संतोष नहीं,इसलिए जीवन में विश्राम नहीं। यह स्थिति है। सही रास्ता चाहिए। दुनिया को सही रास्ता भारत से मिलेगा। क्योंकि भारत की जीवन परम्परा ऐसी है। उसके प्रभाव के दिनों में उसने सारी दुनिया को सुख शांतिमय दुनिया बना दिया था। डा. भागवत ने कहा कि अन्याय असत्य के सामने जीने के बजाय क्षणभर जीना भी असंख्य कीर्ति प्रदान करता है। चन्द्रशेखर जैसे क्रान्तिकारियों के जीवन से हम युगों युगों तक प्रेरणा लेते रहेंगे। सफलता असफलता मायने नहीं रखती। मनुष्य के विचार उत्तम विचार चाहिए। अधिष्ठान ठीक चाहिए, कार्यकर्ता कुशल,ठीक कार्य पद्धति चाहिए। इन सबके साथ भाग्य की भी एक बात है। उसकी चिंता नहीं करना। अपना पुरूषार्थ पक्का करना। पुरूषार्थ से भाग्य बदलता है। यश अपयश की चिंता नहीं करना। लड़ना है तो दुश्मनी की खुन्न्नस से नहीं,धर्म के लिए लड़ना। डॉ भागवत ने कहा कि छोटा कार्य जो निष्काम से किया गया हो वह धर्म है। धर्म यानि समाज की धारणा करने वाला धर्म। सबको जिलाने वाला धर्म। सबके कल्याण के लिए व्यक्तिगत हित की बलि देना पड़े तो भी पीछे नहीं रहना। इसलिए यश अपयश की चिंता न करते हुए हमें धर्म रक्षा के लिए लड़ना है। हम दुनिया को त्याग व सेवा का संदेश देंगे। इसलिए भक्ति पूर्वक कर्म करो। यही गीता का संदेश है। गीता केवल साधु संन्यासियों के लिए नहींः स्वामी ज्ञानानन्द कार्यक्रम में गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने सभी को जिओ गीता से जुड़ने का आहवान करते हुए कहा कि दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव के माध्यम से समाज का जागरण किया जा रहा है।उन्होंने कहा कि गीता केवल साधु संन्यासियों के लिए नहीं अपितु जन—जन के लिए है। जल्द ही बैन लिपि गीता के माध्यम से मूकबधिर समाज को उपलब्ध कराई जायेगी।
कर्मयोग के माध्यम से धर्म की शिक्षा देती है गीताः स्वामी परमात्मानन्द स्वामी परमात्मानन्द ने कहा कि जब भारतीयों के ह्रदय में गीता प्रतिस्थापित होगी तभी भारत विश्वगुरू बनेगा। उन्होंने कहा कि गीता हमें धर्म की शिक्षा देती है। धर्म का अर्थ है कर्तव्य विशेष। गीता कर्मयोग के माध्यम से धर्म की शिक्षा देती है। आज कर्तव्य के बजाय अधिकार की बात ज्यादा हो रही है। कर्तव्य के प्रति अपने को समर्पित करना, यही गीता का संदेश है। कर्तव्य से विमुख व्यक्ति को कर्तव्यपरायण बनाना गीता का उद्देश्य है। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जगदगुरू रामानुजाचार्य, स्वामी श्रीधराचार्य महाराज और रामचन्द्र दास ने भी अपने विचार रखे।
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