दैनिक घटती-घटना की लगातार कोशिशें भी बेअसर…प्रशासन की जिद के आगे सच बेबस

- प्रशासन की जिद,महाविद्यालय की चुप्पी और पत्रकारिता की असफल कोशिश
- दैनिक घटती-घटना ने हार नहीं मानी, पर परिणाम धरातल पर नहीं आया
- लेकिन अफसोस,यहाँ व्यवस्था की दीवारें इतनी मजबूत थीं कि सच की आवाज उन तक पहुँच ही नहीं पाई…
- अंतिम पड़ाव पर महाविद्यालय भूमि विवाद…अंतिम लड़ाई…और अंतिम खबर
-रवि सिंह-
कोरिया,16 नवंबर 2025
(घटती-घटना)।
हर लड़ाई तलवार से नहीं लड़ी जाती,कुछ लड़ाइयां कागज़ों पर लड़ी जाती हैं तथ्यों से, सबूतों से,आवाज़ों से,लेकिन जब सामने एक ऐसी व्यवस्था खड़ी हो जो सुनने की इच्छा तक नहीं रखती,तो सच भी चीख-चीखकर थक जाता है,महाविद्यालय की जमीन पर कब्जे का यह मसला सिर्फ जमीन का विवाद नहीं था यह आने वाली पीढि़यों की शिक्षा का प्रश्न था,वह भूमि जहां विद्यार्थियों के सपने पनपने थे,वहां अब सत्ता की ईंटें गाड़ दी गई,दैनिक घटती-घटना ने महीनों तक बिना थके हर दस्तावेज़ खोला,हर नक्शा उजागर किया, हर सच्चाई सामने रखी,इतनी पूरी ईमानदारी से कि सवाल उठाने वालों के हाथ नहीं काँपे,पर जवाब देने वाले कभी सामने ही नहीं आए,आज यह खबर अंतिम इसलिए है क्योंकि रास्ते बंद हो चुके हैं,लड़ाई की ऊर्जा चूक चुकी है, और जिस सच को बार-बार उठाया गया वह सत्ता की बहरापन के सामने कमजोर पड़ गया पर इतिहास एक दिन यह जरूर पूछेगा शिक्षा की जमीन पर कब्जा किसने किया? सत्ता क्यों अड़ी रही? प्रबंधन क्यों चुप रहा? और सच बोलने वालों को ही क्यों सजा मिली? यह अंतिम खबर है पर यह अंतिम सवाल नहीं।
महाविद्यालय की जमीन बचाई जा सकती थी पर बचाई नहीं गई,जिन्हें अदालत जाना था,वे चुप रहे,और जिन्हें चुप रहना था,वे अदालत पहुँचे,लेकिन असफल रहे, छात्रों के भविष्य की रक्षा के लिए की गई जनहित याचिका भी खारिज कर दी गई और जमानत राशि तक जब्त कर ली गई, अग्रणी रामानुज प्रताप सिंहदेव महाविद्यालय की 46 वर्ष पुरानी जमीन पर अब पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण जारी है,महाविद्यालय से एनओसी नहीं ली गई, विरोध को दरकिनार कर दिया गया, और 2017 का नजरी नक्शा,जिसमें खसरा क्रमांक 288 व 289 को स्पष्ट रूप से महाविद्यालय क्षेत्र बताया गया है उसे भी अनदेखा कर दिया गया,दैनिक घटती-घटना ने महीनों तक इस मुद्दे को शहर का सबसे महत्वपूर्ण जनहित प्रश्न मानकर कवरेज की दस्तावेज पेश किए,प्रमाण दिखाए, विरोध को आवाज दी लेकिन प्रशासन की जिद और महाविद्यालय प्रबंधन की चुप्पी के आगे पत्रकारिता भी आखिरकार असफल साबित हुई, आज प्रशासन,राजनीति और व्यवस्था—तीनों ने अपना रुख बदलने से मना कर दिया है, इसीलिए यह खबर महाविद्यालय भूमि विवाद की अंतिम खबर मानी जा रही है।

महाविद्यालय प्रबंधन…जमीन उनकी… भविष्य उनका…पर मौन क्यों?
मानो यह संघर्ष किसी और दुनिया का हो,कौन सा भय था? कौन सा दबाव था? या फिर स्वार्थ इतना बड़ा था कि शिक्षा की जमीन भी उनसे बोलने को मजबूर न कर सकी? फिर आया न्याय का दरवाज़ा—जिसके सामने लोग उम्मीद लेकर खड़े थे पर इस बार न्याय ने दरवाजा खोला ही नहीं—जनहित याचिका खारिज,जमानत राशि जब्त,और जो लोग लड़ रहे थे उनके हाथों से उम्मीद फिसलकर गिर गई,सच का कद छोटा नहीं था लेकिन व्यवस्था की दीवारें उससे कहीं ऊँची थीं,और सबसे दुखद सच यह है हार पत्रकारिता की नहीं हुई,हार उस सिस्टम की हुई जो जनता की आवाज़ सुनने के लिए ही बना था।
‘हमारा विचार’ जब सच भी हार जाए…
कुछ लड़ाइयां अदालतें नहीं,नीयतें तय करती हैं,कोरिया के महाविद्यालय भूमि विवाद में यही साबित हुआ,46 वर्ष पुराने महाविद्यालय की जमीन, जो भविष्य में शिक्षा का स्तंभ बन सकती थी,वह आज प्रशासनिक निर्णयों और प्रक्रियागत खामियों की भेंट चढ़ चुकी है, जिस जमीन पर छात्र पढ़ते थे,कक्षाएं चलती थीं,मैदान था,उसी पर अब पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण हो रहा है,सबसे चिंताजनक यह नहीं कि निर्णय गलत है,चिंता इस बात की है कि महाविद्यालय प्रबंधन मौन क्यों रहा? जबकि छात्रों,संगठनों,समाज और मीडिया ने आवाज उठाई,दैनिक घटती-घटना ने इस मुद्दे को शहर की सबसे बड़ी जन-चिंता समझकर पूरी निष्ठा से दस्तावेज,नक्शे,तथ्य और सच्चाई सामने रखी,लेकिन जब प्रशासन सुनने को तैयार न हो,प्रबंधन खड़ा न हो,और जनप्रतिनिधि बोलने को तैयार न हों,तो सच भी हार जाता है,यह मामला सिर्फ जमीन का नहीं था, यह शिक्षा के भविष्य का था,और दुर्भाग्य से आज कोरिया ने अपने ही भविष्य को खो दिया,यह भावनात्मक समाचार पत्रकार का अंतिम विवरण है,इतिहास गवाह रहेगा कि जब बाकी सब चुप थे,एक अखबार का पत्रकार आखिरी सांस तक सच बोलता रहा।
जो नहीं होना चाहिए था, वह हो चुका है…
महाविद्यालय की जमीन पर निर्माण जारी है,महाविद्यालय प्रबंधन अब भी चुप है, राजस्व विभाग अपनी फाइलों से बाहर नहीं झांक रहा, जनप्रतिनिधि मौन आशीर्वाद में लगे हैं, प्रशासन ‘निर्णय बदलना कमजोरी है’ की नीति पर अड़ा है और पत्रकारिताज्सिर्फ इतना कह सकती है हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई,पर परिणाम हमारे हाथ में नहीं था।
यह इस मुद्दे पर अंतिम खबर है…
सभी रास्ते बंद होने और सभी प्रयास असफल होने के बाद दैनिक घटती-घटना यह स्पष्ट कहता है अब इस मामले में कुछ नहीं हो सकता, इसलिए यह खबर इस महाविद्यालय भूमि विवाद की अंतिम खबर है, फिर भी, इतिहास इतना तो जरूर याद रखेगा कि जब सभी चुप थे, तब एक अखबार सच बोलने की कोशिश कर रहा था।
पत्रकारिता ने जिम्मेदारी निभाई, पर व्यवस्था के सामने टिक न सकी…दैनिक घटती-घटना ने…
2017 का नजरी नक्शा उजागर किया…
खसरा 288 और 289 की वास्तविक स्थिति बताई…
महाविद्यालय के पुराने भवन,कक्षाओं और कब्जे की ग्राउंड रिपोर्ट दी…
प्रशासन की असंगतियों को सबूतों सहित उठाया…
छात्रों,संगठनों और समाज की आवाज को मंच दिया…
मामले का सार…
- महाविद्यालय की भूमि पर निर्माण को लेकर महीनों विवाद…
- दैनिक घटती-घटना ने सभी दस्तावेज व नक्शा सार्वजनिक किया…
- प्रशासन अपनी ही बात दोहराता रहा…सुनवाई नहीं…
- महाविद्यालय प्रबंधन पूरी तरह मौन…
- जनहित याचिका खारिज…जमानत राशि जब्त…
- विरोध धीरे-धीरे ठंडा पड़ा…
- कागज़ों में सच था…ज़मीन पर परिणाम गायब…
- यह रिपोर्ट अब इस मुद्दे की अंतिम खबर मानी जा रही है…
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