रायगढ़,07 नवम्बर 2025। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के छाल क्षेत्र में कोल माइंस का विरोध हो रहा है। दरअसल,3 गांव पुरूंगा, साम्हरसिंघा और तेंदूमुड़ी के ग्रामीणों का कहना है कि वे अपनी जल,जंगल और जमीन कोयला खदान के लिए नहीं देना चाहते। 6 नवंबर को ग्रामीणों ने धरना प्रदर्शन किया। कोयला खदान के लिए 11 नवंबर को जनसुनवाई होगी। ग्रामीण इसे रद्द कराना चाहते हैं। 300 ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे थे,लेकिन कलेक्टर ग्रामीणों से मिलने नहीं आए। इसके बाद ग्रामीण रातभर कलेक्ट्रेट के सामने बैठकर अपनी मांगों पर अड़े रहे। इस दौरान महिलाएं, बच्चे और लड़कियां भी धरने पर बैठी रहीं। पिछले 24 घंटे तक प्रदर्शन के बाद शुक्रवार दोपहर करीब 2 बजे तक आंदोलन कर रहे ग्रामीणों से मिलने कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचे थे। ऐसे में प्रदर्शनकारियों को जानकारी मिली कि गांव में जनसुनवाई को लेकर जल्द तैयारी की जाने वाली है, तो ग्रामीण कलेक्ट्रेट के सामने अपना आंदोलन समाप्त कर वापस गांव चले गए। ग्रामीण अब गांव में जनसुनवाई का विरोध करने की बात कह रहे हैं।
जनसुनवाई निरस्त करने की मांग
ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम सभा में जनसुनवाई निरस्त होना चाहिए। इसका प्रस्ताव भी पारित किया गया। इसके बाद भी जब प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं लिया तो ग्रामीणों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया। इस आंदोलन में तीनों गांव की बड़ी संख्या में महिलाएं-बच्चे और युवतियां भी शामिल हुई।
अब तक निरस्त करने का आदेश भेज देना था
धरमजयगढ़ विधायक लालजीत राठिया ने बताया कि यहां माताएं और छोटे-छोटे बच्चे बैठे हुए हैं। अभी तक जनसुनवाई निरस्त करने का आदेश रायपुर से भेज देना चाहिए। छत्तीसगढ़ की जनता जल, जंगल के मालिक हैं। सिर्फ एक ही बात को जानते हैं, छत्तीसगढ़ की हरियाली की सुरक्षा करना है। अभी तक विष्णुदेव साय की सरकार को जनसुनवाई निरस्त करने का आदेश भेज देना चाहिए।
3 गांव प्रभावित, 300 ग्रामीण धरने पर…
कोल माइंस से छाल क्षेत्र के ग्राम पंचायत पुरूंगा, साम्हरसिंघा और तेंदूमुड़ी का एरिया प्रभावित हो रहा है। 6 नवंबर की दोपहर में 3 ग्राम पंचायत के करीब 300 से ज्यादा ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे। उनके समर्थन में धरमजयगढ़ से कांग्रेस विधायक लालजीत राठिया और खरसिया से विधायक उमेश पटेल भी आए थे। मांग देर शाम तक पूरी नहीं की गई। ग्रामीणों का कहना था कि जब तक मांग पूरी नहीं होगी, वे अपना धरना प्रदर्शन जारी रखेंगे और कलेक्ट्रेट के सामने ही दरी बिछाकर बैठ गए। ठंड बढ़ते गई, लेकिन वे नहीं उठे और रात भर अपनी मांगों को लेकर यहीं डटे रहे।
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