- जांच में भ्रष्टाचार साबित…कार्यवाही शून्य…पुनः लौटे सीएमओ और अब सबूत मिटाने में जुटे…
- भ्रष्टाचार जांच में साबित होने उपरांत भी मुख्य नगर पालिका अधिकारी पटना बेखौफ,आखिर किसका है संरक्षण?
- मुख्य नगर पालिका अधिकारी पुनः पहचा पटना,अब कर रहा है भ्रष्टाचार के सबूत मिटाने का प्रयासःसूत्र
- क्या भ्रष्टाचार ही है असली सुशासन,क्या भ्रष्टाचारियों को मिलता रहेगा संरक्षण?
- मुख्य नगर पालिका अधिकारी का इतना प्रभाव इतनी दहशत की एसडीएम भी कलेक्टर के आदेश उपरांत नहीं कर रहे जांच


-संवाददाता-
कोरिया/पटना,25 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)।
नव गठित नगर पंचायत पटना में मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। जांच में भ्रष्टाचार साबित हुआ,लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब वह पुनः नगर पंचायत लौट आया और अपने भ्रष्टाचार के सबूत मिटाने का प्रयास कर रहा है। जांच उपरांत सीएमओ के भ्रष्टाचार की तथ्यात्मक पुष्टि हो चुकी थी,जिसमें मृत मवेशियों के दफन,अलाव निर्माण और टाइल्स का पैसा अपने खाता में डालना शामिल है। इसके बावजूद कार्रवाई शून्य रही। ज्ञात हो की नव गठित नगर पंचायत पटना में उसके गठन से लेकर अब तक भ्रष्टाचार करने वाले नगर विकास निधियों का बंदरबाट करने वाले मुख्य नगर पालिका अधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच हुई जांच में भ्रष्टाचार साबित भी हुआ लेकिन उसके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं हुई और वह पुनः पटना लौट आया और वह अब अपने भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयास जारी कर चुका है जैसी सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं,जांच उपरांत वह भी नगरीय प्रशासन संभागीय संयुक्त संचालक स्तरीय में मुख्य नगर पालिका अधिकारी की चोरी पकड़ी गई लेकिन उसके ऊपर कार्यवाही के नाम पर कोई भी बात सामने नहीं आई,अब इसके पीछे किसका हांथ है कौन एक भ्रष्ट और विकास विरोधी मुख्य नगर पालिका अधिकारी का ऐसा हितैषी है जो उसे संरक्षण प्रदान कर रहा है जिसके लिए नव गठित नगर पंचायत पटना की जनता से भी अधिक महत्वपूर्ण है मुख्य नगर पालिका अधिकारी पटना,क्या मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगर की जनता से भी अधिक चहेता हो गया उसे संरक्षण प्रदान करने वाले के लिए,ऐसे कई सवाल खड़े हो रहे हैं और जिनका जवाब किसी के पास नहीं है,मुख्य नगर पालिका अधिकारी ने बिना निर्माण किए निर्माण का भुगतना कर दिया,बिना टाइल्स लगाए टाइल्स का पैसा जेब में डाल लिए,एक जेसीबी फर्म के साथ मिलकर मृत मवेशियों के कफ़न दफन का झूठा पैसा निकाल लिया और इतना ही नहीं झूठा अलाव जलाया लोगों की ठंड दूर करने की बजाए अपनी जेब गर्म किया,दैनिक वेतन भोगी कुछ कर्मचारियों को भी चोरी में शामिल किया उनके बैंक खाते में नगर विकास निधि का पैसा डाला और उन्हें कमीशन देकर उसे भी अपनी जेब में डाल लिया और बेखौफ होकर नगर को लूटने का काम करता रहा,वैसे जांच उपरांत जो तथ्य जांच में सामने आए वह भ्रष्टाचार को साबित कर गए लेकिन कार्यवाही कुछ नहीं हुई बल्कि मुख्य नगर पालिका अधिकारी कुछ दिन इधर उधर मुंह छिपाकर जुगाड लगाकर पुनः लौट आया और वह अब अपने भ्रष्टाचार के सबूत मिटाने में भीड़ चुका है,वैसे स्पष्ट रूप से भ्रष्टाचार की सच्चाई सामने आने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं किया जाना यह संदेह उत्पन्न करता है कि किसी न किसी का संरक्षण मुख्य नगर पालिका अधिकारी को प्राप्त है जो उसे नगर को दुर्दशा की स्थिति तक पहुंचाने में मदद कर रहा है। वैसे जिले के आला अधिकारी,अन्य निर्वाचित जनप्रतिनिधि सब कुछ जानकर मौन हैं और वह भी केवल मूक दर्शक बने हुए हैं जैसे कि मुख्य नगर पालिका अधिकारी खुद के विकास के लिए स्वतंत्र है,वैसे वर्तमान परिदृश्य में यह लगातार देखने को मिल रहा है कि भ्रष्टाचार ही सुशासन की पहचान बनी हुई है जिसमें रोक टोक का प्रयास शून्य है।
स्पष्ट भ्रष्टाचार साबित होने उपरांत भी नहीं हुई मुख्य नगर पालिका अधिकारी पर कार्यवाही
नव गठित नगर पंचायत अपने गठन और गठन उपरांत पदस्थ सीएमओ के भ्रष्टाचार से आरंभ से ही ग्रसित है जो साबित हो चुका है,कभी मृत मवेशियों के मामले में भ्रष्टाचार जेसीबी फर्म के साथ मिलकर हुआ,कभी ठंड में अलाव के नाम पर भ्रष्टाचार हुआ,कुछ दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों के बैंक खाते का भी भ्रष्टाचार के लिए इस्तेमाल हुआ,हद तो तब हुई जब पुराने भवन में रंगाई-पोताई मात्र करवाकर भवन निर्माण और सर्व सर्वसुविधा युक्त बनाने के नाम से लाखों निकाल लिए गए,मामले में शिकायत हुई जांच भी हुई लेकिन जब कार्यवाही की बात हुई मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मुख्य नगर पालिका अधिकारी पुनः नगर पंचायत पहुंच गया और अब वह आगे भी नए भ्रष्टाचार को अंजाम देगा जो झुठलाया नहीं जा सकता।
कलेक्टर के निर्देश पर भी नहीं पहुंचे एसडीएम जांच करने,क्या वह भयभीत हैं?
मुख्य नगर पालिका अधिकारी पटना की शिकायत कलेक्टर कोरिया से भी हुई,कलेक्टर ने एसडीएम को 15 दिवस के भीतर जांच का आदेश दिया,आदेश जारी होने और समय सीमा में पालन के बीच 23 दिनों का समय बीत गया,न एसडीएम नगर पंचायत पहुंचे न उन्होंने जांच ही की,समय सीमा का ध्यान नहीं रखते हुए मामले में कोई भी जांच एसडीएम ने नहीं की,अब सवाल यह उठता है कि क्या एसडीएम भयभीत हैं,डरे हुए हैं सीएमओ के पीछे की उसकी पकड़ पहुंच से वह अवगत हैं इसलिए वह जांच से खुद किनारे हैं।
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