सूरजपुर@भैयाथान में कलम बनाम कुर्सी…आखिर कौन डरेगा किससे?

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  • रिश्वत के आरोपों के बीच नोटिस का नाटक…सच्चाई किससे डरती है?
  • पत्रकार ने उठाए थे सवाल,अब खुद पर उठे तीर,स्थानीय पत्रकार ओंकार पांडेय ने पूरे मामले पर खबरें प्रकाशित कर सच्चे पत्रकार होने का दिया परिचय तो बौखलाहट दिखी तहसीलदार में…
  • तहसीलदार साहब की सही खबर छपी तो उनकी मानहानि हो गई,तहसीलदार साहब की वजह से किसी का सही मामला भी बेवजह खारिज हो गया वह कहां जाए?

सूरजपुर,22 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। भैयाथान तहसील में इन दिनों माहौल गर्म है,एक ओर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और दूसरी ओर उन आरोपों को उजागर करने वाले पत्रकार पर 10 लाख मानहानि का नोटिस पर सवाल कई सवाल हैं, अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सच लिखना अब गुनाह हो गया है? क्या सिस्टम में बैठे लोग जवाब देने की बजाय डर दिखाने की राह पर हैं? यह संपादकीय विश्लेषण जनहित में प्रकाशित है, इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति की मानहानि करना नहीं है, बल्कि शासन और प्रशासन में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करना है। ज्ञात हो की जनदर्शन की शिकायत और रिश्वत का आरोप था शिकायतकर्ता सौरभ प्रताप सिंह ने कलेक्टर जनदर्शन (टोकन संख्या 2250325001838 में तहसीलदार शिव नारायण राठिया और नगर सैनिक संजय मिश्रा पर एक गंभीर आरोप लगाया था कि एक भूमि प्रकरण में आदेश करवाने के लिए 1 लाख की मांग की गई थी। जब शिकायतकर्ता ने पैसे देने से इनकार किया तो तहसीलदार ने प्रकरण को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सीमांकन रिपोर्ट अस्पष्ट है और उस पर अनावेदक का हस्ताक्षर नहीं हैं। लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि राजस्व निरीक्षक लक्ष्मी खलखो की रिपोर्ट में कब्जे की स्थिति स्पष्ट थी और अनावेदिका के हस्ताक्षर भी मौजूद थे तो क्या सीमांकन रिपोर्ट सचमुच अस्पष्ट थी? या फिर तहसीलदार का फैसला बचकाना था? क्या यह सवाल पूछना पत्रकार के लिए गुनाह था? क्या तहसीलदार साहब ऐसे न्यायालय की कुर्सी पर बैठकर कुछ भी लिखकर खारिज कर सकते हैं, क्या यह संविधान के खिलाफ नहीं है? उनका आदेश खुद में ही जांच का विषय है जिसे शायद उनके अधिवक्ता को भी पढ़ना था, पर उनके अधिवक्ता भी लगता है कि उन्हीं की तरह नौसिखिए थे जो उनका खारिज किया आदेश नहीं पढ़ सके, जिसके आधार पर खबर प्रकाशित हुई थी, खबर का सोर्स ही उनका खारिज करने का आदेश था, जिस आदेश में जो लिखा था वह अक्षरशः प्रकाशित किया गया था, जिसकी वजह से उनकी कार्यशैली पर प्रश्न था, पर उस प्रश्न पर वह ऐसा बौखलाए की पत्रकार को धमकाने के लिए 10 लाख का मानहानि का नोटिस भेज दिया,उनकी कमियां पत्रकार प्रकाशित नहीं करेगा तो क्या करेगा? क्या उनके आदेश में खारिज करने वाला शब्द सही था उन्हीं के अधीनस्थ अमला जो सीमांकन कर पंचनामा करता है उसकी कमी आवेदक पर भारी पड़ेगी? तहसीलदार साहब के साथ उनके अधिवक्ता को भी उनके आदेश को पढ़ना चाहिए और फिर तय करना चाहिए कि पत्रकार ने खबर सही प्रकाशित की या फिर खबर गलत प्रकाशित हुई, जिससे उनके क्लाइंट को मानहानि हो गया, यदि वह इतने ही ईमानदार अधिकारी हैं तो कोई ऐसा व्यक्ति है जो उनके अधीनस्थ न्यायालय से मिले फैसले से संतुष्ट होगा और बिना पैसे दिए वहां से काम करवाया होगा? ऐसे कितने आदमी है जो उनके कार्यालय से ईमानदारी से काम करवा लिए होंगे?


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