- एक प्रकरण,दो वसीयत,दो आदेश और दोनों में विरोधाभास क्यों?
- वाह रे तहसीलदार साहब,आदेशों को देखकर लगता नहीं कि राज्य प्रशासनिक सेवा उत्तीर्ण अधिकारी स्तर का आदेश है?
- एक आदेश में वसीयतकर्ता पढ़ा लिखा व्यक्ति, दूसरे आदेश में अत्यंत कम शिक्षित
- आदेश में यह भी की मृत्यु पूर्व वसीयतकर्ता लकवाग्रस्त और अस्पताल में भर्ती था, तो कैसे हुई वसीयत
- एक वसीयत में वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर और दूसरे में अंगूठे का निशान, कौन सही,यह कैसे तय किया गया?
- भूमि स्वामी छह रकबे का था मालिक,एक वसीयत में सभी का जिक्र,दूसरे में केवल हाईवे से सटी महंगी भूमि का जिक्र
- अन्यायपूर्ण फैसले से क्षुब्ध परिवार,फैसला कर्ता ने अपील की दी सलाह,क्या उन्हें नहीं पता,राजस्व प्रकरणों के अपील में पीढि़यां गुम हो जाती हैं?
- पटना तहसील का बड़ा फैसला : गिरजापुर– जमडी की भूमि विवाद का निपटारा
- पटवारी का प्रतिवेदन भी पीडि़त के पक्ष में, बावजूद इसके दावे को दरकिनार कर किया गया फैसला


-न्यूज डेस्क-
बैकुंठपुर,05 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। राजस्व विभाग कहने को तो सभी शासकीय विभागों का नेतृत्वकर्ता विभाग माना जाता है और एक तरह से वह प्रमुख विभाग नियंत्रक की भूमिका अन्य विभाग पर निभाने जिम्मेदारी वाला विभाग है लेकिन खुद राजस्व विभाग की बात करें तो यह खुद ऐसे निर्णयों के लिए विख्यात है कि इस विभाग के निर्णय लगातार दोषपूर्ण ही सामने आ रहे हैं। ताजा मामला कोरिया जिले के पटना तहसील का है जहां पढ़े लिखे राज्य प्रशासनिक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण अधिकारी राजस्व न्यायालय के न्याय पद पर हैं लेकिन उन्होंने एक ऐसा फैसला हाल ही में एक वसीयत मामले में सुनाया है जो सुनकर ही दोषपूर्ण माना जा रहा है जिसकी आलोचनाएं हो रही हैं जिसको लेकर यह भी चर्चा हो रही है कि राजस्व विभाग में पैसे और प्रभाव से कुछ भी संभव है बस माध्यम और जेब गरम होनी चाहिए। एक वसीयत या यह कहें एक ही व्यक्ति ने दो वसीयत बनाई एक उसने कुछ वर्ष पहले बनाई जिस दौरान वह स्वस्थ था लिख पढ़ सकता था समझ सकता था तब उसने वसीयत बनाई और उसे शपथ आयुक्त से प्रमाणित कराया और अपनी संपूर्ण जमीन संपत्ति का वारिश एक परिवार के व्यक्ति को बनाया वहीं जब वह लकवा ग्रस्त हो गया और जब वह मरणासन्न अवस्था में था तब की एक वसीयत पर तहसीलदार पटना ने फैसला उस व्यक्ति के पक्ष में सुनाया जो ऐसी वसीयत के साथ उनके पास पहुंचा जो मरणासन्न अवस्था वाले व्यक्ति की मौत के बाद का समय था जिसमें मृतक के अंगूठे के निशान थे जिसको शपथ आयुक्त से प्रमाणित भी नहीं कराया गया था। एक व्यक्ति दो वसीयत एक वैध एक अवैध बिना जांच ही तहसीलदार ने तय कर दिया जबकि पटवारी प्रतिवेदन अलग ही कहानी बयान करता है।
पटना तहसीलदार का फैसला आजकल जिले में लोगों की जबान पर है क्योंकि फैसले से एक व्यक्ति को राजकीय राज्यमार्ग की बेशकीमती जमीन हासिल हुई और हासिल होते ही उसे हासिल करने वाले ने महंगे दाम में बेच दिया जो खरीदा भी ऐसे व्यक्ति ने जिसकी एंट्री ही मामले में संदेह जताने काफी है क्योंकि वह प्रदेश कैबिनेट की कद्दावर मंत्री का परिवार सदस्य है। पटना तहसीलदार का फैसला दो वसीयत और दो अलग अलग फैसला, एक में एक व्यक्ति अपना हस्ताक्षर करता है और सम्पूर्ण अचल संपत्ति का वारिश बनाकर एक व्यक्ति को सौंपता है वहीं दूसरी वसीयत में वसीयत करने वाले की मृत्यु उपरांत वसीयत उजागर होती है और उसमें वसीयतकर्ता के अंगूठे का निशान है और एकमात्र जमीन के टुकड़े की वसीयत है जो राजकीय राज्यमार्ग से लगी महंगी जमीन है,महंगी जमीन वाली वसीयत पर बिना किसी जांच तहसीलदार पटना ने आदेश जारी कर दिया और जमीन अंगूठे वाली वसीयत पर हो गया वहीं शपथ आयुक्त से प्रमाणित साथ ही मृतक की हस्ताक्षर वाली वसीयत पर केवल वह जमीन अन्य वारिश को मिली जो सड़क से अलग कम कीमती जमीन थी। तहसीलदार पटना का फैसला आज चर्चित फैसला माना जा रहा है और जिसके बाद वह अपील में आगे जाने की बात उस फरियादी से कर रहे हैं जो वसीयत में संपूर्ण का उत्तराधिकारी बनाया गया है।
सेवा करने वाले को नहीं मिली जमीन और तिकड़मी किस्म के व्यक्ति, जो वसीयतकर्ता की मृत्यु पर भी नहीं पहुंचे अंतिम संस्कार में,उसे माना गया अंतिम वारिश
मृतक वसीयतकर्ता जिसने दो वसीयत की जैसा कि तहसीलदार ने माना भी कि सेवा करने वाले को तहसीलदार के फैसले के बाद कोई जमीन नहीं मिली जबकि वह मृतक की वर्षों तक सेवा करता रहा और उसकी मूर्छित अवस्था सहित उसकी मृत्यु उपरांत होने वाले सभी क्रियाकर्म भी संपन्न किया, जमीन खासकर बेशकीमती जमीन उसे मिली जिसने न तो मृतक वसीयतकर्ता की सेवा की और न ही अंतिम संस्कार में ही वह पहुंचा,कुल मिलाकर एक तिकड़मी महंगी जमीन का मालिक बन गया और मालिक बनते ही जमीन को बेच भी दिया महंगे दाम पर वह भी एक मंत्री के परिवार सदस्यों को, कुल मिलाकर मृतक का वारिश वह माना गया तहसीलदार द्वारा जो शायद वारिस था भी नहीं वहीं जिस वसीयत पर फैसला हुआ वह मृतक के अंगूठे के निशान वाला वसीयत था जो उसकी मूर्छित अवस्था में बनाया गया वसीयत था जो न पंजीकृत था न ही वह शपथ आयुक्त से प्रमाणित था,वसीयत में अंगूठे का निशान मृतक के ही थे इसकी भी पहचान हुई संदेह है इसमें।
तहसीलदार की सुनवाई और जांच संदेहास्पद
गंगाराम की वसीयत मूर्छित अवस्था में जो अंतिम समय पर उनके मृत्यु से तीन दिन पहले यानी की 30.01.2023 को अंतिम वसीयत लिखी थी उसे सही मानकर 5 साल पहले होशो हवास में लिखी गई वसीयत को संदिग्ध बताकर इस फैसले को तहसीलदार ने राजस्व न्यायालय के एक अजीबोगरीब फैसले में सुमार कर दिया,लेकिन उससे पूर्व 2018 की वसीयत को संदिग्ध क्यों माना गया यह आदेश में स्पष्ट नहीं कर पाए एक भी तथ्यात्मक बातें रखकर 2018 के वसीयत को खारिज करते तो समझ में भी आता पर बेफिजूल की बात लिखकर खारिज करना यह बता दिया कि यह मामला सिर्फ राजनीतिक व पैसे के प्रभाव में फैसला है।
होशो-हवास में पांच साल पहले बने हस्ताक्षरयुक्त शपथ पूर्वक वसीयत को किया दरकिनार,बाकी जमीन को भाई व बहन के नाम करने का आदेश
पटना तहसीलदार न्यायालय ने ग्राम गिरजापुर व ग्राम जमडी की ज़मीन से जुड़ा एक लंबे समय से चल रहा विवाद सुलझा दिया है पर यह विवाद सुलझने से ज्यादा तहसीलदार के फैसले पर उलझ गया है,उलझ इसलिए गया है क्योंकि तहसीलदार साहब ने जो अपने विवेक का इस्तेमाल न्यायिक फैसले में किया है वह कुछ विचित्र है,होशो हवास में शपथ युक्त बने वसीयत को संदिग्ध मान लिया और मूर्छित अवस्था में बने वसीयत को सही मान लिया,अब उनकी न्यायिक क्षमता कितनी है यह उनके फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। यह मामला स्व. गंगाराम आ0 सोधन रजवार की संपत्ति पर दावेदारी को लेकर था, जिसमें दो पक्ष—रोहित कुमार आ0 रामकृपाल और रमेश कुमार आ0 जगतराम—आमने-सामने थे। मामला कैसे शुरू हुआ? आवेदक रोहित कुमार ने आवेदन प्रस्तुत कर दावा किया कि गंगाराम आ0 सोधन ने जीवनकाल में वर्ष 2018 को एक अपंजीकृत वसीयत बनाकर उनकी जमीन उनके नाम कर दी थी। गंगाराम की मृत्यु 03 फरवरी 2023 को हुई, जिसके बाद रोहित ने नामांतरण की मांग की। इसी दौरान, आपत्तिकर्ता रमेश कुमार सामने आए और उन्होंने दावा किया कि गंगाराम ने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले यानी 30 जनवरी 2023 को एक और वसीयत बनाई थी, जिसमें उन्होंने ग्राम गिरजापुर स्थित खसरा नं. 710/3 रकबा 0.080 हेक्टेयर भूमि अपने नाम कर दी थी। तहसीलदार के फैसले के अनुसार खसरा नं. 710/3 रकबा 0.080 हेक्टेयर भूमि पर आपत्तिकर्ता रमेश कुमार की वसीयत मान्य पाई गई। शेष भूमि— ग्राम जमडी स्थित भूमि खसरा नं. 583/3, 638/3 (रकबा 0.13, 0.14 हेक्टेयर) ग्राम गिरजापुर स्थित भूमि खसरा नं. 310/1, 310/3, 311/2, 709, 1113/2 (कुल रकबा लगभग 0.49 हेक्टेयर) को गंगाराम आ0 सोधन के निकट संबंधी विधिक वारिसों अनंदी राम,गंगाराम,जगतराम,रामकृपाल एवं बहन प्रमिला आ0 सोधन—के नाम दर्ज करने का आदेश दिया गया। सीधी भाषा में कहें तो—गंगाराम आ0 सोधन की संपत्ति का बंटवारा अदालत ने साफ कर दिया है। रोहित कुमार को ज़मीन नहीं मिली,रमेश कुमार को सिर्फ 0.080 हेक्टेयर का हिस्सा मिला,और बाकी पूरी ज़मीन गंगाराम के असली वैध वारिसों के नाम जाएगी। 5 साल पहले बनी वसीयत को संदिग्ध मानकर गंगाराम की बाकी जमीन को उनके भाइयों के नाम करने का फैसला तहसीलदार ने किया,न्यायिक दृष्टिकोण से किया यह बड़ा सवाल हो गया जब करना ही था तो सारी जमीनों को करना था और दोनों वसीयतों को संदिग्ध मानना था पर ऐसे वसीयत को सही माना जो वाकई में संदिग्ध था और जो वसीयत सही था उसे संदिग्ध मानना ही तहसीलदार के लिए उसकी न्यायिक फैसले में किसी प्रभाव की गंध से भर दिया।
आदेश के मुख्य बिंदु
- रोहित कुमार का आवेदन खारिज कर दिया गया पर क्यों किया गया क्योंकि वह होशो हवास में शपथ पूर्वक हस्ताक्षर युक्त बनाया गया था इसलिए वह संदिग्ध निकला?
- वसीयत दिनांक 14.08.2018 को “अवैध एवं संदिग्ध” माना गया क्योंकि उसमें सारी जमीन एक वसीयत में थी इसलिए?
- भूमि खसरा नं. 710/3 (0.080 हे.) पर रमेश कुमार की वसीयत पटना तहसील न्यायालय में इसलिए स्वीकार हो गई क्योंकि वह मृत्यु से 3 दिन पहले सिर्फ एक कीमती जमीन के लिए बनी थी वह भी इस अवस्था में जिस अवस्था में वह व्यक्ति जिंदगी व मौत के बीच आखिरी सांस ले रहा था और उसमें इतनी भी शक्ति नहीं थी कि वह हस्ताक्षर कर सके अंगूठा ही लगाया गया और वह भी वसीयत नोटरी यानी की शपथ-पत्र तक नहीं पहुंच पाया इसलिए वह वसीयत सही थी और स्वीकार लायक थी?
- बाकी जमीन सभी किस वैध उत्तराधिकारी के नाम दर्ज होगी जिसने उसे जमीन पर अपना हक ही नहीं मांग रहा उसके नाम दर्ज होगी?
- पटवारी को निर्देश दिया गया कि राजस्व रिकॉर्ड में गंगाराम आ0 सोधन का नाम हटाकर वारिसों के नाम दर्ज किया जाए,इस फैसले ने नौसिखिया तहसीलदार की उपाधि इस फैसले को सुनाने वाले को दे दी…
होशो-हवास में की गई वसीयत या कोई भी किसी भी परिस्थिति में बना दस्तावेज सही होगा या फिर मूर्छित अवस्था में?
तहसीलदार पटना ने एक ऐसी वसीयत पर फैसला दिया है जो कानूनन सही नहीं कहा जा सकता,जानकारों का कहना है कि न्याय विषय में जब वसीयत का विषय सामने आए तब प्राथमिकता केवल रजिस्टर्ड दस्तावेज ही न्याय के लिए आधार बनाए जाने चाहिए,यदि ऐसा दस्तावेज नहीं है तो जांच परीक्षण अच्छे से और विस्तृत किया जाना चाहिए,पटना तहसीलदार ने एक मामले में ऐसा नहीं किया,वह पैसे या किसी के प्रभाव में थे ऐसा आरोप लग रहे हैं,वैसे अब भी मामले में एक सवाल खड़ा है कि न्याय विषय में यदि वसीयत का मामला है तब क्या होशो हवास में और स्वस्थ अवस्था में की गई वसीयत मान्य की जानी चाहिए या फिर मूर्छित अवस्था वाली वसीयत भी मान्य की जानी चाहिए। सवाल क्या न्याय विषय में कोई भी कैसा भी दस्तावेज मान्य है फैसले के लिए उसका परीक्षण और जांच अनिवार्य नहीं है।
क्या कलेक्टर कोरिया व सरगुजा कमिश्नर तहसीलदार के फैसले की जांच कराएंगे?
मामला सीधे तौर पर दोषपूर्ण फैसले के रूप में माना जाएगा, फैसले में जांच परीक्षण का अभाव और जल्दबाजी साथ ही अंतिम लाभ मंत्री परिवार तक पहुंचना बतलाता है कि तहसीलदार ने प्रभाव या अन्य लाभ के लिए जल्दबाजी दिखाई क्योंकि यह त्रुटि है या जानकारी के अभाव में सुनाया गया फैसला नहीं है,यह फैसला सोची समझी रणनीति है,अब मामला दोषपूर्ण यदि है जैसा एक वारिसदार का कहना है उसका आरोप है तो क्या अब कलेक्टर कोरिया और कमिश्नर सरगुजा मामले की जांच कराएंगे, वैसे क्या मामला मंत्री से जुड़ा होने के कारण उनके परिवार से जुड़ा होने के कारण अपील में या जांच में भी खारिज किया जाएगा, सवाल कई हैं, राजस्व विभाग की विश्वसनीयता भी इस मामले में परीक्षा की स्थिति में है और अब देखना है कि आगे क्या निर्णय उच्च अधिकारी लेते हैं।
किसी लाभ के तहत तहसीलदार ने अपने विवेक व अधिकारों का दुरुपयोग किया?
पटना तहसीलदार के एक फैसले ने जन चर्चा का बाजार गर्म कर दिया कि अन्याय दिनदहाड़े हुआ,वहीं मामले में यह सवाल भी खड़ा हुआ कि आखिर किस लाभ के तहत तहसीलदार ने ऐसा फैसला दोषपूर्ण फैसला सुनाया,वैसे तहसीलदार ने लाभ मात्र के लिए ऐसा फैसला सुनाया या लाभ और प्रभाव दोनों इस मामले में फैसले का आधार बन सके। पूरे मामले में अब जांच और जांच उपरांत सच्चाई का इंतजार है वैसे मामला तुल नहीं पकड़ता यदि जमीन फैसले के बाद खरीदने वाला मंत्री परिवार नहीं होता।
क्या तहसीलदार के लिए कुछ भी निर्णय देने के बाद यह कहना कि आप अपील में जाएं,क्या यह न्याय संगत है?
पटना तहसीलदार न्याय करने के बाद फरियादी को अपील में जाने की भी सलाह दे रहे हैं,जिस फरियादी को उनके दोषपूर्ण फैसले से हानि हुई उसे वह अपील में जाकर न्याय की गुहार लगाने की सलाह दे रहे हैं,अब क्या तहसीलदार पटना का यह कहना न्याय संगत है कि हारने के बाद वह भी दोषपूर्ण निर्णय के बाद मिली हार के बाद अपील में जाइए। तहसीलदार वैसे खुद स्वीकार कर रहे हैं कई जगह की फैसला दोषपूर्ण है और यह दबाव वाला फैसला है लेकिन अब वह जिनसे कह रहे हैं न वह आकर बयान देंगे न तहसीलदार खुद इसलिए जांच गहन आवश्यक है।
मृत्यु से तीन दिन पहले के मूर्छित अवस्था में बने वसीयत के पक्ष में तहसीलदार का फैसला
गांव गिरिजापुर स्थित खाता संख्या 710/3,रकबा 0.08 एकड़ भूमि को लेकर चल रहे विवाद में राजस्व विभाग ने आवेदक रमेश कुमार राजवंशी के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले में सबसे आश्चर्य की बात यह है कि यह फैसला उस वसीयत पर सुनाया गया जिस वसीयत को उस समय बनाया गया जिस समय वसीयतकर्ता मूर्छित अवस्था में था और वसीयत शपथ पत्र युक्त भी नहीं था, हस्ताक्षर की जगह अंगूठा लगा हुआ था हमने एक अधिवक्ता से इस बारे में पता किया तो उनका कहना है कि वसीयत वही मान्य होती है जो होशो हवास में बनाई गई हो ,ऐसी अवस्था में बनाई गई वसीयत नहीं मान्य होती जिस समय व्यक्ति मूर्छित हो उसके पास सोचने समझने की शक्ति ना हो,पर जिस वसीयत के पक्ष में फैसला तहसीलदार पटना द्वारा दिया गया वह वसीयत कुछ ऐसे ही समय पर बनी थी,यह भूमि पहले गंगाराम आत्मज सोधन के नाम दर्ज थी, जिनका निधन 30 जनवरी 2023 को हो गया था। उनकी पत्नी का भी कुछ दिन बाद निधन हो गया और दोनों की कोई संतान नहीं थी। विभागीय जांच में अन्य कोई वैध दावेदार सामने नहीं आया। ऐसे में राजस्व विभाग ने भूमि का नामांतरण कर रमेश कुमार के नाम दर्ज करने का आदेश दिया। गांव गिरजापुर की जमीन पर लंबे समय से चल रहे विवाद का पटाक्षेप हो गया है। राजस्व विभाग ने खाता संख्या 710/3, रकबा 0.08 एकड़ भूमि के मामले में आवेदक रमेश कुमार के पक्ष में अंतिम निर्णय सुनाया है। जानकारी के अनुसार,यह भूमि मूल रूप से गंगाराम के नाम दर्ज थी। गंगाराम का निधन 30 जनवरी 2023 को हुआ, जबकि उनकी पत्नी की मृत्यु 3 फरवरी 2023 को हो गई। दोनों निःसंतान थे,जिसके बाद उत्तराधिकार को लेकर विवाद खड़ा हो गया। आवेदक रमेश कुमार राजवंशी ने नामांतरण का दावा पेश किया। विभागीय जांच में गंगाराम और उनकी पत्नी की मृत्यु की पुष्टि हुई तथा अन्य कोई वैध वारिस सामने नहीं आया। प्रस्तुत दस्तावेजों, गवाहों और ग्रामणों के बयानों के आधार पर विभाग ने आवेदक का दावा सही पाया। राजस्व विभाग ने आदेश जारी करते हुए विवादित भूमि का नामांतरण आवेदक रमेश कुमार राजवंशी के नाम करने का निर्देश दिया। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में यदि कोई और दावेदार सामने आता है तो उसे कानूनी प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। फिलहाल भूमि पर रमेश कुमार राजवंशी का वैध अधिकार माना जाएगा। भले ही यह फैसला तहसीलदार साहब ने किसी प्रभाव में दिया है पर इस फैसले पर सवाल तो कई हैं जिसके जवाब इनके ऊपर के राजस्व के उच्च अधिकारी को इनसे पूछना चाहिए।
घटती-घटना – Ghatati-Ghatna – Online Hindi News Ambikapur घटती-घटना – Ghatati-Ghatna – Online Hindi News Ambikapur