जानिए छग के साथ सरगुजा के व स्थान जहाँ से होकर गुजरे थे भगवान श्री राम
हरचौका में तत्कालीन सरकार ने स्थापित कराई है भगवान राम की ऊंची प्रतिमा
राम वन गमन पथ पूर्ववर्ती सरकार की अभिनव योजना

-राजन पाण्डेय-
कोरिया, 01 अक्टूबर 2025 (घटती-घटना)। भगवान श्री राम श्री विष्णु जी के अवतार के रूप में पूजे जाते हैं वो ईश्वर के ऐसे रूप हैं जिनका जीवन आदर्श, मर्यादा और धर्म का प्रतीक है। उनके चरित्र को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है,क्योंकि उन्होंने हर परिस्थिति में धर्म और सत्य का पालन किया। रामायण महाकाव्य में उनके जीवन गाथा, वनवास,रावण का वध का वर्णन किया गया है जो एक आदर्श राजा,पुत्र, पति और भाई की छवि प्रस्तुत करती है। भगवान राम आत्मसात करने के लिए लोग अयोध्या के भव्य राम मंदिर पहुंचते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसी जगहें हैं जहां भगवान राम ने वनवास के दौरान अपना समय बिताया।

राम वन गमन पथ
‘राम वन गमन पथ’ छत्तीसगढ़ में ऐसी जगहें हैं जहां से भगवान राम गुजरे थे। छत्तीसगढ़ की पूर्व वर्ती सरकार ने इस प्राचीन पथ को पुनर्जीवित करने का काम किया है। ताकि लोग इन पवित्र स्थलों से भगवान राम को महसूस कर सकें और श्री राम के वनवास काल की स्मृतियों को संजोया जा सके। राम वन गमन पथ उन मार्गों से होकर गुजरता है, जहां-जहां भगवान राम के चरण पड़े थे। देशभर में लगभग 2 हजार 260 किमी लंबा यह पथ भगवान राम के यात्रा मार्ग का प्रतीक है, जिसका सबसे बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ से होकर गुजरता है। यह पथ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि राज्य में पर्यटन विकास की संभावनाओं को भी प्रोत्साहित कर रहा है। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले से शुरू होकर सुकमा जिले तक की लगभग 528 किमी लंबी यात्रा राम वन गमन पथ का हिस्सा है। इस यात्रा के दौरान राज्य के नौ प्रमुख स्थल भगवान राम की स्मृतियों से जुड़े हुए हैं, जिन्हें पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया जा रहा है। सरकार की योजना है कि राज्य के इन 75 स्थलों को संवारकर एक नए धार्मिक-पर्यटन सर्किट के रूप में प्रस्तुत किया जाए। जिससे यहां की सांस्कृतिक धरोहर को संजोया जा सके। जानते हैं कौन से हैं वो 9 स्थल।

सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया एम सीबी)
छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ का प्रवेश बिंदु सीतामढ़ी है। यह स्थल सीता माता के नाम से जुड़ा है। यहां स्थित गुफाएं भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की उपस्थिति की गवाही देती हैं। लोककथाओं के अनुसार, वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण ने यहां कुछ समय बिताया था।
रामगढ़ (अंबिकापुर)
सरगुजा जिले में स्थित रामगढ़ पहाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। यहां की सीताबेंगरा गुफा अपनी विशेष वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है। कहते हैं कि यह वह स्थान है जहां भगवान राम ने वनवास के दौरान विश्राम किया था। इस गुफा का सीता माता के कक्ष के रूप में भी उल्लेख मिलता है।
शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा)
शिवरीनारायण वह स्थान है जहां भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। इस जगह को शबरी की भक्ति और राम के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यहाँ शबरी और नर-नारायण का प्राचीन मंदिर स्थित है, जो पौराणिक महत्व को समेटे हुए है।
तुरतुरिया (बलौदाबाजार)
तुरतुरिया, जिसे लव-कुश की जन्मस्थली कहा जाता है, महर्षि वाल्मीकि के आश्रम के लिए प्रसिद्ध है। यहां की तुरतुर आवाज करती जलधारा इस स्थान की पहचान है। वनवास के दौरान भगवान राम ने यहां कुछ समय बिताया था, और यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।
चंदखुरी (रायपुर)
रायपुर जिले के चंदखुरी को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। यहां माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर स्थित है, जो दुनिया में अपनी तरह का एकमात्र मंदिर है। चंदखुरी में भगवान राम की माता के जन्मस्थान के रूप में एक विशेष पहचान है। यह स्थान तालाबों और हरियाली से घिरा हुआ है, जिसे सौंदर्यीकरण के जरिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाया जा रहा है।
राजिम (गरियाबंद)
राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। यहां महानदी, पैरी और सोंढुर नदियों का संगम है। यह स्थल भगवान राम के कुलदेवता महादेव की पूजा से जुड़ा हुआ है। संगम तट पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर इस स्थान की धार्मिकता को और भी बढ़ा देता है।
सिहावा-साऋषि आश्रम (धमतरी)
धमतरी जिले की सिहावा पहाड़ियां ऋषियों के आश्रमों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां शरभंग, अगस्त्य, अंगिरा, श्रृंगि, कंकर, मुचकुंद और गौतम ऋषि के आश्रम स्थित हैं। भगवान राम ने दंडकारण्य में ऋषियों से भेंट की थी और यहां कुछ समय बिताया था।
जगदलपुर (बस्तर)
जगदलपुर में भगवान राम के वनवास की कई कहानियां प्रचलित हैं। यह स्थान बस्तर के हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित है, जहां भगवान राम ने अपने वनवास के समय को बिताया था। पांडवों के अंतिम राजा काकतिया की राजधानी के रूप में भी जगदलपुर का ऐतिहासिक महत्व है।
रामाराम (सुकमा)
छत्तीसगढ़ के दक्षिणी सिरे पर स्थित रामाराम वह स्थान है, जहां भगवान राम ने वनवास के दौरान विश्राम किया था। यहां से राम वन गमन पथ आंध्र प्रदेश की ओर बढ़ता है।

भगवान राम के विश्राम करने पर नाम पड़ा विश्रामपुर
जमदग्नि ऋ षि के आश्रम में कुछ समय व्यतीत करने के बाद वे विश्रामपुर पहुँचे। रामचंद्र जी द्वारा इस स्थल में विश्राम करने के कारण इस स्थान का नाम विश्रामपुर पडा। इसके बाद वे अंबिकापुर पहुँचे। अंबिकापुर से महरमण्डा ऋ षि के आश्रम बिल द्वार गुफा पहुँचे। यह गुफा महान नदी के तट पर स्थित है। यह भीतर से ओम आकृति में बनी हुई है। महरमण्डा ऋ षि के आश्रम में कुछ समय व्यतीत कर वे महान नदी के मार्ग से सारासोर पहुँचे। सारासोर जलकुण्ड है,यहाँ महान नदी खरात एवं बडका पर्वत को चीरती हुई पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है। कहा जाता है कि पूर्व में यह दोनों पर्वत आपस मे जुडे थे। राम वन गमन के समय राम-लक्ष्मण एवं सीता जी यहाँ आये थे तब पर्वत के उस पार यहाँ ठहरे थे। पर्वत में एक गुफा है जिसे जोगी महाराज की गुफा कहा जाता है। सारासोर-सर एवं पार अरा-असुर नामक राक्षस ने उत्पात मचाया था तब उनके संहार करने के लिये रामचंद्रजी के बाण के प्रहार से ये पर्वत अलग हो गये और उस पार जाकर उस सरा नामक राक्षस का संहार किया था। तब से इस स्थान का नाम सारासोर पड गया। सारासोर में दो पर्वतों के मध्य से अलग होकर उनका हिस्सा स्वागत द्वार के रूप में विद्यमान है। नीचे के हिस्से में नदी कुण्डनुमा आकृति में काफी गहरी है इसे सीताकुण्ड कहा जाता है। सीताकुण्ड में सीता जी ने स्नान किया था और कुछ समय यहाँ व्यतीत कर नदी मार्ग से पहाड के उस पार गये थे। आगे महान नदी ग्राम ओड़गी के पास रेण नदी से संगम करती है। इस प्रकार महान नदी से रेण के तट पर पहुंचे और रेण से होकर रामगढ़ की तलहटी पर बने उदयपुर के पास सीताबेंगा-जोगीमारा गुफा में कुछ समय व्यतीत किया। सीताबेंगरा को प्राचीन नाट्यशाला कहा जाता है तथा जोगीमारा गुफा जहाँ प्रागैतिहासिक काल के चित्र अंकित हैं। रामगढ़ की इस गुफा में सीताजी के ठहरने के कारण इसका नाम सीताबेंगरा गुफा पडा। इसके बाद सीताबेंगरा गुफा के पार्श्व में हथफोर गुफा सुरंग है,जो रामगढ़ की पहाड़ी को आर-पार करती है। हाथी की ऊँचाई में बनी इस गुफा को हथफोर गुफा सुरंग कहा जाता है। रामचंद्रजी इस गुफा सुरंग को पार कर रामगढ की पहाडी के पीछे हिस्से में बने लक्ष्मणगढ पहुँचे। यहाँ पर बनी गुफा को लक्ष्मण गुफा कहा जाता है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ की पावन धरा में वनवास काल में सीता जी एवं लक्ष्मण जी के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी का आगमन हुआ। इनके चरण स्पर्श से छत्तीसगढ़ एवं कोरिया सरगुजा की भूमि पवित्र एवं कोटि-कोटि धन्य हो गयी।

छत्तीसगढ़ सरकार की योजना से राम वन गमन पथ के अंतर्गत आने वाले सभी स्थानों का विकास किया गया छत्तीसगढ़ सरकार की योजना है कि राम वन गमन पथ के अंतर्गत आने वाले सभी स्थानों का विकास किया जाए, जिससे राज्य की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को संजोया जा सके। पौधारोपण, सड़क निर्माण, मंदिरों का जीर्णोद्धार और पर्यटक सुविधाओं के विकास का कार्य जोरों पर है। सड़क के दोनों ओर खूबसूरत फूलों के पौधे लगाए जा रहे हैं, जिससे पर्यटकों को प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनुभव हो। यह पथ भगवान राम के वनवास काल की स्मृतियों को जीवित रखने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों को भी उजागर कर रहा है। राम वन गमन पथ न केवल भगवान राम की यात्रा को पुनः स्थापित कर रहा है, बल्कि इसे राज्य की पहचान के रूप में भी उभारने का कार्य भी कर रहा है।

छत्तीसढ में भरतपुर के हरचैका में सबसे पहले पडे थे श्री राम के चरण
सोनहत अयोध्या नरेश राजा दशरथ के द्वारा चैदह वर्षों के वनवास आदेश के मिलते ही, माता-पिता का चरण स्पर्श कर राजपाट छोडकर रामचंद्र जी ने सीताजी एवं लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या से प्रस्थान किया, उस समय अयोध्या वासी उनके साथ-साथ तमसा नदी के तट तक साथ-साथ गये एवं अपने प्रिय प्रभु को तमसा नदी पर अंतिम बिदाई दी। वनवास के दौरान प्रभु श्री राम कई राज्यों से होते हुए मघ्यप्रदेश की सीमा पर बनास नदी के संगम से होकर बनास नदी के मार्ग से सीधी जिला (जो उन दिनों सिद्ध भूमि के नाम से विख्यात था) एवं कोरिया जिले के मध्य सीमावर्ती मवाई नदी (भरतपुर) पहुँच कर मवाई नदी पार कर दण्डकारण्य में प्रवेश किया। मवाई नदी-बनास नदी से भरतपुर के पास बड़वाही ग्राम के पास मिलती है। बनास नदी से होकर मवाई नदी तक पहुँचे, मवाई नदी को भरतपुर के पास पार कर दक्षिण कोसल के दण्डकारण्य क्षेत्र,(छत्तीसगढ) में प्रवेश किया। दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ) में मवाई नदी के तट पर उनके चरण स्पर्श होने पर छत्तीसगढ की धारा पवित्र हो गयी और नदी तट पर बने प्राकृतिक गुफा मंदिर सीतामढी हरचौका में पहुँच कर विश्राम किया अर्थात रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ में पहला पडाव भरतपुर के पास सीतामढी हरचैका को कहा जाता है। सीतामढी हरचैका में मवाई नदी के तट पर बनी प्राकृतिक गुफा को काटकर छोटे-छोटे कई कक्ष बनाये गये हैं जिसमें द्वादश शिवलिंग अलग-अलग कक्ष में स्थापित हैं। वर्तमान में यह गुफा मंदिर नदी के तट के समतल करीब 20 फीट रेत पट जाने के कारण हो गया है। यहाँ रामचंद्र जी ने वनवास काल में पहुँचकर विश्राम किया। इस स्थान का नाम हरचैका अर्थात् हरि का चैका अर्थात् रसोई के नाम से प्रसिद्ध है। रामचंद्रजी ने यहाँ शिवलिंग की पूजा अर्चना कर कुछ समय व्यतीत किया इसके बाद वे मवाई नदी से होकर रापा नदी के तट पर पहुँचे। रापा नदी और बनास कटोडोल के पास आपस में मिलती हैं। मवाई नदी बनास की सहायक नदी है। अतः रापा नदी के तट पर पहुँच कर सीतमढी पहुँचे। नदी तट पर बनी प्राकृतिक गुफा नदी तट से करीब 20 फीट ऊँची थी। वहाँ चार कक्ष वाली प्राकृतिक गुफा है। गुफा के मध्य कक्ष में शिवलिंग स्थापित है तथा दाहिने, बाएँ दोनों ओर एक-एक कक्ष है जहाँ मध्य की गुफा के सम्मुख होने के कारण दो गुफाओं के सामने से रास्ता परिक्रमा के लिये बनाया गया है। इन दोनों कक्षों में राम-सीताजी ने विश्राम किया तथा सामने की ओर अलग से कक्ष है जहाँ लक्ष्मण जी ने रक्षक के रूप में इस कक्ष में बैठकर पहरा दिया था। यहाँ कुछ दिन व्यतीत कर वे कोटाडोल पहुँचे। इस स्थान में गोपद एवं बनास दोनों नदियाँ मिलती हैं। कोटडोल एक प्राचीन एवं पुरातात्विक स्थल है। कोटाडोल से होकर वे नेउर नदी के तट पर बने सीतामढी छतौडा आश्रम पहुँचे। छतौडा आश्रम उन दिनों संत-महात्माओं का संगम स्थली था। यहाँ पहुँच कर उनहोंने संत महात्माओं से सत्संग कर दण्डक वन के संबंध में जानकारी हासिल की। यहाँ पर भी प्राकृतिक गुफा नेउर नदी के तट पर बनी हुई है। इसे सिद्ध बाबा का आश्रम के नाम से प्रसिद्धी है। बनास, नेउर एवं गोपद तीनों नदियाँ भँवरसेन ग्राम के पास मिलती हैं। छतौडा आश्रम से देवसील होकर रामगढ पहुँचे। रामगढ की तलहटी से होकर सोनहत पहुँचे। सोनहत की पहाडियों से हसदो नदी का उद्गम होता है। अतः हसदो नदी से होकर वे अमृतधारा पहुँचे। अमृत धारा में गुफा-सुरंग है। यहाँ कुछ समय व्यतीत किया तथा महर्षि विश्रवा से भेंट की। यहाँ पर शिवजी की पूजा अर्चना कर समय व्यतीत कर बैकुण्ठपुर पहुँचे। बैकुण्ठपुर से होकर वे पटना-देवगढ जहाँ पहाडी के तराई में बसा प्राचीन मंदिरों का समूह था। सूरजपुर तहसील के अंतर्गत रेण नदी के तट पर होने के कारण इसे अर्ध-नारीश्वर शिवलिंग कहा जाता है।
अविभाजित कोरिया के मानोज ने की पद यात्रा
अविभाजित कोरिया जिले के खोंगा पानी निवासी मानोज चतुर्वेदी ने रामवन गमन पथ की कोरिया हरचौका से रामराम कोंटा तक पद यात्रा की, इस यात्रा के साथ उन्होंने धर्म जागरण की अलख जगाई और उन्होंने रामायण काल के समय की ऐतिहासिक चीजों को रामवन गमन पथ की यात्रा के दौरान अनुभव किया।
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