कोरिया@ कौन कहता है कि खसरा नंबर 288 पर महाविद्यालय नहीं है?

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  • 2017 का नजरी नक्शा कहता है कि 288 खसरा नंबर महाविद्यालय का ही है?
  • जब 2017 में यह तय हो गया था कि 288 खसरा नंबर पर महाविद्यालय स्थित है फिर 288 खसरा नंबर को कैसे पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए आबंटित किया गया?
  • क्या छत्तीसगढ़ में राजस्व विभाग नौसिखियों के भरोसे चल रहा है?
  • 2017 का नजरी नक्शा आया सामने जिसमें खसरा नंबर 288 में महाविद्यालय व 289 में महाविद्यालय का खेल मैदान है, शिक्षा विभाग का कार्यालय कहीं नहीं है
  • महाविद्यालय की जमीन पर हो रहा कब्जा और प्राचार्य चीर निद्रा में लीन हैं?
  • महाविद्यालय के खसरा क्रमांक 288 और 289 में कब्जा है किसी और का आखिर यह जमीन कैसे मिलेगी महाविद्यालय को?
  • 46 साल के महाविद्यालय की जमीन की सीमा कहां तक है यह बात क्या वहां के प्राचार्य को नहीं पता?

-न्यूज़ डेस्क-
कोरिया,30 सितंबर 2025 (घटती-घटना)। क्या प्रशासन उस चर्चित कहावत की तरह है जो हमेशा कही जाती है जब कोई नहीं सुनता है वह कहावत है भैंस के सामने बीन बजाना यानी की आप उसको बताते रहिए समझाते रहिए पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्या प्रशासन भी कुछ ऐसे ही नीति पर चल रही है? यदि इस मुद्दे पर हम चर्चा करें तो एक मुद्दा कोरिया जिले का है, वह है महाविद्यालय के जमीन पर नवीन पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाने का मुद्दा,इस मामले को लेकर लगातार यह बात सामने आ रही है कि वहां पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाना गलत है कहीं ना कहीं यह वैध नहीं है,वह जमीन महाविद्यालय की है और उस महाविद्यालय के समीप पुलिस अधीक्षक कार्यालय कहीं से भी उचित नहीं है, लेकिन इस बात को कोरिया जिला प्रशासन मानने को तैयार नहीं है,लोग ऐसा मानने लगे हैं कि जैसे कि भैंस के सामने बीन बजाने का कोई मतलब नहीं है,वैसे प्रशासन के सामने इस बात को बार-बार कहने का भी कोई मतलब नहीं है कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय महाविद्यालय परिसर में गलत बन रहा है। जबकि दस्तावेजों और रिकॉर्ड पर चर्चा की जाए तो जहां प्रशासन यह कह रहा है कि खसरा क्रमांक 288 पर महाविद्यालय नहीं है पर वही एक कागज दैनिक घटती घटना अखबार के हांथ लगा है जो 2017 में एक लड़ाई में एक सीमांकन के दौरान नजरी नक्शा बनाया गया था, जिस नजरी नक्शा में उसने यह दर्शाया की 288 में महाविद्यालय है और 289 में महाविद्यालय का ग्राउंड है पर यह बात 2017 में कही गई पर 2025 में जब पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए भूमि को आवंटित करना था उस समय नजरी नक्शा में यह बात क्यों नहीं कही गई? यह बहुत बड़ा सवाल है और कहीं ना कहीं यह सवाल प्रशासन के लिए भी सोचनीय है पर समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर प्रशासन इतनी जिद क्यों करके रखा है कि किसी भी दस्तावेज व बाकी चीजों को मानने को तैयार नहीं है? उन्हें तो बस अपना हठधर्मिता ही अपनानी है जो समझ में भी आ रहा है महाविद्यालय की जमीन मामले में।

ज्ञात होगी रामानुज प्रताप सिंहदेव शासकीय महाविद्यालय की स्थापना 46 वर्ष पूर्व 1982 हुई थी और उस समय से आज तक यह महाविद्यालय उसी स्थान पर संचालित हो रहा है, यहां तक की महाविद्यालय को 1995 तक अपना खुद का भवन मिल चुका था जो भवन खसरा नंबर 288 पर स्थित है,और 289 पर उसका ही खेल का मैदान स्थित है,यह बात हम नहीं कह रहे हैं यह बात जो अभी दैनिक घटती घटना के हाथ कुछ दस्तावेज हाथ लगे वह हैं जो एक नजरी नक्शा है वह कह रहा है,यदि उस नजरी नक्शे पर गौर किया जाए तो यह बात सही है कि वास्तविक स्थिति में खसर 288 और 289 यह दोनों महाविद्यालय की जमीन है पर इसके बावजूद 288 में नवीन पुलिस अधीक्षक कार्यालय कोरिया बनाने के लिए महाविद्यालय से ही अनुमति नहीं ली गई क्योंकि प्रशासन भी यह बात जानता था कि वह अनुमति नहीं देंगे,क्या इस वजह से यह पूरा प्रोपेगेंडा बाहर ही बाहर कर दिया गया और आवंटन आदेश जारी कर दिया गया, क्या आवंटन आदेश भी कहीं न कहीं नियमों को दरकिनार करके तो नहीं बनाया गया? क्या नौसिखिये राजस्व विभाग के अधिकारी व कर्मचारी टेबल पर बैठकर आवंटन आदेश बना दिया? उन्हें बिल्कुल भी उस जमीन की वास्तविक स्थिति की जानकारी नहीं थी या फिर जानबूझकर ही हठधर्मिता दिखाते हुए ऐसा फैसला लिया गया?

आबंटन आदेश में कहीं पर भी महाविद्यालय को उस जमीन पर होना नहीं बताया गया…क्यों?
महाविद्यालय की ही जमीन पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण कराया जा रहा है जो वह नजरी नक्शा बता रहा है जो नजरी नक्शा दैनिक घटती घटना के हांथ लगा है वह कह रहा है, अब सोचने वाली बात यह है कि जब पुलिस अधीक्षक कार्यालय महाविद्यालय की जमीन पर बन रहा है और जिला प्रशासन ने वही जमीन नए पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए आबंटित की है तो फिर क्यों महाविद्यालय से अनापत्ति नहीं प्राप्त की गई या उनकी अनापत्ति नहीं स्वीकार की गई, महाविद्यालय प्रबंधन को क्यों आखिर नहीं बतलाया गया इस विषय में,वैसे महाविद्यालय प्रबंधन की बजाए जिला शिक्षा अधिकारी से अनापत्ति प्राप्त की गई जो मामले में भूस्वामी है भी की नहीं यह स्पष्ट नहीं है।
क्या महाविद्यालय जमीन पर है इस बात को छुपा कर ही यह आदेश निकाला जा सकता था?
जिस तरह पुलिस अधीक्षक कोरिया के नए कार्यालय के लिए महाविद्यालय की भूमि का आबंटन किया गया और जिसमे महाविद्यालय प्रबंधन से सहमति या अनापत्ति नहीं प्राप्त किया गया महाविद्यालय प्रबंधन की अनापत्ति को अस्वीकार भी किया और अंततः पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए महाविद्यालय की जमीन आबंटित की गई क्या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि महाविद्यालय प्रबंधन को सूचित कर किसी भी हाल में पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए जमीन आबंटित नहीं की जा सकती थी, क्या प्रशासन इस बात से वाकिफ था कि यदि महाविद्यालय प्रबंधन इस मामले में जानकारी प्राप्त कर लेगा कि महाविद्यालय की जमीन ही पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए दी जा रही है वह पूर्व आपत्ति करता इसलिए उसे नहीं बतलाया गया केवल एक औपचारिकता मात्र के लिए जिला शिक्षा अधिकारी से जो उक्त जमीन में स्पष्ट रूप से भू स्वामी नहीं हैं से अनापत्ति प्राप्त कर लिया गया।

2017 के नजरी नक्शे ने सारी चीज कर दी साफ और बता दिया की जमीन पर कौन है स्थापित
दैनिक घटती घटना के हांथ वर्ष 2017 का जो नजरी नक्शा हाथ लगा है वह नजरी नक्शा यही कह रहा है कि जिस जमीन पर नया पुलिस अधीक्षक कार्यालय बन रहा है वह जमीन महाविद्यालय की है, अब इस विषय में अन्य तथ्य उस हिसाब से बेमानी हैं जिसमें जमीन को महाविद्यालय का नहीं है बताया जा रहा है। कई दशकों से महाविद्यालय उसी जमीन कर काबिज है और महाविद्यालय का ही पूरे जमीन पर कब्जा चला आ रहा है यह स्पष्ट है नजरी नक्शे से।

महाविद्यालय की जमीन पर हो रहा है कब्जा पर प्रशासन सहित प्राचार्य क्यों हैं चुप?
शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव महाविद्यालय बैकुंठपुर की जमीन पर अन्य भी कब्जे जारी हैं, जमीन पर कुछ निर्माण गैर शासकीय गैर महाविद्यालय उपयोगी की बात सामने आ रही है, जमीन पर गैर शासकीय कब्जे को लेकर सभी मौन नजर आ रहे हैं,महाविद्यालय प्रबंधन मौन जहां धारण किए नजर आ रहा है वहीं जिला प्रशासन भी मौन धारण किए बैठा है। पूरे मामले में कब्जा बड़े तेजी से हो रहा है और प्रशासन केवल पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए जमीन आबंटित कर अपनी पीठ ठोक रहा है और श्रेय ले रहा है सत्ताधीशों से और कब्जे को लेकर वह मौन स्वीकृति प्रदान करने जैसी स्थिति में है।

महाविद्यालय के एक बहुत बड़े भूभाग में पंडाल बनाकर महाविद्यालय की जमीन पर हो रहा है कब्जा
शासकीय रामानुज प्रताप सिंहदेव महाविद्यालय बैकुंठपुर की कुछ जमीन पर तो पंडाल निर्माण का कार्य प्रारंभ नजर आ रहा है, यह पंडाल निर्माण कार्य जोरों से जारी है, पंडाल निर्माण कार्य को लेकर प्रशासन क्यों मौन है जबकि हालिया निर्देश न्यायालय का सामने है कि धार्मिक उद्देश्यों से शासकीय भूमि का प्रयोग अनुचित और गैर कानूनी है।
जिला शिक्षा विभाग के अधिकारी व प्राचार्य महाविद्यालय के सामने हो रहे कब्जे को लेकर मौन धारण कर बैठे हैं,क्यों?
जिला शिक्षा अधिकारी कोरिया और महाविद्यालय प्रबंधन अपनी ही अगल बगल की जमीन की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं वहीं जिला प्रशासन और राजस्व विभाग तो पहले से ही इस मामले में उदासीन नजर आ रहा है,जो जिला शिक्षा अधिकारी यह अनापत्ति जारी कर रहे हैं कि उनके कार्यालय के बगल की शासकीय भूमि पर नए पुलिस अधीक्षक कार्यालय बनाए जाने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है वही जिला शिक्षा अधिकारी यह आपत्ति नहीं दर्ज कर रहे हैं कि उनके कार्यालय से लगी जमीन पर पंडाल निर्माण का कार्य प्रगति पर है, महाविद्यालय प्रबंधन तो वैसे ही उदासीन बना चला आ रहा है और वह भी आपत्ति से बच रहा है,ऐसा क्यों दोनों कर रहे हैं आपत्ति दर्ज कर क्यों अपनी जमीन सुरक्षित नहीं कर रहे हैं यह बड़ा सवाल है।
यदि सीमांकन कर दिया जाए तो कई लोग महाविद्यालय की जमीन पर मिल जाएंगे काबिज
महाविद्यालय परिसर सहित जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय क्षेत्र परिसर की जमीन का यदि सीमांकन कर दिया जाए तो यह देखने को मिलेगा कि कई लोग शासकीय भूमि पर काबिज हैं,महाविद्यालय सहित जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के अगल बगल की जमीन पर कब्जे की वस्तुस्थिति की जानकारी तभी सामने आएगी जब सीमांकन होगा ,वैसे यह सीमांकन जिला प्रशासन को कराना था जब वह नए पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित कर रहा था वह भी इसी क्षेत्र परिसर में।
महाविद्यालय के हित में उठाया गई आवाज भी दबाई गई,आखिर क्या ऐसी मजबूरी थी जिला प्रशासन की?
महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण न हो इसको लेकर कई आपत्तियां सामने आईं,छात्रों ने आपत्ति दर्ज की, छात्र संगठनों ने जिसमें एबीवीपी छात्र संघ ने भी आपत्ति दर्ज की उन्होंने इसे महाविद्यालय के विस्तार का दुश्मन बताया वहीं महाविद्यालय प्रबंधन ने भी आपत्ति दर्ज करते हुए छात्रों की स्वतंत्रता बाधित होने की बात जिला प्रशासन के समक्ष रखी, इसी क्रम में राजनीतिक संगठनों और अन्य सामाजिक लोगों ने भी विरोध किया और पुलिस अधीक्षक कार्यालय के लिए अन्यत्र भूमि उपलब्ध कराए जाने की मांग की, पूर्व मुख्यमंत्री, क्षेत्रीय सांसद ने भी आपत्ति दर्ज की लेकिन सभी आपत्तियां जिला प्रशासन ने खारिज कर दी,अब जिला प्रशासन की कैसी और कौन सी मजबूरी थी आपत्तियों को खारिज करने के विषय में यह एक सवाल है। क्या केवल निर्णय पर अडिग रहकर निर्णय न बदलना एक जिद मात्र है जिला प्रशासन का।
जनप्रतिनिधि भी जानते थे कि… यह गलत हो रहा है…फिर भी चुप क्यों?-
सत्ताधारी दल के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों सहित नेता यह जानते हैं कि यह गलत हो रहा है और छात्र, महाविद्यालय प्रबंधन, विपक्ष,छात्र संगठन,अन्य समाज के लोग जो कह रहे हैं जो आपत्ति इस बात की दर्ज कर रहे हैं कि कम से कम महाविद्यालय परिसर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय का निर्माण न कराया जाए वह सही कह रहे हैं फिर भी वह मौन हैं,वह क्यों मौन हैं यह बड़ा सवाल है।


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